सन् 1000 ई. के आसपास हिन्दी साहित्य प्रारंभ होता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को काल एवं
प्रवृत्ति के आधार पर चार भागो में विभक्त किया हैं -
- आदिकाल अथवा वीरगाथा काल (संवत् 1050-1375 ई. तक)
- पूर्व मध्य काल या भक्ति काल (संवत् 1375-1700 ई. तक)
- उत्तर मध्यकाल या रीतिकाल (संवत् 1700-1900 ई. तक)
- आधुनिक काल अथवा गद्यकाल (संवत् 1900 ई. से अब तक)
1. आदिकाल अथवा वीरगाथा काल (संवत् 1050-1375 ई. तक) - आदिकाल अथवा वीरगाथा काल में हिन्दी, अपभ्रंश, प्राकृत मिश्रित काव्य रचनाएँ लिखी गई। आदिकालीन उपलब्ध साहित्य को भाषिक दृष्टि से पाँच वर्गों में विभक्त किया गया हैं -
- अपभ्रंश साहित्य
- डिंगल साहित्य
- पिंगल साहित्य
- लोक भाषा काव्य
- आदिकालीन अन्य साहित्य
2. पूर्व मध्य काल या भक्ति काल (संवत् 1375-1700 ई. तक) - भक्ति काल के साहित्य की मुख्य प्रवृत्ति भक्ति है। भक्तिकाल को दो धाराओ में बांटा गया हैं -
- निर्गुण भक्ति धारा
- सगुण भक्ति धारा
3. उत्तर मध्यकाल या रीतिकाल (संवत् 1700-1900 ई. तक) ‘रीति’ का अर्थ हैं परम्परा अथवा पूर्व की काव्य मान्यताओं को ज्यों का त्यों प्रस्तुत करना। रीतिकाल को तीन भागो में विभक्त किया गया हैं -
- रीतिबद्ध काव्य
- रीतिमुक्त काव्य
- रीतिसिद्ध काव्य
इस काल में जनमानस का झुकाव भक्ति से हटकर लौकिक श्रृंगार एवं भोग-विलासिता की तरफ हो रहा था। यही कारण हैं कि इस काल की रचनाओं में श्रंगारिकता, मांसलता, नखशिख वर्णन, नायक-नायिका भेद निरूपण की अधिकता परिलक्षित होती है।
इस काल में जनमानस का झुकाव भक्ति से हटकर लौकिक श्रृंगार एवं भोग-विलासिता की तरफ हो रहा था। यही कारण हैं कि इस काल की रचनाओं में श्रंगारिकता, मांसलता, नखशिख वर्णन, नायक-नायिका भेद निरूपण की अधिकता परिलक्षितहोती है।
4. आधुनिक काल अथवा गद्यकाल (संवत् 1900 ई. से अब तक) आधुनिक काल को हिन्दी साहित्य में भारतेन्दु काल, गद्य काल या खड़ी बोली हिन्दी कविता का काल भी कहा जाता है। सन् 1826 ई. में ‘उदन्त मार्तण्ड’ नामक हिन्दी साप्ताहिक के प्रकाशन ने हिन्दी गद्य को एक नई नीति दी। आधुनिक काल को निम्नलिखित भागो में बाँटा गया -
- भारतेन्दु काल (सन् 1850-1900)
- द्विवेदी युग (सन् 1900-1920)
- छायावाद (सन् 1920-1935)
- उत्तर छायावाद
प्रगतिवाद (सन् 1936-1942)
प्रयोगवाद एवं नई कविता (सन् 1943-1960)
समकालीन काव्य साहित्य (सन् 1980 ई. के पश्चात्)
हिंदी साहित्य का काल विभाजन
हिंदी साहित्य का काल विभाजन के कई आधार हो सकते हैं।
- कर्ता के आधार पर -प्रसाद युग, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग।
- प्रवृत्ति के आधार पर-भक्तिकाल, संतकाव्य, सूफीकाव्य, रीतिकाल, छायावाद, प्रगतिवाद।
