![कला का अर्थ कला का अर्थ](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBDn5ma-Cvejy9Ldbt3KI18gO30zSmrnI25FAxmBw3vJOz-Losrsi7CCbTDMK7XFqOU1fDhVXvreeWVAe_90Br7G3zrObE3BNqJWhjXLoKxe0TqB-wHi4IiYTrzWNZRPIoJnb4PYbSJZSl/w400-h300-rw/%25E0%25A4%2585%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25BE.jpg)
कला अत्यन्त व्यापक शब्द है। प्राचीन काल से भारतीय भाषाओं में कला एवं इससे भी पूर्व से कला और शिल्प का प्रयोग हो रहा है। Art शब्द का प्रयोग तेरहवीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ, जिसका अर्थ बनाना, उत्पन्न करना या ठीक करना है।
कला मानव की अभिव्यक्ति का रूप है। यह अनायास हो या सायास, किन्तु इस अभिव्यक्ति का ‘सहज’ होना आवश्यक है। मनुष्य अपने भावों को प्रकट के लिए भिन्न-भिन्न शारीरिक क्रियाओं, व्यक्तयां,े चित्रों तथा संकेतों का प्रयोग करता है। भावों को अभिव्यक्त करना आदिम मानव काल से ही मानव मन की सहज एवं सुलभ प्रवृति रही है। मोटेतौर पर अभिव्यक्ति की विभिन्न विधाओं को कला माना गया है।
कला शब्द से तात्पर्य है स्पष्ट अभिव्यक्ति। ‘‘कंलाति’’ अर्थात्
सुख प्रदान करने वाली मधुर कृति भी कहलाती है।
कला शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद के आठवें मण्डल में
‘‘यथा कलां यथा शफं’’ के रूप में प्रयुक्त हुआ भारत में प्राचीन
काल में कला के लिए शिल्प शब्द का भी प्रयोग हुआ।
अंग्रेजी में कला शब्द का प्रयोग 13वीं शताब्दी में शुद्ध कौशल के लिये हुआ। 17वीं शताब्दी में कला का प्रयोग, काव्य, संगीत, चित्र, वास्तु आदि कलाओं के लिये भी होने लगा।
अंग्रेजी में कला शब्द का प्रयोग 13वीं शताब्दी में शुद्ध कौशल के लिये हुआ। 17वीं शताब्दी में कला का प्रयोग, काव्य, संगीत, चित्र, वास्तु आदि कलाओं के लिये भी होने लगा।
कला का अर्थ
कला मूलत: संस्कृत का शब्द है। संस्कृत साहित्य में इसका प्रयोग अनेकार्थों में हुआ है। ‘कल’ धातु से शब्द करना, बजना, गिनना, कड़् धातु से मदमस्त करना, प्रसन्न करना, ‘क’ अर्थात आनन्द लाने वाले अर्थ में जैसे भिन्न-भिन्न धातुओं से व्युत्पत्ति स्वीकार की है। ‘‘आर्ट’’ का सम्बन्ध पुरानी फ्रैन्च आर्ट और लैटिन ‘आर्टेम’ या ‘आर्स’ से जोड़ा गया, इसके मूल में ‘अर्’ (त) धातु है, जिसका अर्थ बनाना, पैदा करना, या फिट करना होता है, और यह संस्कृत के ‘ईर’ (जाना, फेंकना, डालना, काम में लाना) से सम्बन्धित है।लैटिन के आर्स का अर्थ संस्कृत के कला और शिल्प अर्थ के समान है, अर्थात कोई भी शारीरिक या मानसिक कौशल जिसका प्रयोग किसी कृत्रिम निर्माण में किया जाता है, इस कौशल को ‘‘आर्ट’’ से ही जोड़ा गया है।
कला की परिभाषा
कला की परिभाषा कला के सम्बन्ध में अनेक मत प्रस्तुत किये हैं -
नित्यानंद दास के अनुसार, “कला सम्मिलित रूप में आत्मिक तथा प्रकृति बोध का एक प्रतीक है। इसका एक पक्ष सुंदर स्वरूपों की सृष्टि का आनंद है और साथ ही उनपर मनन करने का आनंद भी है।” इसी प्रकार किसी ने कहा है “कला एक सामाजिक वास्तविकता के रूप में समाज के विकास की अभिव्यक्ति है।”
माइकेल एन्जेलो के मतानुसार, ‘‘सच्ची कलाकृति दिव्यता पूर्ण प्रतिकृति होती है
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्राइड के मतानुसार, ‘‘कला हृदय में दबी हुई वासनाओं का व्यक्त रूप है’’ अर्थात हम जिन बातों को संकोचवश व्यक्त नहीं कर पाते हैं, उन्हें कला के माध्यम से नि:संकोच व्यक्त कर देते हैं।
मैकविल जे0 हर्सकोवित्स ने लिखा है, ‘‘योग्यता द्वारा सम्पादित जीवन के किसी भी उस अलंकरण को जिसे वर्णनीय रूप प्राप्त हो ‘कला’ है। रस्किन लिखते हैं कि ‘‘प्रत्येक महान कला ईश्वरीय कृति के प्रति आदमी के आàाद की अभिव्यक्ति है।’’
