विटामिन शरीर के विकास के लिए मांसपेशियों के स्वास्थ्य के लिए तथा सभी
आंतरिक कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक होते हैं इनकी मात्रा अत्यंत सूक्ष्म होती
है परन्तु फिर भी इनकी आहर में कमी अनेक बार दिखाई देती है। जिसके कारण अनेक रोग
उत्पन्न होते है। पर्याप्त मात्रा में आहार में यह न मिलने पर इनको दवा अथवा इंजेक्शन के रूप में
लेना पडता है। कुछ विटामिन पानी में घुलनशील होते हैं कुछ वसा में घुलनशील होते हैं जिस
विशिष्ट रीति से विटामिन कार्य करते हैं उनका ठीक ठीक ज्ञान अभी तक वैज्ञानिकों को भी नहीं
पता है। पर ऐसा माना जाता है कि शरीर के अन्दर होने वाली विभिन्न रासायनिक प्रणालियों में वे
उत्पेरक की तरह कार्य करते हैं। कुछ विटामिन और अनेक कार्यों की चर्चा हम यहॉं पर
करेंगे।
विटामिन के प्रकार
विटामिन–A
यह कैरोटीन से आंतों में बनाया जाता है यह वसा में घुलनशील है। ताप
सहिष्णु है। प्रतिदिन इसमें 5000 यूनिट व्यक्ति को आहार से मिलना चाहिए। श्वसन अंगो, पांचन
अंगो तथा मूत्र नली को स्वस्थ्य एवं शक्ति सम्पन्न बनाए रखने के लिए यह अतिआवश्यक है। यह
नाक की श्लेष्मा सिल्ली गले तथा श्वसन नली को स्वस्थ्य बनाए रखता है तथा सर्दी जुकाम व
अन्य संक्रमण नहीं होने देता यह त्वचा को कोमल बनाता है एवं स्वच्छ रखता है तथा आंखो की
रोशनी को तीव्र बनाए रखने का कार्य करता है। इसकी कमी से रतोंधी नामक रोग होता है। सभी
उत्तकों में विकार हो जाने से त्वचा मोटी एवं खुरदरी हो जाती है तथा सारे शरीर में संक्रमण की
सम्भावना बढ जाती है। प्रमुख रूप से मछली का तेल, घी, अण्डे, गाजर, मलाई, मक्खन व दूध में
विटामिन-ए पाए जाते हैं।
विटामिन–B
यह पानी में घुलनशील है तथा ताप सहिष्णु होता हैं। छोटी आतो मे इसका
निर्माण होता है भोज्य पदार्थों से शक्ति प्राप्त करने की क्रिया में इसका प्रमुख कार्य है। यह
विटामिन बी कॉम्पलेक्स 1 दर्जन से भी अधिक भिन्न भिन्न प्रकार के विटामिनों का एक समूह है।
इसमें बी.1 थायमीन (Thymiene) सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इसका सम्बन्ध स्नायु और पेशियों से हैं
ऐसा कहा जाता है कि इसकी कमी से शराबियों के यकृत एवं स्नायुतंत्र विकृत हो जाते है।
थायमीन का अभाव हो तो शरीर में लगातार पीढा व सूजन बनी रहेगी तथा हृदय और यकृत कार्य
करना बंद कर देंगे। यह विटामिन अधिक मात्रा में मूंगफली अनाज मांस तथा अण्डों में पाया जाता
है। बी.1 की प्रतिदिन आवश्यकता 10 ग्राम है।
विटामिन-B2
रिबोफलाविन इसकी कमी से जीभ एवं अन्त: त्वचा पर फोडे आ जाते है
इसकी दैनिक आवश्यकता 2 मिलिग्राम है यह त्वचा नेत्र और पाचन क्रिया के लिए आवयक है। इस
विटामिन के आवश्यक तत्व अनाज, दूध, पनीर, छेने तथा अण्डों में पाए जाते हैं।
विटामिन–C
यह पानी में घुलनशील है पर ताप से नष्ट हो जाता है यह एक स्वास्थ्यवर्धक
बिटामिन है जो संयोजक उत्तकों, हड्डियों छोटी रक्त नलिकाओं दांतो व मसूडो के लिए आवश्यक
है। इसकी कमी से स्कर्बी नामक रोग हो जाता है। व शरीर का विकास रूक जाता है। छाले होना,
सूजन, जोडों का दर्द तथा रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति में कमी इसका परिणाम है। इसकी दैनिक
आवश्यकता 10 मिलिग्राम है। ताजे फलों विशेषकर अमरूद, नीबू, ताजी सब्जियों, आवला संतरा,
मोसंबी, टमाटर एवं आलू में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह विटामिन भोजन पकाने पर नष्ट हो
जाता है। अत: पके हुए भोजन में संभवत: विटामिन सी की कमी पायी जाती है।
विटामिन–D
यह वसा में घुलनशील है तथा ताप सहिष्णु होता है प्राण्ीाज वसा में यह पाया
