शब्द किसे कहते हैं/शब्द के कितने भेद होते हैं

शब्द किसे कहते हैं

ध्वनियों के ऐसे समूह को शब्द कहते हैं जिससे कोई अर्थ व्यक्त होता हो। अर्थ ही शब्द का प्रधान लक्षण है। जिस ध्वनि समूह से कोई अर्थ नहीं निकलता वह ध्वनि समूह शब्द नहीं है।

उदाहरणत: क, म, ल, ध्वनियाँ हैं जिनका अपने आप में कोई अर्थ नहीं है। किन्तु इन तीनों को मिलाकर “कमल” ध्वनि समूह बनता है जिसका एक अर्थ होता है। अत: “कमल” ध्वनि समूह एक शब्द हुआ। पर “मकल” ध्वनि समूह शब्द नहीं है, क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं है।  अत: सार्थक ध्वनि समूह ही शब्द होता है। 

शब्द की परिभाषा

विभिन्न भाषाविदों ने समय-समय पर अपने चिंतन के अनुसार शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया है-

1. डॉ. रामचन्द्र वर्मा ने ‘मानक हिंदी कोश’ में शब्द की परिभाषा इन शब्दों में की है- अक्षरों, वर्णों आदि से बना और मुँह से उच्चरित या लिखा जाने वाला वह संकेत जो किसी कार्य या भाव का बोधक हो।

2. आचार्य श्यामसुंदर दास ने ‘हिंदी शब्द सागर’ में शब्द की परिभाषा इस प्रकार की है वह स्वतंत्र, व्यक्त और सार्थक ध्वनि जो एक या अधिक वर्णों के संयोग से कंठ और तालु आदि के द्वारा उत्पन्न हो और जिससे सुनने वाले को किसी पदार्थ, कार्य या भाव आदि का बोध हो, उसे शब्द कहते हैं।

3. आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा ने ‘भाषा-विज्ञान की भूमिका’ में शब्द की परिभाषा करते हुए लिखा है- उच्चारण की दृष्टि से भाषा की लघुतम इकाई ध्वनि है और सार्थकता की दृष्टि से शब्द।

4. डॉ. भोलानाथ तिवारी ने ‘शब्द-विज्ञान’ में शब्द की परिभाषा करते हुए उसका विशद विवेचन भी किया है उनके अनुसार भाषा की सार्थक, लघुतम और स्वतंत्र इकाई को शब्द कहते हैं।

5.  उल्मैन की परिभाषा इस प्रकार है- “The smallest significant unit of language.” अर्थात् शब्द को भाषा की लघुतम महत्त्वपूर्ण इकाई कहते हैं।

6. मैलेट शब्द के विषय में लिखते हैं- “A word is the result of the association of a given meaning with a given combination of sound capable of given grammatical use.” अर्थात् शब्द अर्थ और ध्वनि का वह योग है, जिसका व्याकरणिक प्रयोग किया जाता है।

7. राबर्टसन तथा केसिडी शब्द की परिभाषा करते हुए कहते हैं- “The smallest independent unit with in the sentence.” अर्थात् शब्द वाक्य में लघुतम स्वतंत्र इकाई है। स्वीट शब्द की परिभाषा इस प्रकार करते हैं- “An ultimate sense-unit.” अर्थात् लघुतम अर्थपूर्ण इकाई को शब्द कहते हैं।

शब्द के प्रकार

1. सार्थक शब्द - सार्थक शब्दों के अर्थ होते हैं।  जैसे-’पानी’ सार्थक शब्द है।  

2. निरर्थक शब्द - निरर्थक शब्दों के अर्थ नहीं होते। ‘नीपा’ निरर्थक शब्द, क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं।

शब्द के भेद

शब्द की उत्पत्ति या स्रोत, रचना या बनावट, प्रयोग तथा अर्थ के आधार पर शब्दों के निम्न भेद किये जाते हैं

1. व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द - व्युत्पत्ति की दृष्टि से हिन्दी शब्द.भण्डार में चार प्रकार के शब्द आते हैं:-
  1. तत्सम शब्द , 
  2. तद्भव शब्द , 
  3. देशज शब्द एवं, 
  4. विदेशी शब्द।

i. तत्सम शब्द - जो शब्द संस्कृत से मूल रूप में हिन्दी में आ गए हैं, उन्हें तत्सम कहते हैं। तत्सम का शाब्दिक अर्थ है - उसके समान। यहाँ जो शब्द संस्कृत से उसी रूप में आ गए हैं उन्हें तत्सम कहा जाता है, 

