हैरोड-डोमर मॉडल की मुख्य आलोचनाएं

हैरोड डोमर मॉडल

हैरोड और डोमर दोनों अर्थशास्त्रियों ने केन्ज के आय, उत्पादन और रोजगार सम्बन्धी विचार को अधिक व्यापक दीर्घकालीन रुप में प्रस्तुत किया है। हैरोड और डोमर के मॉडल की व्याख्या अलग-अलग ढ़ंग से होने पर भी दोनों मॉडल का सारांश एक ही है। इसी कारण से दोनों मॉडल को एक साथ ही पढ़ा जाता है।

हैरोड-डोमर मॉडल आर्थिक विकास की प्रक्रिया में निवेश को एक महत्वपूर्ण तत्व मानते है क्योंकि निवेश दोहरी भूमिका निभाता है। एक ओर तो आय का निर्माण होता है और वहीं दूसरी ओर पूंजी स्टॉक में वृद्धि करके देष की उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है। निवेश की इस पहली विशेषता को ‘मांग प्रभाव’ और दूसरी को ‘पूर्ति प्रभाव’ कहा जाता है।

हैरोड-डोमर मॉडल के अनुसार दीर्घकाल में पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए शुद्ध निवेष में निरन्तर वृद्धि की जानी चाहिए। इसके लिए वास्तविक आय में निरन्तर वृद्धि उस दर पर की जानी चाहिए ताकि बढ़े हुए पूंजी स्टॉक की पूर्ण क्षमता का प्रयोग हो सके।

हैरोड मॉडल

हैरोड ने सतत विकास के लिए आर्थिक विकास के मॉडल को अपनी पुस्तक Towards Dynamic Economics (1939) में दिया। यह मॉडल पूर्ण रोजगार प्राप्त कर चुकी विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए है। हैरोड मॉडल गुणक और त्वरक के सिद्धान्त को समन्वित करके पूर्ण रोजगार को बनाए रखने के तरीकों की व्याख्या करता है।

हैरोड मॉडल की निम्नलिखित मान्यताएं हैं:
  1. पूंजी उत्पाद अनुपात तथा श्रम उत्पाद अनुपात को स्थिर माना गया है।
  2. आयोजित समस्त बचत का स्तर समस्त आय का स्थिर अनुपात है।
  3. तकनीकि प्रगति का सम्पूर्ण प्रभाव तटस्थ है।
  4. पैमाने के स्थिर प्रतिफल है।
  5. उद्यमी निवेश की जो इच्छा करते है वो उत्पादन में वृद्धि  की गति पर निर्भर करता है।

डोमर मॉडल

डोमर ने अपने विकास मॉडल को अपनी पुस्तक Essays in the Theory of Economic Growth में प्रतिपादित किया है। डोमर ने शुद्ध निवेश की दोहरी भूमिका का बताया है। एक तो यह उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है, वहीं दूसरी ओर यह आय का प्रजनन करता है।

डोमर के अनुसार, अर्थव्यवस्था तब सन्तुलन में कही जाएगी जब इसकी उत्पादन क्षमता राष्ट्रीय आय के बराबर हो जाती है।

डोमर मॉडल की मान्यताएं - डोमर मॉडल निम्नलिखित धारणाओं पर आधारित हैं:
  1. आय का एक प्रारंभिक पूर्ण रोजगार संतुलन स्तर होता है।
  2. सरकारी हस्तक्षेप का अभाव होता है।
  3. ये मॉडल बन्द अर्थव्यवस्था में कार्य करते हैं जिनमें विदेशी व्यापार नहीं होता।
  4. निवेश तथा उत्पादक क्षमता या निर्माण के बीच समायोजन होने में देर नहीं लगती।
  5. औसत बचत-प्रवृत्ति के बराबर होती है।
  6. सीमान्त बचत-प्रवृत्ति स्थिर रहती है।
  7. पूंजी गुणांक अर्थात् पूँजी-स्टॉक का आय से अनुपात स्थिर मान लिया जाता है।
  8. पूँजी वस्तुओं का मूल्यह्रास नहीं होता क्योंकि उन्हें अनन्तजीवी मान लिया जाता है।
  9. बचत तथा निवेश उसी वर्ष की आय से संबंध रखते हैं।
  10. सामान्य कीमत स्तर स्थिर रहता है अर्थात् मौद्रिक आय तथा वास्तविक आय समान होती हैं।

हैरोड-डोमर मॉडल की तुलना

हैरोड और डोमर के विकास सम्बन्धी मॉडलों में कई  समानताएं तथा असमानताएं है जिनका उल्लेख इस प्रकार है:

