अक्षर विन्यास का अर्थ, महत्व, अशुद्धियों के कारण, सुधार के नियम

अक्षर विन्यास अथवा वर्तनी की शुद्धता भाषा का अनिवार्य अंग है। अभिव्यक्ति में विचारों की क्रमिकता एवं सुसम्बद्धता कितनी ही सुव्यवस्थित क्यों न हो परन्तु यदि विचारों को व्यक्त करने वाली भाषा शद्ध नहीं हो तो उसका असर नगण्य होकर रह जाएगा। भाषा की शुद्धता तो मुख्यत: शुद्ध अक्षर विन्यास पर निर्भर करती है। शुद्ध वाक्य विन्यास भी बहुत आवश्यक है, परन्तु वाक्य विन्यास का शुद्धता शुद्ध अक्षर विन्यास पर ही निर्भर करता है। अक्षर विन्यास हमारी लिखित अभिव्यक्ति को ही प्रभावित नहीं करता वरन् मौखिक अभिव्यक्ति को भी प्रभावित करता है।

अक्षर विन्यास का अर्थ

हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। देवनागरी लिपि संसार की वैज्ञानिक लिपि मानी जाती है, जिसकी विशेषता यह है कि एक प्रतीक के लिए एक ही ध्वनि को व्यक्त करने की पूर्ण सामर्थ्य हैं। इसमें जैसा बोला जाना है, वैसा ही लिखा जाता है, इस कारण इस लिपि में त्रुटियों की सम्भावना कम हो जाती हैं। आश्चर्य इस में यह है कि आज हिन्दी लिखने में सर्वाधिक अशुद्धियाँ पाई जाती है।

अक्षर विन्यास की शिक्षा के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक छात्रों द्वारा की जाने वाली सामान्य त्रुटियों से परिचित होकर उन्हें यथासम्भव दूर करने का प्रयास करें।

अक्षर विन्यास का महत्व

भाषा में अक्षर विन्यास का अपना विशिष्ट महत्व है अक्षरों के स्पष्ट ज्ञान के बिना भाषा शिक्षा अधूरी है। शुद्ध अक्षरों के स्पष्ट ज्ञान के बिना भाषा शिक्षा अधूरी है। शुद्ध अक्षरों के बिना भाषा नहीं लिखी जा सकती। अक्षरों का ज्ञान स्मरण शक्ति पर आधारित है। छात्र स्मरण करके अक्षरों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। रायबर्न महोदय ने शब्दों के अक्षरों को स्मरण करने के तीन ढ़ंग बताए हैं-
  1. देखकर
  2. सुनकर
  3. क्रिया द्वारा
रायबर्न के मतानुसार “अक्षरों की सीखने की सर्वोत्तम विधि वह है जिसमें तीनों का योग हो, तीनों नहीं तो कम से कम दो विधियाँ अवश्य अपनाई जाए।”

अक्षरों का कितना महत्त्व है, इसे उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा रहा है यथा- परिणाम एवं परिमाण, एक अक्षर के हेर फेर से दोनों का अर्थ बदल गया। एक का अर्थ ‘फल, ‘निष्कर्ष’ एवं ‘नतीजा’ हो गया। दूसरे का अर्थ ‘माप’ हो गया। इससे अक्षरों का महत्त्व विदित होता है। इसीलिए अक्षरों का शुद्ध ज्ञान नितान्त आवश्यक है।
  1. कुछ शब्दों की वर्तनी मानक होती है। एकाधिक मानक वर्तनी की सूची बनाकर सीखने वालों के सामने प्रस्तुत उपयोगी होता है जैसे- संबंध- सम्बन्ध, आनंद-आनन्द, स्वयं-स्वयम् आदि ऐसे ही शब्द है।
  2. प्रत्येक भाषा में कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो एक से लगते हुए भी अर्थों में विभिन्नता रखते हैं जैसे कोश- शब्दकोश कोष - खजाना। जरा- थोड़ा- जरा - बुढ़ापा। काफी - एक पेय, काफी - पर्याप्त। इनकी ओर लेखन सीखने वालों के ध्यान को आकृष्ट करना चाहिए।
  3. कुछ शब्द ऐसे हैं- जिनके हिन्दी में अर्थ भिन्न होते हैं और गुजराती व मराठी में उनके अर्थ अलग हो जाते हैं यथा - हिन्दी में आंगन - मराठी में आँगण, हिन्दी का मुक्का, मराठी में बुक्का। हिन्दी में जहाँ चन्द्रबिन्दु लगता है वहां मराठी में केवल बिन्दी लगती है। हिन्दी का ‘कृपण’ गुजराती में ‘कुशन’ और ‘महल’, ‘महेल’ हो जाता है।
  4. अंग्रेजी भाषा में But ‘बट’ 'Put' पुट वर्तनी उच्चारण के अनुरूप नहीं है हिन्दी में जैसे बोलते ‘पाणी’ है लिखते ‘पानी’ हैं। ऐसे अनुस्तरित शब्दों की सूची बनाकर सीखने वालों के समक्ष प्रस्तुत करना विशेष उपयोगी होता है।

