निर्देशन सेवाओं के प्रकार

निर्देशन सेवाओं के अन्तर्गत विशिष्ट कियाओं को नियोजित, व्यवस्थित एवं कियान्वित किया जाता है। प्रत्येक प्रकार की निर्देशन सेवा का सम्बन्ध कुछ विशेष प्रकार की कियाओं से होता है तथा इन कियाओं के माध्यम से विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। 

निर्देशन सेवाओं के प्रकार

इस सन्दर्भ में जिन आठ प्रकार की निर्देशन सेवाओं को विकसित किया गया है, वह सेवाएं हैं-
  1. सूचना सेवा (Information Service)
  2. परामर्श सेवा (Counseling Service)
  3. आत्म अनुसूची सेवा (Self Inventory Service)
  4. व्यक्तिगत प्रदन संकलन सेवा (Individual data-collection Service)
  5. पूर्व सेवा (Preparatory Service)
  6. स्थानापन्न सेवा (Placement Service)
  7. अनुगामी सेवा (Follow-up Service)
  8. शोमा सेवा (Research Service)
इन समस्त सेवाओं का उद्धेश्य यद्यपि पृथक-पृथक हैं। परन्तु फिर भी निर्देशन प्रदान करने की दृष्टि से इनका समन्वित महत्व है। विशेषकर भारतीय परिस्थितियों के सन्दर्भ में इन सेवाओं के समन्वय की अधिक आवश्यकता है। इसके साथ ही इनके समुचित बोध, विकास एवं उपयोग की भी समान रूप से आवश्यकता है।

1. सूचना सेवा

‘सूचनाओं’ का समस्त प्रकार के निर्देशनों में विशिष्ट महत्व होता है। सूचनाओं की जानकारी छात्र एवं निर्देशन प्रदाताओं दोनों के लिए आवश्यक है। वैयक्तिक निर्देशन के लिए व्यक्ति की पारिवारिक तथा सामाजिक परिस्थितियों तथा उसकी विशेषताओं से सम्बन्धित सूचनाए आवश्यक होती हैं। 

शैक्षिक निर्देशन हेतु पाठ्यक्रमों, शैक्षिक अवसरों, औपचारिक तथा अनौपचारिक अधिगम व्यवस्थाओं, पद्धतियों के सम्बन्ध में सूचनाएं प्राप्त करनी आवश्यक होती हैं। व्यावसायिक निर्देशन के लिए विभिन्न व्यवसायों हेतु आवश्यक योग्यताएं एवं संस्थानों में रिक्त स्थानों के बारे में सूचनाए आवश्यक एवं महत्वपूर्ण होती हैं। 

इन विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त सूचनाओं का स्वरूप सदैव परिवर्तित होता रहता है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक मानवीय स्थिति अपने स्वभाव के अनुसार अत्यन्त परिवर्तनशील, विकासशील एवं गतिशील सन्दभो से संयुक्त होती है।

2. परामर्श सेवा

परामर्श का आशय (Meaning of Counseling): परामर्श के अन्तर्गत, पारस्परिक सम्बन्ध को विशेष महन्व दिया जाता है। विली एण्ड एण्डूं के अनुसार-फ्परामर्श, पारस्परिक रूप से अधिगम की प्रकिया है।, इस प्रकिया में एक सहायता प्राप्त करने वाला सेवार्थी होता है तथा दूसरा सहायता प्रदान करने वाला प्रशिक्षित व्यक्ति। 

गिबर्ड के मतानुसार-परामर्श सबसे पहले एक व्यक्तिगत सन्दर्भ का सूचक है। इसे सामूहिक रूप में नहीं सम्पादित किया जा सकता। उनके अनुसार सामूहिक परामर्श जैसा पद अनुचित लगता है। इसी प्रकार वैयक्तिक परामर्श जैसा पद पुनरुक्ति दोष से वंचित नहीं है।,

उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि परामर्श का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति की वैयक्तिक रूप में सहायता करना है। परामर्श के अन्तर्गत परामर्शदाता की दी गयी सलाह अथवा सुझाव को दूसरे व्यक्ति अर्थात्, सेवार्थी पर थोपा नहीं जाता, वरन् यह प्रयास किया जाता है कि छात्र ही अपने व्यावसायिक एवं शैक्षिक अवसरों के सम्बन्ध में विचारणीय एवं महत्वपूर्ण तथ्यों को संकलित एवं व्यवस्थित करे तथा स्वयं की योजनाओं के सन्दर्भ में उनका मूल्यांकन कर, सही निर्णय ले। विचारणीय तथ्य दो प्रकार के होते हैं-
  1. वे तथ्य जो व्यक्ति की सीमाओं एवं क्षमताओं के परिचायक हैं। इन तथ्यों को सामान्यत: निर्देशन की सेवाओं, जैसे वैयक्तिक सामग्री सेवा, आत्म अनुसूची सेवा, सूचना सेवा इत्यादि के द्वारा संकलित किया जाता है। 
  2. वे तथ्य तो व्यावसायिक जगत एवं शैक्षिक अवसरों से सम्बन्धित होते हैं। 
इन तथ्यों को पूर्णरूप से ज्ञात करना आवश्यक होता है। किशोर अवस्था में सामान्यत: यह अपेक्षित होता है कि परामर्शदाता छात्र को केवल तथ्यों के मूल्यांकन में ही सहायता प्रदान न करें वरन् उनको तथ्यों के आधार पर वास्तविक निर्णय लेने की ओर उन्मुख करें।

3. आत्म अनुसूची सेवा

व्यक्ति में आत्मबोध की क्षमता का विकास करने की दृष्टि में आत्म-अनुसूची सेवा का विशेष महत्व होता है। इस सेवा के आधार पर व्यक्ति को आन्तरिक विशेषताओं एवं बां सम्बोधितयों के सम्बन्ध में वस्तुनिष्ठ जानकारी प्रदान की जाती है। इस जानकारी को प्राप्त करके भावी योजनाओं का निर्माण करने, अनुकूल अवसरों की दिशा में प्रयास करने तथा अपनी आन्तरिक शक्तियों की दिशा में सम्बद्ध प्रयास करने हेतु महत्वपूर्ण सहायता प्राप्त होती है। इस सेवा के आधार पर सेवार्थी को स्वयं में निहित योग्यताओं, क्षमताओं एवं भावी सम्भावनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। 

इस प्रकार की जानकारी प्रदान करने के लिए व्यक्ति की पूर्व सम्बोधितयों, सम्बन्धित आलेखों एवं पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षिक परिवेश का प्रमुख महत्व होता है। इसके माध्यम से व्यक्ति के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग भी, इस उद्धेश्य की प्राप्ति हेतु किया जाता है। इन समस्त माध्यमों से प्राप्त जानकारी का व्यक्ति की शैक्षिक, पारिवारिक एवं व्यावसायिक प्रगति में विशिष्ट योगदान रहता है। इस जानकारी के अभाव में, सतत्, संगत एवं सम्भावित प्रगति सम्भव नहीं है। 

आत्म अनुसूची सेवा से प्राप्त परिणामों का व्यक्ति जीवन की किसी विशिष्ट परिस्थिति से ही सम्बन्ध नहीं है वरन् यह परिणाम सतत् रूप से जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के सन्दर्भ में निर्णय लेने हेतु सहायक सिद्ध होते हैं इस प्रकार आत्म-अनुसूची सेवा के उपरोक्त महत्व के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ‘आत्म अन्वेषण’ ‘स्वयं को पहचानने’ अथवा ‘आत्म-बोध’ की दृष्टि से आत्म-अनुसूची सेवा एक ऐसी प्रकिया है जो जीवन पर्यन्त निरंतर चलती रहती है।

