समाज कार्य का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं उद्देश्य

समाज कार्य एक सहायातामूलक कार्य है जो वैज्ञानिक ज्ञान, प्राविधिक निपुणताओं तथा मानवदर्शन का प्रयोग करते हुए व्यक्तियों की एक व्यक्ति, समूह के सदस्य अथवा समुदाय के निवासी के रूप में उनकी मनो-सामाजिक समस्याओं का अध्ययन एवं निदान करने के पश्चात् परामर्श, पर्यावरण में परिवर्तन तथा आवश्यक सेवाओं के माध्यम से सहायता प्रदान करता है ताकि वे समस्याओं से छुटकारा पा सकें, सामाजिक क्रिया में प्रभावपूर्ण रूप से भाग ले सकें, लोगों के साथ संतोषजनक समायोजन कर सकें, अपने जीवन में सुख एवं शान्ति का अनुभव कर सकें, तथा अपनी सहायता स्वयं करने के योग्य बन सकें।

समाज कार्य का अर्थ

हमारे देश में गैर शासकीय संगठनों का निर्बलों और असहायों की सहायता करने तथा विकास संबंधी उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने का स्वर्णिम इतिहास रहा है। वर्तमान में शहरी व ग्रामीण लोगों की इन संगठनों के प्रति बढती रूचि व विश्वसनीयता के कारण इन संस्थाओं की संख्याओं में लगातार वृद्धि हो रही है। चाहे इन्हें स्वैच्छिक संगठन कहा जाए अथवा गैर सरकारी संगठन या स्वयं सेवी संगठन यह निर्विवाद सत्य है कि विकास के कई क्षेत्रों में इन संस्थाओं ने अति विशिष्ट भूमिका निभाई है। बात चाहे शिक्षा, स्वास्थ्य, जनसंख्या नियंत्रण, पर्यावरण संरक्षण, आय व रोजगार सृजन की हो या फिर महिला - बाल या विकलांगों के कल्याण की, अथवा आदिवासी या पिछड़े वर्गों के कल्याण की, इन संस्थाओं ने समाज व देश की सेवा हेतु सक्रिय योगदान दिया है। इसी कारण अब प्रशासन और सरकारी तंत्र भी इस तथ्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य करता है । विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में सरकारी तंत्र की अपेक्षा गैर सरकारी तंत्र अधिक सफल और प्रभावी है। गैर शासकीय संगठन के माध्यम से जन सहभागिता और जन सहयोग को जुटा कर अपेक्षाकृत कम खर्चे में ही सभी कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिए जाते हैं। यही कारण है कि विगत कुछ वर्षों से विशेष कर सातवीं पंचवर्षीय योजनाकाल से लगातार गैर शासकीय संगठन की महत्ता को स्वीकार कर उसे अधिक सम्मान, प्रतिष्ठा और जिम्मेदारी के अधिक अवसर प्रदान करने हेतु पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं।

भारत ने सातवीं पंचवर्षीय योजना काल से गैर शासकीय संगठनों को अच्छी खासी सहायता राशि देकर इनको पल्लवित करने का प्रयास किया है और विशेष रूप से ग्रामीण विकास को गति प्रदान करने के लिए इनका सहयोग प्राप्त करने की कोशिश की जा रही है।

गैर शासकीय संगठन के संबंध में यह यथार्थ है कि वर्तमान में चलाई जा रही संस्थाएँ और पूर्व की संस्थाओं में बुनियादी तौर पर बहुत फर्क है। एक समय था जब गैर सरकारी या स्वयं सेवी संगठन कुछ सम्पन्न लोगों द्वारा दिए चन्दे या सहायता के द्वारा चला करते थे और इनका चलाने वाले लोग संत-महात्मा या निःस्वार्थ भाव से समर्पित व्यक्ति होते थे लेकिन इन संस्थाओं को चलाने वाले कई जाने-माने सम्पन्न लोगों से भी ज्यादा हैसियत के थे।