जैसे - सूर्य, सृष्टि, वृक्ष आदि। दर्शन, धर्म, संस्कृति, साहित्य आदि

तत्सम हिन्दी तत्सम हिन्दी
आम्र आम गोमल, गोमय गोबर
उष्ट्र उँट घोटक घोड़ा
चुल्लि: चूल्हा शत सौ
चतुष्पादिक चौकी सपत्नी सौत
शलाका सलाई हरिद्रा हल्दी, हरदी
चंचु चोंच पर्यक पलंग
त्वरित तुरत, तुरन्त भक्त भात
उद्वर्तन उबटन सूचि सुई
खर्पर खपरा, खप्पर सक्तु सक्तु

ii. तद्भव शब्द -
जो शब्द संस्कृत से परिवर्तित होकर हिन्दी में आए हैं, वे तद्भव कहे जाते हैं। तद्भव का शाब्दिक अर्थ है - उससे होना अर्थात, संस्कृत से उत्पन्न, जैसे - सूरज, आग, पत्थर आदि। 

हिन्दी में तद्भव शब्दों की संख्या सर्वाधिक है।

संस्कृत प्राकृत तद्भव हिन्दी
अग्नि अग्गि आग
मया मई मैं
वत्स वच्छ बच्चा, बाछा
चतुर्दश चोद्दस, चउद्दह चौदह
पुष्प पुप्फ फूल
चतुर्थ चउट्ठ, चडत्थ चौथा
प्रिय प्रिय पिय, पिया
कूत: कओ किया
मध्य मज्झ में
मयूर मउफर मोर
वचन वअण बैन
नव नअ नौ
चत्वारि चतारि चार
अद्धतृतीय अड्ढतइअ अढ़ाई, ढाई

iii. देशज शब्द -
ये मुख्यत: तीन प्रकार के हैं:
  1. संस्कृत से भिन्न अन्य भारतीय भाषाओं से आए शब्द, जैसे - भिंडी, तोरई, साँभर आदि।
  2. ध्वन्यात्मक शब्द, जैसे - खटपट, चहचहाना, धड़कन, आदि।
  3. ऐसे शब्द जिनका स्रोत ज्ञात नहीं है, जो न तत्सम हैं न तद्भव, और न विदेशी, जैसे- लोटा, खिचड़ी, टाँग आदि।
iv. विदेशी शब्द -भारत से बाहर की भाषाओं, अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी आदि से जो शब्द हिन्दी में आए हैं, उन्हें विदेशज शब्द कहते हैं। सदियों के प्रयोग के कारण अब ये शब्द हिन्दी में घुलमिल गए हैं। अदालत, किताब, दफ्तर, कॉलेज, स्टेशन जैसे शब्द विदेशी भाषाओं से आए हैं।

2. अर्थ के आधार पर शब्द - अर्थ की दृष्टि से शब्दों के अनेक रूप हैं:

i. पर्यायवाची शब्द पर्यायवाची शब्द वे शब्द जिनके अर्थ में समानता हो, पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं। इन्हें समानार्थी शब्द भी कहा जाता है। किन्तु आवश्यक नहीं कि अर्थ में समानता होते हुए भी वे शब्द प्रयोग में एक.दूसरे का स्थान ले सकें।

ii. एकार्थी शब्द - ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ सभी परिस्थितियों में एक सा रहता है, जैसे - ऋषि, श्रद्धा, आत्मा, कलंक, मोक्ष, पुरुषार्थ, आदि। पारिभाषिक शब्द भी एकार्थी शब्दों की कोटि में आते हैं।

iii. अनेकार्थी शब्द - वे शब्द जो प्रयोग के अनुसार विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न.भिन्न अर्थ देते हैं अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं, जैसे - अंबर (वस्त्र, आकाश, कपास), अलि (सखी, भौंरा, कोयल), कनक (सोना, धतूरा), कर (हाथ, किरण, हाथी की सूँड, टैक्स), कल (बीता हुआ दिन, आगामी दिन, मशीन, आराम, चैन, सुन्दर), गति (चाल, दशा, मोक्ष), गुरु (शिक्षक, बड़ा, भारी), तीर (तट, बाण), पत्र (चिट्ठी, पत्ता), आदि।