4. व्यक्तिगत प्रदन संकलन सेवा

शैक्षिक, व्यावसायिक, अथवा व्यक्तिगत निर्देशन हेतु विभिन्न प्रकार की आधार सामग्री को प्रयुक्त किया जाता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण, मूल्यांकन की आत्मनिष्ठ एवं वस्तुनिष्ठ विधिया, इस आधार-सामग्री को उपलब्ध कराने में सर्वाधिक सहायक होती हैं। इस आधार सामग्री का संकलन अथवा उसे व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करना उल्लेखनीय महत्व रखती है, क्योंकि इस समाग्री के वस्तुनिष्ठ एवं समुचित प्रयोग पर ही किसी भी प्रकार के निर्देशन की वस्तुनिष्ठता अथवा प्रभावशीलता आधारित होती है। 

सेवार्थी के सम्बन्ध में जितने भी आवश्यक तथ्य एवं सूचनाए एकत्रित की जाती हैं उन सभी के व्यवस्थित एवं समन्वित रूप को आधार सामग्री के रूप में सम्बोधित किया जाता है। मायर्स के अनुसार विभिन्न प्रकारों की सेवाओं यथा-स्थानन, उपबोधन, अनुगामी सेवाओं इत्यादि में छ: प्रकार की व्यक्तिगत सामग्रियों का संकलन किया जाता है। इन उधार सामग्रियों के संकलन की प्रकिया को ही व्यक्तिगत सामग्री संकलन सेवा के नाम से जाना जाता है।
  1. सामान्य आकड़े (General data)-सेवार्थी से संपर्क करने में तथा सेवार्थी से सम्बन्धित विशिष्ट व्यक्तियों से सेवार्थी के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने हेतु सामान्य आधार सामग्री के संकलन की आवश्यकता होती है इस आधार सामग्री के अन्तर्गत सेवार्थी का नाम, पता, पिता का नाम, दूरभाष संख्या, विद्यालय का नाम, कक्षा-अध्यापक का नाम, विषय-अध्यापक का नाम, कक्षा, वर्ग, विषय आदि से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त की जाती है।
  2. शारीरिक आकड़े (Physical data)-इस प्रकार की सामग्री के अन्तर्गत सेवार्थी की आयु, प्रजाति,  ̄लग, कद, वजन आदि के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जाती है। विभिन्न प्रकार के जैविक तथ्यों जैसे-शारीरिक बनावट, स्वास्थ्य, स्नायुमण्डल एवं शरीर वफी अन्य प्रणालियों के सम्बन्ध में सूक्ष्म जानकारी प्राप्त करना, इस प्रकार की सामग्री को संचित करने का उद्धेश्य होता है। इसके अतिरिक्त सेवार्थी से सम्बन्धित शारीरिक विकारों, शारीरिक विकलांगताओं एवं रोगों के सम्बन्ध में भी सूचनाएं एकत्रित की जाती हैं।
  3. सामाजिक पर्यावरण आकड़े (Social Environment data)-व्यक्ति से सम्बन्धित समस्त प्रकार की आधार सामग्रियों का वस्तुनिष्ठ रूप से मूल्यांकन करने हेतु सामाजिक पर्यावरण से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करना नितान्त आवश्यक होता है सामाजिक वातावरण से व्यक्ति के समायोजन की सीमा के सन्दर्भ में प्रकाश डालने हेतु भी इस प्रकार की जानकारी अपेक्षित होती है। व्यक्ति के सामाजिक स्तर, सामाजिक व्यवहार, अथवा जीवन-शैली का परिचय प्राप्त करके व्यक्ति की शैक्षिक आकांक्षाओं, व्यावसायिक योजनाओं, व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित आदर्शो तथा किसी विशिष्ट परिस्थिति में व्यक्ति के व्यवहार एवं सम्बोधितयों की सम्भावनाओं के सन्दर्भ में अन्तदृष्टि का विकास करने की दृष्टि से सहायता प्राप्त होती है। 
