दलित शब्द का शाब्दिक अर्थ है – दलन किया हुआ। इसमें वह हर व्यक्ति आ जाता है जिसका शेण-उत्पीड़न हुआ है। रामचंद्र वर्मा ने अपने शब्दकोश में दलित का अर्थ लिखा है, ‘‘मसला हुआ, मर्दित, दबाया, रौंदा या कुचला हुआ, विनष्ट किया हुआ।’’
‘‘दलित-वर्ग- समाज का वह वर्ग जो सबसे नीचा माना गया हो या दुखी और दरिद्र हो जिसे उच्च वर्ग के लोग उठने न देते हों। जैसे भारत की अछूत माने जाने वाली जातियों का वर्ग।’’
दलित वर्ग का अर्थ प्राय: नीची जातियों के ‘अछूत’ वर्ग से लगाया जाता है। इस प्रकार दलित वर्ग के अन्तर्गत आने वाली जातियों का विवरण इस प्रकार दिया जा सकता है:-
- अनुसूचित जातियाँ
- अनुसूचित जन जातियाँ
- भूतपूर्व अपराधकर्मी जातियाँ
- पिछड़ी जातियाँ
- अत्यधिक पिछड़ी जातियाँ
दलित का अर्थ
‘दलित’ का शाब्दिक अर्थ है-’कुचला हुआ।’ अत: दलित वर्ग का सामाजिक संदर्भों में अर्थ होगा, वह जाति समदुाय जिसका अन्यायपूर्वक सवर्ण उच्च जातियों द्वारा दमन किया गया हो, रौंदा गया हो। दलित शब्द व्यापक रुप में पीडित के अर्थ में आता है, पर दलित वर्ग का प्रयागे हिन्दू समाज-व्यवस्था के अंतर्गत परंपरागत रुप में शूद्र माने जाने वाले वर्णो के लिए रुढ़ हो गया है। दलित वर्ग में वे सभी जातियाँ सम्मिलित हैं जो जातिगत सोपान-क्रम में निम्नतम स्तर पर हैं और जिन्हें सदियों से दबाये रखा गया है।
मानक अंग्रेजी शब्दकोश में दलित शब्द के लिए ‘डिप्रेस्ड’ शब्द दिया गया है, जिसका अर्थ दबाना, नीचा करना, झुकाना, विनत करना, नीचे लाना, स्वर नीचे करना, धीमा करना, मलामत करना, दिल ताडे़ना है।
दलित की परिभाषा
डॉ श्यौराज दलित शब्द की व्याख्या करते हुए कहते हैं- ‘‘दलित’ वह है जिसे भारतीय संविधान ने अनुसूचित जाति का दर्जा दिया है।’’
कँवल भारती का मानना है कि ‘दलित’ वह है जिस पर अस्पृश्यता का नियम लागू किया गया है। जिसे कठारे और गन्दे कार्य करने के लिए बाध्य किया गया है। जिसे शिक्षा ग्रहण करने और स्वतन्त्र व्यवसाय करने से मना किया गया और जिस पर अछूतो ने सामाजिक निर्योग्यताओं की संहिता लागू की, और वही दलित है, और इसके अन्तर्गत वही जातियाँ आती हैं, जिन्हें अनुसूचित जातियाँ कहा जाता है।’’
मोहनदास नैमिशराय - दलित के अन्तर्गत सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक, शेषण का अन्तर्भाव होता है, तो सर्वहारा केवल आर्थिक शोषण तक सीमित है।
धीरेन्द्र वर्मा द्वारा सम्पादित हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार-’’यह समाज का निम्नतम वर्ग होता है, जिसको विशिष्ट संज्ञा आर्थिक व्यवसायों के अनुरुप ही प्राप्त होती है। उदाहरणार्थ-दास प्रथा में दास, सामन्तवादी, व्यवस्था में किसान, पूँजीवादी व्यवस्था में मजदूर समाज का ‘दलित वर्ग’ कहलाता है।’’
माता प्रसाद ने दलित शब्द की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया है- ‘‘शैक्षिक, आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक दृष्टि से जो जातियाँ पिछड गयी हैं या जिन्हें पिछड़े रहने को विवश कर दिया गया है वे ही दलित जातियाँ है।’’
दलितों का इतिहास
- वर्ग व्यवस्था में शूद्रों का स्थान सदैव अन्तिम होगा।
- शूद्र अपवित्र व तीन वर्णों से नीचे है अत: उनके सुनने के लिए कोई कर्मकाण्ड था वेद मन्त्र नही होगा।
- वैद्य किसी भी शूद्र की चिकित्सा नहीं करेगा।
- शूद्रों का वध करने पर ब्राह्मण को दण्ड नहीं दिया जायेगा।
- किसी भी शूद्र को विद्या ग्रहण करने व पढाने का अधिकार नहीं होगा।
- किसी भी शूद्र को सम्पत्ति रखने का अधिकार नहीं होगा। यदि वह इसका उल्लंघन करता है तो उसकी सम्पत्ति ब्राह्मणों द्वारा छिन्न ली जायेगी।
- शूद्र कही भी सम्मान पाने का अधिकारी नहीं होगा।
- शूद्र जन्म से दास होगा और मरने तक दास बनकर ही रहेगा।
इसके अतिरिक्त दलितों के इतिहास के बारे में कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि लगभग 4000-4500 वर्षों पहले सिन्धु सभ्यता का उदय हुआ था जो सबसे समृद्ध सभ्यता मानी जाती थी। उस सभ्यता को अपनाने वाले लोग कौन थे और बाद में कहा चले गये इन सभी पहलुओं के अध्ययन से पता चलता है कि वर्तमान ईरान, ईराक, रुस और जर्मनी आदि जो उस समय मध्य एशिया कहा जाता था वहां के लोग घुमक्कड व खानाबदोश थे। (जो आर्य थे) वह खाने की तलास में उत्तर के रास्ते घुमते हुए भारत आये और यहां कि सम्पन्नता देखकर लालच में आकर यही बस गये और यहाँ के मूल शासकों को छल से अपने जाल में फंसा कर अपना गुलाम बनाया और उन पर अपना आधिपत्य जमाना शुरु कर दिया जिससे दोनों में युद्ध आरम्भ हुआ।
आरम्भ में यहाँ सभी शूद्र ही कहलाते थे। सर्वप्रथम अधिनियम 1935 में शूद्रों को दलित से सम्बोधित किया गया था आगे चलकर यही शब्द दलित भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 में भी संविधान निर्माताओं के द्वारा भी आम रुप से प्रयोग में लाया गया था। संविधान के अनुच्छेद-341 के तहत भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष अनुबन्ध की व्यवस्था की गई है और इन सभी दलित जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान निर्माताओं के द्वारा की गई है। आरम्भ से ही दलितों की आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति बहुत ही दयनीय रही है।