लोकसभा की शक्तियां तथा उसके कार्य

लोकसभा को निम्न सदन या प्रथम सदन कहा जाता है । यह सदन जनता का प्रतिनिधित्व करता है । लोकसभा में सदस्यों की संख्या 552 से अधिक नहीं होगी । जिसमें 530 सदस्य राज्यों के चुनाव क्षेत्रों से निर्वाचित तथा 20 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों के चुनाव क्षेत्रों से निर्वाचित होते हैं । राष्ट्रपति ऐसे दो सदस्यों को नामित करेगा जो आंग्ल समुदाय से हों । वर्तमान में लोकसभा की सदस्य संख्या 545 है । राज्यों के चुनाव क्षेत्र जनसंख्या के आधार पर बनाये जाते हैं । लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से, 5 वर्षों के लिये होता है । 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी भारतीय नागरिक मतदान कर लोकसभा के सदस्यों का चुनाव कर सकते है। ।

लोकसभा के कार्य और शक्तियां 

लोकसभा की शक्तियों तथा उसके कार्यों का अध्ययन निम्न रूपों में किया जा सकता है।
  1. लोकसभा की विधायी शक्ति 
  2. लोकसभा की वित्तीय शक्ति 
  3. लोकसभा की कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति 
  4. लोकसभा की संविधान संशोधन सम्बन्धी शक्ति 
  5. लोकसभा की विविध कार्य
1. लोकसभा की विधायी शक्ति - संविधान के अनुसार भारतीय ससंद संघ सूची, समवर्ती सूची, अवशेष विषयों और कुछ विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून का निर्माण कर सकती है। यद्यपि संविधान के द्वारा साधारण अवित्तीय विधेयकों के सम्बन्ध में लोकसभा और राज्यसभा को समान शक्ति प्रदान की गई है। संविधान में कहा गया है कि इस प्रकार के विधेयक दोनों में से किसी एक सदन में प्रस्तावित किए जा सकते है और दोनों सदनो से पारित होने पर ही राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजे जाएंगे, लेकिन इसके साथ ही दोनो सदनो में मतभेद उत्पन्न हो जाने पर राष्ट्रपति द्वारा देानों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाए जाने की व्यवस्था है और लोकसभा में रहस्य संख्या राज्यसभा की संख्या की दुगनी से भी अधिक होने के कारण सामान्यतया इस बैठक में विधेयक के भाग्य का निर्णय लोकसभा की इच्छानुसार ही होता है। 

इस प्रकार कानून निर्माण के सम्बन्ध में अन्तिम शक्ति लोकसभा के पास है और राज्यसभा साधारण अवित्तिय विधेयक को 6 मास तक रोके रखने के अलावा और कुछ नही कर सकती है। व्यवहार को अन्तर्गत अब तक महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किए जाते रहे हैं।

2. लोकसभा की वित्तीय शक्ति - भारतीय संविधान द्वारा वित्तीय क्षेत्र के सम्बन्ध में शक्ति लोकसभा को ही प्रदान की गई है और इस सम्बन्ध में राज्यसभा की स्थिति बहुत गौण है। अनुच्छेद 109 के अनुसार वित्त विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किए जा सकते है, राज्यसभा में नही। लोकसभा से पारित होने के बाद वित्त विधेयक राज्यसभा में भेजा जाता है। और राज्यसभा के लिए यह आवश्यक है कि उसे वित्त विधेयक की प्राप्ति की तिथि के 14 दिन के अन्दर-अन्दर विधेयक लोकसभा को लौटा देना होगा। राज्यसभा विधेयक में संशोधन के लिए सुझाव दे सकती है, लेकिन इन्हें स्वीकार करना या न करना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। 

संविधान यह भी व्यवस्था करता है कि यदि वित्त विधेयक प्राप्त होने के बाद 14 दिन के अन्दर राज्यसभा सिफारिशों सहित या सिफारिशों के बिना वित्त विधेयक लोकसभा को न लौटाए, तो निश्चित तिथि के बाद वह दोनों सदनों से पारित मान लिया जाएगा। 

वार्षिक बजट और अनुदान सम्बन्धी मांग की लोकसभा के समक्ष ही रखी जाती है और इस प्रकार के समस्त व्यय की स्वीकृति देने का एकाधिकार लोकसभा को ही प्राप्त है।

