गद्य साहित्य का महत्त्वपूर्ण अंग है, जिसमें छन्द अलंकार योजना रस विधान आदि का निर्वाह करना आवश्यक नहीं। गद्य की विशेषता तथ्यों को सर्वमान्य भाषा के माध्यम से, ज्यों का त्यों प्रस्तुत करने में होती है। गद्य साहित्य की अनेक विधाएँ है- कहानी नाटक, उपन्यास निबन्ध, जीवनी, संस्मरण, आत्मचरित रिपोर्ताज व्यंग्य आदि।
गद्य शिक्षण की विधियाँ
कविता कब और कैसे पढ़ाई जाए, इस विषय पर बहुत विचार मंथन हुआ है, परन्तु गद्य कब और कैसे पढ़ाया जाये, इस पर अपेक्षाकृत कम विचार हुआ है। गद्य शिक्षण की जिन प्रणालियों का अब तक विकास हुआ है, उनका सामान्य परिचय प्रस्तुत है-
1. अर्थकथन प्रणाली: इस प्रणाली में अध्यापक गद्यांशों का पठन करता चलता है और साथ-साथ कठिन शब्दों के अर्थ बताता चलता है। बाद में शिक्षक वाक्यों के सरलार्थ बताता है एवं जहां कही आवश्यक होता है वहाँ भावों को स्पष्ट करने के लिए व्याख्या भी कर देता है। इस विधि में सारा कार्य केवल अध्यापक ही करता है, छात्रों को सोचने-विचारने का कुछ मौका नहीं मिलता। अत: यह प्रणाली अमनोवैज्ञानिक है।
1. व्याख्या प्रणाली: यह विधि अर्थ कथन विधि का ही विकसित रूप है। इस प्रणाली में अध्यापक शब्दार्थ के साथ-साथ शब्दों और भावों की व्याख्या भी करता है। वह शब्दों की व्युत्त्पति की चर्चा करता है, उनके पर्याय बताता है, उन पर्यायों में भेद करता है। उपसर्ग प्रत्यय, सन्धि व समास की व्याख्या करता है। शिक्षण सामग्री को स्पष्ट करने के लिए अनेक उदाहरण देता है एवं अपनी बात के समर्थन में उद्धरण देता है। इस प्रणाली में अधिकांश कार्य स्वयं शिक्षक करता है, छात्र कम सक्रिय रहते हैं।
3. विश्लेषण प्रणाली: इस प्रणाली को प्रश्नोत्तर प्रणाली भी कहा जाता है। इस प्रणाली में अध्यापक शब्द एवं भावों की व्याख्या के लिए प्रश्नोत्तर का सहारा लेता है, और छात्रों को स्वयं सोचने और निर्णय निकालने के अवसर प्रदान करता है। इस विधि में अध्यापक बच्चों के पूर्व ज्ञान के आधार पर नए ज्ञान का विकास करता है। इस विधि में छात्र एवं शिक्षक दोनों ही क्रियाशील रहते हैं। अत: प्रणाली उत्तम है।
4. समीक्षा प्रणाली: यह प्रणाली उच्च कक्षाओं में प्रयुक्त की जाती है। इस विधि में गद्य के तत्त्वों का विश्लेषण कर उसके गुण-दोष परखे जाते हैं। गद्य शिक्षण प्रणाली का मुख्य उद्देश्य भाषायी ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि करना है और उनकी वृद्धि के लिए शिक्षक संदर्भ ग्रंथ एवं रचनाओं के बारे में भी बताता है, जिनका अध्ययन कर छात्र पाठ्य-वस्तु के गुण-दोषों का विवेचन कर सकें। इस विधि में छात्रों का स्वयं काफी कार्य करना पड़ता है, यह विधि बच्चों में स्वाध्याय की आदत विकसित करने में विशेष रूप से सहायक होती है।
5. संयुक्त प्रणाली: माध्यमिक स्तर पर इन सभी प्रणालियों का आवश्यकतानुसार मिश्रित रूप से प्रयोग करके हम गद्य शिक्षण को प्रभावशाली बना सकते हैं। भाषायी कौशल एवं ज्ञान प्रदान करने के लिए व्याख्या एवं विश्लेषण-प्रणाली को संयुक्त रूप से अपनाया जाये। इस संयुक्त प्रणाली के माध्यम से गद्य पाठों की शिक्षा रोचक, आकर्षक एवं प्रभावशाली ढ़ंग से दी जा सकेगी।
