औद्योगिक संप्रेषण क्या है ?

औद्योगिक संप्रेषण किसी औद्योगिक इकाई में विभिन्न स्तरों पर कार्यरत मानव संसाधनों के मध्य औद्योगिक मुद्दों अथवा उत्पादन एवं आपूर्ति प्रणाली से सम्बन्धित सभी मामलों पर यथा जरूरत विचारों, सूचनाओं एवं निर्देशों का आदान-प्रदान है।

औद्योगिक संप्रेषण का महत्व 

आधुनिक युग में मानव सभ्यता का विकास ही संप्रेषण प्रणाली के अभाव में अवरूद्ध हो जाएगा। प्रत्येक स्तर पर, चाहे व्यक्ति औद्योगिक उपक्रम में हो, समाज में, परिवार में, अथवा सामुदायिक जीवन में, बिना संप्रेषण के वह अपनी भूमिकाओं का निष्पादन सही ढंग से नहीं कर सकता। औद्योगिक उपक्रम की स्थापना किन्हीं सुपरिभाषित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए होती है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति इस बात पर निर्भर करती है कि पब्रन्धन कर्मचारियों की क्रियाओं से किस प्रकार तादात्म्य एवं समन्वय स्थापित करते हैं। इस कार्य में उचित संचार माध्यम एवं संप्रेषण प्रक्रिया का सहारा लिया जाता है। 

इस प्रकार, संगठन अपने लक्ष्यों व उद्देश्यों को सुगमता से हासिल कर लेते हैं। संप्रेषण प्रणाली जितनी कारगर होगी, उतना ही नीतियों, नियमों, प्रतिमानों व निर्देशों को कर्मचारी उचित समय पर स्पष्ट रूप से समझ सकेंगे, जोकि न केवल गुणवत्ता पूर्ण उत्पादन बल्कि अच्छे मानवीय समबन्धों की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण होगा।

प्रबन्धन या नियोक्ता अपनी नीतियों, निर्णयों, विचारों आदि को कर्मचारियों तक उपयुक्त ढंग से तभी प्रेषित कर सकता है, जब संचार व्यवस्था भली भाँति विकसित हो। औद्योगिक संप्रेषण, वास्तव में, एक स्तर के अधिकारियों व कर्मचारियों के द्वारा अपने मनोभावों, विचारों तथा निर्णयों से दूसरे स्तरों के अधिकारियों व कर्मचारियों को अवगत कराने की प्रक्रिया है। इसके लिए प्रबन्धकों को चाहिए कि विभिन्न पर्यवेक्षकीय तथा पब्रन्धकीय स्तरों का निर्माण करें, जिससे वे श्रंखलाबद्ध रूप से संगठन की कायर्वाही पर दृष्टि रख सकें। समुचित संचार प्रणाली होने से उच्च प्रबन्धक, विभागीय प्रबन्धक, पर्यवेक्षक तथा अन्य कर्मचारी एक दूसरे से लगातार सम्पर्क बनाए रख सकते हैं। 

इनसे सभी स्तरों के कर्मचारियों के आत्मविश्वास को बल मिलता है। इससे उनके बीच पनपने वाली भ्रांतियों को दूर करने में भी सहायता मिलती है। तथा समस्याओं का सम्यक् निदान व समाधान भी सम्भव हो जाता है। आवश्यकता पड़ने पर विभिन्न नीतियों, निर्देशों व लक्ष्यों आदि में उद्यम के हित को ध्यान में रखते हुए संशोधन भी किया जा सकता है। इस प्रकार, प्रबन्धक अपने कर्म चारियों पर निरन्तर प्रभाव बनाए रख सकता है।

औद्योगिक संगठनों (खासकर बड़े उद्यमों में) में प्रभावी संप्रेषण प्रणाली का विकास व उसका पोषण किया जाना आवश्यक है क्योंकि इसके अभाव में संदेश वांछित व्यक्ति तक पहुँचते-पहुँचते इतना विकृत हो जाएगा कि अर्थ का अनर्थ होने की सम्भावना बलवती हो जाएगी। कुशल संप्रेषण प्रणाली वही है जिसमें प्रत्येक स्तर पर विचारों की समरूपता बनी रहे। तथा हर स्तर पर उसी रूप में उन विचारों का संप्रेषण, संग्रहण व अर्थ निरूपण हो सके, जैसा कि अपेक्षित है। इस प्रकार, उचित संचार प्रणाली का होना संगठन की सफलता के लिए अपरिहार्य है।

