निष्पत्ति परीक्षण का अर्थ, परिभाषा, मापन, आवश्यकता एवं उपयोगिता

निष्पत्ति परीक्षण का प्रयोग सभी प्रकार की शैक्षिक संस्थाओं में किया जाता है। निष्पत्ति परीक्षणों के द्वारा यह मापन किया जाता है कि छात्रों ने कक्षा में पढ़ाये गये विषयों की पाठ्यवस्तु के सम्बन्ध में कितना सीखा है। इस प्रकार के परीक्षणों में सम्पूर्ण पाठ्यवस्तु पर प्रश्न पूछे जाते हैं। और सही उनरों के लिए अंक देकर उनका योग कर लिया जाता है, जिसे प्राप्तांक कहते हैं। इस प्रकार निष्पत्ति परीक्षण में पाठ्यवस्तु के सीखने को विशेष महत्व दिया जाता है।

आधुनिक युग में निष्पत्ति परीक्षण में पाठ्यवस्तु का स्थान गौण हो गया है, क्योंकि शिक्षण के द्वारा उद्धेश्यों की प्राप्ति करते हैं। अत: पाठ्यवस्तु उद्धेश्यों को प्राप्त करने का एक साधन है, सामय नहीं, इस प्रकार निष्पत्ति परीक्षणों को अब मानदण्ड परीक्षण (Criterion Test) कहते हैं। परीक्षण उद्धेश्य केन्द्रित हो गया है। निष्पत्ति परीक्षण से मानदण्ड परीक्षण अधिक उपयोगी होते हैं। क्योंकि मानदण्ड परीक्षा से छात्रों के मानसिक विकास के स्तर का बोध होता है। जैसे-दो छात्रों ने समान अंक प्राप्त किए, एक ने पाठ्यवस्तु को रटकर के और दूसरे ने पाठ्यवस्तु को बोधगम्य करके। दोनों के समान अंक होने पर भी दूसरा छात्र पहले से उनम है, या अच्छा है। क्योंकि उसका मानसिक स्तर बोधगम्य तक है।

इस तथ्य को एक अन्य उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं। तुलसी और कबीर के वही दोहे प्राथमिक स्तर पर एवं उच्च स्तर पर पढ़ाये जाते हैं, इस प्रकार दोनों स्तरों पर पाठ्यवस्तु समान है, परन्तु प्राथमिक स्तर पर मानसिक कार्य रटने तक सीमित है, एवं उच्च स्तर पर बोधगम्य एवं सौन्दर्यानुभूति तक होता है। शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति, छात्रों के व्यवहार परिवर्तनों के रूप में की जाती है, छात्रों के व्यवहार परिवर्तन से उनके मानसिक स्तर का बोध होता है। इस अमयाय में निष्पत्ति परीक्षण अथवा मानदण्ड परीक्षण का विवेचन एक साथ किया गया है, क्योंकि दोनों का आधार शिक्षण की पाठ्यवस्तु है।

निष्पत्ति परीक्षण का मापन

बालक की मानसिक क्षमताओं एवं अभिप्रेरणा के गुणनपफल को निष्पत्ति कहते हैं। निष्पत्ति परीक्षणों द्वारा शैक्षिक उद्धेश्यों की प्राप्ति की पुष्टि करते हैं, निष्पत्ति परीक्षणों की सहायता से सीखे हुए ज्ञान अथवा शैक्षिक उपलब्धियों का बोध होता है। इनको साधारणतया दो भागों में विभाजित कर सकते हैं।

1. ज्ञानात्मक शैक्षिक उपलब्धि - शिक्षा में शोधकार्यों के द्वारा इन उपलब्धियों के बारे में ज्ञात किया गया है, जिन्हें बीद एसद ब्लूम ने छ: वर्गो में विभाजित किया है-अभिज्ञान, बोध, प्रयोग, विश्लेषण, संश्लेषण एवं मूल्यांकन।

