बाबर का इतिहास और जीवन परिचय

बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 ई. (मुहर्रम 6,888 हिजरी) को फरगना में हुआ था। वह एशिया के दो महान् साम्राज्य निर्माताओं - ‘चंगेजखां’ एवं ‘तैमूर’ का वंशज होने का दावा कर सकता था। अपने पिता की ओर से वह तैमूर की पांचवीं पीढ़ी और माता की ओर से चंगेज की चौदहवीं पीढ़ी में से था।

बाबर का संक्षिप्त परिचय

नामजहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर
राजकाल1529-30 ई .तक
जन्म स्थानफरगना में रूसी तुर्किस्तान का करीब
80,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र
पिताउमर शेख मिर्जा, 1494 ई. में
एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी,
नानायूनस खां
चाचासुल्तान मुहम्मद मिर्जा
भाईजहाँगीर मिर्जा, छोटा भाई नासिर मिर्जा
पत्नीचाचा सुल्तान मुहम्मद मिर्जा
की पुत्री आयशा बेगम
मृत्यु26 दिसम्बर, 1530 ई. (आगरा)
48 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई।
उत्तराधिकारीहुमायूं,
युद्धपानीपत’ खानवा और घाघरा जैसी विजयों
ने उसे सुरक्षा और स्थायित्व प्रदान किया।
प्रधानमंत्रीनिजामुद्दीन अली खलीफा

बाबर अपने पिता की मृत्यु पर फरगना के प्रदेशों का शासक बना। जब उसका जन्म हुआ तो एक संदेशवाहक को शीघ्रता के साथ उसके नाना यूनस खां मंगोल के पास भेजा गया। सत्तर वर्षीय सरदार ने फरगना आकर वहां के खुशी के समारोहों में भाग लिया। उसने व उसके साथियों ने उसके अरबी नाम का उच्चारण करने में कठिनाई का अनुभव किया और फलस्वरूप वे उसे बाबर कहकर पुकारने लगे। पांच वर्ष की आयु में बाबर को समरकंद ले जाया गया, जहां उसका विवाह उसके चाचा सुल्तान अहमद की पुत्री आयशा बेगम से कर दिया गया।

जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में वह ईश्वर पर विश्वास रखता था। किसी भी समय की नमाज छोड़ता नहीं था और संकट से छुटकारा पाने के लिए वह ईश्वर से प्रार्थना करता था। लेकिन लड़ाई में हजारों को कत्ल करवा देने में उसको कभी संकोच नहीं होता था।

ईश्वर के प्रति बाबर में अपार भक्ति थी। इस्लाम के अनुसार वह एक ईश्वर को मानता था और उसी की आराधना करता था। उसका विश्वास था कि मनुष्य को जो सफलता मिलती है, वह ईश्वर की देन है। उसने जहाँ-जहाँ विजय प्राप्त की थी, वह कहा करता था कि ईश्वर ने मुझे विजयी बनाया है।

वैसे तो बाबर एक कट्टरसुन्नी मुसलमान था, परन्तु अपने युग में सामान्यत: पाई जाने वाली धार्मिक कट्टरता की भावना इतने तीव्र रूप में उसमें देखने को नहीं मिलती। बाबर को ईश्वर में असीम विश्वास था। वह कहा करता था कि ईश्वर की इच्छा के बिना कोई कार्य नहीं होता। उसको रक्षक मानकर हमको आगे बढ़ना चाहिए। उसको जो भी विजय प्राप्त हुई उसे वह भगवान का अनुग्रह मानता था। इब्राहीम लोदी को पराजित करने के बाद और राजधानी में प्रवेश करने के पूर्व वह दिल्ली के निकट श्रद्धा प्रकट करने के लिये मुसलमान फकीरों और वीरों की कब्रों पर गया। खानवां के युद्ध के पूर्व उसे मद्यपान त्याग दिया था। उसके लिये यह यश की बात है। परमात्मा के समक्ष उसने हृदय से पश्चाताप किया था। इस प्रकार स्पष्ट है कि बाबरे हर अवसर पर ईश्वर में विश्वास एवं श्रद्धा रखते हुए कार्य किया है और हर सफलता को ईश्वर की अनुकम्पा माना है। उसका यह दृढ़ विश्वास था कि ईश्वरीय इच्छा के बिना कोई कार्य सम्पादित नहीं हो सकता।

