परिवार नियोजन का साधारण अर्थ है कि ‘‘एक दम्पति यह योजना बनाएं कि जन्म नियन्त्रण करके कितने बच्चों को पैदा करना है।’’ उस हेतु उसे परिवार नियोजन को प्रयोग में लाना है। अन्य तकनीकि विधियों संसर्ग शिक्षा, संसर्ग जनित संक्रमण से उत्पन्न होने वाली बीमारी के इलाज का प्रावधान, गर्भाधान पूर्व सलाह एवं प्रजनन का प्रावधान इत्यादि।
परिवार नियोजन कभी-कभी जन्म नियन्त्रण सभी धर्मों में समाजिक रूप में किया जाता है, यद्यपि परिवार नियोजन जन्म नियन्त्रण के अतिरिक्त बहुत अधिक है। परन्तु वह परिस्थितियों के आधार पर ही प्रयोग होता है, एक स्त्री पुरुष दम्पत्ति जो परिवार में बच्चों की संख्या नियन्त्रित रखना चाहते हैं। जो गर्भाधान के समय को नियन्त्रित करना चाहते हैं (उसे समयान्तर विधि कहते) दो बच्चों के बीच समान्तर को रखना चाहते हैं। अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए और जो संसर्ग जन्म संक्रमण से जिसमें परिवार नियोजन को उच्च स्तरीय सेवाएं महिलाओं एवं पुरूषों के लिए जो पुरुष/महिलाएं बच्चों के बीच अन्तर रखना तथा अनचाहे बच्चों के जन्म को रोकना तथा प्रजनन संक्रमण से बचना चाहते हैं, उनकी सहायता के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम घोषित किया गया।
परिवार नियोजन के उपाय
वर्तमान परिवार कल्याण कार्यक्रम जो कैन्टीन प्रयास पर आधारित था। अधिकसंख्य में नसबंदी कार्यक्रम की ही उपलबध्ता थी। सन् 1960 के दौरान विकसित देशों में परिवार नियोजन कार्यक्रम प्रारम्भिक विधि ही थी। जैसे- कैलेण्डर तरीके से जन्म नियंत्रण विधि अपनायी जाती थी। राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्य केवल नसबंदी की ही सेवा प्रदान करता है। परिवार नियोजन के दो उपाय हैं :-
- परिवार नियोजन का नैसर्गिक/प्राकृतिक उपाय।
- परिवार नियोजन के कृत्रिम उपाय
परिवार नियोजन के प्राकृतिक उपाय
नैसर्गिक परिवार नियोजन इस पर आधारित है कि संर्सग के समय व्यवधान डालना जो माह में प्रजनन का समय कहलाता हैं बहुधा अधिकांश महिलाओं में डिम्ब ग्रन्थि अगले मासिक धर्म के 14 दिन पूर्व निकलता है यद्यपि अनिषेचित डिम्ब 12 घंटे तक जीवित रहता है। संर्सग के उपरांत गर्भाशय में शुक्राणु 5 दिन पूर्व तक जीवित रहता है और डिम्ब 12 घण्टे उपरांत तक। परिवार नियोजन कुछ नैसर्गिक उपाय निम्न प्रकार है :-
- मासिक चक्र
- तापमान उपाय
- तरल पदार्थ उपाय
- सुरक्षित काल उपाय
- अपूर्ण निषेचन
परिवार नियोजन के कृत्रिम उपाय
अधिकांश दम्पत्ति बच्चों के होते हुये भी यह ध्यान रखते हैं कि वह कितने बच्चे रखें। परिवार नियोजन की बहुत सारी विधियां हैं। प्राकृतिक परिवार नियोजन की विधि जो जिसमें महिलाओं को यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि चक्र के समय महिला किन दिनों में गर्भित हो सकती हैं इस तरह परिवार नियोजन में बहुत से अप्राकृतिक विधि है जो है :
- स्किन पैचेज और वेजाइनल ंिरंग्स।
- हारमोन्स तरीका।
- कृत्रिम दवाइयां।