औद्योगिक संप्रेषण के उद्देश्य 

संप्रेषण के मुख्यतः चार उद्देश्य होते हैं -

1. आदेशों व निर्देशों का सभी सम्बन्धित व्यक्तियों को सही एवं स्पष्ट हस्तांतरण करना - जब तक कर्मचारियों को यह पता न हो कि उन्हें क्या कार्य करना है : किन परिस्थितियों में करना है ; किसके साथ मिलकर करना है ; तथा कार्य के लिए आवश्यक सामग्री आदि की आपूर्ति की स्थिति क्या है ? तब तक वे अपने कार्य का समुचित निष्पादन नहीं कर सकते। स्पष्ट आदेशों व निर्देशों के अभाव में भी संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता।

2. विचारों व सूचनाओं का स्वतंत्र व बेरोकटोक आदान प्रदान करना - संगठन में सभी स्तरों के कर्मचारी आपसी विचार विमर्श द्वारा अपनी समस्याओं का निवारण कर सकते हैं। उच्च प्रबन्धन, उत्पादन एवं लागत सम्बन्धी विश्लेषण एवं योजनाएँ, वित्तीय व्यवहार, आर्थिक अनुमान, व्यापारिक दशाएँ, बाºय एवं आंतरिक परिस्थितियाँ, नयी योजनाओं कार्यक्रमों आदि के बारे में सूचनाएँ सम्बन्धित कर्मचारियों को उपलब्ध करवाकर उन्हें औद्योगिक शांति व उत्पादकता के उच्च स्तर को बनाए रखने तथा उनके कार्य मनोबल को ऊँचा रखने में सफल हो सकते हैं। यह सब प्रभावी संचार व्यवस्था के बगैर मुमकिन नहीं है।

3. कर्मचारी विकास सम्बन्धी सूचनाओं का संप्रेषण करना - प्रबन्धननिष्पादन मूल्यांकन के परिणामों तथा कर्मचारियों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाएँ एवं तथ्य संबंधित कर्मचारियों को संप्रेषित कर उन्हैं। अपने भविष्य की प्रोन्नति एवं विकास के बारे में समुचित निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं।

4. संप्रेषण विचारों को कार्यरूप देने का माध्यम बना सके, इसका प्रयास करना - प्रभावी संप्रेषण प्रणाली होने से संगठन में गलत धारणाएँ नहीं फैलतीं। बड़े संगठन का प्रबन्धन अपने लक्ष्यों के अनुरूप दृष्टि का विकास करता है। इसी के आधार पर विचार पव्राह का एक ढाँचा तैयार हो जाता है। इस विचारों की श्रंख्ृ ाला को नीचे के स्तरों पर सही रूप में सम्प्रेषित करके ही इन विचारों को कार्य रूप में परिणत किया जा सकता है। तभी उद्यम के लक्ष्यों की वर्तमान व भविष्य में प्राप्ति सम्भव नहीं हो सकती। औद्योगिक सम्बन्धों को सुचारू बनाए रखने के लिए भी प्रभावी संचार व्यवस्था आवश्यक है। चाल्र्स ई0 रेडफील्ड के विचार से औद्योगिक संप्रेषण या तो इकाई को सुदृढ़ कर सकता है या फिर उसे नष्ट भी कर सकता है।

