पर्यावरण शिक्षा उस विशिष्ट शिक्षा को कहते है जो जन-समुदाय को पर्यावरण जानकारियों से परिचित कराकर पर्यावरण बोध को पुष्ट करती है, पर्यावरण कठिनाइयों के कारण और निवारण का मार्ग ढूँढती है तथा भविष्य की कठिनाइयों से आगाह कर जीवन को निरापद बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है। पर्यावरणीय शिक्षा मानव की पर्यावरण जन्य चेतना को जागृत कर मानवीय आचरण को संतुलित बनाती है।
पर्यावरण शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि पर्यावरण शिक्षा वस्तुत: विश्व समुदाय को पर्यावरण सम्बन्धी दी जाने वाली वह शिक्षा है जिससे समस्याओं से अवगत होकर उनका समाधान ढूँढने और भविष्य में उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों की रोकथाम के लिये आवश्यक जानकारी प्राप्त होती है, जिसके आधार पर व्यक्तिगत या सामूहिक स्तर पर पर्यावरण समस्याओं से निजात पाने का मार्ग ढूँढा जा सकता है और भविष्य की कठिनाइयों को जाना जा सकता है।
पर्यावरण शिक्षा का अर्थ
इसमें पर्यावरण के विभिन्न पक्षों व धटकों का मानव के साथ
अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इसमें जीवमण्डलीय पारिस्थितिक तन्त्र को प्रभावित करने वाले घटकों की
भी जानकारी मिलती है।
पर्यावरण शिक्षा को एक निश्चित परिभाषा के दायरे में बाँधना बड़ा कठिन है।
पर्यावरण शिक्षा की परिभाषा
चैरमैन टेलर के अनुसार- “पर्यावरण शिक्षा को सद्नागरिकता का विकास करती है । और इससे अध्येता में पर्यावरण के संबंध में लापकारी, प्रेरणा और उत्तरदायित्व के भाव आते है ।”एनसाइक्लोपीडिया ऑफ एज्यूकेशन रिसर्च के अनुसार - शिक्षा का कार्य व्यक्ति का पर्यावरण से इस सीमा तक सामंजस्य स्थापित करना होता है, जिससे व्यक्ति और समाज को स्थायी संतोष मिल सके ।”
बेसिंग महोदय के अनुसार - “पर्यावरण शिक्षा की परिभाषा देना सरल कार्य नहीं है। पर्यावरण शिक्षा के विषय क्षेत्र अन्य पाठ्यक्रमों की तुलना में कम परिभाषित है । फिर भी वह सर्वमान्य है कि पर्यावरण शिक्षा बहुविषयी होनी चाहिए, जिसमें जैविक , सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और मानवीय संसाधनों से सामग्री प्राप्त होती है । इस शिक्षा के लिए सम्प्रत्यात्मक विधि सर्वोत्तम है ।”
पर्यावरण शिक्षा के प्रकार
1. औपचारिक पर्यावरण शिक्षा - औपचारिक पर्यावरण शिक्षा और प्रशिक्षण के पात्र छात्र-छात्राएं, कार्यरत कर्मचारी, प्रशासनिक अधिकारी और पर्यावरण के प्रति अभिरूचि रखने वाले पढ़े-लिखे लोग होते हैं।2. अनौपचारिक पर्यावरण शिक्षा - अनौपचरिक पर्यावरणीय शिक्षा मुख्यत: अनपढ़ लोगों को प्रदान की जाती है। ऐसे लोगों की अतिरिक्त कम पढ़े-लिखे और काम-धन्धों में लगे लोगों को भी ऐसी शिक्षा की आवश्यकता होती है। ऐसे वर्ग के लोगों के लिये विषेश व्यवस्था की आवश्यकता होती है, क्योंकि अनपढ़ होने के कारण इन्हें ऐसे तरीकों से शिक्षित किया जाता है, ताकि वे पर्यावरण के विविध पक्षों को समझ सकें।
पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता
पर्यावरण संकट व समस्याओं की व्यापकता व विस्तार से ग्रस्त व भयभीत सम्पूर्ण मानवता को बचाने , उसकी रक्षा करने , व भविष्य को सुखी बनाने हेतु पर्यावरण शिक्षा आज की प्राथमिक आवश्यकता है। यदि इस शिक्षा की उपेक्षा कर दी जाये तो जन -जन में पर्यावरण अवबोध व गुणवत्ता बनाये रखने की चेतना जागृत नहीं होगी और पर्यावरण व पारिस्थितिक का असन्तुलन निरन्तर बढ़ता जायेगा जिससे ओजोन परत पर छिद्र बडा होने से सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी पर सीधी पड़ने लगेगी ,मृदा की उर्वरक धारण शक्ति कम हो जाने से उपज न होगी । पीने के लिए शुद्ध जल नहीं मिलेगा और तापीय प्रदूषण उम्पन्न होने तथा कल- कारखाने व अन्य साधनों से इतना अधिक शोर होगा कि कान फटने लगेंगे। संक्षेप में मानव अपंग व अशक्त हो जायेगा। अत: इन समस्त संकटों व समस्याओं से बचने के लिए तथा मानव का सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण शिक्षा अत्यंत आवश्यक है।पर्यावरण शिक्षा की प्रकृति
पर्यावरण शिक्षा की प्रकृति अन्य विषयों की शिक्षा की प्रकृति से भिन्न है, क्योंकि पर्यावरण शिक्षा देने के स्तर व उसका क्षेत्र अन्य पाठ्यक्रम की शिक्षा के स्तरों व क्षेत्रों से अधिक व्यापक और विस्तृत है। इसके साथ ही पर्यावरण शिक्षा की प्रकृति की अपनी स्वयं की अन्य अनेक विशेषताएं ऐसी है जो अन्य पाठ्यक्रम की तुलना में पृथक -पृथक है । पर्यावरण शिक्षा विश्व के सभी देशों के सामाजिक समूहों के लिए आवश्यक है ।तथा विश्व के सभी देशों में औपचारिक एवं अनौपचारिक रुप में संचालन पर बल दिया जाता है। paryavaran shiksha ki prakriti पर्यावरण शिक्षा के अन्तर्गत जीवन और जगत् की समस्याओं का पर्यावरण दृष्टि से अध्ययन किया जाता है। जो है-- यह विश्वव्यापी प्रक्रिया है।
- विश्वबंधुत्व की प्रेरणा है ।
- यह एक सकारात्मक उपागम है।
- अन्त: अनुशासनात्मक का रुप धारण करती है।
- यह एक सामाजिक प्रक्रिया है।
पर्यावरण शिक्षा का महत्व
पर्यावरण शिक्षा का महत्व उसकी आवश्यकता से स्पष्ट होता है फिर भी उसका प्रतिपादन इस माध्यम से किया है -- सौरमण्डल में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है, जिस पर जीवन सम्भव है। उसे नष्ट होने से बचाना है तथा उस पर बसने वाले प्राणी मात्र को सुखद जीवन उपलब्ध करता है ।
- प्रतिवर्ष जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है उससे सारा प्रकृति चक्र गड़बड़ा गया है। प्रकृति व पर्यावरण को पुन: संतुलित करने तथा भावी पीढ़ियों को विरासत में सुन्दर व व्यवस्थित समाज प्रदान करने हेतु जनसंख्या वृद्वि को नियंत्रित करना है।
- प्रकृति में संसाधनों के विशाल भण्डारण सीमित है। इसका उचित व विवेक पूर्ण उपयोग हो, यह लोगों को सिखाना है कि पृथ्वी के प्रत्येक निवास के मानस में यह बात बैठाना है।
- पेड़ व वनस्पति ही केवल कार्बन-डाइ-ऑक्साइड को प्राणवायु ऑक्सीजन में बदल सकते है। अत: वायु मण्डल में आक्सीजन की मात्रा बनाये रखने तथा कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की मात्रा की वृद्धि से होने वाली पर्यावरण विकृतियों से अवगत कराने के लिए छात्रों को जानकारी देनी चाहिए।
- औद्योगिक क्रान्ति तथा वैज्ञानिक उपलब्धियों के फलस्वरूप सुख-सुविधाओं के उपकरणों ने चारों तरफ अनेक प्रकार के प्रदूषण फैला दिये है, उन्हें नियंत्रित व कम करने तथा बचाव के उपाय सुझाने हेतु कार्यक्रम चलाने चाहिए।
Nic content
ReplyDeleteA mere liye bahut helpful rha nice content
ReplyDeleteNice content sir thanks
ReplyDeleteअत्यंत महत्वपूर्ण
ReplyDeleteTq
Deleteyou are right
ReplyDeleteशक नहीं पहुंच पाई जाती हैं गाडियां को नूतन ठाकुर साहब को नूतन वर्ष पहले बना दिया है लेकिन शायद यही कारण रहा है कि वे अपनी जीभ मेरे पास आकर खड़ी हुई हैं और उन्हें अपने आप में शामिल किया है
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