प्रधानमंत्री की शक्तियां एवं कार्य का वर्णन

भारत का प्रधानमंत्री मंत्रि-मण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला (Key-stone of the Cabinet Arch) हैं। इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री की भांति उसको इतनी व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं कि उसको देश में शासन प्रबन्ध का केन्द्र कहा जा सकता है।

प्रधानमंत्री की शक्तियां एवं कार्य

देश के शासन में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं, जिसकों इतनी शक्तियाँ प्राप्त हो। प्रधानमंत्री की शक्तियां के कार्य तथा शक्तियाँ हैं-

1. मंत्रि-परिषद् का निर्माण

मंत्रि-परिषद् के निर्माण में प्रधानमंत्री को केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है। संवैधानिक दृष्टि से भी राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर करता है। अपनी नियुक्ति के पश्चात् प्रधानमंत्री का पहला कार्य यह होता है कि वह अपने साथी मन्त्रियों को चुने। वह मन्त्रियों के नामों की सूची तैयार करता है तथा नियुक्ति करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजता है। मंत्रि-परिषद् के निर्माण में प्रधानमंत्री को पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त होती है। वही ही इस बात का निर्णय करता है कि मंत्रि-परिषद् में कितने सदस्य होंगे, उनमें विभिन्न प्रकार के मिन्न्त्रयों की संख्या क्या होगा तथा कौन-कौन से व्यक्ति मंत्रि-परिषद् में लिये जाएँगे। इस बारे में राष्ट्रपति अपनी रुचि व अरुचि के अनुसार प्रधानमंत्री को किसी व्यक्ति को मंत्रि-परिषद् में शामिल करने या न करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। उसका अपना दल भी इस बारे में उसे निर्देश देने की कोशिश नहीं करता है। 

प्रधानमंत्री का निर्णय अन्तिम निर्णय होता है। परन्तु व्यवहार में मन्त्रिमण्डल का निर्माण करते समय प्रधानमंत्री को कई बातें ध्यान में रखनी पड़ती है। उसे अपने दल के सभी प्रमुख व प्रभावशाली सदस्यों को मंत्रि-परिषद् में शामिल करना पड़ता है। उसे यह भी देखना होता है कि मंत्रि-परिषद् में सभी राज्यों, धर्मों, सम्प्रदायों आदि को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो। कई बार मंत्रि-परिषद् में योग्य और अनुभवी प्रशासक भी शामिल किए जाते हैं। वह नवयुवक वर्ग के सदस्यों को भी कुछ स्थान देता है। ताकि उन्हें प्रशिक्षण देकर भविष्य में शासन को संभालने के योग्य बनाया जा सके।

2. विभागों का बंटवारा

मंत्रियों की नियुक्ति के पश्चात् प्रधानमंत्री उनमें प्रशासकीय विभागों को बाँटता है। वह ही यह निर्णय करता है कि किस मन्त्री को किस विभाग का अध्यक्ष बनाये जाए, कौन-सा मन्त्री केबिनेट मन्त्री हो, कौन-सा राज्य मन्त्री व कौन-सा उपमन्त्री। वह यह देखता है कि कौन-सा मन्त्री किस विभाग को कुशलतापूर्वक चला सकता है। विभागों का बँटवारा करते समय वह अपने दल के वरिष्ठ सदस्यों को सन्तुष्ट करने का यत्न करता है, उनके राजनैतिक महत्व को ध्यान में रखता है व विभिन्न राज्यों, प्रदेशों व सम्प्रदायों की ओर विशेष ध्यान देता है, परन्तु एक लोकप्रिय व शक्तिशाली प्रधानमंत्री अपनी इच्छानुसार मंत्रि-परिषद् की बनावट निश्चित करता है।

