आधुनिकीकरण का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र

आधुनिकीकरण सामाजिक परिवर्तन की एक बहुआयामी प्रक्रिया है जो समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे को बदल देती है। यह परंपरा में परिवर्तन करने की घोषणा करता ह ै।

आधुनिकीकरण का अर्थ

आधुनिकीकरण शब्द एक प्रक्रिया का बोध कराता है। आधुनिकीकरण से तात्पर्य सतत् एवं लगातार होने वाली क्रिया से है। साथ ही आधुनिकीकरण एक विस्तृत प्रक्रिया है। आधुनिकीकरण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम पश्चिमी समाजों से प्रारम्भ हुआ। तत्कालीन यूरोपीय समाज में पुनर्जागरण एवं औद्योगीकरण के कारण पश्चिमी समाजों में तीव्र परिवर्तन स्पष्ट होने लगे इससे समाज में भिन्नता दिखायी देने लगी एक तरफ परंपरागत समाज तथा दूसरी तरफ वे समाज जिनमें परिवर्तन हो रहे थे और आधुनिक समाज के रूप में नयी पहचान प्राप्त कर रहे थे इस स्थिति ने आधुनिकीकरण को जन्म दिया। 

अंग्रेजीकरण, यूरोपीयकरण, पाश्चात्यकरण, तथा शहरीकरण को आधुनिकीकरण के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग किया जाता है। औद्योगीकरण, नगरीकरण आदि की तरह ही आधुनिकीकरण भी एक जटिल प्रक्रिया है। हमारे सम्मुख समस्या होती है कि वे कौन सी स्थितियाँ हैं जिन्हें हम आधुनिकीकरण के अन्तर्गत मानें।

आधुनिकीकरण की परिभाषा

आधुनिकीकरण एक मूल्य निरपेक्ष अवधारणा है अर्थात आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में इच्छित परिवर्तन नहीं होते वास्तव में आधुनिकीकरण एक बहुदिशा में होने वाला परिवर्तन है न कि किसी क्षेत्र विशेष में होने वाला परिवर्तन। वास्तव में जब हम परंपरागत समाजों में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करते हैं तो हम आधुनिकीकरण की अवधारणा का ही प्रयोग करते हैं जैसा कि बैनडिक्स (1967) कहते हैं- ‘‘आधुनिकीकरण से मेरा तात्पर्य 1760-1830 में इंग्लैण्ड की औद्योगिक क्रांति तथा 1784-1794 में फ्रांस की क्रांति के दौरान उत्पन्न हुए।’’ 

बैनडिक्स की परिभाषा के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि परंपरागत इंग्लैण्ड में औद्योगिकीकरण एवं फ्रांस में फ्रांस की क्रांति के कारण तत्कालीन समाज में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक तथा अन्य क्षेत्रों में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए। पश्चिमी देशों में होने वाले परिवर्तनों का अनुकरण यदि अन्य देश करते हैं तो इसे आधुनिकीकरण कहा जाएगा।

कुछ विद्वानों ने आधुनिकीकरण को एक प्रक्रिया, तो कुछ ने इसे प्रतिफल माना है। आइजनस्टैड (1969) ने आधुनिकीकरण को एक प्रक्रिया मानते हुए कहा है कि ‘‘ऐतिहासिक दृष्टि से आधुनिकीकरण उस प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनीतिक व्यवस्थाओं की ओर परिवर्तन की प्रक्रिया है जो कि 17वीं से 19वीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में और 20वीं शताब्दी तक दक्षिणी अमेरिका एशिया ई व अफ्रीकी देशों में विकसित हु ई।’’ गोरे (1971) ने आधुनिकीकरण को एक जटिल अवधारणा माना है। इस सम्बन्ध में उनका तर्क है कि जिन समाजों को हम आधुनिक कहते हैं उनमें भी पर्याप्त अन्तर देखने को मिलता है।

वस्तुत: आधुनिकीकरण से तात्पर्य परंपरागत समाजों में होने वाले परिवर्तनों से है। हालपर्न (1965) ने आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘‘आधुनिकीकरण रूपान्तरण से संबंधित है। इसके अंतर्गत उन सभी पहलुओं, जैसे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, धार्मिक तथा मनोवैज्ञानिक आदि का रूपान्तरण किया जाता है जिसे व्यक्ति अपने समाज के निर्माण में प्रयोग करता है।’’