  4. निष्पत्ति से सम्बन्धित आकड़े (Data Related to the Achievement)-शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर, शिक्षार्थी से सम्बन्धित निष्पत्ति का आलेख, प्रमाण-पत्रों, परीक्षा-कार्डो, संचयी अभिलेखों आदि के माध्यम से सुरक्षित रखा जाता है। शैक्षिक निष्पत्ति से सम्बन्धित ये आलेख ही प्रमुख रूप से निष्पत्ति सम्बन्धी आधार सामग्री के रूप में उपयोगी होते हैं। इन आलेखों के माध्यम से यह जानकारी प्राप्त हो जाती है कि विभिन्न शैक्षिक स्तरों पर सेवार्थी का सम्बोधित स्तर किस प्रकार का रहा है? पाठ्यक्रम का चयन करने अथवा व्यवसाय का चयन करने की दृष्टि से, इस प्रकार की आधार सामग्री का विशिष्ट महत्व होता है। अत: यह प्रयास किया जाना चाहिए कि इस प्रकार की सूचनाओं को संचित एवं व्यवस्थित करते समय वस्तुनिष्ठता एवं विश्वसनीयता का अनिवार्य रूप से मयान रखा जाए।
  5. शैक्षिक एवं व्यावसायिक योजनाओं से सम्बन्धित आकड़े (Data Related to Educational and Vocational Plans)-उपरोक्त समस्त प्रकार की आधार सामग्री का संकलन करने के अतिरिक्त व्यक्ति की शैक्षिक एवं व्यावसायिक योजनाओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना भी आवश्यक होता है। सेवार्थी से, उसके अभिभावकों, मित्रों अथवा शिक्षकों से इस सम्बन्ध में आधार सामग्री प्राप्त की जा सकती है। यह सामग्री व्यक्तिनिष्ठ प्रविधियों के आधार पर ही संकलित की जाती है। इस सन्दर्भ में यह ज्ञात किया जा सकता है कि सेवार्थी अपनी शैक्षिक सम्बोधितयों, शैक्षिक प्रगति अथवा व्यावसायिक योजना के सन्दर्भ में किस प्रकार का दृष्टिकोण रखता है अथवा इन दिशाओं में उसने कौन-कौन से निर्णय लिए हैं? शैक्षिक एवं व्यावसायिक योजनाओं से सम्बन्धित आधार सामग्री का संकलन करने की प्रकिया के अन्तर्गत यह मयान रखना चाहिए कि इन योजनाओं पर आधारित सूचनाओं का संचय अधिक प्रामाणिक साक्ष्यों के आधार पर ही किया जाए।
  6. मनोवैज्ञानिक आकड़े (Psychological data)-व्यक्ति से सम्बन्धित विभिन्न मानसिक विशेषताओं यथा-बुद्धि का स्तर, विशिष्ट बौण्कि क्षमता अभिरूचि एवं व्यक्तित्व से सम्बन्धित विभिन्न गुणों की जानकारी प्राप्त करना मनोवैज्ञानिक आधार प्रदन के संकलन का उद्धेश्य होता है शैक्षिक, व्यावसायिक एवं व्यक्तिगत निर्देशन हेतु इस प्रकार की आधार प्रदन का प्रयोग समान रूप से महत्वपूर्ण होता है। बुद्धि से सम्बन्धित विशिष्ट तथ्यों की जानकारी के लिए बुद्धि परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। अल्प्रेफड बिने, साइमन, टरमन, राइस, कामथ, एम. जलोटा आदि के द्वारा इस प्रकार से अनेक बुद्धि परीक्षण विकसित किए गए हैं। इन समस्त परीक्षणों के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर ही व्यक्ति को यह निर्देशन प्रदान किया जा सकता है कि उसकी बौद्धिक योग्यता का स्तर क्या है? तथा उसे किस प्रकार के व्यवसाय अथवा विषयों का चयन करना चाहिए।
बुद्धि के अतिरिक्त सेवार्थी की अभिरूचि एवं रूचि के सम्बन्ध में प्राप्त जानकारी भी विशेषकर शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है। इसी प्रकार व्यक्ति के व्यक्तित्व से सम्बन्धित विभिन्न विशेषताए भी उसके व्यावसायिक जीवन, शैक्षिक सम्बोधितयों, सामाजिक समायोजन आदि को प्रभावित करती है। व्यक्तित्व से सम्बन्धित इन विशेषताओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का विकास किया गया है, साथ ही विभिन्न प्रकार की अनुसूचियों एव निर्धारण मापनिया भी सेवार्थी की व्यक्तित्व से सम्बन्धित विभिन्न गुणों की जानकारी प्राप्त करने में सहायक होती है।