औद्योगिक संप्रेषण के माध्यम 

विचार संप्रेषण के मौखिक व लिखित दोनों ही माध्यम हो सकते हैं, जो हैं। 

अधोमुखी संप्रेषण के माध्यम

मौखिकलिखित
1. व्यक्तिगत निर्देश/सम्पर्क।1. लिखित निर्देश व आदेश।
2. भाषण, प्रवचन, सम्मेलन, गोष्ठियाँ,
समितियाँ एवं बैठकें।
2. पत्र, स्मरण पत्र ण्वं मेमोरैण्डम।
3. साक्षात्कार एवं विचार विमर्श 3. समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, नोटिस बोर्ड,
बुलेटिन, जर्नल्स, आदि।
4. टेलीफोन वार्ता एवं सार्वजनिक
सम्बोधन, चलचित्र एवं स्लाइड
प्रदर्शन।
 4. पोस्टर्स, बैनर्स, होर्डिंग्स, बाल पेन्टिंग्स, इत्यादि।
5. सीटी, भोंपू, घण्टी 5. पत्र वाहन, सूचनापÍ, आदि।
 6. सामाजिक व्यवहार, जिसमें संगठन
सम्बन्धी वार्तालाप सम्मिलित हैं।
6. कर्मचारियों की निर्देश पुस्तिकाएँ
7. अंगूरलता प्रणाली (क्रमबद्ध) सूचना 7. वार्षिक प्रतिवेदन, लिखित निष्पादन
मूल्यांकन
 8. श्रव्य-दृष्य प्रणाली प्रदर्शनियाँ तथा अन्य आधुनिक
प्रसारण प्रणालियाँ।
8. श्रम संघों के पत्राचार एवं प्रकाशन, आदि।

 9. बुलेटिन, डिस्प्ले बोर्ड।

10. अन्य लिखित प्रणालियाँ, नीतियाँ एवं
क्रियाविधि मैन्युअल, आदि।

      

उध्र्वमुखी संप्रेषण के माध्यम 

मौखिकलिखित
1. सम्मुख वार्तालाप, साक्षात्कार।1. प्रतिवेदन- निष्पादन प्रतिवेदन,
उत्पादन, मूल्य, किस्म, नैत्यिक लाभ
सम्बन्धी व अन्य विशिष्ट प्रतिवेदन 
2. टेलीफोन पर वार्तालाप व
साक्षात्कार, टेली
कान्फ्रेन्सिंग, वीडियो कांफ्रेंसिंग
आदि। 
2. व्यक्तिगत पत्र, प्रार्थना पत्र, सूचनाएँ।
3. बैठकें, सम्मेलन, पर्यवेक्षकों से विचार विमर्श3. परिवेदना निवारण प्रणाली।
4. सामाजिक व्यवहार/रीति रिवाज। 4. विचार विमर्श प्रणाली। 
5. अंगूरलता संवाद प्रणाली 5. अभिरूचि एवं सूचना सर्वेक्षण 
 6. श्रम संघ का प्रतिनिधित्व व सूचना के अन्य स्त्रोत6. श्रम संघ के प्रकाशन
7. सम्पर्कात्मक प्रबन्धन।

क्षैतिजीय संप्रेषण के माध्यम 

मौखिकलिखित
1. भाषण, सम्मेलन, कमेटियाँ, बैठकें।1. पत्र, मेमो एवं प्रतिवेदन
2. टेलीफोन तथा अन्तर्विभागीय संचार
सुविधा, चलचित्र, स्लाइडें, आदि।
2. आंतरिक सूचना प्रणाली, बुलेटिन
व प्रकाशन।
3. सामाजिक व्यवहार व रीतियाँ3. बुलेटिन बोर्ड व पोस्टर
 4. अंगूर लता संवाद प्रणाली,
अफवाहें
4. निर्देश पुस्तिकाएँ व मैन्युअल
5. भोंपू, घंटी, आदि 5. संगठन के प्रकाशन, आदि।
 

संप्रेषण के विभिन्न माध्यमों का विवरणात्मक विवेचन 

संप्रेषण के माध्यम से आशय उन विधियों से है जिनके द्वारा संदेश वांछित व्यक्तियों तक पहुँचाया जाता है। संप्रेषण के लिखित माध्यमों को अधिक प्रभावी माना जाता है। इनमें से कुछ का विवरणात्मक विवेचन निम्न प्रकार हैं :