3. मंत्रियों को हटाने की शक्ति

सैद्वान्तिक रूप में मन्त्री राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त पद पर बने रहते हैं परन्तु राष्ट्रपति को पद से अलग करने का निर्णय प्रधानमंत्री के कहने पर ही होता है। अत: व्यवहार में मंत्री प्रधानमंत्री के प्रसाद-पर्यन्त अपने पद पर रहते हैं। अन्यथा प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को कहकर उसे पदच्युत करवा सकता है। वास्तव में इस बात की नौबत नहीं आती।

4. लोक सभा का नेतृत्व करता है

इंग्लैण्ड की भाँति भारत का प्रधनमंत्री लोक सभा का नेतृत्व करता है। वह सदन में सरकार की नीति से संबंधित महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ करता है और प्रश्नों का उत्तर देता है। वह लोक सभा में वाद-विवाद को आरंभ करता है तथा मंत्रियों का सदन में आलोचना से सुरक्षा करता है। वह अपने दल के सदस्यों को सचेतक द्वारा आदेश तथा निर्देश भेजता है तथा उन पर निगरानी और नियन्त्रण रखता है। सदन के वैधानिक कार्यों पर उसका विशेष प्रभाव होता है। वह स्पीकर के साथ मिलकर सदन का कार्य करता है तथा सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए स्पीकर की सहायता करता है।

5. राष्ट्रपति तथा मन्त्रिमण्डल में कड़ी का काम करता है

प्रधानमंत्री राष्ट्रपति तथा मन्त्रिमण्डल के मध्य कड़ी का काम करता है। वह राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल के द्वारा किए निर्णय की सूचना देता है तथा राष्ट्रपति के विचार मन्त्रिमण्डल के समक्ष रखता है। राष्ट्रपति उसे किसी एक मन्त्री द्वारा व्यक्तिगत रूप में किए गये निर्णयों पर मन्त्रिमण्डल का निर्णय लेने के लिए कह सकता है। वह राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। यदि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के परामर्श से सहमत न हो तो भी उसे परामर्श मानना पड़ता है।

6. केबिनेट का नेतृत्व

प्रधानमंत्री केबिनेट का नेता होता है। वह केबिनेट की बैठकों की प्रधानता करता है। राष्ट्रपति केबिनेट की कार्यवाही में भाग नहीं लेता। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में केबिनेट सभी कार्य करती है। वही केबिनेट की बैठक बुलाता है, उसमें विचार किए जाने वाले विषयों की सूची बनाता है, केबिनेट में विभिन्न विषयों पर बहस को संचालित करता है तथा अगर उचित समझे तो उन पर मतदान करवाता है। अधिकतर किसी नीति पर सहमति तभी होती है जब उस नीति को प्रधानमंत्री की सहमति प्राप्त हो जाए। संक्षिप्त में हम कह सकते हैं कि केबिनेट की संपूर्ण कार्यवाही प्रधानमंत्री की देख-रेख में होती है।

7. विभिन्न विभागों में एक कड़ी

केबिनेट का प्रधान होने के नाते वह एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। अत: विभिन्न विभागों में उत्पन्न होने वाली समस्याओं, झगड़ों तथा मतभेदों को इस तरह सुलझाना जिससे प्रशासिक कुशलता बनी रही। कुशल प्रशासन के लिये ये आवश्यक है कि सरकार के विभिन्न विभागों में आपसी सहयोग तथा साधनों का समन्वय हो। ऐसे उद्देश्य के लिए प्रधानमंत्री विभिन्न विभागों में कड़ी की तरह कार्य करता है। वह अन्तर विभागीय मतभेदों को दूर करने के लिए मध्यस्थ तथा निर्णायक के रूप में कार्य करता है।

8. राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार

प्रधानमंत्री राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार है। राष्ट्रपति प्रत्येक मामले पर प्रधानमंत्री की सलाह लेता है और उसके द्वारा दी गई सलाह के अनुसार ही कार्य करता है, वह उसकी सलाह को मानने के लिए बाध्य है। राष्ट्रपति को प्रशासन के बारे में किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त करनी हो, तो वह किसी अन्य मन्त्री से सीधा बात न करके प्रधानमंत्री से ही बात करता है तथासूचना प्राप्त करता है।