महान चित्रकार पिकासो का कथन है, ‘‘I putall the things, I like in my picture’’ अर्थात मैं अपनी तस्वीर में उन सभी का अंकन करता हूँ जो मुझे पसंद हैं, कलाकार अपनी इच्छा की पूर्ति में जिस उपाय का आश्रय लेता है, वही कला है। इसी प्रकार कला को मनुष्य की इच्छित इच्छाओं की पूर्ति का साधन माना है।
कला के सौन्दर्य में अनेकों कलाविदों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किये है, जो कि भिन्न-भिन्न है। कला को एक निश्चित परिधि में बांधना कठिन ही नहीं नामुमकिन भी है।
मैकविल जे0 हर्सकोवित्स ने लिखा है, ‘‘योग्यता द्वारा सम्पादित जीवन के किसी भी उस अलंकरण को जिसे वर्णनीय रूप प्राप्त हो ‘कला’ है। रस्किन लिखते हैं कि ‘‘प्रत्येक महान कला ईश्वरीय कृति के प्रति आदमी के आàाद की अभिव्यक्ति है।’’
महान चित्रकार पिकासो का कथन है, ‘‘I putall the things, I like in my picture’’ अर्थात मैं अपनी तस्वीर में उन सभी का अंकन करता हूँ जो मुझे पसंद हैं, कलाकार अपनी इच्छा की पूर्ति में जिस उपाय का आश्रय लेता है, वही कला है। इसी प्रकार कला को मनुष्य की इच्छित इच्छाओं की पूर्ति का साधन माना है।
कला के सौन्दर्य में अनेकों कलाविदों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किये है, जो कि भिन्न-भिन्न है। कला को एक निश्चित परिधि में बांधना कठिन ही नहीं नामुमकिन भी है।
‘इन्साइक्लोपीडिया ऑफ लंदन’ में लिखा है - ‘‘Although this isa universal humanactivity,art is one of the hardest things in the words to define’’
अरस्तू उसे अनुकरण कहते हैं। हीगेल ने कला को आदि भौतिक सत्ता को व्यक्त करने का माध्यम माना है।
टैगोर के अनुसार - ‘‘मनुष्य कला के माध्यम से अपने गम्भीरतम अन्तर की अभिव्यक्ति करता है’’,
अरस्तू उसे अनुकरण कहते हैं। हीगेल ने कला को आदि भौतिक सत्ता को व्यक्त करने का माध्यम माना है।
टैगोर के अनुसार - ‘‘मनुष्य कला के माध्यम से अपने गम्भीरतम अन्तर की अभिव्यक्ति करता है’’,
प्रसादजी के अनुसार - ‘‘ईश्वर की कृतज्ञ-शक्ति का मानव द्वारा शारीरिक तथा मानसिक कौशलपूर्ण निर्माण, कला है’’, अंग्रेजी लेखक पी0 बी0 शैली ने कहा है कि - ‘‘Art is the expression of Imagination’’
डॉ0 श्याम सुन्दर दास ने कहा है कि - ‘‘जिस अभिव्यंजना में आन्तिरक भावों का प्रकाशन तथा कल्पना का योग रहता है, वह कला है। सभी परिस्थितियों में कलात्मक क्रिया एक समान ही होती है। केवल माध्यम बदल जाते हैं।’’
डॉ0 श्याम सुन्दर दास ने कहा है कि - ‘‘जिस अभिव्यंजना में आन्तिरक भावों का प्रकाशन तथा कल्पना का योग रहता है, वह कला है। सभी परिस्थितियों में कलात्मक क्रिया एक समान ही होती है। केवल माध्यम बदल जाते हैं।’’
मोहनलाल महतो वियोगी ने लिखा है, ‘‘यह समस्त विश्व ही कला है जो कुछ देखने, सुनने तथा अनुभव करने में आता है, कला है।’’
कला का वर्गीकरण
1. दृश्य कला - चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला।
2. प्रदर्शनकारी कला - काव्यकला, संगीत।
1. दृश्य कला - दृश्य कला वह कला होती है, जिसमें कलाकार जो कला कृतियां बनाता है उनका दृश्य प्रभाव होता है। जैसे - गारे, मिट्टी, ईट से सुन्दर महल बनाना, सोने से आभूषण बनाना, सुन्दर, मूर्ति बनाना, इस प्रकार की कलाकृतियाँ बनाना जिसे देखकर नेत्रों को आनन्द प्राप्त हो वह दृश्य सामग्री है ये दृश्य कलाएँ कहलाती है। जैसे - (1) मूर्तिकला (2) चित्रकला (3) वास्तुकला आदि।
2. प्रदर्शनकारी कला - प्रदर्शनकारी कला में अपनी कला कौशल के माध्यम से अपनी भावनाओं को गायन, वादन और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
सन्दर्भ -
- हसन डॉ0 सहला, भारतीय एवं पाश्चात्य कला, पृ0 सं0 05
- बाजपेई, कृष्ण दत्त, कला सरोवर, अंक 1, 1987, पृ0 सं0 09
- वियोगी, मोहन लाल महतो, कला का विवेचन, पृ0 सं0 19
- Oxford Junior, Encyclopedia, London, Pg. No. 24
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