एलाटास (1972) के अनुसार ‘‘आधुनिकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सम्बद्ध समाज में अधिक अच्छे व संतोषजनक जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से आधुनिक ज्ञान को पहुचाया जाता है।’’

प ई (1963) ने आधुनिकीकरण को ‘‘व्यक्ति व समाज अनुसंधानात्मक व आविष्कारशील व्यक्तित्व का विकास माना है जो तकनीकी तथा मशीनों के प्रयोग में निहित होता है तथा नए प्रकार के सामाजिक संबंधों को प्रेरित करता है।’’ श्यामाचरण दुबे (1971) ने आधुनिकीकरण को स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘‘आधुनिकीकरण वह प्रक्रिया है जो परम्परागत या अर्द्धपरम्परागत अवस्था से प्रौद्योगिकी के किन्हीं इच्छित प्रारूपों तथा उनसे जुड़ी हु ई सामाजिक संरचना के स्वरूपों, मूल्यों, प्रेरणाओं एवं सामाजिक आदर्श नियमों की ओर होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करती है।’’ यदि इस दृष्टिकोण से देखा जाय तो हम कह सकते हैं कि आधुनिकीकरण एक समन्वित प्रक्रिया है, जो परम्परा की विरोधी है तथा जिसमें औद्योगीकरण, नगरीकरण, धर्म निरपेक्षता, लौकिकता, स्वतंत्रता तथा विवेक का समावेश होता है।

योगेन्द्र सिंह (1986) के अनुसार, जब परंपराओं के अन्तर्गत परिवर्तन सम-विकास के रूप में न होकर विषम-विकास के रूप में होता है, तो इस स्थिति को आधुनिकीकरण कहा जाता है।’’ सिंह ने आधुनिकीकरण को सांस्कृतिक अनुक्रिया के एक ऐसे रूप में परिभाषित किया है, जिसमें मुख्य रूप से सर्वव्यापकता तथा विकास के लक्षण विद्यमान होते हैं। ये लक्षण अति मानवता, सजातीयता से परे तथा औपचारिक रूप में होते हैं।’’

श्रीनिवास (1956) ने आधुनिकीकरण को पश्चिमी मॉडल के आधार पर परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘‘आधुनिकीकरण किसी पश्चिमी देश के प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क के कारण किसी गैर पश्चिमी देश में होने वाले परिवर्तनों के लिए प्रचलित शब्द है।’’

ए0आर0 देसा ई (1971) ने आधुनिकीकरण को ‘‘मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में, विचारों में तथा क्रियाओं में होने वाले परिवर्तनों की प्रक्रिया माना है’’, जबकि सक्सेना (1972) इसे मूल्यों से जुड़ा प्रत्यय मानते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि आधुनिकीकरण एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उन सभी परिवर्तनों को शामिल किया जा सकता है जो जीवन के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कारिक, वैचारिक एवं धार्मिक पक्षों से सम्बद्ध हैं।

आधुनिकीकरण के क्षेत्र

वास्तव में हमारे चारों ओर जो घटनाएं एवं तथ्य हैं, उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, औद्योगिकीकरण, नगरीकरण, सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि, शिक्षा का प्रसार, जनशक्ति का मानवहित में उपयोग, अर्जित प्रस्थिति को महत्व व उसकी सक्रियता में वृद्धि, आधुनिक परिवहन और संचार के साधनों में वृद्धि, चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, आजीविका उपार्जन के लिए नवीन प्रविधियों का उपयोग आदि वे विशेषताएं हैं, जो आधुनिकीकरण की प्रकृति तथा क्षेत्र को स्पष्ट करती हैं। आर्थिक क्षेत्र में मशीनीकरण, औद्योगीकरण और सर्वाधिक आर्थिक सम्पन्नता आधुनिकीकरण के लक्षण हैं। 

शिक्षा के क्षेत्र में परम्परागत शिक्षा के स्थान पर तकनीकी शिक्षा प्रदान करना, जिससे आत्मनिर्भर हुआ जा सके। आधुनिकीकरण का संकेत हैं। धर्म के क्षेत्र में पुराने कर्मकाण्डों, यज्ञ-हवन, तपस्वी का त्याग करके अधिक से अधिक बौद्धिक और नैतिक बनाना आधुनिकीकरण की ओर बढ़ना है। पारिवारिक और सामाजिक रीति-रिवाज तथा परम्परा से युक्त प्राचीन मूल्यों, आदर्शों व मान्यताओं के स्थान पर वर्तमान आधुनिक मूल्यों का पालन करना आधुनिकीकरण है। विवाह, खान-पान एवं पहनावे की प्राचीन परम्परा के स्थान पर जो क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं, उन्हें स्वीकार करना तथा उनके आधार पर सामाजिक संरचना का निर्माण होना आधुनिकीकरण है। नगरीकरण, औद्योगीकरण, पश्चिमीकरण, पंथ-निरपेक्षीकरण जैसी प्रक्रियाएं आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत ही आती हैं।

