लोकाचार का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं कार्य

शाब्दिक रूप से लोकाचार अंग्रेजी शब्द mores लैटिन शब्द mos का बहुबचन है। जिसका तात्पर्य प्रथा से होता है। समनर द्वारा mores का प्रयोग उन लोकरीतियों के लिए किया गया है। जो समाज के लिए उपयोगी तथा कल्याणकारी होते है। समनर के अनुसार “लोकचारों से मेरा तात्पर्य लोकप्रिय रीतियों एवं परम्पराओं से है। जब इनमें ये निर्णय सम्मिलित हो कि वे सामाजिक कल्याण के लिए लाभदायक है, और व्यक्ति पर उनका पालन किए जाने के लिए बल प्रयोग किया जाता है। यद्यपि उन्हे किसी सत्ता द्वारा समन्वित नही किया जाता।”

वास्तव में लेाकाचार व्यक्ति द्वारा किये गये व्यवहार जो उसके तथा समूह के लिए उपयोगी है, जनरीति है। यही जनरीति जब सम्पूर्ण समाज द्वारा स्वीकृत कर ली जाती है। तो यह समय के लिए उपयोगी एवं कल्याणकारी हो जाती है। तब यही जनरीतियॉ लोकाचार में परिवर्तित हो जाती है। समनर ने इस सम्बन्ध कहा भी है कि हमारे उदेश्य हेतु लैटिन शब्द mores उन लोकरीतियो जिसमें समाजिक कल्याण के अर्थ निहित हो लोकाचार कहलाते है।

लोकाचार की परिभाषा

डासन एवं गेट्टीज के अनुसार “लोकाचार वे जनरीतियॉ है, जिन्होने अपने साथ किसी प्रकार ऐसे निर्णय जिन पर समूह का कल्याण मुख्यतया निर्भर है को जोड़ लिए है।”

गिलिन एवं गिलिन- “लोकाचार वे प्रथाए एवं समूह दिनचर्याएं है, जिन्हें समाज के सदस्यों द्वारा समूह को सतत अवास्थिति हेतु आवश्यक समझा जाता है।”

मैकाइवर- “जब लोकरीतियों के साथ समूह कल्याण को धारणाएं तथा उचित और अनुचित के स्तर मिल जाते है, तो वे लोकरीतियॉ लोकाचारों में बदल जाती है।”

स्पेअर - “शब्द mores उन प्रथाओं के लिए सुरक्षित है, जो व्यवहार की विधियों के सही अथवा गलत होने के बारे में पर्याप्त दृढ भावों की व्यक्त करते है।”

ग्रीन- ‘‘कर्म करने की सामान्य रीतियॉ लेाकाचार होती है, जो लोकरीतियों की अपेक्षा अधिक निश्चयपूर्वक सही एवं उचित मानी जाती है, और जो अधिक कठोर एवं निश्चित दण्ड दिलवाती है। यदि कोई उनका उल्लधंन करें।”

सदरलैण्ड एवं अन्य- “लोकाचार वे लोकरीतियॉ है, जो एक समूह के लिए महत्वपूर्ण समझी जाती है। विशेष रूप से उस समूह के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण समझी जाती है।”\

लुम्ले - “लोकरीतियॉ उस समय लेाकाचार बन जाती है, जब उसके साथ कल्याण का तत्व जोड़ दिया जाता है।”

समनर- “जब सत्य और औचित्य के तत्व कल्याण के सिद्वान्तो मे विकसित हो जाते है, तो लेाकरीतियॉ दूसरे उच्च क्षेत्र में विकसित हो जाती है।”

मैरिल के अनुसार - “लोकाचारों की प्रकृती सर्वव्यापी नही होती बल्कि समूह की परिस्थितियों के अनुसार इनकी प्रकृति में भिन्नता पायी जाती है। एक समूह में जो व्यवहार लोकाचार होता है, वही दूसरे समूह में अपराध बन सकता है। उदाहरणार्थ एस्कीमों जनजाति के कुछ भागो में शिशु हत्या और पितृ हत्या एक लोकाचार है। जबकि हमारे समाज में यह एक गम्भीर अपराध है। युद्वकाल में दूसरे पक्ष की हत्या करना प्रशंसनीय हो जाता है। जबकि शान्तिकाल के लोकाचार हिंसा में विरोधी होते है।
इस प्रकार सभी परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि, लोकाचार जनरीतियों का वह समूह है जिस पर सामुहिक कल्याण की भावना जुड़ी रहती है तथा यह जनरीति से अधिक कठोर होते है एवं अवहेलना करने पर व्यक्ति दण्ड का भागीदार भी बनता है।