आज गैर शासकीय संगठन में शासकीय संगठन अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं और विकास को नइ ऊँचाईयों तक पहुँचा रहे हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सामाजिक विकास में उपरोक्त संगठनों का महत्वपूर्ण योगदान है। 

मनोसामाजिक समस्याओं के निदान के लिए जो वैज्ञानिक विधि अपनाई जाती है। उसे समाज कार्य कहते है। आधुनिक समाज की समस्याओं के कारण इस विकास हुआ है। लेकिन इस रूप में उदय से पूर्व इसका स्वरूप दान, धर्म तथा परोपकार के लिए की जाने वाली सेवाओं से जुडा था। अतः समाज कार्य आधुनिक अर्थ को समझने के लिए इसके ऐतिहासिक विकास को समझना अति आवश्यक है।

समाज कार्य की परिभाषा

प्रो. राजाराम शास्त्री के अनुसार "मनोसामाजिक समस्याओं के निदान और समाधान का जो नवीनतम तरीका विकसित हुआ है। वह समाज कार्य है।"

एडरसन के अनुसार "समाज कार्य लोगों के लिए व्यावसायिक सेवा है जिसका उद्देश्य नीजि तथा सामुहिक रूप में उनकी सहायता करता है। ताकि वे अपनी इच्छाओं एवं योग्यताओं के अनुसार तथा सामाजिक इच्छाओं और योग्याताओं के अनुरूप संतोषप्रद संबंध और जीवन स्तर प्राप्त कर सके ।

फ्रीडलैण्डर के अनुसार, ‘‘समाज कार्य वैज्ञानिक ज्ञान एवं मानवीय सम्बन्धों में निपुणता पर आधारित एक व्यावसायिक सेवा है जो व्यक्तियों की अकेले अथवा समूहों में सामाजिक एवं वैयक्तिक संतोष एवं स्वतन्त्रता प्राप्त करने में सहायता करती हैं।’’

इण्डियन कान्फ्रेन्स ऑफ सोशल वर्क के मत में, ‘‘समाज कार्य मानवतावादी दर्शन, वैज्ञानिक ज्ञान एवं प्राविधिक निपुणताओं पर आधरित व्यक्तियों अथवा समूहों अथवा समुदाय को एक सुखी एवं सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करने में सहायता प्रदान करने हेतु एक कल्याणकारी क्रिया है।’’

चेनी के अनुसार, ‘‘समाज कार्य के अन्तर्गत ऐसी आवश्यकताओं जो सामाजिक सम्बन्धों से सम्बन्धित है तथा जो वैज्ञानिक ज्ञान एवं ढंगों का उपयोग करती हैं, के सन्दर्भ में लाभों का प्रदान करने के सभी ऐच्छिक प्रयास सम्मिलित हैं।’’

फिंक के मत में, ‘‘समाज कार्य अकेले अथवा समूहों में व्यक्तियों को वर्तमान अथवा भावी ऐसी सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक बाधाओं जो समाज में पूर्ण अथवा प्रभावपूर्ण सहभागिता को रोकती हैं अथवा रोक सकती है, के विरूद्ध सहायता प्रदान करने हेतु प्ररचित सेवाओं का प्रावधान है।’’

सुशील चन्द्र के मत में, ‘‘समाज कार्य जीवन के मानदण्डों को उन्नत बनाने तथा समाज के सामाजिक विकास की किसी स्थिति में व्यक्ति, परिवार, तथा समूह के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक कल्याण हेतु सामाजिक नीति के कार्यान्वयन में सार्वजनिक अथवा निजी प्रयास द्वारा की गयी गतिशील क्रिया है।’’