लेवी (1954) ने आधुनिकीकरण को प्रौद्योगिक वृद्धि के रूप में परिभाषित किया है। लेवी का मत है कि ‘‘आधुनिकीकरण की परिभाषा शक्ति के जड़ स्रोतों और प्रयत्न के प्रभाव को बढ़ाने के लिए, उपकरणों के प्रयोग पर आधारित है व इन दो तत्वों में से प्रत्येक के सातत्य का आधार है।’’ डेनियल लर्नर (1958) ने आधुनिकीकरण के पश्चिमी मॉडल को अपनाते हुए इसमें निहित निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है-

  1. बढ़ता हुआ नगरीकरण;
  2. बढ़ती हु ई साक्षरता;
  3. बढ़ती हु ई साक्षरता से अन्य साधनों, जैसे समाचार पत्रों, पुस्तकों, रेडियो आदि के प्रयोग द्वारा शिक्षित लोगों के मध्य अर्थपूर्ण सहभागिता में वृद्धि होती है;
  4. इससे मनुष्य की ज्ञान क्षमता में वृद्धि होती है जो राष्ट्र की आर्थिक स्थिति एवं प्रति व्यक्ति आय को भी बढ़ाती है;
  5. यह राजनीतिक जीवन में विशेषताओं को उन्नत करती है।

भारत में राजनीतिक क्षेत्र में प्रजातंत्र, धर्मनिरपेक्षता तथा समाजवाद को आधुनिकता का मॉडल माना गया है। दुबे (1971) का मानना है कि आधुनिकीकरण के फलस्वरूप समाज में तर्क, परानुभूति, गतिशीलता एवं सहभागिता बढ़ती है। वे इसमें मुख्य रूप से तीन तथ्यों को शामिल करते हैं-

  1. मानव समस्याओं के सामाधन के लिए जड़ शक्ति का प्रयोग (जैसे- पेट्रोल, डीजल, विद्युत एवं मशीनीकरण)
  2. जड़ शक्ति का प्रयोग सामूहिक रूप से किया जाता है न कि व्यक्तिगत रूप से, फलस्वरूप जटिल संगठनों का निर्माण होता है।

अत: जटिल संगठनों को गतिमान करने के लिए व्यक्तित्व में समाज और संस्कृति में परिवर्तन लाना आवश्यक हो जाता है। श्रीनिवास (1971) ने आधुनिकीकरण के तीन प्रमुख क्षेत्रों का विवेचन किया है-

  1. भौतिक संस्कृति का क्षेत्र (इसमें तकनीकि भी शामिल है।)
  2. सामाजिक संस्थाओं का क्षेत्र
  3. ज्ञान, मूल्य एवं मनोवृित्त्ायों का क्षेत्र। उपर्युक्त तीनों क्षेत्र भिन्न-भिन्न है, परन्तु इनके मध्य अंतर्निर्भरता एवं अंतर्संबद्धता का गुण पाया जाता है। अर्थात एक क्षेत्र में होने वाला परिवर्तन दूसरे क्षेत्र को भी प्रभावित करता है।

बी0वी0 शाह (1969) ने आधुनिकीकरण को बहुआयामी प्रक्रिया हुए इसे सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक आदि सभी क्षेत्रों के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया है। ए0आर0 देसा ई (1971) आधुनिकीकरण का प्रयोग सामाजिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं मानते, बल्कि आधुनिकीकरण को बौद्धिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, पारिस्थितिकीय, सांस्कृतिक आदि जीवन के सभी पहलुओं तक विस्तृत मानते हैं।

आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में शिक्षा भी एक सशक्त भूमिका निभाती है। यह मूल्यों तथा धारणाओं एवं विश्वासों को परिवर्तित करके आधुनिकीकरण का मार्ग प्रशस्त करती है। शरद कुमार (2008) ने भारत में आधुनिकीकरण के चार आयामों- वैयक्तिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक की चर्चा की है।