हैरोड-डोमर मॉडल की मुख्य समानताएं इस प्रकार है:
  1. ये दोनों मॉडल लगभग एक जैसी मान्यताओं पर आधारित है।
  2. हैरोड और डोमर मॉडल केन्ज की धारणाओं जैसे सीमान्त बचत प्रवृति, गुणांक, निवेश तथा बचत की समानता आदि का प्रयोग करता है।
  3. ये दोनों मॉडल विकसित अर्थव्यवस्था के पूर्ण रोज़गार स्तर पर सतत विकास दर से सम्बन्धित है।
  4. दोनों मॉडल के अनुसार पूंजीवादी विकसित अर्थव्यवस्थाएं निरन्तर सतत विकास की दर को कायम नहीं रख सकती।
  5. दोनों मॉडलों में पूर्ण रोजगार पर सतत विकास की एक ही शर्त है अर्थात् नियोजित बचत = नियोजित निवेश। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए निवेश में होने वाली वृद्धि सीमान्त बचत प्रवृति तथा उत्पादन-पूंजी अनुपात की गुणा के बराबर होनी चाहिए।
  6. दोनों मॉडल प्रयोगात्मक (experimental) सन्तुलन मार्ग के सन्दर्भ में बनाए गए है।
  7. दोनों मॉडल में पूर्ण रोजगार बनाए रखने की दृष्टि से निवेश में वृद्धि पर जोर दिया गया है।
हैरोड-डोमर मॉडल की मुख्य असमानताएं इस प्रकार है:
  1. हैरोड और डोमर ने आय और निवेश में जो सम्बन्ध बताया है वह एक दूसरे के विपरीत है। हैरोड के अनुसार पहले आय में वृद्धि होती है और उसके बाद निवेश में वृद्धि होती है। डोमर के अनुसार पहले निवेश में वृद्धि होती है और उसके बाद आय में वृद्धि होती है।
  2. हैरोड ने सीमान्त बचत प्रवृति के लिए α (अल्फा) शब्द का प्रयोग किया है जबकि डोमर ने σ (सिग्मा)षब्द का प्रयोग किया है।
  3. हैरोड ने अपने विश्लेषण में विकास प्रक्रिया में उद्यमियों को प्रभावित करने वाले मनोवैज्ञानिक तत्वों को जबकि डोमर ने तकनीकि तत्वों का महत्वपूर्ण बताया है।
  4. डोमर ने अपने मॉडल में केवल एक ही विकास दर अर्थात् सन्तुलन विकास दर को बताया है। इसके विपरीत हैरोड ने विकास की तीन दरों का उल्लेख किया है।
  5. डोमर का मॉडल आर्थिक विकास के लिए नियोजित निवेश में वृद्धि करने का सुझाव देता है जबकि हैरोड पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रेरित निवेश का समर्थन करता है।
  6. डोमर का मॉडल गुणक के विष्लेशण पर निर्भर करता है जबकि हैरोड का मॉडल त्वरक के सिद्धान्त पर निर्भर करता है।
  7. डोमर निवेश को आय में वृद्धि से सम्बन्धित करता है जबकि हैरोड उस मार्ग को बतलाता है जिसके द्वारा निवेश को आय की दर से जोड़ा जाता है।

हैरोड-डोमर मॉडल की आलोचनाएं

हैरोड-डोमर मॉडल की मुख्य आलोचनाएं इस प्रकार है:
  1. श्रम तथा पूंजी में स्थिर अनुपात की मान्यता सही नही है क्योंकि श्रम और पूंजी का एक स्थिर अनुपात में प्रयोग किया जाना आवश्यक नहीं है।
  2. पूंजी उत्पाद अनुपात स्थिर नहीं है। दीर्घकाल में तकनीकी परिवर्तनों के कारण पूंजी उत्पाद अनुपात में परिवर्तन आता रहता है।
  3. यह मान्यता भी गलत है कि बचत प्रवृति स्थिर रहती है। लोगों की आदतों, रुचि, जीवन स्तर आदि में परिवर्तन आता रहता है। इन परिवर्तनों के कारण बचत प्रवृति स्थिर नहीं रहती।
  4. प्राकृतिक विकास दर व्यावहारिक नहीं है क्योंकि तकनीकी और संगठनात्मक परिवर्तनों द्वारा श्रम एवं पूंजी की उत्पादकता का बढ़ाया जा सकता है।
  5. हैरोड-डोमर मॉडल आर्थिक विकास की प्रक्रिया में सरकार के योगदान की अवहेलना करता है। वर्तमान समय में सरकार और राजकोशीय नीति के महत्व की अवहेलना करने वाला सिद्धान्त अधिक व्यवहारिक सिद्ध नहीं हो सकता।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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