(1) कर्मचारी पुस्तिकाएँ :नवागन्तुक कर्मचारियों के लिए इन पुस्तिकाओं का बड़ा महत्व होता है। इससे उन्हें कम्पनी का परिचय, व्यावसायिक नीतियों, व्यवसाय की प्रकृति, संगठन के उद्देश्यों, व कम्पनी के उपलब्ध सेवाओं आदि का परिचय हो जाता है। इसमें फैक्टरी की उतपादन प्रक्रिया, विभिन्न उतपादों, ग्राहकों, लाभ-हानि, कच्चे माल के स्त्रोतों का भी विवरण हो सकता है। इसमें कर्मचारी को होने वाले लाभों, दैनिक सामान्य समस्याओं व उनके कर्तव्यों का विवरण भी हो सकता है। इन सभी सूचनाओं के प्रकटन में यथा जरूरत चार्टो, तालिकाओं, ग्राफों, चित्रों, कार्टूनों आदि का प्रयोग भी किया जाता है। एक अच्छी कर्मचारी पुस्तिका में सामान्यत: निम्न बातें सम्मिलित रहती हैं :
  1. कर्मचारी का नाम, पद, टोकन नं0, विभाग, पता, आयु। 
  2. अनुशासन, पदमुक्ति एवं सेवा निवृत्ति के नियम। 
  3. संगठन का इतिहास एवं प्रबन्धन प्रणाली। 
  4. व्यवसाय में उत्पादन एवं उत्पादकता संबंधी सूचना। 
  5. विभिन्न नीतियों, निर्देशों व आदेशों के मूल अंश। 
  6. मनोरंजन, चिकित्सीय व अन्य सुविधाओं की जानकारी। 
  7. कल्याण सुविधाओं जैसे- अल्पाहार गृह, सहकारी समिति, उचित मूल्य की दुकान वाचनालय, पुस्तकालय, रात्रिशालाएँ, प्रौढ़शालाएँ, कार्य सम्बन्धी पत्र पत्रिकाएँ, कल्याण कार्यालय, शिशु गृह, शिक्षा संस्थाएँ, आवागमन की सुविधाएँ, अग्निशमन सेवाएँ आदि का विवरण। 
  8. सामूहिक सौदेबाजी तथा श्रम संघ व्यवस्था की जानकारी। 
  9. नियोजन के अवसर, पदोन्नति, तथा विकास के अवसर, आदि। 
  10. अवकाश के नियम, कार्य के घंटे, मजदूरी सम्बन्धी नियम तथा कार्य की दशाओं के बारे में सूचना।
  11. आनुसंगिक लाभ योजनाओं तथा बोनस एवं बीमा योजनाओं की जानकारी। 
कर्मचारी को ये सूचनाएँ प्राप्त हो जाने पर उसे यह अनुभव होता है कि संगठन उसके हितों के प्रति कितना सजग है। उसे अपने दायित्वों का भी आभास होता है। इन सबसे उसके कार्य मनोबल पर सकारात्मक असर पड़ता है।

(2) मैगजीन एवं पत्र पत्रिकाएँ :कुछ संगठन अनेक पत्र पित्राकाओं का प्रकाशन करके कर्मचारियों को व्यवसाय की गतिविधियों, विकास के कार्यो तथा प्रशासन में सक्रिय विभूतियों, आदि के बारे में परिचित कराते रहते हैं। हाउस मैगजीन से ऐसा मंच तैयार होता है जिससे प्रबन्धक व कर्मचारी एक दूसरे के प्रत्यक्ष संपर्क में रहते हैं। यह कम्पनी की नीतियों को अत्यन्त सरल ढंग से प्रस्तुत करने व कर्मचारियों को कल्याण सुविधाओं से अवगत रखने में सहायक होती है। मैगजीन किसी कर्मचारी या कर्मचारियों के प्रति उपक्रम के दृष्टिकोण को उजागर करती है। इससे संस्था के प्रति कर्मचारी को अपना दृष्टिकोण व स्वामिभक्ति पुष्ट करने में मदद मिलती है। 