लोकाचार की विशेषताएं

1. समूह कल्याण के लिए आवश्यक - लोकाचार में व्यक्ति के उन्ही व्यवहारों को समूह या समाज द्वारा मान्यता मिलती है, जो सम्पूर्ण समूह के कल्याण के लिए आवश्यक होती है।

2. आदर्श मूल्यों का समावेश - व्यक्ति के वह व्यवहार जो समाज के लिए उपयोगी तो होते है, साथ ही उसमें आदर्श मूल्यों का भी समावेश होता है, वह लोकाचार है। जैसे अपने से बड़ो का सम्मान करना तथा मद्यपान ना करना आदि कुछ ऐसे सामान्य लोकाचार है, जिसमें आदर्श, मूल्यों एवं नैतिकता का समावेश होता है।

3. सार्वभौमिकता का गुण - समाज को संगठित एवं व्यवस्थित बनाने में लोकाचार की एक प्रमुख भूमिका है। यद्यपि अलग-2 समूह में विभिन्नता के गुण होने के कारण लोकाचार भी भिन्न-2 हो सकते है। परन्तु लोकाचार सभी समूहो एवं समाज की एक सार्वभौमिक विशेषता है।

4. बाध्यता का गुण - जैसा कि आप जानते है कि व्यक्ति द्वारा किये गये एक व्यवहार स्वीकृत होकर जब समूह का लोकाचार बन जाता है, तो समूह के प्रत्येक व्यक्ति के लिए इनका पालन करना आवश्यक हो जाता है। सामाजिक बहिष्कार एवं दण्ड के भय से व्यक्ति इन लोकाचारों को मानने के लिए बाध्य भी होता है।

लोकाचार के कार्य

समाज को संगठित रखने में लोकाचारों की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सामाजिक जीवन में लोकाचारों के प्रमुख कार्यो को इस आधार पर समझा जा सकता है। मैकाइवर ने लोकाचारों के कार्यो का उल्लेख किया है।
  1. लोकाचार हमारे अधिकांश निजी व्यवहारों को निश्चित करते है। वे व्यवहार को बाधित एवं निषेधित दोनो करते है। वे सदैव प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति को प्रतिबंधित एवं प्रभावित करते रहते है। दूसरे शब्दों में नियंयण के उपकरण है। समाज में असंख्य लोकाचार यथा एक पत्नीत्व दास-विरेाधिता, प्रजातंत्र एवं मद्यनिषेध आदि है, जिसका अनुपालन आवश्यक समझा जाता है।
  2. लोकाचार व्यक्ति का समूह से तादात्म्य स्थापित करते है। लोकाचारों के अनुपालन द्वारा व्यक्ति अपने साथियों के प्रति तादात्म्य स्थापित कर लेता है, और उन सामाजिक सूत्रों को बनाए रखता है। जो सन्तोषपूर्ण जीवन के लिए स्पष्टत: बहुत ही आवश्यक है।
  3. वे सामाजिक सुदृढता के संरक्षक है, लोकाचार समूहों के सदस्यों को एकता के सूत्र में बाघे रखता है। समूह के सदस्यों में यद्यपि उनमे समानता की चेतना होती है। जीवन एवं प्रस्थिति को अच्छी वस्तुओं को प्राप्त करने हेतु परस्पर प्रतियोगिता रहती है। उन्हें लोकाचार ही सीमा के अंदर रखते है। समान लोकाचारों का अनुसरण करने वाले व्यक्तियों में उनकी समान भावनाओं के कारण अच्छी सदृढता का भाव होता है। इसका यह भी अर्थ है कि भिन्न लोकाचारो का अनुसरण करने वाले व्यक्ति के प्रति उनमें विरोध एवं प्रतिरोध की भावना होती है। लिंग, आयु, वर्ग और समूह प्रत्येक के लिए एवं सभी समूहों के लिए लोकाचार विधमान है। जो समूह की दृढता को बनाए रखने का कार्य पूरा करते है। 

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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