9. राष्ट्र का नेता

प्रधानमंत्री संसद में बहुमत प्राप्त राजनैतिक दल का नेता ही नहीं, राष्ट्र का भी नेता है। वह अपनी उच्च पदवी के कारण राष्ट्र का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी बन जाता है। उसे वह गौरव प्राप्त होता है जो किसी अन्य मंत्री को प्राप्त नहीं होता। वह राष्ट्र का एकमात्र प्रतिनिधि है। संकट के समय सारा राष्ट्र उसके नेतृत्व को स्वीकार करता है। 

संकटकालीन समस्याओं का सामना करने के लिए विरोधी दल भी उसे अपना पूर्ण सहयोग देते हैं। दूसरे देश में प्रधानमंत्री का सम्मान एक राष्ट्र के नेता के रूप में किया जाता है।

10. दल का नेता

प्रधानमंत्री संसद में बहुमत प्राप्त राजनैतिक दल का नेता ही नहीं होता, वह अपने दल का सर्वोच्च नेता होता है। उसका समस्त दल उसके सहारे ही चलता है। आम चुनाव वास्तव में प्रधानमंत्री का ही चुनाव होता है। दल को भली-भांति संगठित करने, दल की नीतियाँ निर्धारित करने व कार्यक्रम तैयार करने, चुनाव संबंधी प्रचार करने में प्रधानमंत्री का प्रमुख हाथ होता है। चुनाव के समय जितने भाषण देता है तथा उनका लोगों पर जितना प्रभाव पड़ता है, वैसा दल के किसी और नेता का नहीं होता। 

आम चुनाव में उसके दल की विजय वास्तव में प्रधानमंत्री की ही विजय होती है।

11. सरकार की योग्यता के लिए उत्तरदायी

प्रधानमंत्री को सदा यह ध्यान रखना पड़ता है कि उसकी सरकार तथा पार्टी की देश में साख बनी रहे। इस उत्तरदायित्व को निभाने के लिए वह अपने मन्त्रिमण्डल में मौके-मौके पर परिवर्तन भी कर सकता है। नवीन मन्त्रियों को नियुक्त कर सकता है तथा यदि ऐसा अनुभव करे कि किसी विशेष मन्त्री का मन्त्रिमण्डल में होने सरकार के हित में अथवा भाव में नहीं हैं तो वह ऐसे मन्त्री को पद से हटा सकता है। 

लास्की के शब्दों में, फ्प्रधानमंत्री जैसे भी चाहे अपनी मण्डली में परिवर्तन कर सकता है। (“He can shuffle his pack whenever he so likes”) डॉ. अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था, प्रधानमंत्री केबिनेट रूपी मेहराब का बीच वाला स्तम्भ है, जब तक हम उसे वैधानिक आधार पर मन्त्रिमण्डल के सदस्यों को नियुक्ति करने तथा पद्च्युत करने का अधिकार नहीं देते, सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्वान्त लागू नहीं किया जा सकता।

12. सरकार का मुखिया

भारत में संसदीय सरकार है जिसमें राष्ट्र का मुखिया राष्ट्रपति है तथा सरकार का वास्तविक मुखिया प्रधानमंत्री है। राष्ट्रपति की कार्यपालिका, न्यायपालिका, आपातकालीन आदि समस्त शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री करता है तथा राष्ट्रपति केवल परामर्श अथवा उत्साह दे सकता है और अवसर पड़ने पर चेतावनी भी दे सकता है। (“The President like the British Crown can advise, encourage or warn.”) वह गृह तथा विदेशी नीति का निर्माण करता है। वह समस्त महान् नीतियों की मन्त्रिमण्डल की ओर से घोषणा भी करता है। बजट भी उसकी देखरेख में तैयार होता है। 