लर्नर (1958) के अनुसार आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तीन स्तरों- नगरीकरण, साक्षरता एवं भाग लेने के साधनों से पूर्ण होती है। इसी तरह कॉनेल (1965) ने भी आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के तीन स्तरों का उल्लेख किया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आधुनिकीकरण एक ऐसी अति व्यापक प्रक्रिया का संकेत है जिसके द्वारा एक समाज पारम्परिक या अविकसित संस्थाओं से ऐसी विशेषताओं जैसे औद्योगीकरण, लौकिकीकरण, नगरीकरण, विशेषीकरण परिष्कृत एवं उन्नत संचार एवं यातायात व्यवस्था, आधुनिक शिक्षा की ओर अग्रसर होता है।

माइरन वीनर (1967) ने आधुनिकीकरण को सम्भव बनाने वाले शिक्षा, संचार, राष्ट्रीयता पर आधारित विचारधारा, चमत्कारी नेतृत्व, एवं अवपीड़क सरकारी सत्ता आदि कारकों की व्याख्या की है।

योगेन्द्र सिंह ने आधुनिकीकरण के लिए सबसे प्रमुख उपकरण के रूप में विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित शिक्षा को माना है।

भारत में आधुनिकीकरण

रेडफील्ड ने भारत में सांस्कृतिक परिवर्तनों की प्रक्रिया को समझाने के लिए ‘परम्परा’ की अवधारणा का प्रयोग किया है। रेडफील्ड का मानना है कि प्रत्येक संस्कृति का निर्माण परम्पराओं से होता है, जिन्हें दो भागों में बाँटकर समझा जा सकता है। इन दोनों परम्पराओं में पहली श्रेणी की परम्परा को हम वृहद् परम्परा और दूसरी श्रेणी की परम्परा को लघु परम्परा कहते हैं।

वास्तव में हमारे व्यवहारों के तरीकों को परम्परा कहा जाता है। समाज में प्रचलित विचार, रूढ़ियाँ, मूल्य, विश्वास, धर्म, रीति-रिवाज, आदतों आदि के संयुक्त रूप को ही मोटे तौर पर परम्परा कहा जा सकता है। जेम्स ड्रेवर (1976) ने परम्परा को कानून, प्रथा, कहानी तथा किवदन्तियों के उस संग्रह को परम्परा कहा है जो मौलिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है। इसी तरह जिन्सबर्ग (1921) ने भी उन सभी विचारों, आदतों और प्रभावों के योग को परम्परा कहा है, जो व्यक्तियों के एक समुदाय से सम्बन्धित होता है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होता रहता है। योगेन्द्र सिंह (1965) ने किसी समाज की उस संचित विरासत को परम्परा कहा है, जो सामाजिक संगठन के समस्त स्तरों पर छा ई रहती है, जैसे- मूल्य-व्यवस्था, सामाजिक संरचना तथा वैयक्तिक संरचना।

प्राचीन काल से ही भारत में संयुक्त परिवार की परम्परा विद्यमान थी, परन्तु वर्तमान समय में परिवार के सभी सदस्यों का साथ रहना सम्भव नहीं है। नौकरी, व्यापार तथा अन्य कारणों से पारिवारिक सदस्य अलग-अलग रहते हैं, लेकिन भारतीय परिवारों में ‘एकल परिवार’ होने के बाद भी परम्परागत प्रवृित्त्ा याँ दिखा ई देती हैं। यथा, एकल बच्चे को उसके दादा-दादी, चाची-चाचा, बुआ-फूफा, मामा-मामी व उनके बच्चों से लगातार सम्पर्क में रखना, उनके जन्मदिवस, त्यौहारों पर सभी का एकत्रित होकर छुट्टियों को प्रसन्नता से मनाना।

भारतीय परम्परा में पुत्र का परिवार में होना अति आवश्यक माना जाता था। पुत्र के अभाव में यज्ञ, तप, दान को भी व्यर्थ माना जाता था। साथ ही पिता का अंतिम संस्कार करने, व श्राद्धकर्म करने का अधिकार भी पुत्रों को ही प्राप्त था। परन्तु आधुनिकता के प्रभाव ने इस परम्परागत सोच को चुनौती दे दी है। अब पुत्र और पुत्री में को ई भेद नहीं किया जाता, यद्यपि हर गाँव या समाज में समान आधुनिक दृष्टिकोण दिखा ई नहीं देता। अब छोटे परिवारों में 1 या 2 बच्चे होते हैं। चाहे वह पुत्र हो या पुत्रियाँ। अब तो लड़कियाँ पुरातन रूढ़ियों को तोड़कर पिता का अंतिम संस्कार व श्राद्धकर्म भी कर रही हैं।