- विकासवादिता के आधार पर-आदिकाल, आधुनिक काल, मध्यकाल।
- सामाजिक तथा सांस्कृतिक घटनाओं के आधार पर-राष्ट्रीय धारा, स्वातंत्रयोनर काल, स्वच्छंदतावाद, आदि।
- काल विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों की समानता के आधार पर होना चाहिए।
- कालों का नामकरण यथासंभव मूल चेतना प्रमाान प्रवृत्ति को आधार बनाकर करना चाहिए।
- युगों ;कालों का सीमांकन मूल प्रवृत्तियों के आरंभ और समापन के अनुसार होना चाहिए।
- काल की मूल प्रवृत्ति का निर्माण प्रमुख ग्रन्थों के आधार पर करना चाहिए।
1. गार्सा-द-तासी, शिवसिंह सेंगर का काल विभाजन
गार्सा-द-तासी, शिवसिह सेंगर ने काल विभाजन का कोई प्रयास नहीं किया।
2. ग्रियर्सन का काल विभाजन
ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ‘द माडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर आफ हिंदुस्तान’ को ग्यारह अध्यायों में
विभक्त किया है। प्रत्येक अध्याय एक काल खंड को व्यक्त करता है। इन्होंने लेखकों एवं कवियों का
कालक्रमानुसार वर्गीकरण किया है।
इस काल विभाजन में वैज्ञानिकता का अभाव है तथा अध्यायों की संख्या अधिक होने से उसे काल
विभाजन मानना उपयुक्त नहीं है।
3. मिश्र बंधुओं का काल विभाजन
मिश्र बंधुओं ने अपनी पुस्तक ‘मिश्र बंधु विनोद’ 1913 ई. में काल विभाजन प्रस्तुत किया-
1. आरंभिक काल -
- पूर्वारंभिक काल (700 - 1343 वि.)
- उनरारंभिक काल (1344 - 1444 वि-)
- पूर्व माध्यमिक काल (1445 - 1560 वि.)
- प्रौढ़ मामयमिक काल (1561 - 1680 वि.)
- पूर्वालंकृत काल (1681 - 1790 वि.)
- उनरालंकृत काल (1791 - 1889 वि.)
- (1890 - 1925 वि.)
- (1926 वि. से अब तक)
- काल खंडों के नामकरण में एक जैसी पण्ति नहीं अपनाई गई। आरंभिक, माध्यमिक, वर्तमान काल विकासवादिता के आधार पर हैं तो अलंछत काल आंतरिक प्रवृत्ति के आधार पर।
- इस काल विभाजन का कोई सुस्पष्ट आधार नहीं है।
- हिंदी साहित्य के इतिहास का प्रारंभ 700 वि. (64 ई.) से मानकर हिंदी के अंतर्गत अपभ्रंश की रचनाओं को समेट लिया गया है। हिंदी साहित्य का प्रारंभ 1000 ई. के आसपास हुआ था।
- परिवर्तन काल असंगत है तथा कालों की संख्या भी अधिक है।
5. आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल विभाजन
आचार्य शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास’
(1929 ई.) में काल विभाजन किया-
- वीरगाथा काल (संवत् 1050-1375 वि.)
- भक्तिकाल (संवत् 1375-1700 वि.)
- रीति काल (संवत् 1700-1900 वि.)
- गद्य काल (संवत् 1900-1984 वि.)
- आदिकाल (वीरगाथा काल) (1050-1375 वि.)
- पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) (1375-1700 वि.)
- उनर मध्यकाल (रीति काल) (1700-1900 वि.)
- आधुनिक काल (गद्य काल) (1900-1984 वि.)
