सर्वोच्च न्यायालय का गठन, न्यायाधीशों की नियुक्ति, योग्यता, महाभियोग

सर्वोच्च न्यायालय का गठन

भारतीय संविधान की धारा 124 के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है। (“There shall be a Supreme Court of India.”) सर्वोच्च न्यायालय में प्रारंभ में एक मुख्य न्यायाधीश और 7 अन्य न्यायाधीश होते थे। 1957 में संसद में एक कानून पास हुआ, जिसके अनुसार मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर बाकी न्यायाधीशों की संख्या 7 से 10 कर दी गई। 

सन् 1960 में संसद ने अन्य न्यायाधीशों की संख्या 10 से बढ़ाकर 13 कर दी। परन्तु दिसम्बर, 1977 में संसद ने एक कानून पास किया, जिसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की अधिकतम संख्या 13 से बढ़ाकर 17 कर दी गई। 

अप्रैल, 1986 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 17 से 25 कर दी गई। अत: आजकल सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 25 अन्य न्यायाधीश हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का गठन 

सर्वोच्च न्यायालय के गठन के बारे में प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 124 (1) में दिया गया है। अनुच्छेद 124 (1) के तहत मूल संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीशों को मिलाकर कुल 8 रखी गयी। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या, क्षेत्राधिकार, न्यायाधीशों के वेतन एवं शर्तें निश्चित करने का अधिकार संसद को दिया गया है। 

इस शक्ति का प्रयोग कर संसद ने समय-समय पर न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में कुल न्यायाधीशों की संख्या 31 है।’’काम की अधिकता होने पर राष्ट्रपति तदर्थ न्यायाधीशों (Adhoc Judges) की भी नियुक्ति कर सकता है। 

तदर्थ न्यायाधीशों (Adhoc Judges) को भी यही वेतन तथा भत्ते मिलते हैं। आवश्यकता पड़ने पर किसी सेवा-निवृत्त (Retired) न्यायाधीश को काम करने के लिए भी कहा जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, परन्तु ऐसा करते समय राष्ट्रपति केवल स्वेच्छा से काम नहीं लेता। मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह लेना आवश्यक है। 

उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय मुख्य न्यायाधीश की सलाह लेनी आवश्यक होती है। तदर्थ न्यायाधीशों (Adhoc Judges) की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश की सलाह से की जाती है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति निष्पक्षता के आधार पर की जाती है। निष्पक्षता बनी रहे, उसके लिए न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची (Seniority List) बनी हुई है, ताकि जब कभी मुख्य न्यायाधीश का पद खाली हो तो जो भी वरिष्ठ न्यायाधीश हो, उसकी नियुक्ति की जा सके। परन्तु 15 अप्रैल, 1973 को जब मुख्य न्यायाधीश सीकरी रिटायर हुए तो वरिष्ठता के सिद्वान्त का उल्लंघन हुआ और न्यायाधीश ए. एन. राय को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके विरोध में न्यायाधीश शीलट (Shelet), हेगडे तथा ग्रोवर ने त्याग पत्र दे दिया। 

28 जनवरी, 1980 को कानून आयोग (Law Commission) की 80वीं रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्तुत की गई थी। इस रिपोर्ट में कानून आयोग ने यह सिफारिश की थी कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के लिए वरिष्ठता के सिद्वान्त (Principal of Seniority) को कठोरता के साथ लागू किया जाना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्यन्यायाधीश की नियुक्ति तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। इसके साथ ही साथ उच्च न्यायालय के मुख्यन्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्यन्यायाधीशों एवं सम्बन्धित राज्य के राज्यपाल की सलाह पर करता है। संविधान में मुख्यन्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कोर्इ पृथक प्रावधान नहीं है लेकिन मुख्यन्यायाधीश की नियुक्ति में केवल दो मामलों को छोड़कर सदैव वरिष्ठता के सिद्धान्त को अपनाया गया। 

1993 में उच्चतम न्यायालय ने बहुमत से यह निर्णय दिया कि भारत के मुख्यन्यायाधीश के पद पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश की ही नियुक्ति की जाएगी। उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का मुख्यन्यायाधीश, उच्चतम न्यायालयों के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से विचार विमर्श करने के पश्चात् ही राष्ट्रपति को अपना परामर्श देगा।’’

तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 127 के अनुसार मुख्यन्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्तियां भी कर सकता है। उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीश जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखते हों, राष्ट्रपति सम्बन्धित उच्च न्यायालय के मुख्यन्यायाधीश के परामर्श के आधार पर तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।’’

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएं 

सर्वोच्च न्यायालय  के न्यायाधीश बनने की निम्नलिखित योग्यताएं हैं- 
  1. वह भारत का नागरिक हो।’’
  2. वह किसी उच्च न्यायालय में कम से कम पॉंच वर्ष तक न्यायाधीश रह चुका हो अथवा वह एक या अधिक उच्च न्यायालय में लगातार कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो। 
  3. वह राष्ट्रपति की दृष्टि में एक पारंगत विधिवेत्ता हो।’’
उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों का कार्यकाल उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीश) 65 वर्ष की आयु तक अपना पद धारण करते हैं।’’

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हटाने की प्रक्रिया

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाना काफी कठिन है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया अनुच्छेद 124(4) में दी गयी है, उन्हें केवल दो आधारों पर पद से हटाया जा सकता है- (1) साबित कदाचार (2) असमर्थता के आधार पर।’’

न्यायाधीश के विरूद्ध आरोपों पर संसद के एक विशेष बहुमत की स्वीकृति जरूरी होती है। किसी न्यायाधीश को उसके पद से हटाने के लिए प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। प्रस्ताव प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 (दो-तिहाई ) बहुमत से पारित होना चाहिए। इस प्रक्रिया के दौरान आरोपित न्यायाधीश को अपने पक्ष में समर्थन और पैरवी करने का अधिकार होता है। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव राष्ट्रपति के समक्ष आदेश के लिए रखा जाता है। इस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के पश्चात न्यायाधीश को उसके पद से हटना पड़ता है।’’

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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