2. अज्ञानात्मक शैक्षिक उपलब्धि - अन्य शैक्षिक उपलब्धियों का सम्बन्ध भावात्मक एवं क्रियात्मक उद्देश्यों से होता है। भावात्मक उद्देश्यों का सम्बन्ध रुचियों, अभिवृनियों, मूल्यों एवं सौन्दर्यानुभूति के विकास से होता है। भावात्मक उद्देश्यों को छ: वर्गो में विभाजित किया गया है-आग्रहण, प्रतिक्रिया, अनुमूल्यन, विचारण, व्यवस्थापन्न तथा चारित्रीकरण। बालक के चारित्रिक गुणों का विकास भावात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति पर आधारित होता है।
क्रियात्मक उद्देश्यों का सम्बन्ध बालक के लिखने, पढ़ने, बोलने तथा ज्ञान के प्रयोग के कौशलों से होता है। क्रियात्मक उद्देश्यों को भी छ: वर्गो में बाटा गया है-उनेजना, कार्यान्वयन, समायोजन, स्वाभावीकरण और स्वभाव का निर्माण बालकों में अच्छी आदतों का निर्माण या विकास क्रियात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति पर निर्भर होता है। 

इन दोनों पक्षों की शैक्षिक उपलब्धियों को अन्य शैक्षिक उपलब्धि कहा जाता है, जिसमें बालक के गुण सम्मिलित किए जाते हैं।
  1. चिन्तन में लचीलापन,
  2. निर्णय में सन्तुलन,
  3. आलोचनात्मक निरीक्षण,
  4. संश्लेषण तथा विश्लेषण की क्षमताएं अथवा सर्जनात्मक क्षमताए,
  5. सांस्कृतिक बोध एवं चयन की क्षमताएं, तथा
  6. शैक्षिक क्षमताएं।
इस प्रकार के गुणों के विकास को अन्य शैक्षिक उपलब्धिया माना जाता है, परीक्षण के निर्माण के समय यह आवश्यक होता है कि इस प्रकार के परीक्षणों का निर्माण किया जाए, जिससे अन्य शैक्षिक उपलब्धियों का मापन किया जा सके, जिससे बालकों की अभिप्रेरणा, मौलिकता, सर्जनात्मक, चारित्रिक गुणों के विकास का मापन हो सके, मूल्यांकन में ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक तीनों प्रकार के उद्देश्यों की जांच की जाती है। मूल्यांकन में परीक्षण के अतिरिक्त अन्य प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है।

ज्ञान का व्यवहार शिक्षा संस्थाओं का कार्य है। शिक्षा का प्रमुख उद्धेश्य बालक का सम्पूर्ण विकास करना और ज्ञानात्मक पक्ष पर स्वामित्व प्राप्त करना है।

निष्पत्ति परीक्षणों का उपयोग

निष्पत्ति परीक्षण का उपयोग साधारणत: शिक्षा, उद्योग, सार्वजनिक सेवाओं, सेना, निर्देशन तथा परामर्श आदि क्षेत्रों में किया जाता है। इन परीक्षणों का उपयोग प्रमुख रूप से इन कार्यो में किया जाता है-

1. अनुस्थितिया अथवा श्रेणी प्रदान करना - निष्पत्ति परीक्षण का प्रमुख कार्य यह है कि छात्रों को पास और पेफल दो वर्गो में विभाजित करना, और पास हुए छात्रों को श्रेणी प्रदान करना। छात्रों को प्राप्तांकों या प्रतिशत के आधार पर उन्हें श्रेणिया प्रदान करना। संयुक्त राज्य अमेरिका में श्रेणी के स्थान पर अनुस्थितिया प्रदान की जाती है। अनुस्थतियों के लिए प्रमाणिक परीक्षणों को प्रयोग किया जाता है। 

इन अनुस्थतियों के लिए परीक्षण का प्रयोग किया जाता है। इन अनुस्थितियों एवं श्रेणी के आधार पर छात्रों की शैक्षिक योग्यता का बोध होता है। 

