उत्तर दक्षिण संवाद क्या है?

नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए उत्तर के विकसित तथा दक्षिण के विकासशील देशों के बीच उत्तर-दक्षिण संवाद की शुरुआत हुई। ‘संवाद’ से अभिप्राय-परस्पर विचार-विमर्श से है। उत्तरी (विकसित) तथा दक्षिणी (विकासशील) दक्षिणी देशों की स्थिति सुधारने के लिए प्रारंभ की गई बातचीत ‘उत्तर-दक्षिण संवाद’ (North-South Dialogue) के नाम से जानी जाती है। संक्षेप में ‘उत्तर-दक्षिण संवाद’ से आशय है– विकसित और विकासशील देशों के मध्य परस्पर सहयोग के लिए विचार-विमर्श है। 

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1974 में अपने विशेष अधिवेशन में नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था (NIEO) के लिए घोषणा एवं कार्यक्रम का अनुबंध पारित किया। तब से अंकटाड, गुटनिरपेक्ष सम्मेलन के माध्यम से विश्व अर्थव्यवस्था के ढांचे में परिवर्तन की मांग मज़बूत होने लगी। उत्तर के विकसित देशों ने इस बात को महसूस किया कि विकासशील देशों की उचित मांगों की अनदेखी करना गलत है। इसलिए उन्होंने आपसी विचार विमर्श की प्रक्रिया आरम्भ की जिसे उत्तर दक्षिण संवाद कहा जाता है। 

उत्तर दक्षिण संवाद क्या है?

भौगोलिक आधार विश्व दो गोलार्द्धों - उत्तरी गोलार्द्ध तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाटा गया है। उत्तरी में अमेरिका, ब्रिटेन तथा यूरोप के विकसित देश आते हैं और दक्षिणी गोलार्द्ध में लैटिन अमेरिका, अफ्रीका तथा एशिया के अविकसित, तथा विकासशील देश शामिल हैं। 

उत्तर से आशय पूंजीवादी विचारधारा रखने वाले विकसित औद्योगिक देशों से है जहां पर तकनीकी विकास व उत्पादन अपनी चरम सीमा पर है। वहाँ पर प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक है। ये देश सभी विश्व के 70 प्रतिशत पूंजी साधनों पर अपना कब्जा किए हुए हैं। 

दक्षिण से आशय उन विकासशील देशों से है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद स्वतन्त्र हुए हैं। उनमें प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है। पूंजी की कमी, प्रति व्यक्ति कम आय, जनसंख्या विस्फोट, निर्धनता, बेरोजगारी, भुखमरी दक्षिण के विकासशील देशों की प्रमुख समस्याएं हैं। 

विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं उद्योग प्रधान हैं, जबकि विकासशील देशों की कृषि प्रधान है। उत्तर में सभी साम्राज्यवादी ताकतें या विकसित धनी देश थे। 'दक्षिण' में साम्राज्यवादी शोषण के शिकार रहे गरीब देश थे।

संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन विकसित देश उत्तर की श्रेणी में हैं, जबकि भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बर्मा, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान तथा अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के देश दक्षिण की श्रेणी में आते हैं। वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में उत्तर के विकसित तथा दक्षिण के विकासशील देशों के बीच नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था या अन्य बातों के बार में किए गए बातचीत को उत्तर-दक्षिण संवाद कहते है। 

‘संवाद’ से अभिप्राय-परस्पर विचार-विमर्श से है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विकासशील देशों के लिए ‘दक्षिण’ शब्द का प्रयोग किया जाने लगा।

उत्तर दक्षिण संवाद के प्रयास

  1. 1975 की पेरिस वार्ता 
  2. ब्राटआयोग 
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का विशेष सत्र 
  4. कानकुन सम्मेलन  
  5. न्यूयार्क सम्मेलन 
  6. गैट समझौता तथा विश्व व्यापार संगठन 
  7. पृथ्वी सम्मेलन  