बाबर एक योग्य प्रशासक नहीं था और उसे प्रचलित धार्मिक कट्टरता को जीवित रखते हुए ही शासन का कार्य आगे बढ़ाया। 

हिन्दुओं के प्रति बाबर की नीति 

हिन्दुओं के प्रति बाबर की नीति अनुदार और असहिष्णुता की थी। वह हिन्दुओं को घृणा की दृष्टि से देखता था और उनके विरूद्ध जिहाद करना अपना परम कर्त्तव्य समझता था। खानवा के युद्ध में विजय प्राप्त करके उसे गाजी की उपाधि धारण की थी। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी धार्मिक नीति तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित थी। वह जानता था कि उत्तरी हिन्दुस्तान का वास्तविक स्वामी बनने के लिए अभी भी एक प्रबल शत्रु राणा सांगा (मेवाड़ का शासक) से मुकाबला करना है और उसी पर सब कुछ निर्भर करता है। इसलिए अपने सैनिकों की धार्मिक मनोभावनाओं को उभारना आवश्यक था। 

बाबरनामा (हिन्दी अनुवाद) नागोरी एवं प्रणवदेव के अनुसार धार्मिक दृष्टि से बाबर संकीर्ण था। उसने रणक्षेत्र में ‘गाजी’ की उपाधि धारण की तथा चंदेरी विजय के पश्चात् मृत हिन्दुओं की खोपड़ियों की मीनार बनवायी। उसने राजपूतों से संघर्ष को ‘जिहाद’ की संज्ञा दी। उसने अयोध्या में एक ऐसे स्थान पर मस्जिद बनवायी, जिसे श्रीरामचन्द्र जी का जन्मस्थान मानकर हिन्दू पूजते थे। उसकी धार्मिक नीति के संदर्भ में एर्सकिन का अभिमत है कि वे क्रूरताएँ उस युग की द्योतक हैं, न कि व्यक्ति की।

उसने इस्लामी कानून का अनुसरण करते हुए मुसलमानों को स्टाम्प कर से मुक्त कर दिया और यह केवल हिन्दुओं पर ही लगाया। उसके शासन काल में हिन्दू मंदिरों का विध्वंस भी हुआ। बाबर के आदेशानुसार मीर बकी ने अयोध्या में श्रीरामचन्द्र जी का जन्मस्थान से संबंधित मंदिर के स्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया। ग्वालियर के निकट उरवा की घाटी में स्थित जैन मूर्तियों को नष्ट कर दिया। अन्यान्य हिन्दू स्त्रियों और बच्चों को दास बना लिया। हिन्दुओं का अकारण संहार भी हुआ।

प्रारम्भिक काल से लेकर मृत्यु पर्यन्त बाबर को अपने जीवन की सुरक्षा, सिंहासन प्राप्त करने और साम्राज्य विस्तार करने के लिए निरन्तर युद्ध लड़ने पड़े। इस प्रकार अपने बचपन से ही वह मुख्य रूप से एक सैनिक बन गया था। 

