परम्परागत बजटिंग की अवधारणा को स्पष्ट करने के बाद बजटिंग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन

सामान्यत: दी जाने वाली सार्वजनिक बजटिंग की अवधारणा को परम्परागत बजटिंग से ही सम्बन्धित किया जाता रहा है। आपको यहाँ यह समझने में आसानी होगी कि परम्परागत बजटिंग के अन्तर्गत उन विधियों, व्ययों तथा मदों को सामान्य रूप से शामिल किया जाता है जिन्हें विगत वर्षों या समयावधियों में महत्व दिया जाता रहा है। इस प्रकार परम्परागत बजटिंग से हमारा तात्पर्य ऐसे बजट से है जो एक लम्बे समय से एक परम्परागत रूप में निर्मित व क्रियान्वित किया जाता रहा है। बजट के आवंटन में भी परम्परागत मदों को ही आधार बनाया जाता रहा है। बजट को अर्थपूर्ण बनाने एवं इसके प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने के लिए परम्परागत बजटिंग के दो मुख्य आयामों को मुख्य रूप से समाहित किया गया है।
  1. बजट का राजस्व खाता
  2. बजट का पूँजी खाता
बजट के परम्परागत राजस्व खाते के अन्तर्गत किसी आर्थिक इकाई को चालू व्यय मदों की वित्तपूर्ति अपनी वर्तमान आय से ही की जाती है। इसकी वित्तपूर्ति के लिये परिसम्पत्तियों में कमी नहीं की जाती है तथा इसके साथ सरकार की देयदाताओं में भी वृद्धि नहीं की जाती है। इस मद की राशियाँ निवेशित राशियों से भिन्न हाती हैं। पूंजी खाते के अन्तर्गत वे प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं जिसको सम्बन्ध निवेशित राशियों से होता है तथा सरकार की देयताओं में वृद्धि होती है या सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी। इस मद की राशियों का सम्बन्ध चालू खर्चों के वित्त पोषण से नहीं होता है।

परम्परागत बजटिंग के अन्तर्गत चालू खाता तथा पूँजी खाते को आपस में संतुलित बनाये रखा जाता है।

परम्परागत बजटिंग की विशेषताएँ

परम्परागत बजटिंग की अवधारणा को स्पष्ट करने के बाद यहाँ पर इस बजटिंग की मुख्य विशेषताओं को समझाने का प्रयास किया गया है।
  1. परम्परागत बजट चालू खाता तथा पूँजी खाते में विभाजित होता है जिन्हें बजट के मुख्य भागों के रूप में देखा जाता है।
  2. परम्परागत बजट सामान्य रूप से सन्तुलित बजट के मुख्य आयाम पर आधारित किया गया है। पूँजी खातों तथा चालू खातों को आपस में संतुलित किया जाता है।
  3. परम्परागत बजट को संतुलित बनाये रखने के लिए अर्थव्यवस्था की आवश्यकता माना जाता है। इसके पीछे अर्थशास्त्रियों का तर्क था कि संतुलित बजट सरकार की अपव्यय करने की प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखने में सहायक सिद्ध होता है।
  4. यह बजट अर्थव्यवस्थाओं के अन्तर्गत आने वाले आर्थिक चक्रों/व्यापारिक चक्रों को नियंत्रित करने एवं रोकने के लिए अत्यन्त उपयोगी माना गया है।
  5. परम्परागत बजट में पिछली मदों एवं कार्यक्रमों पर सामान्य रूप से धनराशियों का आवंटन किया जाता है तथा पिछली समयावधियों की योजनाओं को पूरा भी किया जाता है।
  6. यह बजट सामान्य रूप से अधिकांश देशों द्वारा अपनाया जाता रहा है।

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