- निरोधक विधि।
- गोलियां।
- गर्भ निरोधक इंजेक्शन।
- दवाखाना और कृत्रिम उपाय।
- आकस्मिक दवा का प्रयोग।
- रोधक कृत्रिम उपाय।
- नसबन्दी।
- निरोध।
- डायाफ्राम।
- कैप।
- शुक्राणु निरोध कैप।
प्लास्टिक की विधि को योनि में प्रवेश कराकर 3 सप्ताह के लिए छोड़ देते है और एक सप्ताह के बाद हटा देते हैं। महिला रिंग को स्वयं से हटा सकती है। संसर्ग के समय पुरूष को इसका आभास नहीं होता। प्रत्येक माह एक रिंग का प्रयोग होता है यह तो विधि प्रभावशाली है अथवा विशेष तथा पूरे प्रयोग एवं प्रभाविक ढंग से प्रयोग में यह खाने वाली गर्भ निरोधक गोलियों की भांति ही है। अधिक वजन वाली महिलाओं में पैच कम प्रभावशाली है अन्य विधियों में लगातार मासिक चक्र में धब्बा पड़ना, रक्त स्राव होना स्वाभाविक लक्षण हैं। जो साइडइफेक्ट एवं स्वभाव तथा प्रयोग की सम्मिलित गर्भ निरोध गोलियों के प्रयोग से असाधारण विकास की संभावनाएं अधिक होने कारण प्रयोग निषिद्ध कर दिया जाता है।
2. हार्मोन पद्धति - गर्भ निरोधक हार्मोन मुख से लिए जा सकते है न कि योनियों प्रवेशित करके त्वचा के ऊपर, तथा त्वचा के नीचे प्रयोग करके एवं सूची वेध के माध्यम से मांस पेशियों के अन्तर्गत लगाकर। हार्मोन का प्रयोग गर्भ को रोकने हेतु इस्ट्रोज एवं प्रोजेस्टान (ड्रम में प्रोजेस्टान को मिलता-जुलता) हार्मोन विधि गर्भ ठहरने का रोकने एवं मुख्यत: डिम्ब ग्रथियों द्वारा डिम्ब के उत्सर्जन का कार्य रोक दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप सर्विक्स गर्भ ग्रीवा से निकलने वाला तरल पदार्थ इतना गाढ़ा हो जाता है कि उसमें शुक्राणु प्रवेश करने में सक्षम नहीं हो पाते। हार्मोन विधि में डिम्ब का हार्मोंस द्वारा नष्ट करने से रोकना है। सभी हर्मोन विधियों के अन्तर्गत एक ही प्रकार के तरीके है।
3.खाने वाली गर्भ निरोधक - खाने वाली गर्भ निरोधक को सामान्यत: जन्म नियन्त्रण वाली गोली के नाम से जाना जाता है। जिसमें केवल हार्मोन या प्रोजेस्टिन एवं इस्ट्रोजिन या केवल प्रोजेस्टिन होता है। कम्बाइण्ड हार्मोन व गोलिया विशेष रूप से दिन में एक गोली 3 सप्ताह तक (21 दिन) लेनी है। शेष सप्ताह में नहीं लेनी है। मासिक चक्र प्रारम्भ हो जायेगा। इसके उपरांत ये गोलियाँ अप्रभावकारी होंगी। गोलियां एक सप्ताह तक लेनी है और एक गोली 12 सप्ताह तक लेनी है परन्तु एक सप्ताह तक नहीं। इस प्रकार वर्ष में चार बार ही मासिक काल होगा। अन्य उत्पादों में एक गोली प्रतिदिन लेनी है। इस उत्पाद में रक्त स्राव वाली समस्या नहीं उत्पन्न होती। परन्तु अनिश्चित रक्त स्राव प्राप्त हुआ है पर यह मात्र 0.37 प्रतिशत महिलाओं की यह समस्या है सम्मिलित हार्मोनों वाली प्रथम वर्ष में प्रयोग के समय गर्भित हो सकती है। यद्यपि गर्भधारण के सम्भाविता अधिक है पर यदि यह लेने में चूक न हो जाय विशेषत: प्रथम बार के मासिक धर्म के समय।यदि उसे धमनी के रोगों या मधुमेंह या अन्य कोई खतरा है तो उसे कोलेस्ट्राल लिपिड एवं शर्करा की जांचे आवश्यक है यदि यह सभी स्तर में कोई बीमारी नहीं है तो चिकित्सक महिलाओं के इस्टे्रजिन के गर्भ निरोधक के बतौर तय कर सकता है। गर्भ निरोधक गोलियों के प्रयोग को प्रारम्भ करके महिला को डाक्टर से बात-चीत कर इसके प्रयोग से होने वाली लाभ एवं हानियों के विषय में जानकारी ले लेनी चाहिये जिससे खाने वाले गर्भ निरोधक उपकरण के प्रयोग से उत्पन्न हो सकती है।