संवैधानिक रूप में उफँचे पदों पर नियुक्तियाँ करने तथा उपाधियाँ (Titles) देने का अधिकार राष्ट्रपति को है, परन्तु प्रयोग में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सम्मति के बिना न कोई नियुक्ति करता है तथा न ही कोई उपाधि देता है। इन उच्च अधिकारों का प्रयोग प्रधानमंत्री द्वारा ही किया जाता है।

13. विदेशी नीति में सरकार का मुख्य प्रवक्ता

प्रधानमंत्री विदेशी मामलों में विशेष रुचि रखता है तथा उन पर नियंत्रण रखता है। विदेशी नीति के निर्माण में उसका महत्त्वपूर्ण भाग होता है। वहीं विदेशी मामलों में संबंधी महत्त्वपूर्ण घोषणाएं करता है। वैसे विदेशी मामलों का विभाग विदेश मन्त्री के अधीन होता है, परन्तु विदेश मन्त्री प्रधानमंत्री की सलाह के बिना कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं करता। विदेश मन्त्री उसका अत्यन्त विश्वास प्राप्त मन्त्री होता है। जितना गहरा संबंध प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री में होता है, उतना शायद ही प्रधानमंत्री और किसी अन्य मंत्री में हो।

14. लोक सभा को भंग करवाने का अधिकार

राष्ट्रपति लोक सभा को प्रधानमंत्री की सलाह से ही भंग करता है। परन्तु यदि राष्ट्रपति यह समझे कि लोक सभा को भंग करना राष्ट्र के हित में नहीं है तो वह प्रधानमंत्री की सलाह को मानने से इनकार कर सकता है। दिसम्बर 1970 में राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने प्रधानमंत्री की सलाह पर लोक सभा भंग की। 18 जून, 1977 को राष्ट्रपति श्री फखरूद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी की सलाह पर लोक सभा भंग की। 22 अगस्त, 1979 को राष्ट्रपति संजीवा रेड्डी ने प्रधानमंत्री चौधरी चरण ¯सह की सलाह पर लोक सभा को भंग किया, जिस पर जनता पार्टी के द्वारा राष्ट्रपति के इस कार्य की कड़ी आलोचना की गई।

जनता पार्टी का कहना था कि राष्ट्रपति के इस कार्य की कड़ी आलोचना की गई। जनता पार्टी का कहना था कि राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री चौ. चरण ¯सह की सलाह मानने से इनकार करना चाहिए था और जनता पार्टी के नेता जगजीवन राम को सरकार बनाने का निमन्त्रण देना चाहिए।

15. प्रधानमंत्री राष्ट्रमंडल के देशों से अच्छे संबंध स्थापित करता है

भारत राष्ट्रमंडल का सदस्य है, जिस कारण राष्ट्रमंडल के देशों के साथ मैत्री पूर्ण संबंध स्थापित करना प्रधानमंत्री का कार्य है। प्रधानमंत्री राष्ट्रमंडल की बैठकों में भाग लेता है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई राष्ट्रमंडल की बैठकों में भाग लेते थे। 

इन्होंने राष्ट्रमंडल की बैठक जो इंग्लैण्ड में 8 जून, 1977 को हुई थी, में भाग लिया था।

16. प्रधानमंत्री और सुरक्षा

राष्ट्र की सुरक्षा का उत्तरदायित्व प्रधानमंत्री पर ही होता है। इस कारण उसका रक्षा विभाग पर पूरा नियन्त्रण होता है। राष्ट्र की सुरक्षा के लिए जो भी आवश्यक व्यवस्थाएँ होती हैं, उनका वह पूरी तरह से ध्यान रखता है। राष्ट्र की सुरक्षा और विदेश नीति में घनिष्ठ संबंध होता है और वह दोनों ही विभागों के कार्यों के संबंध में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। देश की हार-जीत उसी की है। उदाहरण के लिए, 1965 के युद्व में पाकिस्तान की विजय का श्रेय श्री लाल बहादुर शास्त्री को मिला। 

