व्यक्तित्व का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

साधारणतः व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूप, रंग तथा शारीरिक गठन आदि से लगाया जाता है। दैनिक जीवन में प्रायः हम यह सुना करते हैं कि अमुक व्यक्ति का व्यक्तित्व बड़ा अच्छा है, प्रभावशाली है या खराब है। अच्छे व्यक्तित्व का अभिप्राय यह है कि उस व्यक्ति की शारीरिक रचना सुन्दर है, वह स्वस्थ एवं मृदुभाषी है, उसका स्वभाव व चरित्र अच्छा है और वह दूसरों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। निःसंदेह ये गुण एक अच्छे व्यक्तित्व के लक्षण हैं किन्तु यह व्यक्तित्व का एक पहलू है। 

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व का कुछ और अर्थ होता है। व्यक्तित्व सम्पूर्ण व्यवहार का दर्पण है। व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति व्यक्ति के आचार-विचार, व्यवहार क्रियाओं एवं उसकी गतिविधियों द्वारा होती है। व्यक्ति के आचरण-व्यवहार में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और सामाजिक गुणों का मिश्रण होता है, जिसमें कि एकरूपता और व्यवस्था पाई जाती है। इस प्रकार व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहार का समग्र गुण है। व्यक्ति का समस्त व्यवहार सामाजिक परिवेश से अनुकूलन करने के लिए होता है। 

प्रत्येक व्यक्ति के सामाजिक परिवेश में अपने विशेष व्यक्तित्व के कारण, व्यवहार करने के ढंग में भिन्नता पाई जाती है। सामाजिक परिवेश में अपने को समायोजित करने के लिए वह जिस प्रकार का व्यवहार करता है, उससे उसका व्यक्तित्व बनता है या प्रकट होता है। व्यक्ति के व्यवहार पर उसकी आन्तरिक भावनाओं और बाह्य वातावरण का प्रभाव पड़ता है।

व्यक्तित्व हर एक व्यक्ति का एक बिल्कुल ही अलग चिन्तन करने, व्यवहार करने एवं अनुभव करने का तरीका होता है।

व्यक्तित्व का अर्थ

व्यक्तित्व का शाब्दिक अर्थ लैटिन शब्द परसोना (personal) से लिया गया है। परसोना उस मुखौटे को कहते हैं जिसे अपनी मुखौटे को बदलने के लिए रोमन नाटकों में अभिनेता उपयोग में लाते थे। अभिनेता जिस मुखौटे को अपनाता है, दर्शक उससे उसी अनुरूप भूमिका की प्रत्याशा रखते हैं।

व्यक्तित्व (Personality) से तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों और स्थतियों के प्रति अनुक्रिया करता है। हर एक व्यक्ति बड़ी सरलता से इस बात का वर्णन कर सकते हैं कि वे किस तरीके से विभिन्न परिस्थितियों के प्रति अनुक्रिया करते हैं; जैसे - खुशमिजाज, शांत, गंभीर इत्यादि शब्दों के द्वारा प्रायः व्यक्तित्व का वर्णन किया जाता है।

व्यक्तित्व की परिभाषा

मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गयी व्यक्तित्व की परिभाषाओं को जानना आवश्यक है-

1. बीसन्ज और बीसन्ज - व्यक्तित्व मनुष्य की आदतों, दृष्टिकोण, विशेषताओं का संगठन है। यह जीवशास्त्राीय, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों के संयुक्त कार्य द्वारा उत्पन्न होता है।

2. मन - व्यक्तित्व एक व्यक्ति के व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं, योग्यताओं तथा अभिरुचियों का सबसे विशिष्ट संगठन है।

3. आलपोर्ट - व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनो-शारीरिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसका अद्वितीय समायोजन निर्धारित करता है।

व्यक्तित्व अध्ययन के उपागम 

व्यक्तित्व की प्रकृति की व्याख्या करने के लिए वैज्ञानिकों ने विभिन्न उपागमो का प्रतिपादन किया है। इन्हें सैद्धान्तिक उपागम भी कहते हैं। व्यक्तित्व अध्ययन के उपागमों मे से कुछ उपागमों का संक्षिप्त विवरण है-