5. पूर्व सेवाएं

व्यावसायिक निर्देशन के अन्तर्गत, इस सेवा का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। पूर्व सेवा विद्यालय अथवा शैक्षिक संस्था के कार्य जगत में जाने की तैयारी से सम्बद्ध है। इस सेवा को मूल रूप में स्थानान्तरण की समस्या का एक महत्वपूर्ण अंग माना जा सकता है। इस प्रकार की शिक्षा को विशिष्ट रूप से, अमेरिका के माध्यमिक विद्यालयों में प्रयुक्त किया गया है। हमारे देश के सन्दर्भ में सन् 1976 ई. से सन् 1988 ई. तक लगभग दस राज्यों एवं पाच केन्द्रीय शासित प्रदेशों में शिक्षा में व्यावसायीकरण के कार्यक्रमको लागू किया जा चुका है और अनुमानत: इस वर्ष के अन्त तक अन्य अनेक राज्य भी इस कार्यक्रम को लागू कर लेंगे। 

एन. सी. ई. आर. टी. एवं मानवीय संसामान विकास मन्त्रालय द्वारा अनेक योजनाओं को इस सन्दर्भ में प्रस्तावित किया जा चुका है। लेकिन नवीन शिक्षा नीति (1986) ई. को कियान्वित करने के सम्बन्ध में लागू प्रोग्राम ऑफ एक्शन, (Programme of Action: National Policy of Education (1986) में यह उल्लेख किया गया है कि इस दिशा में आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है या अपेक्षित प्रगति नहीं हो सकती है। 

इसके अनेक कारकों को वर्णन करते हुए उपरोक्त दस्तावेज में इस स्थिति के लिए उत्तरदायी तत्व बताए गए हैं- ठीक प्रकार की समन्वित प्रबन्ध व्यवस्था का अभाव, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों से उत्तीर्ण छात्रों द्वारा रोजगार न प्राप्त कर सकना, माग तथा पूर्ति में असन्तुलन समाज द्वारा व्यवसायीकरण की धारणा को स्वीकार करने में उदासीनता, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को पूरा करने वाले छात्रों के लिए व्यावसायिक विकास तथा वृनिक अवसरों का प्रावधान न होना आदि।,

6. राज्य और केन्द्रीय स्तर पर निर्देशन सेवाएं

अधिकतर देशों में निर्देशन आन्दोलन अभी हुआ है। भारत में तो निर्देशन आन्दोलन अपनी शैशवावस्था में चल ही रहा है। भारत में निर्देशन आन्दोलन चलाने का श्रेय कोलकना विश्वविद्यालय को जाता है। माध्यमिक विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या से निर्देशन सेवाओं को मान्यता मिलने लगी है ताकि विद्यार्थियों को उनके पाठ्यक्रमों तथा भविष्य के कार्यक्रमो तथा व्यवसाय के चयन में उनकी सहायता की जा सके। हमारे देश के शिक्षा नियोजकों ने भी निर्देशन सेवाओं के महत्व को पहचानना आरम्भ कर दिया है। 

माध्यमिक शिक्षा का सफलतापूर्ण आयोजन शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन के सुव्यवस्थित कार्यक्रमो पर आधारित है। यह सुव्यवस्थित कार्यक्रम विद्यार्थियों और उनके माता-पिता की अनुकूल पाठ्यक्रमों के चयन में सहायता करते हैं। बहु-उपेशीय विद्यालयों की असफलता इस प्रकार के सुव्यवस्थित कार्यक्रमो के अभाव के कारण हुई।

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