मैगजीन का सम्पादन कार्मिक विभाग के अधिकारियों द्वारा किया जाता है। विभिन्न श्रेणियों के कार्मिकों को सम्पादन मंडल में रखा जाता है। इससे कर्मचारियों में एकता की भावना सुदृढ़ होती है। और विभिन्न स्तरों के कर्मचारियों को नजदीक आने का अवसर प्राप्त होता है।

(3) सलाह योजना : इस प्रणाली का उपयोग उत्पादन व्यय, व्यक्ति की कार्य के प्रति रूचि को बढ़ाने, तथा प्रबन्धकों के सम्मुख अपने विचार प्रकट करने व अच्छी सलाह होने पर पुरस्कृत करने की योजना बनाई जाती है। व कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त किया जाता है। श्रमिक वर्ग एक ओर मशीनों, उत्पादन विधियों एवं अन्य उपकरणों में सुधार की सकारात्मक सलाह देते हैं, तो दूसरी ओर वर्तमान सुविधाओं, कार्य की दशाओं आदि के प्रति अपना असंतोष, यदि कोई हो, व्यक्त करते हैं। सुझाव पेटियों का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रणाली को सफल बनाने के लिए -
  1. उचित मौद्रिक पुरस्कार के लिए धन की पृथक् व्यवस्था की जाती है।
  2. प्रणाली के संचालन हेतु संयुक्त समिति का गठन किया जाता है। 
  3. विशिष्ट सूचनाएँ व समस्याएँ प्रत्येक कर्मचारी तक पहुँचाकर उसे अपने विचार प्रकट करने का अवसर दिया जाता है।
  4. प्रबन्धक तथा पर्यवेक्षक इस प्रणाली को महत्व देते हैं।
  5. सलाह प्राप्त होने पर तत्सम्बन्धी पूर्ण जानकारी प्राप्त कर समुचित कदम उठाने की प्रबन्धक चेष्टा करते हैं।
(4) आंतरिक पत्र-पत्रिकाएँ : इन पत्रिकाओं में कम्पनी के समाचार, कर्मचारियों को व्यक्तिगत सूचना (जैसे-गोष्ठियों के सन्दर्भ, विवाह सम्बन्धी समाचार, जन्म, सेवा-निवृत्ति, पुरस्कार, पदक, आदि के समाचार) दी जाती है। इन समाचारों को चित्रों में भी प्रदर्शित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, चित्रों में कम्पनी द्वारा उत्पादित वस्तुओं का प्रदर्शन किया जाता है जिससे कर्मचारियों को नयी वस्तुओं, नयी शोधों तथा कम्पनी की प्रगति के बारे में जानकारी मिलती रहती है। प्रतीकात्मक कहानियों में प्राय: पदोन्नति, सेवा-निवृत्ति, घरेलू क्रिया-कलाप, खेलकूद, सुरक्षा, विचार-विमर्श, आदि बातें सम्मिलित की जाती है।

(5) कर्मचारी समाचार-पत्र- अच्छी तरह तैयार किये गये समाचार पत्रों द्वारा कर्मचारियों के साथ संप्रेषण में सहायता मिलती है। समाचार पत्र में कुछ पष्ृ ठ कर्मचारियों के लिए नियत किये जाते हैं, जिसमें ‘‘श्रमिक या कर्मचारी के पत्र‘‘ शीर्षक से उनके विचार प्रकाशित किये जा सकते हैं। कर्मचारी पत्र मुख्यत: कर्मचारियों के विचारों को प्रस्तुत करते हैं न कि प्रबन्ध के। यद्यपि कम्पनी की नीतियों, विकास सम्बन्धी कार्यवाहियों, सुरक्षात्मक, कल्याणकारी तथा अन्य सामान्य रूचि के कार्यो (जैसे मनोरंजन की सुविधाएँ, कार्य-विश्लेषण, खेल-कूद सम्बन्धी बातें, आदि की जानकारी देने) के लिए स्थान निश्चित रहता है, किन्तु फिर भी वह पत्र कर्मचारियों की सूचनाएँ अधिक प्रकाशित करता है। कर्मचारी पत्र में विभिन्न कार्यो का विवरण, विकास के साधन, संयन्त्र विस्तार, नयी भर्ती व्यवस्था, आदि का विवरण रहता है। इसमें वार्षिक प्रतिवेदन के उपयोगी अंश भी प्रकाशित किये जाते हैं। कम्पनी अपने कर्मचारियों के पत्रों का प्रकाशन स्थानीय समाचार पत्रों में भी विज्ञापनस्वरूप करवाती है।