1. व्यक्तित्व के प्रारूप उपागम - 
इसमें व्यक्तित्व के प्रारूप (Type) समानताओं के आधार पर व्यक्तित्व का विभाजन किया जाता है। 

👉 ग्रीक के चिकित्सक Hippocrates ने लोगों को उनके शरीर मे उपस्थित फ्लूइड (fluid) के आधार पर चार प्रारूप में विभाजन किया है- 
  1. उत्साही (पीला पित्त), 
  2. श्लैश्मिक (कफ), 
  3. विवादी (रक्त) तथा 
  4. कोपशील (काला पित्त)। 
इन द्रवों की प्रधानता के आधार पर प्रत्येक विभाजन विशिष्ट व्यवहारपरक विशेषताओं वाला होता है। 

👉 क्रेश्मर एवं शेल्डन ने शारीरिक गुणों के आधार पर व्यक्तित्व को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया है-
  1. स्थूलकाय प्रकार (Pyknik Type) : स्थूलकाय प्रकार (छोटा कद,भारी एवं गोलाकार, गर्दन छोटी एवं मोटी) के व्यक्ति सामाजिक एवं खुशमिजाज होते हैं।
  2. कृष्काय प्रकार (Asthenic Type) : कृष्काय प्रकार (लम्बा कद एवं दुबला पतला शरीर) के व्यक्ति चिड़चिड़े, सामाजिक उत्तरदायित्व से दूर रहने वाले और दिवास्वप्न देखने वाले होते हैं।
  3. पुष्टकाय प्रकार (Athletic Type) : पुष्टकाय प्रकार(सामान्य कद, शरीर सुडौल एवं संतुलित) के व्यक्ति न ही अधिक चंचल और न ही अधिक अवसादग्रस्त रहते हैं।
  4. विशालकाय प्रकार (Dysplastic Type) : ये हर परिस्थिति में आसानी से समायोजन कर लेते हैं। और विशालकाय प्रकार के व्यक्ति वे होते हैं जिनको इन तीन श्रेणियों में शामिल नहीं किया जा सकता है।
👉 शेल्डन ने 1940 में शारीरिक बनावट और स्वभाव के आधार पर तीन व्यक्तित्व प्ररूप प्रस्तावित किया। 
  1. गोलाकृतिक प्रारूप : गोलाकृतिक प्ररूप वाले व्यक्ति मोटे, मृदुल और गोल होते हैं। स्वभाव से वे लोग शिथिल और सामाजिक होते हैं।
  2. आयताकृतिक प्रारूप : आयताकृतिक प्ररूप वाले लोग स्वस्थ एवं सुगठित शरीर वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति ऊर्जस्वी एवं साहसी होते हैं।
  3. लंबाकृतिक प्रारूप : लंबाकृतिक प्ररूप वाले दुबले-पतले, लंबे कद वाले और सुकुमार होते हैं।
👉 युंग ने 1923 मे अपनी पुस्तक ‘psychological types’ में व्यक्तित्व के दो प्रकार बताये हैं-
  1. बहिर्मुखी व्यक्ति : बहिर्मुखी व्यक्ति वे होते हैं जो सामाजिक तथा बहिर्गामी होते हैं। लोगों के साथ् में रहते हुए तथा सामाजिक कार्यों को करते हुए वे दबावों का सामना करते हैं।
  2. अन्तर्मुखी व्यक्ति : अंतर्मुखी व्यक्ति वे होते हैं जो एकांतप्रिय होते हैं, दूसरों से दूर रहते हैं, और संकोची होते हैं।
👉 फ्रीडमैन एवं रोजेनमैन ने दो प्रकार के व्यक्तित्वों में वर्गीकृत किया है। 
  1. टाइप ‘ए’ (Type-A) व्यक्तित्व वाले व्यक्ति उच्च अभिप्रेरणा वाले, कम धैर्यवान, हमेशा समय की कमी का अनुभव करने वाले और हमेशा कार्य का बोझ अनुभव करने वाले होते हैं। टाइप ‘ए’ व्यक्तित्व वाले लोगों में कॉरोनरी हृदय रोग (coronary heart disease) के होने की संभावना अधिक होती है। दूसरी तरफ; 
  2. टाइप ‘बी’ (Type-B) व्यक्तित्व के लोगों में टाइप ‘ए’ व्यक्तित्व की जो विशेषतायें होती हैं उनकी कमी रहती है। 
👉 मॉरिस ने टाइप ‘सी’ (Type-C) व्यक्तित्व को बताया है। इस प्रकार के व्यक्तित्व के लोग धैर्यवान, सहयोग करने वाले और विनयशील होते हैं। इस प्रकार के लोग अपने निषेधात्मक संवेगों ;जैसे-क्रोध का दमन करने वाले और आज्ञापालन करने वाले होते हैं। इन लोगों में कैंसर रोग के होने संभावना अधिक होती है। 