(क) लाभ – इसके प्रयोग से मुख्य लाभ तो यह है कि यह एक विश्वसनीय गर्भ निरोधक है। यदि खाने वाली गोलियो का प्रयोग नियन्त्रित ढंग से ही किया जाये, जिससे महिलाओं में िस्स्ट (मा0) गर्भधान की एवं स्तन की, डिम्ब ग्रंन्थि की गाँठ फैलोसियन ट्यूब में संक्रमण और जो महिलाएं गर्भ निरोधक गोली का प्रयोग करती है उनको यह बीमारी होने का भी खतरा हो सकता है।
गर्भ निरोधक गोली के प्रयोग से कई तरह के कैन्सर होने का खतरा हो सकता है। खाने वालीे गर्भ निरोधक गोलियों के लम्बे समय तक उपयोग के कारण गर्भाधान पर विपरीत असर डालता है यद्यपि उस समय डिम्ब उत्सर्जन न करेगीं। डाक्टरों की राय है कि महिलाओं को 2 सप्ताह तक प्रसवों प्रतीक्षा कर लेनी चाहिये।
(ख) हानियां – इसमें कुछ विपरीत परिणाम हो सकते हं,ै जैसे- अचानक रक्त स्राव जो सामान्य ही है प्रयोग के कुछ प्रथम माहों में होता, परन्तु जैसे ही शरीर हार्मोन्स को जिस तरह स्वीकार कर लेता है।
असामान्य रक्त स्राव होने समय डाक्टर उसे रोक देने हेतु सलाह दे सकते है यह प्रतिदिन लेने की सलाह दे सकते है। किसी रूकावट के दिमागी रक्त स्राव का प्रकरण स्वयं बंद हो जायगा कुछ इस्ट्रोजिन गोलियों में देखे गये हैं। जिसमें मिचली आना, कपडों पर धब्बों के साथ ही स्राव का रूकना एवं रक्तचाप में वृद्धि के लक्षण के साथ ही स्तनों में गर्माहट एवं अर्धकपारी दर्द एवं अन्य इस्ट्रोजिन की खुराक से सम्बन्धित है। जैसे शरीर का वजन बढ़ना, स्नायु विकृत कुछ महिलाएं जो गर्भ निरोधक खाने वाली गोलियों का प्रयोग करती हैं उसे 5 पौण्ड तक स्राव के रूकने के कारण बढ़ जाता है। इनके बहुत साइड इफेक्ट है। कुछ औरतों में खाने वाली गर्भ निरोधक उपकरणों के प्रयोग से गहरे धब्बे चेहरे पर दिखाई पड़ते हैं। गर्भावस्था में भी इसी तरह के धब्बे पड़ते हैं जो प्रकटीकरण ज्यादा दिखाई पड़ता है। यदि गहरे धब्बे दिखाई पड़े तो महिला को खाने वाली गर्भ निरोधक के प्रयोग रोकने की सलाह डाक्टर को दिखा कर लेनी चाहिये। जैसे गोलियों का प्रयोग रोक दिया जायगा धब्बे खुद व खुद कम पड़ने लगेगें।
गर्भ निरोधक गोलियों के उपयोग की वृद्धि के अनुसार कुछ खराबियां भी परिलक्षित होने लगेगीं। जो महिलाएं संयुक्त रूप से गर्भ निरोधक गोलियों का उपयोग कर रही है कम मात्रा में ली गई दवाओं से हार्ट अटैक अथवा हार्ट स्ट्रोक का खतरा कम हो सकता है। 