(6) कर्मचारियों को वित्तीय प्रतिवेदन: इन प्रतिवेदनों में वांछित तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है जिससे व्यापार की प्रवृत्ति, उसके लाभ, व्यय, आय, वितरण, आदि की जानकारी कर्मचारियों को मिलती है। ये प्रतिवेदन कर्मचारी के लिए लाभदायक तो है ही, किन्तु कम्पनी की स्थिति को स्पष्ट एवं अधिक सुदृढ़ करने में भी सहायक होते है। कर्मचारी तथा प्रबन्धकों के मध्य आपसी सम्बन्ध, उन्हें एक-दूसरे के समीप लाने तथा एक-दूसरे के प्रति अधिक विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करने में भी इन प्रतिवेदनों से सहायता मिलती है। सामान्यत: वार्षिक अथवा त्रैमासिक प्रतिवेदन (जो अंशधारियों को निर्गमित किये जाते है) श्रमिकों के लिए अधिक लाभदायक सिद्ध नहीं होते क्योंकि श्रमिक अधिकांशत: न केवल अशिक्षित होते हैं, वरन् तकनीकी भाषा को समझने में भी असमर्थ रहते है। अत: इनके प्रयोगार्थ वित्तीय प्रतिवेदन भी सामान्य रूप से सरल बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। ये प्रतिवेदन विभिन्न माध्यमों से वितरित किये जाते हैं जैसे विशिष्ट पैम्फलेट, कर्मचारी मैगजीन, आदि।

(7) प्रकाशित भाषण जिनमें सेविवर्गीय नीतियाँ उद्धृत हों : इन प्रकाशनों से कर्मचारियों को कम्पनी की नीतियों का पूर्ण ज्ञान हो जाता है। इसमें नियोगी-नियोक्ता सम्बन्ध भी स्पष्ट हो जाते हैं। इसमें कर्मचारी पुि स्तका के बारे में प्रश्नोत्तर प्रस्तुत किये जाते हैं। जिससे कर्मचारी सभी निर्धारित नीतियों की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। सभी सेविवर्गीय नीतियाँ एक ही पत्रिका में प्रकाशित कर दी जाती हैं तथा बाद में भिन्न-भिन्न विषयों के लिए पथ्ृ ाक् पैम्फलेट प्रकाशित किये जाते हैं। जैसे प्रॉवीडेण्ट फण्ड, सेवा-निवृत्ति योजना, उत्पादन बोनस, लाभ-भागिता, सहकारी समिति तथा स्थायी आदेश सम्बन्धी सूचना।

(8) सूचना या प्रदर्शन-पट्ट :इन्हें ऐसे स्थान पर रखा जाता है जहाँ कर्मचारी इनके सम्पर्क में आते हैं। इनमें पठन-पाठन सामग्री रखी जाती है। वे प्राय: दरवाजों के पास, कॉफी हाउस, जलपान-गृह, आदि में लगाये जाते हैं। खुले स्थान पर ‘‘क्या आपने पढ़ा है?’’ या ‘‘एक अपने लिए लीजिए’’ शब्द लिखे रहते हैं। पुस्तिकाओं तथा पैम्फलेटों में विभिन्न प्रकार के खेल एवं सामग्री उपलब्ध होती हैं। जिनमें अनेक प्रवृत्तियों, (खाना बनाना, कंशीदाकारी तथा सिलाई की विधि, गृह अर्थशास्त्र, मनोरंजन, शिक्षा सम्बन्धी सूचनाएँ, दुर्घटना से बचाव, मित्रों से कैसे मिलें एवं उन्हें कैसे प्रभावित करें, गृह व्यवस्था, बागवानी, कर प्रणाली, आदि) पर जानकारी सम्मिलित रहती है।