👉 टाइप ‘डी’ (Type-D) व्यक्तित्व सुझाया गया है। इस प्रकार व्यक्तित्व के लोगों में अवसादग्रस्त होने की अधिक संभावना होती है।

2. व्यक्तित्व के शीलगुण उपागम -  शीलगुण उपागम में व्यक्ति के व्यक्तित्व की खोज शीलगुणों के आधार पर की जाती है। इन्हीं भिन्नताओं को आधार मानकर ऑलपोर्ट और कैटेल(Cattel) ने अपने-अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किये। 

👉 ऑलपोर्ट ने शीलगुणों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया- 
  1. प्रमुख शीलगुण : प्रमुख शीलगुण सामान्य प्रवृत्तियाँ होती हैं।
  2. केंद्रीय शीलगुण : कम व्यापक किंतु फिर भी सामान्य प्रवृत्तियाँ केंद्रीय गुण मानी जाती हैं। जैसे- ईमानदार, मेहनती आदि। 
  3. गौण शीलगुण : व्यक्ति के सबसे कम सामान्य गुणों के रूप में गौण शीलगुण जाने जाते हैं। जैसे-’मैं सेब पसंद करता हूँ’ अथवा ‘मैं अकेले घूमना पसंद करता हॅं’ आदि।
3. व्यक्तित्व के मनोविष्लेषणात्मक उपागम - इसका प्रतिपादन सिगमण्ड फ्रायड द्वारा किया गया था। फ्रायड एक चिकित्सक थे और उन्होंने अपना सिद्धांत अपने पेशे के दौरान ही विकसित किया। उन्होंने मानव मन को चेतना के तीन स्तरों (चेतन, पूर्वचेतन और अचेतन) के रूप में विभक्त किया है। 
  1. प्रथम स्तर चेतन (conscious) होता है जिसमें वे चिंतन, भावनाएँ और क्रियाएँ आती हैं जिनकी जानकरी लोगों को रहती है। 
  2. द्वितीय स्तर पूर्वचेतना (preconscious) होता है जिसमें वे मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिनकी जानकारी लोगों को तभी होती है जब वे उन पर ध्यान केंद्रित करते हैं। 
  3. चेतना का तृतीय स्तर अचेतन (unconscious) होता है जिसमें ऐसी मानसिक क्रियाएँ आती है जिनकी जानकारी लोगों को नहीं होती है।
फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना के तीन तत्व बताये है इदम् या इड (id) vga (ego) और पराहम (superego) । 

4. व्यक्तित्व के नव-फ्रायडवादी उपागम -  नव-फ्रायडवादीयों में युंग, हॉर्नी, एडलर, एरिक्सन आदि का नाम महत्वपूर्ण है। सबसे पहला नाम युंग का आता है। पहले यंगु (Jung) ने फ्रायड के साथ ही काम किया लेकिन बाद में वे फ्रायड से अलग हो गए। 

युंग के अनुसार मनुष्य काम-भावना और आक्रामकता स्थान पर उद्देश्यों और आकांक्षाओं से अधिक निर्देशित होते हैं। उन्होंने व्यक्तित्व का अपना एक सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसे विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान (analytical psychology) कहते हैं।

फ्रायड के अनुयायियों में युंग के बाद दूसरा नाम हॉर्नी का आता है। हॉर्नी आशावादी दृष्टिकोण को मानने वाले थे। उनके अनुसार माता-पिता बच्चे के प्रति यदि उदासीनता, हतोत्साहित करने और अनियमिता का व्यवहार करते हैं तो बच्चे के मन में एक असुरक्षा की भावना विकसित होती है जिसे मूल basic anxiety कहते हैं। एकाकीपन और असुरक्षा की भावना के कारण बच्चों के स्वास्थ्य के विकास में बाधा होती है।