1. 1975 की पेरिस वार्ता

संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की घोषणा के बाद यह पहला प्रयास था जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग में वृद्धि करना था, दिसम्बर, 1975 में विकसित तथा विकासशील देश अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग में वृद्धि करना था, दिसम्बर, 1975 में विकसित तथा विकासशील देश अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के मुद्दे पर 8 विकसित तथा 19 विकासशील देशों ने भाग लिया। इस सम्मेलन के आयोजन का श्रेय अमरीकी विदेश सचिव डॉ. हेनरी किसिंजार को जाता है इस सम्मेलन को ‘अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है। यह सम्मेलन 18 महीने तक चला और समाप्त 1977 में हुआ। इसमें उत्तर के विकसित देशों ने दक्षिण के देशों के लिए कुछ सहायता कार्यक्रमों की घोषणा की जिनमें गरीब देशों का बढ़ता तेल घाटा तथा जिस मूल्यों को स्थिर करने के लिए गरीब देशों की सहायता के लिए एक विशेष कोष की स्थापना की बात स्वीकारी गई। 

2. ब्राटआयोग

अंतर्राष्ट्रीय विकास मुद्दों से निपटने के लिए 1977 में एक गैर सरकारी स्वतन्त्र आयोग स्थापित किया गया जिसे ब्रांट आयोग के नाम से जाना जाता है। इस आयोग के अध्यक्ष जर्मनी के भूतपूर्व चांसलर विलीब्रान्ट थे। इसमें सभी विश्व के देशों से सदस्य थे। भारत के अर्थशास्त्री डॉ. एल.के. झा भी इस आयोग में थे। इसकी प्रथम बैठक दिसम्बर 1977 में बोन में हुई। इस आयोग ने सामाजिक विकास समस्याओं के बारे में अपनी दो रिपोर्ट - ‘नॉर्थ-साउथ : ए प्रोग्राम फॉर सर्वाइवल’ तथा -कॉमन क्राइसिस’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि विश्व शान्ति व सहयोग के लिए उत्तर-दक्षिण में पारस्परिक निर्भरता आवश्यक है। इस आयोग ने विश्व नेताओं की एक बैठक बुलाने का सुझाव दिया ताकि विकसित व विकासशील देशों के बीच अन्तर के प्रमुख विषयों (व्यापार, सहायता, सुरक्षा, तकनीकी, आदान-प्रदान विश्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) पर बातचीत हो सके।

इस आयोग ने उत्तर-दक्षिण संवाद के विकास के लिए विकासशील देशों के लिए ऋण, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा सुधार, तकनीकी हस्तांतरण, बहुराष्ट्रीय निगमों का सुधार, समुद्री कानून, बहुउद्देश्यीय व्यापार मुद्दों पर अपने सुझाव दिए। उत्तर दक्षिण संवाद में ब्रांट आयोग एक महत्वपूर्ण प्रयास था।

3. संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का विशेष सत्र

महासभा ने 25 अगस्त, 1980 को विकसित व विकासशील देशों के बीच आर्थिक सम्बन्धों के बारे में विचार करने के लिए एक बैठक बुलाया। इसमें विकासशील देशों ने अधिक आर्थिक सहायता, अधिक स्वतन्त्र व्यापार कच्चे माल की स्थिर कीमतें की मांग विकसित देशों के सामने रखी। लेकिन विकसित देशों ने इसे इंकार कर दिया। केवल इस बैठक में 9 महीने बाद होने वाली समझौता वार्ता के लिए आधार प्रस्तुत कर दिया, अत: उत्तर-दक्षिण संवाद का यह प्रयास विकसित देशों की नकारात्मक भूमिका के कारण असफल रहा।

4. कानकुन सम्मेलन

इसमें 14 विकासशील तथा 8 विकसित देशों कुल 22 देश ने भाग लिया। इसमें 23 देशों को निमंत्रण भेजे गए थे, लेकिन सोवियत संघ ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। अमेरिका के कारण क्यूबा को इसमें नहीं बुलाया गया। यह सम्मेलन मैक्सिको के कानकुन शहर में अक्तूबर, 1981 में हुआ। इसका उद्देश्य उत्तर-दक्षिण संवाद की प्रगति को जांचना था। इस सम्मेलन के अन्त में नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना व उत्तर-दक्षिण संवाद को आगे बढ़ाने पर कोई सहमति नहीं हुई। विकसित देशों के नकारात्मक व्यवहार के कारण यह सम्मेलन असफल रहा।

