एक कर प्रणाली के अंदर राज्य द्वारा केवल एक कर लगाया जाता है जो या तो कृषि उत्पादन पर हो सकता है, आय पर हो सकता है अथवा अन्य किसी वस्तु पर हो सकता है।
एक कर प्रणाली
एक कर- केवल कृषि पर - प्रकृतिवादी -अर्थशास्त्रियों का विचार था कि केवल कृषि उत्पादन पर कर लगाया जाये क्योंकि केवल कृषि ही उत्पादन व्यवसाय है। प्रकृतिवादी मानते थे कि कृषि के अतिरिक्त अन्य सब व्यवसाय अनुत्पादक होते हैं। उनकी धारणा इस बात पर आधारित थी कि शुद्ध उत्पादन (Net Product) केवल कृषि में ही प्राप्त होता है।ईसाक शेरमैन (Issac Sherman)-का विचार था कि भूमि पर लगाया जाने वाला कर विवख्रतत किया जा सकता है अत: उस कर का अन्तिम भार समाज के सभी व्यक्तियों पर पड़ेगा।
दोष - यदि केवल भूमि पर कर लगाया जाता है तो इसके प्रमुख दो दोष दिखाई देते हैं जो इस प्रकार हैं-- अपर्याप्त आय-यदि केवल कृषि पर कर लगाया जाता है तो इससे सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त नहीं होती। आजकल जबकि सरकारों के कार्यों में वृद्धि हो रही है और अधिक धन की आवश्यकता होती है, तब एक कर प्रणाली से कार्य नहीं चल सकता और न ही सरकार को आवश्यक धनराशि प्राप्त हो सकती है।
- न्यायशीलता के विरुद्ध-कृषि पर लगाए जाने वाले कर का भार केवल कृषकों पर पड़ता है जबकि पूँजीपति इन करों से बच जाते हैं। यह कहना गलत है कि भूमि पर लगाए गए कर को विवर्तनीय किया जा सकता है। चूँकि धनी व्यक्तियों की तुलना में, निर्धन व्यक्ति अधिक मात्रा में कृषि पदार्थों का उपभोग करते हैं अत: निर्धन वर्ग पर कर का भार अधिक पड़ता है। इस प्रकार यह कर अन्यायपूर्ण है तथा कर देने की योग्यता के अनुरूप नहीं है।
दोष -
- केवल आय पर कर लगाने से पर्याप्त आय प्राप्त नहीं हो सकती।
- आय के अतिरिक्त, अन्य स्रोतों से प्राप्त सम्पत्ति पर कर नहीं लगाया जा सकेगा।
- इस कर की बड़ी मात्रा में चोरी की जाएगी।
- निर्धन वर्ग की आय पर भी कर लगेगा तथा उसे आय का हिसाब-किताब रखने में असुविधा होगी।
- सभी व्यक्तियों से आय-कर वसूल करने का खर्च काफी होगा। उपर्युक्त दोषों को देखते हुए वर्तमान में एक कर प्रणाली को व्यावहारिक नहीं माना जाता और इसके स्थान पर सब देशों ने बहुकर प्रणाली को अपनाया है।
बहुकर प्रणाली
इसे अनेक की प्रणाली भी कहते हैं। जैसा कि शब्द से ही स्पष्ट है, इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के कर लगाकर सरकार आवश्यक धन एकत्रित कर सकती है। आर्थर यंग (Arthur Young) के शब्दों में, यदि मैं करारोपण की श्रेष्ठ पद्धति की परिभाषा करूं तो वह ऐसी होनी चाहिए जिसमें किसी विशेष बिन्दु पर बहुत अधिक कर भार न होकर अनन्त बिन्दु पर थोड़ा-थोड़ा भार हो। लेकिन यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि कर के अनेक बिन्दु तो हो सकते हैं पर उन्हें अनन्त नहीं होना चाहिए क्योंकि उससे कर उलझनपूर्ण हो जायेंगे तथा वसूली भी समस्या बन जायेगी।
आजकल प्राय: सब देशों में बहुकर प्रणाली ही लोकप्रिय हैं। इन करों में प्रगतिशीलता का गुण लाकर इन्हें न्यायपूर्ण भी बनाया जा सकता है। आजकल सरकारें आय-कर, विक्रय-कर, सम्पत्ति कर, उपहार कर, मृत्यु कर, उत्पादन कर, आयात कर आदि अनेक करों को अपना रही हैं।
बहुकर प्रणाली के गुण
- इन करों से सरकार को आवश्यकतानुसार पर्याप्त आय हो सकती है।
- करों को प्रगतिशील बनाकर न्यायपूर्ण बनाया जा सकता है।
- अनेक करों के माध्यम से राज्य के प्राय: सब वर्गों से सहयोग लिया जा सकता है।
- उचित उपाय अपनाकर करवंचन को रोका जा सकता है।
बहुकर प्रणाली के दोष
बहुकर प्रणाली में कई गुणों के साथ-साथ अनेक दोषों का भी समावेश है जिसमें प्रमुख हैं-
- बहुकर प्रणाली उपभोक्ताओं पर अधिक कर-भार डालती है। जिससे उनकी बचत एवं काम करने की योग्यता एवं इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- बहुकर प्रणाली में धनिकों की अपेक्षा निर्धनों पर कर का भार अधिक पड़ता है।