गद्य शिक्षण का महत्व
- दैनिक जीवन में: हमारे अनेक लेन-देन व्यापार गद्य के माध्यम से सम्पन्न होते हैं। विद्यालयों में करवाया जाने वाला गद्य-शिक्षण इन कार्य-व्यापारों को कुशलता पूर्वक सम्पन्न करवाने में सहायक होता है।
- ज्ञानार्जन के रूप में: आज गद्य ज्ञानार्जन का मुख्य साधन है। समाचार पत्र, पत्र-पत्रिकाएँ, ज्ञान-विज्ञान की बातें हमें गद्य रूप में विपुल मात्रा में उपलब्ध है।
- भाषिक तत्त्वों की जानकारी: भाषा के तत्त्वों की जानकारी का सुगम तरीका गद्य है कविता नहीें। उच्चारण बलाघात, वर्तनी, शब्द, रूपान्तरण, उपसर्ग प्रत्यय, सन्धि, समास, मुहावरे, लोकोक्ति पद, पदबन्ध, तथा वाक्य संरचनाएं आदि भाषिक तत्त्वों का ज्ञान गद्य के माध्यम से सुगमतापूर्वक दिया जा सकता है।
- व्याकरण-सम्मत भाषा: गद्य कवीनां निकवं वदार्ंन्त अर्थात् साहित्यकार की कसौटी गद्य मानी गई है। गद्यकार को व्याकरण के समस्त नियमों का पालन करते हुए लिखना पड़ता है। उसकी भाषा परिमार्जित एवं परिनिष्ठत होती है। विद्यार्थी जिस समय गद्य को पढ़ता है, उसकी अपनी भाषा भी व्याकरण सम्मत हो जाती है।
- भावात्मक विकास: संस्कारों का परिमार्जन गद्य के माध्यम से ही संभव है। आज गद्य के क्षेत्र में इस प्रकार का प्रचुर साहित्य उपलब्ध है जिसके द्वारा छात्रों का भावात्मक विकास सम्भव है। सन् 1986 में घोषित ‘नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ में विद्यार्थियों के भावात्मक विकास पर विशेष बल दिया गया है।
गद्य शिक्षण के उद्देश्य
- व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग करना।
- शब्दों का प्रभावशाली प्रयोग करना।
- शब्द भण्डार की वृद्धि करना।
- संक्षिप्त जीवनी लिख सकना।
- सभाओं व उत्सवों का प्रविवेचन तैयार करना।
- लेखन में सृजनात्मकता व मौलिकता का विकास करना।
- लिपि के मानक रूप का व्यवहार करना
- रूप विज्ञान तथा ध्वनि विज्ञान के आधार पर शब्दों की वर्तनी का ज्ञान होना
- शब्दकोश को देखने की योग्यता का विस्तार करना
- विराम चिन्हों का सही प्रयोग करना
- शब्दों, मुहावरों और पदबन्धों का उपयुक्त प्रयोग करना
- उपयुक्त अनुच्छेदों में बाँट कर लिखना
- देखी हुई घटनाओं का वर्णन करना
- सार, संक्षेपीकरण, भावार्थ, व्याख्या लिखना
- अपठित रचना का सारांश लिख सकना
- किसी विषय की वर्णनात्मक तथा भावात्मक शैली में अभिव्यक्ति कर सकना
- पठित रचना की व्याख्या करना
- वर्णात्मक, विवेचनात्मक, भावात्मक शैलियों में निबन्ध लिखने की क्षमता का विकास करना
- विभिन्न साहित्यिक विधाओं के माध्यम से अपने भाव, विचार, अनुभव, प्रतिक्रिया व्यक्त करना।
Very nice
ReplyDeleteमेरा कविता का ब्लॉग है आप मुझे sangeetasharmakundra.blogspot.com पर पढ़ सकते हो
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