व्यक्तिगत परामर्श क्या है इसकी क्या आवश्यकता है ?

व्यक्तिगत परामर्श, परामर्श की एक प्रविधि है जिसमें व्यक्ति विशेष को उसकी समस्याओं या भावनाओं को बहुत निकटता से सुना व समझा जाता है। व्यक्तिगत परामर्श का मानव जीवन में अधिक महत्व है। शिक्षा के उपरान्त व्यक्तिगत परामर्श ही ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के विकास एवं प्रगति हेतु सर्वाधिक सहायक होती है। इसमें सन्देह नहीं है कि यदि व्यक्तिगत परामर्श सेवाओं का सुव्यवस्थित जाल एवं यथोचित लाभ प्राप्त कराया जा सके तो अपेक्षित प्रगति की दिशा में अग्रसरित हुआ जा सकता है। यथेष्ठ मात्रा में परामर्श सेवाओं की व्यवस्था के साथ यह भी आवश्यक है कि भारत देश में परामर्श की जो व्यवस्था उपलब्ध है, उसे अधिकाधिक उद्देश्य केन्द्रित बनाया जाये।

यह व्यक्तियों को जिम्मेदारियों को लेने के लिए और अपने निर्णय लेने की अनुमति देकर एक अधिक परिपक्वता के लिए विकसित करने के लिए मदद करता है। परामर्श व्यक्ति के मार्गदर्शन की एक विधि है।

व्यक्तिगत परामर्श की आवश्यकता

कभी-कभी जीवन में बहुत सी ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जब व्यक्ति विवश होकर जीवन से हार जाता है, तथा निराश रहने लगता है, ऐसे समय में उसे परामर्श की आवश्यकता होती है। प्रत्येक छात्र को जीवन में विविध स्थितियों में निर्णय लेने तथा शिक्षा व वृत्तिक संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी व्यक्तिगत परामर्श की आवश्यकता पड़ती है। बहुत से छात्र शारीरिक तथा मानसिक तौर पर बिल्कुल ठीक होते हुए भी निराशा अनुभव करते हैं। घर पर माता-पिता, मित्रों तथा अन्य व्यक्तियों के समझाने बुझाने का भी उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि वे छात्र के अंदर की मानसिक परेशानियों व उलझनों को समझने में सक्षम नहीं होते। 

व्यक्तिगत परामर्श प्रार्थी की आयु, रूचि तथा अनुभवों से संबंधित होता है। प्रार्थी की उलझन तथा समस्या घर में, घर के सदस्यों, शैक्षिक, सामाजिक तथा वृत्तिक कई प्रकार की हो सकती है, एक अच्छे परामर्शदाता का यह कर्तव्य है कि वह प्रार्थी की समस्याओं व उलझनों को सुलझाकर तथा समस्या की जड़ तक पहुंचकर उसे समूल नष्ट किया जा सके, छात्र में आत्मविश्वास उत्पन्न हो तथा छात्र हर प्रकार की समस्याओं का सामना करने के योग्य बना सके।

1. घरेलू अनुभव

बहुत से बच्चों का जीवन कड़वे घरेलू अनुभवों से भरा होता है। कई बच्चे मातापिता तथा अन्य सदस्यों द्वारा अन्यायपूर्ण व्यवहार के कारण अपने आप को कुठित महसूस करते हैं तो कुछ माता पिता के बीच घरेलू हिंसा को दिन रात देखने के कारण मानसिक तौर पर परेशान हो जाते हैं। कुछ बच्चे अपने माता पिता द्वारा अपने उसके छोटे भाई बहन को अधिक प्रेम व दुलार देने के कारण कुपित हो जाते हैं। इसी प्रकार किशोरावस्था में बहुत सी शारीरिक व मानसिक उलझनों तथा परेशानियों में उलझकर छात्र अपनी क्षमताओं तथा योग्यताओं का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाता है। ऐसे में व्यक्तिगत परामर्श की बहुत आवश्यकता होती है।

2. विद्यालयी अनुभव

विद्यालयी स्तर पर छात्रों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्राथमिक स्तर पर बच्चा जब विद्यालय में प्रवेश करता है तब उसे विद्यालय में एडजस्टमेंट की समस्या से जूझना पड़ता है। घर के प्रेम, वात्सल्य की आवश्यकता उसे विद्यालय में खलने लगती है। वह अपने सहपाठियों तथा अमयापकों से प्रारम्भिक दौर में ठीक प्रकार से घुल मिल नहीं पाता, वहा बच्चे को व्यक्तिगत परामर्श की आवश्यकता होती है, जोकि अमयापक उसे कक्षा में या कक्षा के बाहर भी दे सकता है।

शैक्षणिक समस्याओं में बच्चे कई बार घिरकर अपने आपको असहाय महसूस करने लगते हैं, कई बच्चे किसी विशेष विषय (गणित, संस्कृत, विज्ञान) में कमजोर होते हैं, जिसके कारण वे अपने सहपाठियों से कक्षा कार्य तथा गृहकार्य में पीछे रह जाते हैं उनके परीक्षा परिणाम भी अच्छे नहीं आते, जिससे वे निराश होकर कई बार विद्यालय छोड़ देते हैं। कुछ बच्चे अन्तर्मुखी स्वभाव के होते हैं, जिसके कारण वे विद्यालय के कार्यक्रमो व क्रियाकलापों में भाग नहीं लेते, अध्यापक उन्हें प्रोत्साहित करते हैं पर वे उसे नहीं समझते हैं, इसलिए ऐसे बच्चों को उचित परामर्श तथा मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। कई बार किशोरावस्था में बच्चे समाजविरोधी व्यक्तियों के सम्पर्वफ में आकर दुव्र्यसनों का शिकार हो जाते हैं। वे अपनी पढ़ाई पर मयान नहीं देते तथा परीक्षा में असफल हो जाते हैं, ऐसे बच्चों को भी व्यक्तिगत परामर्श की बहुत आवश्यकता होती है।

व्यक्तिगत परामर्श की सीमाएं

  1. व्यक्तिगत परामर्श में केवल छात्र की समस्याओं और परेशानियों को समझा जाता है, किन्तु उसकी गल्तियों को अनदेखा किया जाता है। 
  2. व्यक्तिगत परामर्श द्वारा छात्र गलत तथ्यों की जानकारी दे सकता है जिससे परामर्शदाता परामर्श नहीं दे पाता। व्यक्तिगत परामर्श द्वारा किन समस्याओं का समाधन किया जा सकता है।

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