प्रधानमंत्री राष्ट्र की सुरक्षा के लिए केबिनेट से सलाह लेकर यह निर्णय करता है कि किस राष्ट्र से सन्धि की जाए, किस राष्ट्र से किस प्रकार के अस्त्र लिए जाएँ और संकट के समय किस राष्ट्र की सहायता ली जाए।

16. प्रधानमंत्री का अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण

प्रधानमंत्री का देश की अर्थव्यवस्था पर पूरा नियंत्रण होता है। अर्थव्यवस्था की विपफलता का उत्तरदायित्व प्रधानमंत्री पर ही होता है। जुलाई 1969 से जून 1970 तक वित्त विभाग श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने संभाला था।

17. सरकार का प्रमुख प्रवक्ता

संसद तथा जनता के सामने मन्त्रिमण्डल की नीति और निर्णयों की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। वह सभी प्रशासकीय विभागों की जानकारी रखता है, और जब कभी कोई मन्त्री संकट में हो, तो उसकी सहायता करके मन्त्रिमण्डल रूपी नौका को उफबने से बचाने का कार्य प्रधानमंत्री ही करता है।

18. प्रधानमंत्री तथा जनमत

प्रधानमंत्री का जनता से विशेष संबंध होता है। प्रधानमंत्री की भूमिका, कार्यों तथा नीति का प्रभाव जनता पर पड़ता है और जनमत के समर्थन का प्रभाव प्रधानमंत्री पर पड़ता है। संचार के साधनों जैसे रेडियो, टेलीविजन आदि पर सरकार का ही नियन्त्रण होता है। इन साधनों के द्वारा प्रधानमंत्री जनमत को अपने पक्ष में कर लेता है। इससे उसकी शक्ति दृढ़ होती है। नेहरू तथा इन्दिरा गाँधी ने जनमत अपने पक्ष में करके महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

19. राज्यों के कार्यों की समीक्षा

प्रधानमंत्री को राज्य सरकारों के काम-काज की समीक्षा करने का अधिकार है। प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने जुलाई, 1983 को मध्य प्रदेश के विभिन्न भागों में कार्यों की समीक्षा की।

20. प्रधानमंत्री की आपातकालीन शक्तियाँ

भारतीय संविधान के अन्तर्गत धारा 352, 356, 360 के द्वारा भारत के राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार ही करता है। जैसे अक्तूबर 1962 में चीन के आक्रमण के समय 3 दिसम्बर, 1971 को पाकिस्तान के आक्रमण के समय तथा 26 जून, 1975 को आन्तरिक व्यवस्था के खराब होने पर अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की सलाह से ही आपातकालीन स्थिति की घोषणा की थी। इसी प्रकार अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राज्यों में राष्ट्रपति शासन भी प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार लगाया जाता है। 

44 वें संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल की घोषणा तभी कर सकता है, यदि मन्त्रिमण्डल आपातकाल की घोषणा करने की लिखित सलाह दे। 

अप्रैल, 1977 को कार्यवाहक राष्ट्रपति बी. डी. जत्ती ने प्रधानमंत्री की सलाह पर नौ विधानसभाओं को भंग किया।

21. नियुक्तियाँ करने का अधिकार

राष्ट्रपति बड़े-बड़े अधिकारियों की नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री की सलाह व स्वीकृति से करता है। दूसरे देशों में भेजे जाने वाले राजदूत, राज्यों के गवर्नर, अटार्नी जनरल (Attorney General), कम्ट्रोलर और ऑडिटर जनरल (Comptroller & Auditor General), संघीय लोक सेवा आयोग व निर्वाचन आयोग आदि के अध्यक्षों व सदस्यों की नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री की सिफारिश पर ही की जाती हैं। राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में साहित्य, कला, विज्ञान व सामाजिक सेवा के क्षेत्रों में प्रतिष्ठा प्राप्त जो 12 व्यक्ति नामजद किये जाते हैं, वह प्रधानमंत्री की सलाह से ही नामजद किए जाते हैं।

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