(9) बुलेटिन बोर्ड : सामान्यत: बड़े संगठनों में कर्मचारियों के लिए एक बुलेटिन बोर्ड रखा जाता हैं। जिसमें विभिन्न आकर्षक रंगों तथा सुन्दर अक्षरों का प्रयोग किया जाता है। इन बोर्डो पर सामान्य पसन्दगी के समाचार, कार्टून, आवश्यक फोटोग्राफ, वर्तमान तथा भूतकाल में कार्यरत कर्मचारियों के बारे में सूचनाएँ, जन्म, मृत्यु, विवाह तालिका, आदि की सूचना, सुरक्षात्मक, खेल-कूद, आदि सम्बन्धी सूचनाएँ दी जाती है। विशेष बैठकों की सूचना, कलैण्डर (कार्य के दिन एवं अवकाश की सूचनाएँ, विक्रय सम्बन्धी सूचना, कर्मचारी मांग पत्र, जलपान-गृह के तैयार भोज की सूचना तथा अन्य सूचनाएँ) भी सम्मिलित की जाती है।

(10) दृश्य-श्रव्य उपकरण : इसके अन्तर्गत अच्छी फिल्मों, चल-चित्रों को दिखाने, टेप द्वारा विविध भाषणों को सुनाने का आयोजन किया जाता है। इस प्रणाली का लाभ यह है कि इससे कर्मचारियों को विभिन्न अधिकारियों के विचार सुनने का अवसर प्राप्त होता है जिससे किसी प्रकार की संप्रेषण की त्रुटि नहीं रहती और श्रमिक, भाषण के विचारों को उसी रूप में समझने में समर्थ होता है, जिस रूप में वे कहे गये है। चलचित्रों के माध्यम से यह बताया जाता है कि विभिन्न उत्पादन प्रक्रियाएँ कैसे की जाती है ? विभिन्न कार्य कैसे किये जाते हैं। विभिन्न नियमों का पालन कैसे किया जाता है? प्रत्यक्ष संप्रेषण के लिए संयन्त्र के अनुभागों में ‘‘आवश्यक घोषणा’’ से भी कार्य लिया जा सकता है। यह प्रणाली एकतरफा होते हुए भी बड़े व्यवसायों में संप्रेषण के अच्छे माध्यम के रूप में कार्य कर सकती है। इस प्रणाली का प्रयोग अनुपस्थिति दर घटाने, थकान कम करने, तोड़-फोड़ एवं कार्य में अपव्यय को कम करने में किया जाता है।

(11) पोस्टर : संप्रेषण हेतु इस प्रणाली का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा विभिन्न तथ्यों को पोस्टर द्वारा प्रदशिर्त किया जाता हैं। इस पर कई विशिष्ट वस्तुओं के चित्र, विभिन्न रेखाचित्र, बिन्दु-चित्र, आदि प्रदर्शित किये जाते हैं। इस प्रणाली में ध्यान रखने योग्य बात यह है कि ज्यों ही कोई पोस्टर पुराना हो जाय, या फट जाय त्योंही नया पोस्टर लगा दिया जाना चाहिए।

(12) सूचना पट्ट : सामान्यत: सूचना प्रसारण हेतु सूचना पट्ट का प्रयोग किया जाता है। इन पट्टों पर सामान्यत: निम्न सूचनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं : (i) विभिन्न नियमों के संक्षिप्त उद्धरण (जैसे कारखाना अधिनियम, मजदूरी भुगतान अधिनियम, मातृत्व लाभ अधिनियम, बाँइलर तथा बिजली अधिनियम) प्रस्तुत किये जाते हैं। (ii) राजकीय सूचनाएँ जैसे कार्य के घण्टे, वेतन भुगतान के दिन, छुट्टियों की सूचना। (iii) स्थायी आदेश। (iv) संगठन में चल रही विभिन्न प्रवृत्तियों सम्बन्धी सूचनाएँ (जैसे सहकारी समिति, खेल-कूद समिति, कला समिति, आदि की क्रियाएँ)। (v) प्रशासकीय दृष्टि से प्रबन्ध द्वारा निर्गमित आदेश एवं परिपत्र।

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