5 वर्ष से अधिक खाने वाली गर्भ निरोधक गोलियों का उपयोग गर्भाशय ग्रीवा को कैन्सर के बढ़ जाने की सम्भावना बनी रहती है। वह महिलायें जो गर्भ निरोधक (खाने वाली) गोली का प्रयोग एक वर्ष से अधिक समय तक करें, उनको चाहिए कि वह प्रत्येक वर्ष अपनी जाँच करा लें। इस टेस्ट से गर्भाशय में कैन्सर से उत्पन्न होने वाले खतरे की संभावना का पता लगा सकेंगी। 35 से 65 वर्ष की महिलाओं में स्तन कैन्सर की भी सम्भावना रहती है यह भी अधिक नहीं बढ़ पायेगा। वह महिला जिसकी आयु 35 वर्ष से बड़ी है उसमें हार्ट अटैक बीमारी का खतरा अधिक रहता हैं। ऐसी महिलाएं खाने वाली गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग न करें।
आपात कालीन गर्भ निरोधक वह विधि है जिसे प्रात: गोली के उपरांत के नाम से ज्यादा जानी जाती है। यह गोली में हार्मोन्स या ड्रग जो हार्मोन की भांति कार्य करती है यह 72 घन्टे के बाद असुरक्षित संर्सग के उपरान्त दी जाती है। बहुधा किसी अवसर पर निरोधक विधि फेल होने के कारण आपात गर्भ निरोधक का प्रयोग होता है जिससे एक यौन संसर्ग असुरक्षित ढंग से किया गया हो। यदि ओ बूल्यूशन के निकट है तो 8 प्रतिशत बिना गर्भ-निरोधक उपकरण के भी प्रभावकारी होती है।
6. यौगिक खाने वाले गर्भ निरोधक - दो गोलिया योगिक खाने वाले गर्भ निरोधक के प्रयोग में है। यह दो गोलियां 72 घन्टे के असुरक्षित गर्भ निरोधक की स्थिति में प्रयोग में लायी जाती इसके 12 घण्टे उपरान्त दो गोलिया ली जाती है। अन्तिम प्रकरण कम प्रभावशाली होता है अपेक्षाकृत अन्य दोनों के अधिक से अधिक 50 प्रतिशत महिलाएं को मित्तली एवं 20 प्रतिशत में यह दवायें’’ मितली एवं वमन को रोकने हेतु ली जा सकती है।निरोध का प्रयोग उसके प्रगतिशाली होने के लिए सही ढंग से किया जाए और उसी समय उसकी सही स्थिति रखने के लिए उसमें ½ इंच लगभग ¼ सेमी. ठीक इसलिए बना है कि शुक्राणुओं को सम्बंध करने के लिए किया जाता है।
बहुत से निरोध इकट्ठा करने हेतु रिव बनाते है। वीर्य स्खलन के बाद जब लिंग बाहर निकाल लिया जाता है तब भी निरोध उस पर चढ़ा रहता है इस प्रकार शुक्राणु महिला के योनी मार्ग से प्रवेश नहीं कर पाते यदि स्खलित वीर्य बाहर निकल जायेगा तो वह यौन मार्ग से प्रवेश कर गर्भाशय में पहँुच कर गर्भाधन कर सकता हैंं। प्रत्येक संभोग के समय नया निरोध प्रयोग करना चाहिए निरोध जिसकी विश्वसनीयता अनिश्चित कर लो तो उसका प्रयोग करें।
9. डायाफ्रामा - यह गुम्बद की तरह एक रबर की टोपी है जो परिवर्तन होने वाली रफ होती है। जो योनि में प्रवेश कराकर गर्भाशय पुरूष पर फिट कर दी जाती है इस प्रकार डायाफ्राम शुक्राणुओं को गर्भाशय में प्रवेश करने से रोकते है। ड्रायाफ्रामा भिन्न-भिन्न नाम के होते हैं जिसे कि स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से चिकित्सक से परामर्श लेकर ही लगाना चाहिये।जो महिलाओं को इसके प्रयोग के लिए प्रशिक्षित करता है। यदि एक महिला का वजन 10 पौण्ड से अपेक्षाकृत कम या ज्यादा प्राप्त करती है और समय एक साल से अधिक हो जाती है या महिला के गर्भपात या बच्चा पैदा हो जाता है। तो उसे पुन: लगवाने की जाँच कराकर किया जाए।