3. लोकसभा की कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति - भारतीय संविधान के द्वारा संसदात्मक व्यवस्था की स्थापना की गई है। अत: संविधान के अनुसार कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिमण्डल संसद (व्यवहार में लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी होता है। मन्त्रिमण्डल केवल उसी समय तक अपने पद पर रहता है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। संसद अनेक प्रकार से कार्यपालिका पर नियंत्रण रख सकती है। संसद के सदस्य मन्त्रियों से सरकारी नीति के सम्बन्ध में व सरकार के कार्यो के सम्बन्ध में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते है तथा उनकी अलोचना कर सकते है। ससंद सरकारी विधेयक अथवा बजट को स्वीकार करके, मन्त्रियों के वतेन में कटौती का प्रस्ताव स्वीकार करके अथवा किसी सरकारी विधेयक में कोई ऐसा संशोधन करके, जिससे सरकार सहमत न हो, अपना विरोध प्रदर्शित कर सकती है। वह कामरोकों प्रस्ताव (Adjourvment Motion) पास करके भी सरकारी नीति की गलतियों को प्रकाश में ला सकती है अन्तिम रूप से लोकसभा के द्वारा अविश्वास का प्रस्ताव पास करके कार्यपालिका अर्थात मंत्रिमण्डल को उसके पद से हटाया जा सकता है।

4. लोकसभा की संविधान संशोधन सम्बन्धी शक्ति - लोकसभा को संविधान में संशोधन और परिवर्तन करने का अधिकार प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार संविधान में संशोधन कार्य संसद के द्वारा ही किया जा सकता है और इसी अनुच्छेद में उस प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है, जिसे संविधान के संशोधन के सम्बन्ध में लोकसभा और राज्ससभा की स्थिति समान है। क्योंकि संविधान संशोधन विधेयक दोनों में से किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते है और उन्हें तभी पारित समझा जाएगा, जबकि उन्हें संसद के दोनों सदन अलग-अलग अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित कर दें। 

संविधान के अधिकांश प्रावधानों में अकेली संघीय संसद के द्वारा ही परिवर्तन किया जा सकता है; केवल कुछ ही प्रावधानों में संशोधन के लिए भारतीय संघ के आधे राज्यों के विधानमण्डलों की स्वीकृति आवश्यक होती है।

(i) निर्वाचक मण्डल के रूप में कार्य : लोकसभा निर्वाचक मण्डल के रूप में भी कार्य करती है। अनुच्छेद 54 के अनुसार लोकसभा के सदस्य राज्यसभा के सदस्यों तथा राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के साथ मिलकर राष्ट्रपति केा निर्वाचित करते है। अनुच्छेद 66 के अनुसार लेाकसभा और राज्यसभा मिलकर उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है। लोकसभा के द्वारा सदन के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को निर्वाचित किया जाता है तथा वह उन्हें पदच्युत भी कर सकती है।

(i) जनता की शिकायतों का निवारण: लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होकर आते है, अत: उनके द्वारा जनता की शिकायतें जनता के विचार और भावनांए सरकार तक पहुंचाई जाती है। लोकसभा के सदस्यगण इस बात की चेष्ठा करते है कि सरकार अपनी नीतियों का निर्माण एवं कार्यो का सम्पादन जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए करों।

5. लोकसभा की विविध कार्य - लोकसभा कुछ अन्य कार्य भी करती है जो इस प्रकार है :
  1. लोकसभा और राज्यसभा मिलकर राष्ट्रपति पर महावियोग लगा सकती है।
  2. उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने के लिए राज्यसभा प्रस्ताव पास कर दे, तो इस प्रस्ताव का लोकसभा द्वारा अनुमोदन आवश्यक होता है।
  3. लोकसभा और राज्यसभा मिलकर उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयो के न्यायाधीशों के विरूद्ध महाभियोगों का प्रस्ताव पास कर सकती है।
  4. राष्टपति द्वारा सकंटकाल की घोषणा को एक महीने के अन्दर-अन्दर संसद से स्वीकार कराना आवश्यक है अन्यथा इस प्रकार की घोषणा एक महीने बाद स्वंय ही समाप्त मान ली जाती है।
  5. राष्ट्रपति संर्वक्षमा (Amesty) देना चाहे तो उसकी स्वीकृति संसद से लेनी आवश्यक है।
लोकसभा की शक्तियों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यदि संसद देश का सर्वोच्च अंग है, तो लोकसभा संसद का सर्वोच्च अंग। जनता का प्रतिनिधि सदन होने के कारण लोकसभा संसद का महत्वपूर्ण, शक्तिशाली एवं प्रभावशाली अंग है। व्यवहार की दृष्टि से यदि लोकसभा को संसद कह दिया जाए, तो अनुचित न होगा।

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