iv. विलोमार्थी या विपरीतार्थक शब्द -किसी शब्द से विपरीत अर्थ देने वाला शब्द उसका विलोम  विपरीतार्थक शब्द कहलाता है, जैसे - सुख.दुख, हर्ष.विशाद, मान.अपमान, उन्नति.अवनति, अस्त.उदय आदि। ऐसे शब्दों की विस्तृत सूची शिक्षार्थियों से तैयार करानी चाहिए।

v. श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द -जिन शब्दों का उच्चारण लगभग समान होता है पर अर्थ भिन्न हो तो उन्हें समश्रुति भिन्नार्थक शब्द कहते हैं: अपेक्षा - चाह उपेक्षा - अनादर अनिल - वायु।

vi. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द -इस वर्ग में अनेक शब्दों का योग, पदबंध या वाक्यांश के लिए एक शब्द का प्रयोग होता है। 1. जो ईश्वर को मानता हो - आस्तिक 2. जिसका कोई शत्रु न हो - अजातशत्रु 3.जो समय से परे हो - कालातीत

vii. पुनरुक्त या द्वित्व शब्द - पुनरुक्त या द्वित्व शब्द वे हैं जिनकी प्रयोग में आवृत्ति होती है, जैसे धीरे.धीरे, काले.काले, जर.जर।

viii. अपूर्ण पुनरुक्त या द्वित्व शब्द -अपूर्ण पुनरुक्त या द्वित्व शब्द इन शब्दों में दूसरी इकाई पहली इकाई से बना रूप होता है जैसे ठीक.ठाक, पूछताछ, भीड़.भाड़।

ix. प्रतिध्वन्यात्मक शब्द -प्रतिध्वन्यात्मक शब्द मूल शब्द की प्रतिध्वनि होते हैं, जैसे चाय.वाय, खाना.वाना, नल.वल।

x. अनुकरणात्मक शब्द - अनुकरणात्मक शब्द ध्वनियों की सटीक अभिव्यक्ति देते हैं जैसे खट.पट, छम.छम, गड़गड़ाहट, साँय.साँय।

xi. रणनात्मक ध्वनियों वाले शब्द -रणनात्मक ध्वनियों वाले शब्द वे शब्द हैं जो पशुओं की बोली को व्यक्त करते हैं जैसे भौं.भौं, चींचीं, चूँ .चूँ।

xii. पारिभाषिक शब्द -पारिभाषिक शब्द ये विषय विशेष से सम्बन्धित होते हैं। इन्हें तकनीकी शब्द भी कहा जाता है जैसे, टिप्पणी, अधिसूचना, अपील आदि।

xiii. अर्थभेद वाले शब्द -अर्थभेद वाले शब्द एक सा अर्थ प्रतीत होने पर भी इन शब्द.युग्मों का अर्थ अलग होता है। जैसे - अस्त्र.शस्त्र : अस्त्र फेक कर मारे जाने वाले हथियार हैं जैसे भाला। शस्त्र हाथ से प्रयोग किए जाते हैं जैसे तलवार।

xiv. लयात्मक और तुकांत शब्द - लयात्मक और तुकांत शब्द इन शब्दों का अधिकांशत: प्रयोग काव्य रचना में मिलता है। आवश्यकता होने पर मात्र घटाने या बढ़ाने की स्वीकृति काव्य लेखन में होती है जैसे - रहिमन  पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून।

3. शब्द-शक्ति के आधार पर शब्द - प्रत्येक शब्द से किसी अर्थ का बोध होता है जिसके द्वारा शब्द के अर्थ का बोध होता है उसे शब्द.शक्ति कहते हैं। शब्द को हम अर्थ का बोधक या व्यंजक कहते हैं। शब्द.शक्ति तीन प्रकार की होती हैं:

i. अभिधा शब्द- शब्द की जिस शक्ति से उसके सामान्य प्रचलित अर्थ का बोध होता है, उसे अभिधा कहते हैं। अभिधा से प्रकट होने वाले अर्थ का वाच्यार्थ, अभिधेयार्थ या मुख्यार्थ कहते हैं। कोष में शब्दों के अभिधेयार्थ ही दिए जाते हैं, जैसे - पानी बरस रहा है, वाक्य में “पानी” वाच्यार्थ में प्रयुक्त है।

ii. लक्षणा शब्द- शब्द की जिस शक्ति से शब्द के सामान्य अर्थ की जगह किसी दूसरे अर्थ की कल्पना करनी पड़ती है, उसे लक्षणा कहते हैं और उससे प्राप्त अर्थ को लक्ष्यार्थ कहते हैं, जैसे - उसका पानी उतर गया। इसमें “पानी” का सामान्य अर्थ न होकर भिन्न अर्थ “इज्जत”/”प्रतिष्ठा” लिया जाएगा। 