डायाफ्राम बिना किसी असुविधा के न तो प्रयोग करने वाली महिला को या उसके पति को उसके होने का एहसास कराता है। गर्भनिरोध क्रीम या जेली (which kills sperm) लगाकर ड्रायाफ्राम को प्रवेश किया जाए तो अधिक असर कारक होता है। सहवास के समय लगा ड्रायाफ्राम 8 घंटे के उपरांत निकल लेना चाहिये परन्तु इसके निकालने की अवधि 24 घंटे से अधिक न हो यदि ड्रायाफ्राम लगे रहने के समय सहवास की परिस्थिति पूर्ति है तो ड्रायाफ्राम में पुन: जेलीक्रीम लगाना आवश्यक है जिससे शुक्राणु मर सकें। महिला को यह जाँच करते रहना चाहिए कि कहीं डायाफ्राम फट तो नहीं गया है डायाफ्राम के प्रयोग के बाद भी 6 प्रतिशत और पूरा प्रयोग करने पर 16 प्रतिशत विशेष प्रकार के स्थितियों में मर्मित हो जाती है।
10. सरवाईकल कैप - यह डायाफ्राम की तरह ही छोटी एवं अधिक करी हुयी होती है जो सर्विन्स पर कसी हुयी होती है। यह संयुक्त राष्ट्र में उपलब्ध नहीं होती। यह किसी चिकित्सक द्वारा लगायी जाती है। इस कैप पर भी सहवास के पहले जेली क्रीम का प्रयोग करना ही आवश्यक है। सहवास के उपरांत 3 से 8 घंटे के बाद ही निकालना चाहिये। इसके प्रयोग से 9 प्रतिशत एवं विशिष्ट प्रयोग से 18 प्रतिशत गर्भाधान रोके जा सकते हैं। उसके अतिरिक्त गर्भाशय में समान्य कैप में लगाकर कॉन्ट्रोसेप्टिव स्पंज का प्रयोग किया जाता है। यह सभी काउन्टरों पर सुविधा से उपलब्ध हो जाता है। इसको लगाने हेतु स्वास्थ्य चिकित्सक की आवश्यकता नहीं होती है।एक महिला द्वारा सहवास के 24 घन्टे पूर्व इसे यौनि में रख सकती है। इससे कई बार सहवास करने पर भी कोई विपरीत प्रभाव नही पड़ता। sponge को अन्तिम सहवास के उपरांत 6 घंटे बाहर छोड़ा जा सकता है। परन्तु 30 घन्टे से अधिक समय बाहर नहीं रखना चाहिये उसके एक बार प्रवेश कराने पर पति को यह आभास नहीं होता परन्तु यह डायाफ्राम से अधिक प्रभावशाली होता है।
11. शुक्राणु नाशक सर्वाइकल कैप - शुक्राणु नाशक वह योगिक हो जिसके सम्पर्क में आने से शुक्राणु नष्ट हो जाते हैं। यह यौनि में प्रयोग हेतु फोम (युक्त) क्रीम, जेली एवं अन्य सहायक जो सहवास के पूर्व यौनि मार्ग से रखे जाते हैं। इन निरोधकों द्वारा शरीर में शुक्राणु के पहुँचने में बाधा डालते हैं। एक प्रकार बनाये गये उपकरण अन्य उपकरणों की तुलना में अधिक कारगर है। शुक्राणु नाशक का सर्वोतम प्रयोग एक बाँध की भाँति कंडोम का डायाफ्रामा में उपयोग होते है।- शुक्राणु को निश्चित अवस्था में मार कर।
- शुक्राणुओं को डिम्व से मिलने से रोकना।
- निश्चित डिम्व के गर्भाशय में स्थापित होने से रोकना।
इन संरचना की समय गर्भाशय साधारणत: परिजीवियों से संक्रमित हो जाता है, परन्तु यह संक्रमण कभी भी परिमाण दे पाता है। आई.यू.डी. का तार अधिक परिजीवियाँ का प्रवेश नहीं होने देते। एक आई.यू.डी. गर्भाशय के संक्रमण का डर केवल प्रथम माह में जब इसका प्रयोग होता है, की सम्भावना रहती है।
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