यदि सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रश्न का उत्तर दिया जाये तो कहा जा सकता है कि मनोवैज्ञानिक परीक्षण व्यावहारिक रूप से किसी व्यक्ति का अध्ययन करने की एक ऐसी व्यवस्थित विधि है, जिसके माध्यम से किसी प्राणी को समझा जा सकता है, उसके बारे में निर्णय लिया जा सकता है, उसके बारे में निर्णय लिया जा सकता है अर्थात एक व्यक्ति का बुद्धि स्तर क्या है, किन-किन विषयों में उसकी अभिरूचि है, वह किस क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।
समाज के लोगों के साथ समायोजन स्थापित कर सकता है या नहीं, उसके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषतायें क्या-क्या है? इत्यादि प्रश्नों का उत्तर हमें प्राप्त करना हो तो इसके लिये विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा न केवल व्यक्ति का अध्ययन ही संभव है, वरन् विभिन्न विशेषताओं के आधार पर उसकी अन्य व्यक्तियों से तुलना भी की जा सकती है। जिस प्रकार रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान तथा ज्ञान की अन्य शाखाओं में परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार मनोविज्ञान में भी इन परीक्षणों का उपयोग किया जाता है।
मनोवैज्ञानिक परीक्षण की विशेषताएं
किसी भी परीक्षण को उत्तम या बहुत अच्छा तब माना जाता है, जब उसमें वे सभी विशेषताएं या गुण अधिकतम संख्या में विद्यमान हो, जो किसी भी परीक्षण के वैज्ञानिक कहलाने के लिए आवश्यक होते है। आपके मन में जिज्ञासा हो रही होगी कि आखिर वे विशेषताएं कौन-कौन सी है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार एक अच्छे वैज्ञानिक परीक्षण में विशेषताएं होती है-
1. विश्वसनीयता
एक उत्तम तथा वैज्ञानिक मनोवैज्ञानिक परीक्षण में विश्वसनीयता का गुण होना अनिवार्य है। अब प्रश्न उठता है कि परीक्षण की विश्वसनीयता से क्या आशय है? किसी भी परीक्षण के विश्वसनीय होने का अर्थ यह है कि समान शर्तों के साथ यदि किसी परीक्षण को किसी भी समय एवं स्थान पर प्रयुक्त किया जाये तो उससे प्राप्त होने वाले परिणाम प्रत्येक बार समान ही हो, उनमें अन्तर ना हो। “ विश्वसनीयता का तात्पर्य निर्णय की संगति से है। “
एक विश्वसनीय परीक्षण उसे कहते है, जिसके द्वारा भिन्न-भिन्न समयों में प्राप्त परिणामों में संगति तथा सहमति पायी जाती है। विश्वसनीय परीक्षण संगत होता है, स्थिर होता है।”
विश्वसनीयता निर्धारित करने की विधियाँ – किसी परीक्षण की विश्वसनीयता को निर्धारित करने की चार विधियाँ हैं-- परीक्षण-पुर्नपरीक्षण विधि
- अर्ध-विच्छेद विधि
- समानान्तर कार्म विधि
- तर्कसंगत समता विधि
उपर्युक्त चार में से सामान्यत: प्रथम दो विधियों का व्यावहारिक दृष्टि से अधिक उपयोग किया जाता है।
2. वैधता
मनोवैज्ञानिक परीक्षण की दूसरी प्रमुख विशेषता “ वैधता “ है। वैधता का अर्थ है कि किसी परीक्षण को जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये बनाया गया है, वह परीक्षण उस उद्देश्य को पूरा कर रहा है या नही। यदि परीक्षण अपने उद्देश्य को पूरा करने में सकल होता है तो उसे वैध माना जाता है और इसके विपरीत उद्देश्य पूरा करने में सक्षम नहीं होता है तो उसे वैध नहीं माना जाता है।
“ वैधता का तात्पर्य किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षण की उस विशेषता से है, जिससे पता चलता है कि परीक्षण उस चीज को मापने में कहाँ तक सकल है, जिसको मापने के लिए अपेक्षा की जाती है। (बिजामिन: Psychalogy, 1994, पृ.सं.-7)
वैधता के प्रकार- मनोवैज्ञानिक परीक्षण की वैधता के अनेक प्रकार होते है, जिनका नामोल्लेख है-
- घटक वैधता
- समवर्ती वैधता
- भविष्यवाणी वैधता इत्यादि।
वैधता को निर्धारित करने की विधियाँ- किसी परीक्षण की वैधता को निर्धारित करने के लिये सहसंबंध विधि का प्रयोग किया जाता है। जैसे कि
- कोटि अन्तर विधि
- प्रोडक्ट मोमेन्ट विधि इत्यादि
मानक- किसी भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण के अपने मानक होते है। मानक का गुण होना एक वैज्ञानिक परीक्षण के लिये अनिवार्य शर्त है।
“ मानक का अर्थ वह संख्या, मूल्य या स्तर है, जो किसी समूह का प्रतिनिधि हो और जिसके आधार पर व्यक्तिगत निस्पादन या उपलब्धि की व्याख्या की जा सके।” ( रेबर एवं रेबर, 2001, पृ. सं. 472)
