शब्द की परिभाषा
विभिन्न भाषाविदों ने समय-समय पर अपने चिंतन के अनुसार शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया है-
1. डॉ. रामचन्द्र वर्मा ने ‘मानक हिंदी कोश’ में शब्द की परिभाषा इन शब्दों में की है- अक्षरों, वर्णों आदि से बना और मुँह से उच्चरित या लिखा जाने वाला वह संकेत जो किसी कार्य या भाव का बोधक हो।
2. आचार्य श्यामसुंदर दास ने ‘हिंदी शब्द सागर’ में शब्द की परिभाषा इस प्रकार की है वह स्वतंत्र, व्यक्त और सार्थक ध्वनि जो एक या अधिक वर्णों के संयोग से कंठ और तालु आदि के द्वारा उत्पन्न हो और जिससे सुनने वाले को किसी पदार्थ, कार्य या भाव आदि का बोध हो, उसे शब्द कहते हैं।
3. आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा ने ‘भाषा-विज्ञान की भूमिका’ में शब्द की परिभाषा करते हुए लिखा है- उच्चारण की दृष्टि से भाषा की लघुतम इकाई ध्वनि है और सार्थकता की दृष्टि से शब्द।
4. डॉ. भोलानाथ तिवारी ने ‘शब्द-विज्ञान’ में शब्द की परिभाषा करते हुए उसका विशद विवेचन भी किया है उनके अनुसार भाषा की सार्थक, लघुतम और स्वतंत्र इकाई को शब्द कहते हैं।
5. उल्मैन की परिभाषा इस प्रकार है- “The smallest significant unit of language.” अर्थात् शब्द को भाषा की लघुतम महत्त्वपूर्ण इकाई कहते हैं।
6. मैलेट शब्द के विषय में लिखते हैं- “A word is the result of the association of a given meaning with a given combination of sound capable of given grammatical use.” अर्थात् शब्द अर्थ और ध्वनि का वह योग है, जिसका व्याकरणिक प्रयोग किया जाता है।
7. राबर्टसन तथा केसिडी शब्द की परिभाषा करते हुए कहते हैं- “The smallest independent unit with in the sentence.” अर्थात् शब्द वाक्य में लघुतम स्वतंत्र इकाई है। स्वीट शब्द की परिभाषा इस प्रकार करते हैं- “An ultimate sense-unit.” अर्थात् लघुतम अर्थपूर्ण इकाई को शब्द कहते हैं।
शब्द के प्रकार
1. सार्थक शब्द - सार्थक शब्दों के अर्थ होते हैं। जैसे-’पानी’ सार्थक शब्द है।2. निरर्थक शब्द - निरर्थक शब्दों के अर्थ नहीं होते। ‘नीपा’ निरर्थक शब्द, क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं।
शब्द के भेद
1. व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द
व्युत्पत्ति की दृष्टि से हिन्दी शब्द.भण्डार में चार प्रकार के शब्द आते हैं:-
- तत्सम शब्द ,
- तद्भव शब्द ,
- देशज शब्द एवं,
- विदेशी शब्द।
तत्सम | हिन्दी | तत्सम | हिन्दी |
---|---|---|---|
आम्र | आम | गोमल, गोमय | गोबर |
उष्ट्र | उँट | घोटक | घोड़ा |
चुल्लि: | चूल्हा | शत | सौ |
चतुष्पादिक | चौकी | सपत्नी | सौत |
शलाका | सलाई | हरिद्रा | हल्दी, हरदी |
चंचु | चोंच | पर्यक | पलंग |
त्वरित | तुरत, तुरन्त | भक्त | भात |
उद्वर्तन | उबटन | सूचि | सुई |
खर्पर | खपरा, खप्पर | सक्तु | सक्तु |
संस्कृत | प्राकृत | तद्भव हिन्दी |
---|---|---|
अग्नि | अग्गि | आग |
मया | मई | मैं |
वत्स | वच्छ | बच्चा, बाछा |
चतुर्दश | चोद्दस, चउद्दह | चौदह |
पुष्प | पुप्फ | फूल |
चतुर्थ | चउट्ठ, चडत्थ | चौथा |
प्रिय | प्रिय | पिय, पिया |
कूत: | कओ | किया |
मध्य | मज्झ | में |
मयूर | मउफर | मोर |
वचन | वअण | बैन |
नव | नअ | नौ |
चत्वारि | चतारि | चार |
अद्धतृतीय | अड्ढतइअ | अढ़ाई, ढाई |
- संस्कृत से भिन्न अन्य भारतीय भाषाओं से आए शब्द, जैसे - भिंडी, तोरई, साँभर आदि।
- ध्वन्यात्मक शब्द, जैसे - खटपट, चहचहाना, धड़कन, आदि।
- ऐसे शब्द जिनका स्रोत ज्ञात नहीं है, जो न तत्सम हैं न तद्भव, और न विदेशी, जैसे- लोटा, खिचड़ी, टाँग आदि।
2. अर्थ के आधार पर शब्द
अर्थ की दृष्टि से शब्दों के अनेक रूप हैं:3. शब्द-शक्ति के आधार पर शब्द
प्रत्येक शब्द से किसी अर्थ का बोध होता है जिसके द्वारा शब्द के अर्थ का बोध होता है उसे शब्द.शक्ति कहते हैं। शब्द को हम अर्थ का बोधक या व्यंजक कहते हैं। शब्द.शक्ति तीन प्रकार की होती हैं:4. व्याकरणिक विवेचन के आधार पर शब्द