अक्षर विन्यास की अशुद्धियाँ

मात्राओं की अशुद्धि
शुद्ध      अशुद्ध      शुद्ध      अशुद्ध
गुरु       गुरू       उनके       ऊनके
शिशिर       शिसीर       निशि       निसी

रेफ सम्बन्धी अशुद्धि
शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध
पर्चा       पर्चा       गृह       ग्रह
निर्माण       निरमाण       स्वर्ग       स्र्वग

संयुक्ताक्षरों की अशुद्धियां
शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध
प्रताप       परताप       वीरेन्द्र       वरीन्द्र
ज्ञान       ग्यान       रविन्द्र       रवीन्द्र

अनुनासिक एवं अनुस्वरों की अशुद्धि
शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध
हँसी       हंसी       अंक       अन्क
उनमें       उनमे       संस्कृति       सँस्कृति

हृस्व एवं दीर्घ अनुस्वरों की भूलें
शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध
गिरि       गिरी       निशि       निसी
हेतु       हेतू       हिन्दी       हिन्दि
कवि       कवी       छवि       छवी
शक्ति       शक्ती       पीली       पीलि
नूपुर       नुपुर       उलूक       ऊलूक

चन्द्र बिन्दु/अनुस्वार सम्बन्धी भूलें
शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध
कंधा       कँधा       संस्कृति       सँस्कृति
हँसी       हंसी       प्रांत       प्राँत

‘न’ और ‘ण’ सम्बन्धी भूलें
शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध
कारण       कारन       गुण       गुन
रण       रन       शरण       शरन

‘व’ तथा ‘ब’ सम्बन्धी भूलें
शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध
वसंत       बसंत       वन       (जंगल) बन
विविध       बिबिध       विशेष       बिशेष

अन्य भूलें
शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध
स्नान       अस्नान       स्कूल       ईस्कूल
हिमालय       हिमालया       भूख भूक
बुढ़ापा       बुड़ापा       ऋषि       रिसी
कष्ट       कश्ट       वर्षा       वर्षा
क्रीड़ा       कीड़ा       ऋतु       रितु

‘ठ’ के स्थान पर ट लिख देना; जैसे-
शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध
षष्ट       षष्ठ       पृष्ट       पृष्ठ
बलिष्ट       बलिष्ठ

ऋ के स्थान पर रि लिख देना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
रिषि       ऋषि       रितु       ऋतु
रिण       ऋण
ऋ की मात्रा के स्थान पर अर्ध र लिख देना अथवा इसका उल्टा कर देना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
प्रथ्वी       पृथ्वी       पृथा       प्रथा
ग्रह-कार्य       गृह-कार्य       उपगृह       उपग्रह

अर्द्ध र (र् ) के स्थान पर पूरा र लिख देना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
परव       पर्व       दरपण       दपर्ण
करकश       कर्कश

पूरे र के स्थान पर आधा र (र् ) लिख देना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
नर्क       नरक       गर्ल       गरल
गर्ल       गरल       मर्ण       मरण

द्य के स्थान पर ध्य अथवा ध लिख देना, जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
विध्यमान       विद्यमान       विघ्यार्थी       विद्यार्थी
मध       मद्य

भ के स्थान पर म लिख देना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
मक्ति       भक्ति       तमी       तभी
कमी       कभी

क्त (क्त) के स्थान पर त्त लिख देना, जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
संयुत्त       संयुक्त       भत्त       भक्त
वियुत्त       वियुक्त

ध के स्थान पर घ लिख देना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
घनुष       धनुष       घैर्य       धैर्य

श, “ा तथा स की अशुद्धि जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
मनुश्यता       मनुष्यता       आकर्शक       आकर्षक
विसेस,       विषेश,       विशेस       विशेष       विसय       विषय
सेस       शेष       शंकट       संकट
शुशील       सुशील       शुशोभित्त       सुशोभित
कैलाश       कैलास       कोशल       कोसल