मातृदेवी की पूजा सिन्धुकाल से ही भारतीय समाज में प्रचलित थी, जिसे वैदिक काल में माता, पृथ्वी, अदिति आदि नामों से जाना गया। पुराणकाल में इसे पार्वती, दुर्गा, काली, महिषमर्दिनी भवानी आदि नामों से विभूषित किया गया। वर्तमान में क ई नये नामों से (संतोष माता, वैभव माता आदि) इस मातृदेवी की पूजा की जा रही है। इसी तरह व्रत, त्योहार आदि मनाने की पद्धति में बदलते समय के अनुरूप अनेक सुविधाजनक परिवर्तन हो गये हैं, लेकिन इनका प्रचलन बदस्तूर जारी है। यही नहीं शादी-विवाह अन्य क ई अवसरों पर फिजूलखर्ची और शानोशौकत का प्रदर्शन करने वाले भारतीय आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्र के लिए, निजी और सरकारी संस्थाओं के लिए या व्यक्तिगत रूप से भी असहाय लोगों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि हम आधुनिकता के इस दौर में भी पारम्परिक विचारों के ही पोषक हैं। वर्तमान हकीकत यही है कि हम सभी आधुनिक समय, विचारों, पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से प्रभावित हैं। फिर भी हमने अपनी परम्पराओं को उनके परिवर्तित स्वरूप में जीवित रखा है।

इस प्रकार भारतीय संदर्भ में यदि आधुनिकीकरण को देखा जा तो ज्ञात होगा कि ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के फलस्वरूप की भारतीय समाज का संपर्क आधुनिक पश्चिमी सभ्यता के साथ व्यापक रूप से संभव हुआ। फलत: भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का प्रारंभ औपनिवेशिक शासन के प्रमुख प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है। तत्कालीन समय में न ई मशीनों का प्रयोग करके आधुनिकीकरण की स्थापना तथा नगरीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया गया। शनै: शनै: परम्परागत भारतीय समाज में परिवर्तन के दौर का प्रारंभ हुआ व आधुनिकीकरण को जोर मिला। तत्समय विद्यमान पश्चिमी सभ्यता समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, व्यक्तिवादिता, विवेकशीलता व मानववाद दृष्टिकोण पर आधारित थी, जिसका प्रभाव पूर्ण रूपेण भारतीय सामाजिक स्थिति पर पड़ा। तत्कालीन आधुनिकीकरण में जो कमियाँ थीं, उन्हें आजाद भारत में भारतीय समाज सुधारकों व नेतृत्वशील लोगों के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया गया। यदि वर्तमान समय का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट होगा कि आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय समाज पूर्ण रूपेण परिवर्तन के बहाव में है।

योगेन्द्र सिंह (1994) ने कहा है कि ‘भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने संरचनात्मक व सांस्कृतिक विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न कर दी है।’ भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों में विशेष परिवर्तन देखने को मिलता है। जैसा कि विदित है, सामाजिक मूल्यों का प्रमुख कार्य होता है, समाज में लोगों के पारस्परिक संबंधों को निर्देशित एवं परिभाषित करना। ये सामाजिक मूल्य समाज के ही उपज होते हैं इनका संबंध किसी व्यक्तिगत विशेष से न होकर सम्पूर्ण समाज से होता है। आधुनिकीकरण के प्रभाव के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण समाज को परिवर्तन के दौर से गुजरना पड़ता है। अत: स्वाभाविक है कि परम्परागत सामाजिक मूल्यों पर, जो कि मानव को एक विशेष ढंग से व्यवहार करने को प्रेरित और बाध्य करते हैं, भी आधुनिकीकरण का विशिष्ट रूप से प्रभाव पड़ा है। विभिन्न नियोजित कार्यक्रमों के संचालन के फलस्वरूप अब तक जो भारतीय सामाजिक मूल्य परम्परागत तरीके से स्वचालित थे एवं जो कुछ हद तक समाज की उन्नति में बाधक समझे जा रहे थे, उन्हें त्यागकर देश परम्परावादिता से आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है। 