- प्रधान प्रवृत्ति,
- ग्रंथों की प्रसिद्धि।
जिस कालखंड में एक विशेष ढंग की रचनाए अधिक मिलीं उसे एक अलग कालखंड माना गया और रचनाओं
की प्रचुरता के आधार पर प्रधान प्रवृत्ति का निर्धारण कर लिया गया। प्रधान प्रवृत्ति के लिए लोक प्रसिद्ध ग्रंथो को ही आधार बनाया गया है।
शुक्लजी के काल विभाजन में सर्वािमाक आपनि विद्वानों को वीरगाथाकाल नाम पर है। इस काल की अधिकांश
सामग्री आधार हीन एवं अप्रामाणिक है।
अत: उसके आधार पर प्रधान प्रवृत्ति का निर्माण नहीं हो सकता। कुछ
आलोचकों ने इस नाम को अनुचित बताकर इसे आदिकाल कहना ही उपयुक्त माना है।
एक प्रवृत्ति को प्रमाानता देकर शेष को गौण मान लेने का दृष्टिकोण भी कुछ लोगों के मत से एकांगी है जो
इतिहास की अमाूरी एवं एक पक्षीय व्याख्या करता है जिसे वैज्ञानिक नहीं कह सकते।
पिफर भी यह कहना उचित है कि शुक्लजी की काल विभाजन पण्ति का आधार तर्वफ संगत एवं पुष्ट है। उनका
काल विभाजन सरल एवं सुस्पष्ट है। अधिकतर परवर्ती इतिहासकारों ने उसी का आधार ग्रहण किया है।
6. डॉ. राम कुमार वर्मा का काल विभाजन
डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने इतिहास ग्रंथ हिंदी साहित्य का
आलोचनात्मक इतिहास’ (1938 ई.) में इस प्रकार काल विभाजन किया-
- संधिकाल (750 वि. - 1000 वि.)
- चारणकाल (1000 वि. - 1375 वि.)
- भक्तिकाल (1375 वि. - 1700 वि.)
- रीतिकाल (1700 वि. - 1900 वि.)
- आधुनिक काल (1900 वि. - अब तक)
7. डॉ. गणपति चंद्र गुप्त का काल विभाजन
इन्होंने हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास’
(1965 ई.) में निम्न काल विभाजन किया-
- प्रारंभिक काल - (1184-1350 ई.)
- मध्यकाल - 1. पूर्व मध्यकाल (1350-1500 ई.) 2. उनर मध्यकाल (1500-1857)
- आधुनिक काल - (1857-1965 ई.)
विभिन्न काल खंडों के नामकरण
1. आदिकाल -- वीरगाथाकाल - आचार्य रामचंद्र शुक्ल
- आदिकाल - हजारी प्रसाद द्विवेदी
- चारणकाल - डॉ. रामवुफमार वर्मा
- बीज वपन काल - महावीर प्रसाद द्विवेदी
- सिद्द सामंत युग - राहुल सांछत्यायन
- आरंभिक काल - मिश्र बंधु
- प्रारंभिक काल - डॉ. गणपति चंद्र गुप्त
3. उत्तर मध्यकाल-रीति काल, अलंकृत काल, शृंगारकाल, कला काल।
4. आधुनिक काल-गद्य काल, वर्तमान काल।
स्पष्ट है कि प्रथम काल खंड के नामकरण पर ही अिमाक विवाद है। हिंदी साहित्य के इतिहास ग्रंथों में जो नाम
सर्वािमाक प्रचलित हैं, वे इस प्रकार हैं-
- आदिकाल (1000 ई. से 1350 ई.)
- भक्तिकाल (1350 ई. से 1650 ई.)
- रीति काल (1650 ई. से 1850 ई.)
- आमाुनिक काल (1850 ई. से अब तक)
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आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी द्वारा काल विभाजन व नामकरण सबसे उचित है।
ReplyDeleteमै एक कवि हूं तथा कविताएं लिखता हूं हमारी कविताओ को पढ़ने के लिए हमसे Twitter पर जुड़े @VishalM914090
ReplyDeleteऔर हमे Ripley दें।🙏✍️