व्याकरणिक विवेचन की दृष्टि से हिन्दी शब्दों को दो भागों में बाँटा गया है:1. विकारी - वाक्य में जिन शब्दों के रूप लिंग, वचन और कारक के भेदों के अनुसार बदल जाते हैं उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। वाक्य में प्रयुक्त शब्दों को पद कहते हैं। इन विकारी पदों के चार भेद हैं - संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया।
ये विकारी शब्द वे शब्द हैं जो वचन, विभक्ति, काल, वाच्य आदि से प्रभावित होते हैं। संज्ञा लड़का एकवचन लड़के (ने) बहुबचन या एकवचन, विभक्ति ने सम्बोधन लड़कों सर्वनाम मैं मुझ (को) मैं - मुझे - मेरा, मेरी, मेरी हिन्दी के भाषिक तत्व विशेषण अच्छा अच्छा, अच्छी, अच्छे क्रिया पढ़ना पढ़, पढ़ेगा, पढ़ेंगे, पढ़ेगी, पढूँगी, पढ़िए, पढ़ा जाएगा क्रिया प्रयोगों के कर्ता कर्म भाव से सम्बन्ध के आधार पर वाक्य संरचना होती है।
- कर्त्तृ वाच्य - क्रिया के जिस रूप से वाक्य के उद्देश्य, क्रिया के कर्ता का बोध हो, उसे कर्त्तृ वाच्य कहते हैं। ये लिंग, वचन, कर्ता के अनुसार होते हैं जैसे नीरज बाजार गया।
- कर्म वाच्य - क्रिया के जिस रूप से वाक्य के उद्देश्य कर्म प्रधान हो, उसे कर्म वाच्य कहते हैं। इन वाक्यों में क्रिया, वचन और लिंग कर्म के अनुसार होती हैं जैसे कमला के द्वारा गुड़िया बनार्इ गर्इ।
- भाव वाच्य - जब वाक्य में भाव प्रमुख होता है तो भाव वाच्य होता है जैसे अब खेला नहीं जाता।
- क्रिया विशेषण - अब.जब, यहाँ.वहाँ, भीतर.बाहर, आदि
- संबंध बोधक - के बाहर, के नीचे, की ओर, के सामने, से पहले आदि।
- समुच्चय बोधक - और, तथा, किन्तु, परंतु अथवा इसलिए आदि।
- विस्मयादि बोधक - अरे, ओ, ओ हो, हाय, हे राम, बाप रे आदि।
5. शब्द निर्माण के आधार पर शब्द
कभी.कभी दो या दो से अधिक शब्दों के योग से एक नए शब्द की रचना और नए अर्थ का निर्माण होता है। शब्द रचना या निर्माण चार प्रकार से होता है:- संस्कृत - निस् - निस्संदेह; अव - अवनति, अवशेष
- हिन्दी - अध - अधमरा, अधपका; परि-परिदृश्य, परिहार
- उर्दू - बे - बेकार, बेदिल; ना - नालायक, नाकाम
- कृत प्रत्यय - जो प्रत्यय धातुओं के अंत में लगते हैं जैसे पढ़ने वाला, खिलाड़ी, दयालु, सजावट, आदि।
- तद्धित प्रत्यय - जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के अंत में लग कर शब्द बनाते हैं उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं। जैसे पत्रकार, राष्ट्रीय, लेखक, बालपन, गुणवान आदि।
- स्वर सन्धि, ;
- व्यंजन सन्धि, और
- विसर्ग सन्धि।
- दीर्घ सन्धि - ह्स्व या दीर्घ स्वरों के योग से होने वाली सन्धि - विद्या + आलय - विद्यालय, परम + आनंद - परमानंद।
- गुण सन्धि - अ, आ के आगे इ, ई, हो तो ए और उ, ऊ हो तो ओ, ऋ हो तो अर बनता है, जैसे, अ/आ + इ/ई नर + इन्द्र - नरेन्द्र।
- वृद्धि सन्धि - अ, आ के ए, से मिलने पर “ऐ” और अ, आ, के “ओ” से मिलने पर “औ” बनता है। जैसे - अ/आ + ए सदा + एव - सदैव, अ/आ + ओ वन + ओंषधि - वनौषधि।
- यण सन्धि - इ, ई के बाद “अ”/’’आ’’ आने पर “य्” हो जाता है, उ, ऊ के बाद “अ” आने से “व्” हो जाता है, जैसे - इ/ई + अ/आ यदि + अपि - यद्यपि, उ/ऊ + अ/आ अनु + अय - अन्वय'।
- अयादि सन्धि - ए, ऐ और ओ, औ से परे किसी भी स्वर के होने पर अय्, आय्, अव्, आव् हो जाता है जैसे : ए + अ “अय” ने + अन - नयन ऐ + अ “आय” गै + अक - गायक, ओ + अ “अव” पो + अन - पवन
- अव्ययी भाव समास - जिस समास का पहला पद अव्यय प्रधान हो तो उसे अव्ययी भाव समास कहते हैं जैसे प्रतिक्षण, यथाक्रम, आजीवन। इन शब्दों का न रूप बदलता है, न इनमें विभक्ति लगती है।
- तत्पुरुष समास - जिस समास का अंतिम पद प्रधान हो और पहला पद गौण, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। यह विभक्ति प्रधान समास है, जैसे गंगाजल - गंगा का जल, तुलसीरचित - तुलसी द्वारा रचित आदि।
- द्वंद्व समास- इसमें शब्द युग्मों की रचना होती है तथा दोनों शब्द या पद समान होते हैं। जैसे माता-पिता।
- बहुव्रीहि समास - जब दोनों पदों के अर्थ से हटकर “अन्य” अर्थ की प्रतीति हो तो वह बहुब्रीहि समास कहलाता है। जैसे नीलकंठ - नीला कंठ है जिसका अर्थ है “शिव”।