समाज कार्य की विशेषताएं

समाज कार्य की प्रमुख विशेषताएं है-

  1. समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा है। इसमें विविध प्रकार के वैज्ञानिक ज्ञान, प्राविधिक निपुणताओं तथा दार्शनिक मूल्यों का प्रयोग किया जाता है।
  2. समाज कार्य सहायता समस्याओं का मनो-सामाजिक अध्ययन तथा निदानात्मक मूल्यांकन करने के पश्चात् प्रदान की जाती है।
  3. समाजकार्य समस्याग्रस्त व्यक्तियों को सहायता प्रदान करने का कार्य है। ये समस्याएँ मनो-सामाजिक होती है।
  4. समाज कार्य सहायता किसी अकेले व्यक्ति अथवा समूह अथवा समुदाय को प्रदान की जा सकती है।
  5. समाज कार्य सहायता का अन्तिम उद्देश्य समस्याग्रस्त सेवार्थी में आत्म सहायता करने की क्षमता उत्पन्न करना होता है।
  6. समाज कार्य सहायता प्रदान करते समय सेवार्थी की व्यक्तित्व सम्बन्धी संरचना एवं सामाजिक व्यवस्था दोनों में परिवर्तन लाते हुए कार्य किया जाता है। समाज कार्य के उद्देश्य उद्देश्य हमें दिशा बोध कराते है।

समाज कार्य के उद्देश्य

समाज कार्य कर्ताओं को सेवायें प्रदान करते समय दिशा निर्देशन करते हैं इसलिए इनकी जानकारी आवश्यक है। ब्राउन ने समाज कार्य के चार उद्देश्यों का उल्लेख किया है:

  1. भौतिक सहायता प्रदान करना,
  2. समायोजन स्थापित करने में सहायता देना,
  3. मानसिक समस्याओं का समाधान करना तथा
  4. निर्बल वर्ग के लोगों को अच्छे जीवन स्तर की सुविधायें उपलब्ध कराना।

फ्रीडलैण्डर ने दुखदायी सामाजिक दशाओं में परिवर्तन, रचनात्मक शक्तियों का विकास तथा प्रजातांत्रिक सिद्धान्तों एवं मानवोचित व्यवहारों के अवसरों की प्राप्ति में सहायता प्रदान करने के तीन उद्देश्यों का उल्लेख किया है। इस प्रकार विशिष्ट रूप से समाज कार्य के उद्देश्य है:

  1. मनो-सामाजिक समस्याओं का समाधान करना।
  2. मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
  3. सामाजिक सम्बन्धों को सौहादर््रपूर्ण एवं मधुर बनाना।
  4. व्यक्तित्व में प्रजातांत्रिक मूल्यों का विकास करना।
  5. सामाजिक उन्नति एवं विकास के अवसर उपलब्ध कराना।
  6. लोगों में सामाजिक चेतना जागृत करना।
  7. पर्यावरण को स्वस्थ एवं विकास के अनुकूल बनाना।
  8. सामाजिक विकास हेतु सामाजिक व्यवस्था में अपेक्षित परिवर्तन करना।
  9. स्वस्थ जनमत तैयार करना।
  10. लोगों में सामंजस्य की क्षमता विकसित करना।
  11. लोगों की सामाजिक क्रिया को प्रभावपूर्ण बनाना।
  12. लोगों में आत्म सहायता करने की क्षमता विकसित करना।
  13. लोगों को उनके जीवन में सुख एवं शान्ति का अनुभव कराना।
  14. समाज में शान्ति एवं व्यवस्था को प्रोत्साहित करना।

समाज कार्य की मौलिक मान्यताएँ

समाज कार्य की मौलिक मान्यताएँ है :

  1. व्यक्ति एवं समाज अन्योन्याश्रित हैं। इसलिए व्यक्ति, समूह अथवा समुदाय के रूप में सेवार्थी की समस्या के समाधन हेतु सामाजिक दशाओं एवं परिस्थतियों का अवलोकन एवं मूल्यॉकन आवश्यक होता है।
  2. व्यक्ति तथा पर्यावरण के बीच होने वाली अन्त:क्रिया में आने वाली बाधाएँ समस्या का प्रमुख कारण होती है। इसलिए समाज कार्य की क्रियाविधि का केन्द्र बिन्दु अन्त:क्रियायें होती हैं।
  3. व्यवहार तथा दृष्टिकोण दोनों ही सामाजिक शक्तियों द्वारा प्रभावित किये जाते हैं। इसीलिए सामाजिक शक्तियों में हस्तक्षेप करना आवश्यक होता है।
  4. व्यक्ति एक सम्पूर्ण इकाई है। इसीलिए उससे सम्बन्धित आन्तरिक तथा बाºय दोनों प्रकार की दशाओं का अध्ययन आवश्यक होता है।
  5. समस्या के अनेक स्वरूप होते हैं। इसीलिए इनके समाधान हेतु विविध प्रकार के ढंगों की आवश्यकता होती है।