बाबर का साम्राज्य

बाबर ने एक शक्तिशाली शासक के रूप में अपनी विशेषताओं का परिचय दिया -
  1. बाबर ने अपने साम्राज्य में शांति और अनुशासन की स्थापना की। 
  2. अपने सुविस्तृत साम्राज्य में बाबर ने लुटेरों से अपनी प्रजा की जान माल की रक्षा की सुव्यवस्था की थी।
  3. सुविधा से आवागमन के लिए बाबर ने अपने साम्राज्य के मुख्य-मुख्य भागों में सड़कें सुरक्षित करवा दी थी। अपने राज्य के प्रमुख स्थानों के मध्य आवागमन के साधनों की भी व्यवस्था की। आगरे से काबलु तक जाने वाले मार्ग ‘ग्राट ट्रंक रोड’ का निर्माण उसी ने करवाया था। इस मार्ग पर पन्द्रह-पन्द्रह मील की दूरी पर चौकिया स्थापित की गई। प्रत्येक चौकी पर छह घोड़े तथा उपयुक्त अधिकारी नियुक्त थे। 
  4. फरिश्ता का कथन है कि जब बाबर कूच करता था, तो वह मार्गों को नपवाता था। यह प्रथा हिन्दुस्तान के शासकों में आज भी प्रचलित है। 
  5. जब बाबर हिन्दुस्तान में आया, तब यहां गज सिकन्दरी का प्रचलन था। बाबर ने इसको बन्द करके ‘बाबरी गज’ जारी किया। यह जहांगीर के शासनकाल के आरम्भ तक चलता रहा। 
  6. बाबर को कला से अत्यधिक प्रेम था। सुंदर बाग, इमारतें और पुल आदि बनवाने का उसको शौक था। उसने लिखा है कि केवल आगरे में ही मेरे महलों में काम करने के लिए 680 आदमी नियुक्त थे और आगरा, सीकरी, बयाना, धौलपुर, ग्वालियर आदि स्थानों पर कुल मिलाकर 1491 संगतराश काम करते थे।
  7. बाबर इस बात का भी ध्यान रखता था कि स्थानीय अधिकारी जनता पर अत्याचार न करें। 
  8. उसका दरबार संस्कृति का ही केन्द्र स्थल नहीं था, अपितु कठोर अनुशासन का भी केन्द्र था। 
  9. एक शासक के रूप में वह अपनी प्रजा के हित एवं सुख-सुविधाओं का पूर्ण ध्यान रखता था और उन्हें बाह्य आक्रमण तथा आन्तरिक अशांति से बचाने का पूर्ण प्रयास करता था। परंतु अपनी प्रजा की भौतिक और नैतिक स्थिति सुधारने का उसने कोई प्रयास नहीं किया और न ही उसमें तत्संबंधी योग्यता ही थी।
वह एक प्रतिभा सम्पन्न शासक-प्रबंधक नहीं था। बाबर ने शासन-प्रबन्धन में विशेष सुधार नहीं किया। वह अफगानों की त्रुटिपूर्ण शासन प्रणाली को अपनाया। 

कुछ इतिहासकार इसका मुख्य कारण यह बताते हैं कि बाबर को भारतवर्ष पर शासन करने का अवसर बहुत अल्पकाल के लिए मिला और अधिकांशत: वह युद्धों में व्यस्त रहा। इसलिए यद्यपि उसमें साम्राज्य के संचालन और व्यवस्थापना की योग्यता थी, किन्तु उसका प्रयोग करने के लिए उसे समय नहीं मिला।

बाबर के व्यक्तित्व में दोष

इस प्रकार बाबर के व्यक्तित्व में दोष थे -
  1. नवीन शासन-प्रणाली को व्यवहार में लाने का प्रयत्न नहीं किया, 
  2. रचनात्मक बुद्धि का अभाव था, 
  3. राज्य को सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित करने का प्रयास नहीं किया,
  4. साम्राज्य में एक सी लगान-व्यवस्था स्थापित नहीं की, 
  5. न्याय-प्रबन्धन भी अव्यवस्थित था, 
  6. विशाल साम्राज्य के अन्यान्य भागों में राजनीतिक दृष्टि से असमानता विद्यमान थी, 
  7. अर्थ संबंधी समस्याओं को समझने की उसमें योग्यता न थी, सुदृढ़ आर्थिक-व्यवस्था कायम न कर सका, 
  8. सूझ-बूझ, व्यवहार बुद्धि का अभाव था, 
  9. ऐसी शासन-व्यवस्था स्थापित की जो युद्धकालीनन परिस्थितियों में तो ठीक थी, परंतु शांतिकाल में उचित नहीं थी, 
  10. उसमें इच्छा शक्ति और क्षमता का अभाव था कि कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित कर पाता, 
  11. उसने नवीन राजत्व-सिद्धान्त लागू नहीं किया, 
  12. सेना को भी ठीक से संगठित नहीं किया, 
  13. उसने नवीन राजनीतिक पद्धति लागू नहीं की, 
  14. सामन्तों को अधिक शक्तिशाली बना दिए।
बाबर में प्रशासकीय गुणों का सर्वथा अभाव था। बाबर एक अच्छा प्रशासक नहीं था। उसने भारत को एक विजेता की दृष्टि से ही देखा था।