5. न्यूयार्क सम्मेलन 

अंकटाड के तत्वावधान में 1983 में आयोजित इस सम्मेलन में विश्व के अनेक नेता एकत्रित हुए। इस सम्मेलन का आयोजन अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में हुआ था। भारतीय प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस सम्मेलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें उत्तर-दक्षिण संवाद को विकसित करने पर बल दिया गया। अमेरिका की हठधर्मिता के कारण इस सम्मेलन में कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका और यह भी असफल हो गया।

6. गैट समझौता तथा विश्व व्यापार संगठन

इस सामान्य समझौते को GATT कहा जाता है। इसका अर्थ है - व्यापार और प्रशुल्क पर सामान्य समझौता। इस समझौते की स्थापना का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास में आने वाली बाधाओं को दूर करके लाभकारी लक्ष्यों को प्राप्त करना था।

7. पृथ्वी सम्मेलन

प्रथम पृथ्वी सम्मेलन रियो दि जेनेरो (ब्राजील) में 3 से 14 जून, 1992 तक आयोजित हुआ। प्रथम पृथ्वी सम्मेलन जून 1992 में तथा दूसरा जून, 1997 में हुआ। इनका उद्देश्य पर्यावरण सुरक्षा के मुद्दों पर विचार करना था। इसमें विकसित व विकासशील देशों ने पर्यावरण प्रदूषण के लिए एक दूसरे पर आरोप लगाए। विकसित देशों ने कहा कि विकासशील देशों की जनसंख्या विस्फोट की स्थिति के कारण व गरीबी के कारण यह हुआ है। ये देश घने जंगलों का सफाया कर रहे हैं और पर्यावरण संतुलन को खराब कर रहे हैं। 

इस सम्मेलन में अमेरिका ने वनों को सार्वभौम सम्पदा मानने की बात कही तो भारत ने भी कच्चे तेल को सार्वभौम सम्पदा मानने की बात कही क्योंकि इसका उपयोग सम्पूर्ण मानव जाति के लिए होता है। इस प्रकार इस सम्मेलन में उत्तर-दक्षिण का अन्तर स्पष्ट तौर पर उभरकर सामने आया। इसमें पर्यावरण तकनीकी हस्तांतरण व अमीर देशों द्वारा विकासशील देशों को दी जाने वाली सहायता पर असहमति ही दिखाई दी। इसके बाद 23 से 27 जून, 1997 को दूसरा पृथ्वी सम्मेलन अमेरिका के शहर न्यूयॉर्क में आयोजित हुआ। इसमें 170 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें संसार में लगातार कम हो रहे वनों, उनकी नष्ट हो रही प्रजातियों तथा कम होता मत्स्य संसाधनों पर चिंता प्रकट की गई। विकासशील देशों ने विकसित देशों को पर्यावरण तकनीक के विकास के लिए पर्याप्त धन देने में उदारता बरतने का आग्रह किया। इस सम्मेलन में अमेरिका ने विकासशील देशों को पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा स्रोतो के विकास के लिए एक अरब डॉलर की सहायता देने की घोषणा की, लेकिन ग्रीन हाउस प्रभाव में वृद्धि करने वाली गैसों को नियंत्रित करने के किसी मात्रात्मक लक्ष्य पर सहमति नहीं हो सकी। इस प्रकार यह सम्मेलन भी बिना किसी ठोस परिणाम के ही समाप्त हो गया।

उत्तर-दक्षिण संवाद के प्रमुख मुद्दे

उत्तर-दक्षिण संवाद व्यापार और शुल्क, अंतर्राष्ट्रीय वित्त, विदेशी सहायता और बहुराष्ट्रीय कंपनियों और संस्थानों के शासन से संबंधित प्रमुख मुद्दे है।

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