भारतीय समाज में क्रियाशील परिवर्तन एवं निरंतरता की प्रवृित्त्ायों के संदर्भ में यदि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पर दृष्टि डाली जाए तो निश्चित ही यह स्पष्ट होगा कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से जहाँ आज भारतीय समाज परिवर्तन एवं प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है एवं इसके तहत इसने विशिष्ट उपलब्धियाँ भी प्राप्त की है किन्तु यह भी दृष्टव्य है कि आधुनिकीकरण की इस प्रक्रिया ने भले ही पूर्ण रूप से न सही किन्तु कुछ मात्रा में परम्परा व सामाजिक मूल्यों की परिवर्तित अवश्य किया है।

संदर्भ

  1. बेनडिक्स, आर0 (1967), ट्रेडिशन एण्ड माडर्निटी रिकंसीडर्ड, कम्परेटिव स्टडीज इन सोसा ईटी एण्ड हिस्ट्री, वा-9, पृ0 326.
  2. आ ईजनस्टैड, एस0एन0 (1969), मॉडर्ना ईजेशन : प्रोटेस्ट एण्ड चेन्ज, प्रेन्टिस हाल ऑफ इण्डिया, न ई दिल्ली, पृ0 1.
  3. गोरे, एम0एस0 (1971), एजुकेशन एण्ड माडर्नाइजेशन, इन देसा ई, ए0आर0 (संपा0), ऐसेज ऑन मार्डना ईजेशन ऑफ अन्डरडेवलप्ड सोसा ईटीज, वा0-2, ठक्कर एण्ड कम्पनी, बाम्बे, पृ0 228-239.
  4. हालपर्न, एम0 (1965), द रेट एण्ड कॉस्ट ऑफ पोलिटिकल डेवलेपमेन्ट, एनल्स ऑफ द अमेरिकन एकेडमी ऑफ पॉलिटिकल एण्ड सोशल सांइस, वा0-358, मार्च, पृ0 21-23.
  5. एलाटास, सैय्यद हुसैन (1972), मॉडर्ना ईजेशन एण्ड सोशल चेन्ज : स्टडीज इन मॉडर्ना ईजेशन, रिलीजन, सोशल चंज एण्ड डेवलपमेंट इन साउथ- ईस्ट एशिया, एंगस एण्ड रार्बटसन, सिडनी, आस्ट्रेलिया, पृ0 22.
  6. प ई, डब्ल्यू0एल0 (एडी0) (1963), कम्युनिकेशंस एण्ड पॉलिटिकल डेवलपमेंट, प्रिंस्टन युनिवर्सिटी प्रेस, न्यूजर्सी, पृ0 3-4.
  7. दुबे, एस0सी0 (1971), एक्सपेंशन एण्ड मैनेजमेन्ट ऑफ चेंज, टाटा मैकग्रा-हिल, न ई दिल्ली, पृ0 67-68.
  8. सिंह, योगेन्द्र (1986), माडर्ना ईजेशन आफ इण्डियन ट्रेडिशन, रावत पब्लिकेशन, जयपुर, पृ0 201-05.
  9. श्रीनिवास, एम0एन0 (1956), सोशल चेंज इन माडर्न इण्डिया, एलाइड पब्लिशर्स, बाम्बे, पृ0 50.
  10. देसा ई, ए0आर0 (1971) (संपा0), एसेज ऑन मार्डना ईजेशन ऑफ अन्डरडेवलप्ड सोसा ईटीज, वा0-1, ठक्कर एण्ड कम्पनी, बाम्बे, पृ0 32.
  11. सक्सेना, आर0एन0 (1972), माडर्ना ईजेशन एण्ड डेवलपमेन्ट ट्रेन्ड्स इन इण्डिया, सोशियोलॉजिकल बुलेटिन, वॉ0-21, सितम्बर, न ई दिल्ली.
  12. लेवी, मैरियन जे0 (1954), कन्ट्रास्टिंग फैक्टर्स इन द मॉडर्ना ईजेशन ऑफ चा ईना एण्ड जापान, इकोनॉमिक डेवलपमेंट एण्ड कल्चरल चेंज, वा0-2, नं0-3, पृ0 161-97.
  13. दुबे, एस0सी0 (1974), कन्टेम्परेरी इण्डिया एण्ड इट्स माडर्ना ईजेशन, विकास पब्लिशिंग हाउस, न ई दिल्ली, पृ0 15.
  14. श्रीनिवास, एम0एन0 (1971), माडर्नाइजेशन : ए फ्यू क्वेरीज, पूर्वोद्धृत, पृ0 153.

Post a Comment

Previous Post Next Post