रश्बु्रक विलियम्स महोदय का अभिमत है कि बाबर ने अपनी मृत्यु के बाद कोई सार्वजनिक या लोक-हितैषी संस्थायें नहीं छोड़ी, जो जनता की सद्भावना प्राप्त कर सकती हो। बाबर ने अपने पुत्र के लिए एक ऐसा राजतंत्र छोड़ा जो केवल युद्धकालीन परिस्थितियों में ही जीवित रह सकता था। 

बाबर स्वयं बहुत बड़ा विजेता माना जाता था। इन प्रभावों के प्रकट होने के लिए भी समय चाहिए था और बाबर का शासनकाल बहुत अल्प था। इसलिए बाबर को तो अपनी भूलों के दुष्परिणाम नहीं भुगतने पड़े, किंतु इतिहासकारों की मान्यता है कि बाबर स्वयं अपने पुत्र हुमायूं की कठिनाइयों के लिए कम उत्तरदायी नहीं था।

इतिहासकारों की मान्यता है कि बाबर एक साम्राज्य निर्माता था और इसी उद्देश्य से उसने भारतवर्ष पर आक्रमण किया। अन्त में भारतवर्ष में राज्य स्थापित करने में सफल हुआ, परंतु डॉ. पी. सरन का कथन है कि बाबर को एक साम्राज्य निर्माता की संज्ञा नहीं दी जा सकती। एक साम्राज्य निर्माता में जो गुण होने चाहिए उसका उसमें अभाव था। बाबर अपने विजित प्रदेशों को स्थायित्व प्रदान नहीं कर सका और न ही उनमें सुदृढ़ शासन-प्रबन्धन स्थापित करने के लिए कोई प्रयत्न किया।

बाबर की मृत्यु

26 दिसम्बर, 1530 को 48 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। मृत्यु से पूर्व उसने अमीरों को बुलाकर हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने और उसके प्रति वफादार रहने का आदेश दिया। हुमायूं को भी अपने भाइयों के प्रति अच्छा व्यवहार रखने की चेतावनी दी। अंत में जब बाबर की मृत्यु हो गई तो उसका पार्थिक शरीर चार बाग अथवा आराम बाग में दफना दिया गया। ‘शेरशाह के राज्यकाल में बाबर की अस्थियों को उसकी विधवा पत्नी बीबी मुबारिका काबुल ले गई और वहां शाहे काबुल के दलान पर जो मकबरा बाबर ने एक उद्यान में बनवाया था, वहां दफनवा दिया।’ हुमायूं 29 दिसम्बर, 1530 ई. को सिहासनारूढ़ हुआ।

संदर्भ -
  1. नागोरी, एल.एस., प्रणव देव नागोरी, मध्यकालीन भारत का इतिहास,(जयपुर, 2002), पृ. 144.
  2. रश्बु्रक विलियम्स, ऐन एम्पायर बिल्डर ऑफ दी सिक्थटींथ सेंचुरी, पृ. 22.
  3. बाबरनामा (अनु.), भाग-1, पृ. 191; अकबरनामा (अनु.), भाग-1, पृ. 224.
  4. बाबरनामा (हिन्दी अनुवाद), श्री केशव कुमार ठाकुर, साहित्यागार, (जयपुर, 2005), प्रस्तावना, पृ. 5.
  5. बाबर का जीवन परिचय शर्मा, श्रीराम, मुगल शासकों की धार्मिक नीति, पृ. 11.
  6. बाबर का जीवन परिचय. शर्मा, श्रीराम, मुगल शासकों की धार्मिक नीति, पृ. 11.
  7. बाबर का जीवन परिचय, वन्दना पाराशर, बाबर : भारतीय संदर्भ में, पृ. 90-91.

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