समाज कार्य के प्रमुख अंग

समाज कार्य के तीन प्रमुख अंग है-कार्यकर्ता, सेवार्थी तथा संस्था। समाज कार्य में कार्यकर्ता का स्थान प्रमुख होता है। यह कार्यकर्ता वैयक्तिक समाज कार्य, सामूहिक समाज कार्य अथवा सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता हो सकता है। कार्यकर्ता की भूमिका समस्या की प्रकृति पर निर्भर करती है। कार्यकर्ता को मानव व्यवहार का समुचित ज्ञान होता है। उसमें व्यक्ति, समूह तथा समुदाय की आवश्यकताओं, समस्याओं एवं व्यवहारों को समझने की क्षमता एवं योग्यता होती है। सेवार्थी एक व्यक्ति, समूह अथवा समुदाय हो सकता है। जब सेवार्थी एक व्यक्ति होता है तो अधिकांश समस्याएँ मनो-सामाजिक अथवा समायोजनात्मक अथवा सामाजिक क्रिया से सम्बन्धित होती है और कार्यकर्ता वैयक्तिक समाज कार्य प्रणाली का प्रयोग करते हुए सेवायें प्रदान करता है। 

जब सेवार्थी एक समूह होता है तो प्रमुख समस्यायें प्रजातांत्रिक मूल्यों तथा नेतृत्व के विकास, सामूहिक तनावों एवं संघर्षों के समाधान तथा मैत्री एवं सौहादर््रपूर्ण सम्बन्धों के विकास से सम्बन्धित होती है। जब सेवार्थी एक समूदाय होता है तो समुदाय की अनुभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ सामुदायिक एकीकरण का विकास करने का प्रयास किया जाता है। एक सामुदायिक संगठनकर्ता समुदाय में उपलब्ध संसाधनों एवं समुदाय की अनुभूत आवश्यकताओं के बीच प्राथमिकताओं के आधर पर सामंजस्य स्थापित करता है और लोगों को एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर कार्य करने के अवसर प्रदान करते हुए सहयोगपूर्ण मनोवृत्तियों, मूल्यों एवं व्यवहारों का विकास करता है।

समाज कार्य के कार्य

सामान्यतया समाज कार्य के चार प्रकार के कार्य है:

  1. उपचारात्मक- इन कार्यों के अन्तर्गत समस्या की प्रकृति के अनुसार चिकित्सीय सेवाओं स्वास्थ्य सेवाओं, मनोचिकित्सीय एवं मानसिक आरोग्य से सम्बन्धित सेवाओं को सम्मिलित किया जा सकता है।
  2. सुधारात्मक कार्य- इन कार्यों के अन्तर्गत व्यक्ति सुधार सेवाओं, सम्बन्ध सुधार सेवाओं तथा समाज सुधार सेवाओं को सम्मिलित किया जा सकता है।
  3. निरोधात्मक कार्य- इन कार्यों के अन्तर्गत सामाजिक नीतियों, सामाजिक परिनियमों, जन चेतना उत्पन्न करने से सम्बन्धित प्रौढ़ शिक्षा जैसे कार्यक्रमों का उल्लेख किया जा सकता है।
  4. विकासात्मक कार्य- इनके अन्तर्गत आर्थिक विकास के विविध प्रकार के कार्यक्रमों यथा उत्पादकता की दर में वृद्धि करने, राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने, आर्थिक लाभों का साम्यपूर्ण वितरण करने, उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करने इत्यादि। कार्यों को सम्मिलित किया जा सकता है।

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