अब प्रश्न यह उठता है कि मनोवैज्ञानिक परीक्षण में कितने प्रकार के मानकों का प्रयोग किया जाता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण में निम्न चार प्रकार के मानक उपयोग में लाये जाते हैं-
- आयु मानक
- श्रेणी मानक
- शतमक मानक
- प्रमाणिक प्राप्तांक मानक
परीक्षण में जैसी आवश्यकता होती है, उसके आधार पर एक या एक से अधिक मानकों का प्रयोग किया जा सकता है। मानक के कारण इस परीक्षणकर्ता द्वारा इस तथ्य का निर्धारण करना संभव हो पाता है कि किसी व्यक्ति विशेष को जो अंक प्राप्त हुआ है वह औसत स्तर का है, उच्च स्तर का है या निम्न स्तर का है। अत: एक उत्तम वैज्ञानिक परीक्षण के लिये उसमें मानक का गुण होना अति आवश्यक है।
एक उत्तम मनोवैज्ञानिक परीक्षण में यह गुण पाया जाता है कि वह किसी शीलगुण या किसी खास क्षमता के आधार पर विभिन्न व्यक्तियों में विभेद कर सकता है। कौन सा व्यक्ति उच्चस्तरीय क्षमता एवं योग्यता वाला है, कौन सा औसत योग्यता वाला है तथा कौन सा व्यक्ति निम्नस्तरीय योग्यता एवं क्षमता को धारण करता है, इसका निर्धारण वह वैज्ञानिक परीक्षण सरलतापूर्वक कर सकता है।
3. व्यावहारिकता
व्यावहारिकता मनोवैज्ञानिक परीक्षण की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता है। यह ऐसी होनी चाहिये जिसका व्यावहारिक रूप से प्रयोग कोई भी व्यक्ति परीक्षण-पुस्तिका की सहायता से दिये गये निर्देशों के अनुसार कर सके अर्थात् परीक्षण व्यावहारिक रूप से प्रयुक्त करने की दृष्टि से जटिल एवं कठिन नहीं होना चाहिए।
4. मितव्ययिता
मनोवैज्ञानिक परीक्षण में आंशिक रूप से मितव्ययिता का गुण भी पाया जाता है। जो परीक्षण धन की दृष्टि से जितना कम खर्चीला होता है तथा जिसके व्यावहारिक प्रयोग में जितना कम श्रम एवं समय लगता है, उसे उतना ही अच्छा माना जाता है।
5. रूचि
एक अच्छा परीक्षण वह है जो प्रयोज्यों को नीरस ना लगे अर्थात् जिसमें प्रयोज्यों की रूचि बनी रहे। जब प्रयोज्यों पर वह परीक्षण प्रयुक्त किया जाये तो वे प्रारंभ से लेकर अंत तक रूचिपूर्वक उसमें भाग ले सकें न कि भार समझकर।
6. विभेदीकरण
एक वैज्ञानिक परीक्षण में विभेदीकरण का गुण भी पाया जाता है। विभेदीकरण का अर्थ है, किसी गुण , विशेषता या योग्यता के आधार पर किसी एक व्यक्ति, वस्तु, घटना या परिस्थिति को अन्य व्यक्तियों, वस्तुओं, घटनाओं, परिस्थिति से अलग करना।
7. व्यापक्ता
व्यापकता मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विशेषता है। व्यापकता का अर्थ है- सीमित एवं संकुचित दृष्टिकोण का न होना अर्थात- विस्तृत होना। यहाँ पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण की व्यापकता का अर्थ यह है कि वह परीक्षण जिस गुण, योग्यता अथवा क्षमता को मापने के लिये बनाया गया है, वह उस गुण योग्यता या क्षमता को सभी पक्षों का समुचित ढंग से मापन करता है या नहीं। यदि वह परीक्षण उस गुण या योग्यता के सभी पक्षों का सही ढंग से मापन करने में सक्षम होगा, तो यह माना जायेगा कि उसमें व्यापकता का गुण विद्यमान है और यदि एक पक्ष का ही मापन करेगा तो माना जायेगा कि उसका दृष्टिकोण सीमित है व्यापक नहीं।
मनोवैज्ञानिक परीक्षण की सीमायें
विद्वानों का यह मानना है कि मनोविज्ञान के क्षेत्र में जिन परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है, वे परीक्षण विज्ञान की कसौटी पर उतने खरे नहीं उतरते हैं अर्थात् उतने अधिक विशुद्ध वैज्ञानिक नहीं होते हैं, जितने कि भौतिक विज्ञान आदि यथार्थ विज्ञानों में प्रयुक्त होने वाले परीक्षण होते है।
अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि आखिर ऐसे क्या कारण है, जिनकी वजह से इन मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की वैज्ञानिकता सीमित हो जाती है। तो आइये चर्चा करते है, इन्हीं कठिनाइयों या सीमाओं की जिनके कारण मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को पूर्णत: वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता है।
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की सीमाओं का विवेचन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
1. पूर्ण परिमाणन संभव नहीं- भौतिक विज्ञानों की भाँति मनोविज्ञान में किसी भी मानसिक योग्यता को पूरी तरह मापा नहीं जा सकता।