क्ष के स्थान पर छ लिख देना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
लछ्मण       लक्ष्मण       छत्री       क्षत्री
परीच्छा       परीक्षा       छति       क्षति
छेत्र       क्षेत्र       छितिज       क्षितिज
छीर       क्षीर       छीण       क्षीण
मड़ना       मढ़ना       टेड़ी       टेढ़ी

ण के स्थान पर ड़ लिख देना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
गड़ित       गणित       गौड़       गौण
कोड़       कौण       गड़ना (गिनती करना)       गणना

ड़ अथवा ढ़ के स्थान पर ण लिख देना, जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
प्रौण       प्रौढ़       गरुण       गरुड़

ड़ तथा ढ़ के नीचे बिन्दी न लगाना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
गढ       गढ़       गडना       गड़ना
पेड       पेड़       गाडी       गाड़ी

ये तथा ए का अन्तर न समझना; जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
चाहिये       चाहिए       लिये (परसर्ग)       लिए

विशेष- क्रिया-पद के रूप ‘लिये’ (प्राप्त किए) शुद्ध है; यथा - राम ने मुझसे फल लिये।

पंचम वर्ण सम्बन्धी अशुद्धियाँ
बहुत से विद्वान् इस पक्ष में हैं कि वर्णों (कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग तथा पवर्ग) का पंचम वर्ण ही अनुस्वार के स्थान पर प्रयुक्त किया जाय, जैसे-
अशुद्ध       शुद्ध       अशुद्ध       शुद्ध
अंक       अड़्क       पंचम       पचम
खंड       खण्ड       पुरंदर       पुरन्दर

संस्कृत में ड, ढ के नीचे बिन्दी नहीं लगती। वहाँ जड़, नीड़, चूड़ामणि की जगह जड, नीड, चूडामणि ही लिखा जाता है।

अक्षर विन्यास अशुद्धियों के कारण

अक्षर सम्बन्धी अशुद्धियों के अनेक कारण है, जिनमें मुख्य है-
  1. अशुद्ध उच्चारण
  2. लिपि का अधूरा ज्ञान
  3. लिखने में शीघ्रता करना
  4. लिखने में असावधानी बरतना
  5. प्रान्तीयता
  6. मात्राओं का ठीक से ज्ञान नहीं होना
  7. शब्द लाघव प्रवृत्ति
  8. शारीरिक विकार
  9. पुस्तकों मुद्रण सम्बन्धी अशुद्धियाँ
  10. व्याकरण के नियमों के ज्ञान का अभाव
  11. अन्य भाषाओं का प्रभाव
  12. चन्द्र बिन्दु एवं अनुस्वार का भ्रम

अक्षर विन्यास सम्बन्धी अशुद्धियों का निराकरण

1. शुद्ध उच्चारण की शिक्षा: रायबर्न ने लिखा है- “शुद्ध उच्चारण की शिक्षा, बालकों को शुद्ध वर्ण-विन्यास सीखने में अत्याधिक सहायता करती है।” अत: शिक्षकों को शुद्ध उच्चारण पर बल देना चाहिए।

2. लिपि का पूर्ण ज्ञान: हिन्दी के अक्षरों के सुधार एवं परिशुद्धता के लिए यह आवश्यक हैं कि छात्रों को लिपि का पूर्ण ज्ञान देना चाहिए ‘रफ’ और ‘रकार’ सम्बन्धी भूलों के परिष्कार के लिए लिपि का ज्ञान आवश्यक है, ताकि छात्र गृह को ग्रह न लिखें, अन्यथा वह ‘घर’ के बदले ‘नक्षत्र‘ लोक में पहुँच जायेगा।

3. पढ़ने के अवसर: अक्षरों एवं वर्णों के सुधार के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों के पढ़ने को अधिक से अधिक अवसर दिये जाए। इससे उनका अधिकतम शब्द, अक्षरों, मात्राओं से परिचय होगा और उनका अभ्यास बढ़ेगा।

4. लिखने के अधिक अवसर: अधिक लिखने से छात्रों का परिचय अधिक अक्षरों एवं शब्दों से होगा। छात्रों के लिखित कार्य का संशोधन अध्यापक द्वारा सावधानीपूर्वक होना चाहिए इससे उनका वर्ण-विन्यास सुधरता है।