जाता है। अशक्त हड्डियों के विकास हेतु विटामिन डी की आवश्यकता पडती है इसका प्रमुख कार्य
है शरीर में केल्शियम तथा फॉसफोरस के मध्य संतुलन बनाए रखना। शरीर में इसकी कमी से
रिकेटस (सूखा रोग) हो जाता है। व्यस्क लोगों में विटामिक डी की दैनिक आवश्यकता 200 यूनिट
तथा बच्चों में व गर्भवती स्त्रियों में इसकी आवश्यकता 800 यूनिट होती है। यह एक महत्व की
बात है कि सूर्य की किरणों और त्वचा से प्राप्त प्राकृतिक तेल की अन्त: प्रक्रिया द्वारा शरीर स्वयं
इस विटामिन के निर्माण में सक्षम है यही कारण है कि विटामिन डी सम्बन्धी अपनी आवश्यकता का
अधिकांश भाग शरीर स्वयं उत्पादित कर लेता है तथा इसके लिए वह आहार पर निर्भर नहीं रहता।
दूध, वनस्पति तेल व अण्डे इसके स्त्रोत है।
विटामिन–E
इसकी कमी से बन्ध्या रोग होता है। पुन: उत्पादन की शक्ति विटामिन ई पर
निर्भर करती है। कोशिकाओं के केन्द्रकों के लिए उपयोग तथा प्रजनन क्रियाओं में सहायक होता
है। हृदय तथा धमनी संबंघी रोगों के उपचार में बहुत उपयोग है क्योंकि यह उत्तकों के लिए ओ2
की आवश्यकता को कम करता है। इस प्रकार यह विटामिन रक्त का थक्का जमने से जिसकों
थ्रोमोसिस करते है से बचाता है तथा संकीर्ण रक्त वाहिकाओं को फैलाता है। अल्सर तथा
जलने से हुए घाव के उपचार में औषधियों के साथ विटामिन ई लेने पर यह घाव को शीघ्र भरने में
मदद करता है यही विटामिन घावों के भर जाने के पश्चात् त्वचा पर नये निशान बनने से रोकता है
तथा पुराने निशानों को हल्का करता है यह हृदय की सभी मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाता है।
रक्त परिसंचरण को सुचारू बनाता है। अनाज, हरी सब्जियों, टमाटर, सोयाबीन व अण्डों में पाया
जाता है।
विटामिन–K
यह हरी पत्ते वाली सब्जियों से यह प्राप्त होता है रक्त का थक्का बनाने हेतु
यह बहुत ही आवश्यक है प्राय: इस विटामिन की कमी शरीर में नहीं होती। वैसे तो विभिन्न प्रकार
के 20 विटामिन्स का ज्ञान वैज्ञानिकों ने अब तक खोजा है परन्तु उनमें से जो प्रमुख है उनका
वर्णन हमने ऊपर किया है। सभी विटामिन्स विभिन्न प्रकार के खादय पदार्थो में पाए जाते हैं। अत:
आहार में इनकी उपस्थिति की चिंता करने की जरूरत नहीं है। यदि व्यक्ति नियमित रूप से
संतुलित आहार ग्रहण करता है तो उसे विटामिन्स का अभाव कभी नहीं होगा शरीर अपनी
आवश्यकतानुसार एक प्रकार के भोज्य पदार्थ को दूसरे प्रकार में रूपान्तरित कर लेती है योग की
अनेक क्रियायें रूपान्तरण की इस प्रक्रिया में वृद्धि कर लेती है ऐसी योगिक क्रियाओं में सूर्यनमस्कार
तथा प्राणायाम उल्लेखनीय है। तात्पर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी प्रणालियों की क्षमता को
वश में कर ले तो वह साधारण भोजन पर भी निर्वाह कर सकता है। ध्यान रहे वसा व शर्करा शक्ति
प्रदान करते हैं। प्रोटीन प्रमुख रूप से शारीरिक वृद्धि व रखरखाव का कार्य करते हैं खनिज व
विटामिन सुरक्षा नियंत्रण तथा जैविक क्रियाओं के नियमों हेतु जरूरी है।
All vitamins ka chemical name kya hoga
ReplyDelete#विटामिन के रासायनिक नाम -
Deleteविटामिन A - रेटिनॉल ( Retinol )
विटामिन B1 - थायमिन ( Thiamine )
विटामिन B2 - राइबोफ्लेविन ( Riboflavin )
विटामिन B3 - नायसिन ( Niacin )
विटामिन B5 - पेंटोथेनिक अम्ल ( Pentothenic Acid )
विटामिन B6 - पायरीडॉक्सिन ( Pyridoxine )
विटामिन B7 - बायोटिन ( Biotin )
विटामिन B9 - फ्लोएट ( Floate )
विटामिन B12 - सयनोकोबैल्मिन ( Cyanocobalamin )
विटामिन D - कैल्सिफेरॉल ( Calciferol )
विटामिन E - टोकोफेरॉल ( Tocoferol )
विटामिन K - नैप्थोक्विनोन / फिलोक्विनोन ( Napthoquinone / Filoquinone )