अनुसूचित जाति की परिभाषा, जाति के उत्पत्ति के कारक

हिन्दू जाति व्यवस्था एक सामाजिक व्यवस्था है। यह वर्ण व्यवस्था का परिवर्तित रूप है। वर्ण चार थे और इनका आधार श्रम विभाजन था। प्रथम तीन वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य द्विज कहलाते थे तथा चौथा वर्ण शूद्र था। शूद्रों का कार्य द्विजों की सेवा करना था।

प्राचीन हिन्दू धर्म ग्रंथों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि इस काल में अस्पृश्यता जैसी कोई चीज नहीं थी। वैदिक कालीन ग्रंथों में अस्पृश्य शब्द का प्रयोग किया गया है, किन्तु इस शब्द का प्रयोग किसी विशेष समुदाय के लिए न होकर विशेष प्रकार के निम्न व्यक्तियों के लिए किया जाता था।

उत्तर वैदिक काल में धर्म काल के आरंभ के समय जाति व्यवस्था में अनेक परिवर्तन हुए। इस काल में व्यक्ति के वर्ण का आधार कर्म के स्थान पर जन्म हो गया। इस समय तक ब्राह्मण अत्यंत शक्तिशाली हो गए थे।

उन्होंने स्वर्णों के लिए विशेषाधिकारों की व्यवस्था की तथा शूद्रों को सामान्य अधिकारों से भी वंचित कर दिया। मध्यकाल में शूद्रों को समाज से अलग कर दिया गया तथा उन्हें अस्पृश्य समझा गया।

ब्रिटिश काल में शूद्र जाति का सर्वाधिक पतन हुआ। अंग्रेजी सरकार ने 1871 में अपराधी जाति अधिनियम बनाकर अधिकांश घुमन्तु तथा अर्ध घुमन्तु जाति को जिनमें अधिकांश शूद्र जातियाँ थी, जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। इस अधिनियम में 1911 व 1924 में संशोधन करके इसे अधिक कठोर बनाया गया।

आजादी के बाद भारत में प्रजातंत्र की स्थापना हुई। भारत सरकार ने सभी शूद्र, अस्पृश्य जाति एवं जनजाति की दो सूचियाँ बनाई। पहली में अनुसूचित जातियाँ और दूसरी में अनुसूचित जनजातियाँ। इनके सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक उत्थान के लिए संविधान में अनेक व्यवस्थाएँ की गई।

अनुसूचित जाति की परिभाषा

अनुसूचित जाति की परिभाषा, अनुसूचित जाति की परिभाषा क्या है?

सन् 1935 में साइमन कमीशन ने सर्वप्रथम इनके लिए ‘अनुसूचित जातियाँ’ शब्द का प्रयोग किया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भी इसी नाम को अपनाया।

तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने अस्पृश्य या हरिजन कही जाने वाली 429 जाति की एक सूची बनाई तथा इन्हें अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखा। भारतीय संविधान में यह जातियाँ अनुसूचित जाति के नाम से जानी जाती है।

डॉ. डी.एन. मजूमदार के अनुसार ‘‘अस्पृश्य जातियाँ वे हैं जो बहुत सी निर्योग्यताओं से पीड़ित हैं, जिनमें से अधिकतर निर्योग्यताओं को परम्परा द्वारा निर्धारित करके सामाजिक रूप से उच्च जाति द्वारा लागू किया गया है।

डॉ. जी.एस. घुरिये के अनुसार ‘‘अनुसूचित जाति को मैं उन समूहों के रूप में परिभाषित कर सकता हूँ, जिनका नाम इस समय लागू अनुसूचित जाति के आदेश में है।’’

अनुसूचित जाति के उत्पत्ति के कारक 

अनुसूचित जाति के उत्पत्ति के कारक, अस्पृश्य जाति की उत्पत्ति के तीन कारक सामने आते हैं जो इस प्रकार हैं-

प्रजातीय कारक

डी.एन. मजूमदार, जी.एस. घुरिये तथा हबर्ट रिजले ने अस्पृश्य जाति की उत्पत्ति को प्रजातीय आधार पर स्पष्ट किया है। ‘‘इण्डो आर्यन लोग विजेता के रूप् में इस देश में आए। उन्होंने यहाँ के विजित मूल निवासियों को अपने से हीन समझा, उन्हें घृणा की दृष्टि से देखा, उन्हें दस्यू, दास आदि निंदनीय नामों से संबोधित किया, उन्हें समाज में निम्न सामाजिक स्थिति प्रदान की, उनके साथ किसी भी प्रकार का सम्पर्क तथा अपनी धार्मिक पूजा, संस्कार आदि से पूर्णत: अलग रखा। 

इन विभिन्नताओं के कारण पृथकता की धारणा धीरे-धीरे इतनी तीव्र होती गई कि इण्डो आर्यन लोगों ने यहाँ के मूल निवासियों को स्पर्श करना भी अनुचित समझा तथा उन्हें अछूत कहा जाने लगा।

धार्मिक कारक

हिन्दू जाति व्यवस्था में धर्म को सर्वोपरि माना गया है। धर्म का संबंध पवित्रता-अपवित्रता से है। बहुत सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें अत्यन्त अपवित्र माना गया है। उच्च जाति के लोग उनसे दूर रहते हैं, क्योंकि इनका स्पर्श मात्र उन्हें अपवित्र बना देता है।

इसी आधार पर अनेक व्यवसायों को जो अपवित्र वस्तुओं से सम्बद्ध थे, उच्च जाति के लिए उन्हें निषिद्ध घोषित कर दिया गया तथा इन कार्यों को व्यवसाय के रूप में करने वाली जाति को अस्पृश्य समझा जाने लगा।

सामाजिक कारक

भारत में अनुसूचित जाति की उत्पत्ति का एक महत्वपूर्ण कारक सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था भी है। समाज में जब एक कार्य प्रणाली कुछ समय तक बनी रहती है, तो वह स्थायी रूप धारण कर लेती है एवं प्रथाओं और परम्पराओं में परिवर्तित हो जाती है। यही प्रथाएँ आगे चलकर रूढ़ियों में परिवर्तित हो जाती हैं। जिनमें परिवर्तन संभव नहीं होता।

इसी आधार पर भारतीय समाज में अनेक व्यवसाय तथा इनमें संलग्न जातियाँ अस्पृश्य मानी जाने लगी। आरंभ में उच्च जाति के लोग ही इन्हें अस्पृश्य समझते थे किन्तु कुछ समय पश्चात स्वयं ये जातियाँ अपने आप को अस्पृश्य समझने लगेगी, जिससे भारतीय समाज में अस्पृश्य जाति का एक स्थायी स्थान बन गया।

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