5. अनुलेख, प्रतिलेख व श्रुतलेख: छात्रों को लिखने का अभ्यास कराना अनिवार्य है। लिखना ध्यानपूर्वक होना चाहिए लिखते समय उच्चारण भी कराना चाहिए।

6. अनुस्वार, अनुनासिक एवं चन्द्रबिन्दु का स्पष्ट ज्ञान: छात्रों को अनुस्वरों, अनुनासिक शब्दों एवं चन्द्रबिन्दु के बारे में स्पष्ट एवं ठोस जानकारी प्रदान करनी चाहिए। क्योंकि इनसे सम्बन्धित भूलें अधिक होती हैं। अत: छात्रों से इनका निरन्तर अभ्यास कराया जाना चाहिए।

7. विश्लेषण विधि का प्रयोग: संयुक्ताक्षरों एवं कठिन शब्दों को सरल बनाने के लिए विश्लेषण विधि प्रयुक्त की जानी चाहिए यथा कवयित्री (क + व + यि + त्री), वैयक्तिक (वै + यक् + तिक्)। इससे छात्रों को अक्षर बोध होता है। 

8. शब्दकोष का प्रयोग: छात्रों को शब्दकोष का प्रयोग करना सिखाए, ताकि कठिन शब्दों के बारे में आवश्यकता पड़ने पर उनकी जानकारी प्राप्त कर लें। इससे अक्षर का ठोस ज्ञान प्राप्त हो जाता है और भूल की सम्भावना नहीं रहती। 

9. अक्षर विन्यास का अर्थ के साथ सम्बन्ध: केवल शब्द-ज्ञान ही पर्याप्त नहीं। अक्षरों के साथ उसका सम्बन्ध जोड़ने से छात्रों को सब-कुछ स्पष्ट हो जाता है। सब कुछ स्थायी हो जाता है।

10. अशुद्धियों का वर्गीकरण: अक्षरों व वर्णों की बुनियादी भूलों का वर्गीकरण कर लेना चाहिए यथा मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ, अल्पप्राण एवं महाप्राण सम्बन्धी अशुद्धियां, रेफ सम्बन्धी अशुद्धियाँ आदि। वर्गीकरण करने पर कक्षा के छात्रों के समक्ष श्यामपट्ट पर इन अशुद्धियों को क्रमश: विधिवत समझाना चाहिए।

11. खेल द्वारा शिक्षण: खेल द्वारा शिक्षण के माध्यम से शिक्षक अक्षर विन्यास कर सकता है। इस सन्दर्भ में इन विधियों का सहारा लेना चाहिए-
  1. अक्षरों की लिखित प्रतियोगिता करानी चाहिए।
  2. शब्द-विन्यास प्रतियोगिता छात्रों को दलों में बाँट कर करानी चाहिए।
  3. रिक्त स्थानों की पूर्ति कराए।
  4. निरर्थक शब्दों से सार्थक शब्द बनवाएं।
  5. श्यामपट्ट पर शब्दों की प्रतियोगिता कराई जाए।
  6. रचना सम्बन्धी प्रतियोगिता कराई जाए
  7. उपरोक्त तरीकों से वर्तनी में सुधार किया जा सकता है।

अक्षर विन्यास के सुधार के नियम

  1. जिन शब्दों के अन्त में ‘ए’ अथवा ‘ये’ आयेगा; उससे पूर्व आने वाली ह्रस्व होगी जैसे- पीजिए, दीजिए, जाईये आदि।
  2. जिन शब्दों के अन्त में ‘का’ आयेगा उनसे पूर्व आने वाली ‘इ’ ह्रस्व होगी। यथा:- चन्द्रिका, मुद्रिका, गायिका आदि।
  3. जिन शब्दों के अन्त में ‘ल’ होगा, उससे पूर्व आने वाली ‘इ’ Îहृस्व हो जायेगी। जैसे- धूमिल, कुटिल आदि।
  4. जिन शब्दों के अन्त में ‘ओं’ आयेगा, उससे पूर्व आने वाला ‘उ’ ह्रस्व होगा। जैसे- शत्रुओं, हिन्दुओं आदि।
  5. जिन शब्दों के आदि वर्ण पर ‘ ँ ‘ हो उसमें दीर्घ ‘ ऊ ‘ की मात्रा लगेगी। जैसे मूँगफली, मूँछ, गूँज इत्यादि।
  6. जिन शब्दों के अन्त में ‘ए’ आयेगा उसके पूर्व आने वाला ‘उ’ ह्रस्व होगा जैसे- बहुएं, वस्तुएं आदि।

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