एडलर (Adler) ने वैयक्तिक मनोविज्ञान (individual psychology) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इसके अनुसार व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्योन्मुख व्यवहार करता है। एडलर के अनुसार हर एक व्यक्ति हीनता से ग्रसित होता है। एक अच्छे व्यक्तित्व के विकास के लिए इस हीनता की भावना का समाप्त होना अति आवश्यक है। एरिक्सन (Erikson) ने व्यक्तित्व-विकास में तर्कयुक्त चिन्तन एवं सचेतन अहं पर बल दिया है। उनके अनुसार विकास एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है और अहं अनन्यता का इस प्रक्रिया में केन्द्रीय स्थान है।

5. व्यक्तित्व के व्यवहारवादी उपागम  - यह उपागम उद्दीपक-अनुक्रिया के आपसी तालमेल के आधार पर अधिगम और प्रबलन को महत्व देता है। व्यवहारवादियों के अनुसार पर्यावरण के प्रति व्यक्ति की अनुक्रिया के आधार पर उसके व्यक्तित्व को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। व्यवहारवार के प्रमुख सिद्धांतो में पावलव द्वारा दिया गया प्राचीन अनुबंधन, स्किनर द्वारा दिया गया नैमित्तिक अनुबंधन और बंडुरा द्वारा दिया गया सामाजिक अधिगम सिद्धांत मुख्य हैं। 

व्यवहारवार के इन प्रमुख सिद्धांतों का व्यक्तित्व विकास के विश्लेषण में बहुतायत से प्रयोग हुआ है। प्राचीन एवं नैमित्तिक अनुबंधन सिद्धांतों में संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का कोई स्थान नहीं है, जबकि सामाजिक अधिगम सिद्धांत में संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को प्रमुख स्थान दिया गया है।

6. व्यक्तित्व के मानवतावादी उपागम - मानवतावादी उपागम में रोजर्स (Rogers) और मैस्लो (Maslow) के सिद्धांत प्रमुख हैं। रोजर्स ने आत्म (Self) पर अधिक बल दिया है। जिसमें उन्होंने वास्तविक आत्म (real self) और आदर्श आत्म (ideal self) की चर्चा की है। प्रत्येक व्यक्ति का एक आदर्श आत्म होता है जिसको प्राप्त करने के लिए वह हमेशा तत्पर रहता है। आदर्श आत्म वह आत्म होता है जो कि एक व्यक्ति बनाना चाहता है। जब वास्तविक आत्म और आदर्श आत्म समान होते हैं तो व्यक्ति प्रसन्न रहता है और दोनों प्रकार के आत्म के बीच विसंगति के कारण प्राय: अप्रसन्नता और असंतोष की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में अपनी अन्त:शक्तियों को पहचानने और उसी के अनुरूप व्यवहार करने की विशेष क्षमता होती है। व्यक्तित्व विकास के लिए संतुष्टि एक अभिपे्ररक शक्ति का कार्य करती है। लोग अपनी क्षमताओं और प्रतिभाओं को उत्कृष्ट तरीके से अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं।

रोजर्स ने शर्तरहित स्वीकारात्मक सम्मान (unconditional positive regard) को अधिक महत्व दिया है। दूसरी तरफ मैस्लो ने व्यक्तिगत वर्धन (personal growth) और आत्म निर्देश (self direction) की क्षमता पर अधिक बल दिया है, और व्यक्तिगत अनुभूतियों को नगण्य माना है। उन्होंने अपने सिद्धांत में आशावदी दृष्टिकोण को महत्व दिया है। जिससे मानव की आन्तरिक अंत:शक्तियों को समझने में काफी सुविधा हुई है। 

मैस्लो ने आत्मसिद्धि (self-actualisation) की प्राप्ति कों मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ लोगों की विशेषता माना है। आत्मसिद्धि वह अवस्था होती है जिसमें लोग अपनी संपूर्ण क्षमताओं को विकसित कर लेते हैं। मैस्लो के आशावादी और सकारात्मक दृष्टिकोण के अनुसार मानव में प्रेम, हर्ष और सृजनात्मक कार्यों की क्षमता होती है।

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