2. अगली कक्षा में पदोन्नति - जो छात्र परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते हैं, वो अगली कक्षा के लिए अर्ह समझे जाते हैं, और अगली कक्षा में प्रवेश शैक्षिक वरीयता के आधार पर दिया जाता है और जो अनुत्तीर्ण होते हैं उन्हें अगली कक्षा में प्रवेश नहीं दिया जाता है।

3. विभिन्न सेवाओं में चयन - विभिन्न सेवाओं के चयन में इन्हीं शैक्षिक योग्यताओं को महत्व दिया जाता है और अच्छी योग्यता वाले अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है। अनेक संस्थाओं ने चयन परीक्षण का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया है। चयन परीक्षण में जो अधिक अंक प्राप्त करते हैं, उन्हीं का चयन साक्षात्कार के लिए किया जाता है।

4. सेवाओं में पदोन्नति के लिए - अनेक संस्थाओं में पदोन्नति के लिए निष्पत्ति परीक्षाओं का प्रयोग करते हैं, जो अभ्यर्थी इन परीक्षणों में अधिक अंक प्राप्त करते हैं, उनकी पदोन्नति की जाती है, विशेषकर बैंक की सेवाओं में इस प्रकार के परीक्षणों का अधिक उपयोग किया जाता है। 

5. छात्रों का वर्गीकरण - निष्पत्ति परीक्षणों का प्रयोग विभिन्न पाठ्यक्रमों मेंं प्रवेश के लिए वर्गीकरण किया जाता है जैसे-विज्ञान के पाठ्यक्रम, वाणिज्य के पाठ्यक्रम, छषि के पाठ्यक्रम एवं कला आदि के पाठ्यक्रम। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भी निष्पत्ति परीक्षण के आधार पर ही वर्गीकरण करके विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जाता है।

6. शिक्षा निर्देशन - निष्पत्ति परीक्षणों के आधार पर यह बोध होता है किन-किन पाठ्यक्रमों में छात्र कमजोर, उन पाठ्यक्रमों में ऐसे छात्रों के लिए विशेष शिक्षण की व्यवस्था की जाए। सुधारात्मक शिक्षण व्यक्ति अधिक होता है, प्रत्येक छात्र के लिए अलग-अलग सीखने की परिस्थितियों की व्यवस्था करनी होती है। छात्रों की निष्पत्ति से विद्यालय की प्रगति का भी बोध होता है कि विद्यालय का वातावरण, शिक्षा का वातावरण सीखने के लिए कितना उपयोगी है। 

इसके अतिरिक्त बहुत अच्छे अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को विशेष अधिगम परिस्थितियों की व्यवस्था करनी चाहिए।

7. शिक्षण अधिगम की प्रभावशीलता - किसी पाठ्यक्रम के निष्पत्ति परीक्षण पर अधिकांश छात्र अच्छे अंक प्राप्त करते हैं, तो इससे यह भी विदित होता है कि शिक्षण अधिगम की प्रकिया प्रभावशाली, अर्थात् शिक्षक का शिक्षण उनम कोटि का है। इसके विपरीत यदि किसी पाठ्यक्रम के परीक्षण पर अधिकांश छात्र असफल रहते हैं या कम अंक आते हैं, तो शिक्षण-अधिगम की प्रकिया प्रभावशाली नहीं है, अर्थात् शिक्षक को पढ़ाना नहीं आता है विद्यालयों में अमयापकों की जो नियुक्तिया की जाती हैं, उन्हें एक साल के बाद, उनके पाठ्यक्रम के परीक्षणों पर प्राप्तांकों के आधार पर स्थाई किया जाता है। 

8. व्यावसायिक निर्देशन - निष्पत्ति परीक्षणों के आधार पर छात्रों को व्यावसायिक निर्देशन भी दिया जाता है, विभिन्न पाठ्यक्रमों के प्राप्तांकों के आधार पर यह भी अनुमान लगाया जाता है कि वह छात्र किन सेवाओं में अधिक सपफल हो सकता है। व्यवसाय के चुनने के लिए निर्देशन दिया जाता है। क्योंकि पाठ्यक्रमों का सम्बन्ध विभिन्न व्यवसायों से होता है।

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