iii. व्यंजना शब्द- शब्द की जिस शक्ति से अभिधेयार्थ के साथ.साथ भिन्न अर्थ का भी बोध होता है, उसे व्यंजना कहते हैं। व्यंजना से निष्पक्ष अर्थ को व्यंग्यार्थ कहते हैं। “सवेरा हो गया” या “सूरज निकल गया” जैसे वाक्य में शब्दों के अभिधेयार्थ के साथ.साथ किसी सोए हुए व्यक्ति को जगाने या उठाने का अर्थ भी निकल रहा है, जिसकी प्रतीति व्यंजना शक्ति से होती है।

4. व्याकरणिक विवेचन के आधार पर शब्द - व्याकरणिक विवेचन की दृष्टि से हिन्दी शब्दों को दो भागों में बाँटा गया है:

i. विकारी - वाक्य में जिन शब्दों के रूप लिंग, वचन और कारक के भेदों के अनुसार बदल जाते हैं उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। वाक्य में प्रयुक्त शब्दों को पद कहते हैं। इन विकारी पदों के चार भेद हैं - संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया।

ये विकारी शब्द वे शब्द हैं जो वचन, विभक्ति, काल, वाच्य आदि से प्रभावित होते हैं। संज्ञा लड़का एकवचन लड़के (ने) बहुबचन या एकवचन, विभक्ति ने सम्बोधन लड़कों सर्वनाम मैं मुझ (को) मैं - मुझे - मेरा, मेरी, मेरी हिन्दी के भाषिक तत्व विशेषण अच्छा अच्छा, अच्छी, अच्छे क्रिया पढ़ना पढ़, पढ़ेगा, पढ़ेंगे, पढ़ेगी, पढूँगी, पढ़िए, पढ़ा जाएगा क्रिया प्रयोगों के कर्ता कर्म भाव से सम्बन्ध के आधार पर वाक्य संरचना होती है।

ii. वाच्य - क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वाक्य में क्रिया द्वारा संपादित विधान का विषय कर्ता है, कर्म है अथवा भाव है उसे वाच्य कहते हैं। वाच्य के तीन प्रकार हैं:
  1. कर्त्तृ वाच्य - क्रिया के जिस रूप से वाक्य के उद्देश्य, क्रिया के कर्ता का बोध हो, उसे कर्त्तृ वाच्य कहते हैं। ये लिंग, वचन, कर्ता के अनुसार होते हैं जैसे नीरज बाजार गया।
  2. कर्म वाच्य - क्रिया के जिस रूप से वाक्य के उद्देश्य कर्म प्रधान हो, उसे कर्म वाच्य कहते हैं। इन वाक्यों में क्रिया, वचन और लिंग कर्म के अनुसार होती हैं जैसे कमला के द्वारा गुड़िया बनार्इ गर्इ।
  3. भाव वाच्य - जब वाक्य में भाव प्रमुख होता है तो भाव वाच्य होता है जैसे अब खेला नहीं जाता।
iii. अविकारी शब्द - अविकारी शब्द वे हैं जो सदा अपने मूल रूप में ही वाक्य में प्रयुक्त होते हैं। लिंग, वचन आदि व्याकरणिक पक्षों का इन पर प्रभाव नहीं पड़ता है। इन्हें अव्यय भी कहते हैं। अविकारी शब्द इस प्रकार हैं:
  1. क्रिया विशेषण - अब.जब, यहाँ.वहाँ, भीतर.बाहर, आदि
  2. संबंध बोधक - के बाहर, के नीचे, की ओर, के सामने, से पहले आदि।
  3. समुच्चय बोधक - और, तथा, किन्तु, परंतु अथवा इसलिए आदि।
  4. विस्मयादि बोधक - अरे, ओ, ओ हो, हाय, हे राम, बाप रे आदि।
5. शब्द निर्माण के आधार पर शब्द - कभी.कभी दो या दो से अधिक शब्दों के योग से एक नए शब्द की रचना और नए अर्थ का निर्माण होता है। शब्द रचना या निर्माण चार प्रकार से होता है:

i. उपसर्ग - 
वे शब्दांश जो किसी शब्द के आरंभ में जुड़कर उसका अर्थ बदलते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं जैसे विमल, वियोग। संस्कृत, हिन्दी और उर्दू तीनों भाषाओं के उपसर्ग प्रयोग में आते हैं। जैसे,
  1. संस्कृत - निस् - निस्संदेह; अव - अवनति, अवशेष
  2. हिन्दी - अध - अधमरा, अधपका; परि-परिदृश्य, परिहार
  3. उर्दू - बे - बेकार, बेदिल; ना - नालायक, नाकाम
ii. प्रत्यय- जो शब्दांश शब्दों के अंत में लगकर उनके अर्थ को बदल देते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं। प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं : 
  1. कृत प्रत्यय - जो प्रत्यय धातुओं के अंत में लगते हैं जैसे पढ़ने वाला, खिलाड़ी, दयालु, सजावट, आदि।
  2. तद्धित प्रत्यय - जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के अंत में लग कर शब्द बनाते हैं उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं। जैसे पत्रकार, राष्ट्रीय, लेखक, बालपन, गुणवान आदि।
iii. सन्धि - दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे सन्धि कहते हैं। सन्धि तीन प्रकार की होती है : 
  1. स्वर सन्धि, ;
  2. व्यंजन सन्धि, और 
  3. विसर्ग सन्धि।
i. स्वर संधि: दो स्वरों के मेल से होने वाला परिवर्तन स्वर सन्धि कहलाता है। यह स्वर योग नए शब्द तथा नए अर्थ का निर्माण करता है। स्वर सन्धि पाँच प्रकार की होती है:
  1. दीर्घ सन्धि - ह्स्व या दीर्घ स्वरों के योग से होने वाली सन्धि - विद्या + आलय - विद्यालय, परम + आनंद - परमानंद।
  2. गुण सन्धि - अ, आ के आगे इ, ई, हो तो ए और उ, ऊ हो तो ओ, ऋ हो तो अर बनता है, जैसे, अ/आ + इ/ई नर + इन्द्र - नरेन्द्र।
  3. वृद्धि सन्धि - अ, आ के ए, से मिलने पर “ऐ” और अ, आ, के “ओ” से मिलने पर “औ” बनता है। जैसे - अ/आ + ए सदा + एव - सदैव, अ/आ + ओ वन + ओंषधि - वनौषधि।
  4. यण सन्धि - इ, ई के बाद “अ”/’’आ’’ आने पर “य्” हो जाता है, उ, ऊ के बाद “अ” आने से “व्” हो जाता है, जैसे - इ/ई + अ/आ यदि + अपि - यद्यपि, उ/ऊ + अ/आ अनु + अय - अन्वय'।
  5. अयादि सन्धि - ए, ऐ और ओ, औ से परे किसी भी स्वर के होने पर अय्, आय्, अव्, आव् हो जाता है जैसे : ए + अ “अय” ने + अन - नयन ऐ + अ “आय” गै + अक - गायक, ओ + अ “अव” पो + अन - पवन
ii. व्यंजन संधि: व्यंजन का व्यंजन से मेल होने पर व्यंजन सन्धि कहलाता है। जैसे शरद् + चन्द्र - शरत्चन्द्र, उत् + ज्वल - उज्जवल, दिक् + गज - दिग्गज।

iii. विसर्ग संधि: विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन आने पर जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। जैसे नि: + आहार - निराहार, नि: + छल - निश्छल, नम: + ते - नमस्ते, आशी: + वाद - आश्र्ाीवाद आदि।

iv. समास - दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने नए शब्द नए अर्थ को समास कहते हैं। समास चार प्रकार के होते हैं - 
  1. अव्ययी भाव समास - जिस समास का पहला पद अव्यय प्रधान हो तो उसे अव्ययी भाव समास कहते हैं जैसे प्रतिक्षण, यथाक्रम, आजीवन। इन शब्दों का न रूप बदलता है, न इनमें विभक्ति लगती है।
  2. तत्पुरुष समास - जिस समास का अंतिम पद प्रधान हो और पहला पद गौण, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। यह विभक्ति प्रधान समास है, जैसे गंगाजल - गंगा का जल, तुलसीरचित - तुलसी द्वारा रचित आदि।
  3. द्वंद्व समास- इसमें शब्द युग्मों की रचना होती है तथा दोनों शब्द या पद समान होते हैं। जैसे माता-पिता।
  4. बहुव्रीहि समास - जब दोनों पदों के अर्थ से हटकर “अन्य” अर्थ की प्रतीति हो तो वह बहुब्रीहि समास कहलाता है। जैसे नीलकंठ - नीला कंठ है जिसका अर्थ है “शिव”। 

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