उपन्यास - अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार

उपन्यास का अर्थ

उपन्यास शब्द का शाब्दिक अर्थ है सामने रखना। उपन्यास मे प्रसादन अर्थात् पाठक को प्रसन्न रखने का मुख्य भाव छिपा होता है, अतएव पाठक जिज्ञासावश अनवरत् उससे जुड़ा रहना चाहता है। ‘‘उपन्यास की व्याख्या में कहा जा सकता है कि उपन्यास लेखक घटनाओं का संयोजन इस तरह करता है कि उसे पढ़कर पाठक को प्रसन्नता हो, इस प्रकार की प्रसन्नता को उपन्यस्त करना ही उपन्यास है।’’

हिन्दी का पहला उपन्यास श्री निवास दास द्वारा लिखित परीक्षा गुरू माना जाता है। उपन्यास को पहले पहल सामाजिक जीवन से जोडऩे का कार्य उपन्यास सम्राट प्रमेचन्द्र ने किया था। वे उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मानते थे। ‘‘मानव चरित्र पर प्रकाश डालना तथा उसके रहस्य को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है।’’
उपन्यास की विधा नइर् है पर उपन्यास शब्द बहुत पुराना है। 

साहित्य दर्पण मे उपन्यास भणिका का एक भेद माना गया जो दृश्य काव्य के अन्तर्गत है, ‘‘प0ं अम्बिका दत्त व्यास ने गद्य काव्य मीमांसा और डा0 श्यामसुन्दर दास ने साहित्यालोचन में उसे गद्य काव्य की कोटि में रखा। उपन्यास गद्य काव्य से भिन्न एक स्वतंत्र प्रकार की रचना है। अमर कोष में दिया गया अर्थ उस पर लागू नहीं होता है।’’

प्राचीन काल मे उपन्यास अविर्भाव के समय इसे आख्यायिका नाम मिला था। ‘‘कभी इसे अभिनव की अलौकिक कल्पना, तो कभी प्रबन्ध कल्पना, कभी आश्चर्य वृत्तान्त कथा तो कभी प्रबन्ध कल्पित कथा, कभी एक सांस्कृतिक वार्ता, तो कभी नोबेल, कभी नवन्यास, तो कभी गद्य काव्य नाम से प्रसिद्धि मिली। उपलब्ध रचनाओ में ‘‘मालती’’ 1875 के लिए इस विद्या को उपन्यास नाम मिला।’’

उपन्यास का अर्थ

उपन्यास शब्द में ‘‘अस’’ धातु है। ‘‘नि’’ उपसर्ग से मिलकर न्यास शब्द बनता है। न्यास शब्द का अर्थ है धरोहर। उपन्यास शब्द दो शब्दों उप+न्यास से मिलकर बना है। ‘‘उप’’ अधिक समीप वाची उपसर्ग है, संस्कृत के व्याकरण सिद्ध शब्दों, न्यास व उपन्यास का पारिभाषिक अर्थ कुछ और ही होता है। एक विशेष प्रकार की टीका पद्धति को न्यास कहते हैं। हिन्दी मे उपन्यास शब्द कथा साहित्य के रूप में प्रयागे होता है। वहीं बगंला भाषा मे उसे उपन्यास, गजुराती में नवल कथा, मराठी में कादम्बरी तथा उर्दू में नावले शब्द के रूप में प्रयोग करते हैं। वे सभी ग्रंथ उपन्यास हैं जो कथा सिद्धान्त के कम ज्यादा नियमो का पालन करते हुए मानव की सतत्, संगिनी, कुतूहल, वृत्ति को पात्रो तथा घटनाओ को काल्पनिक तथा ऐतिहासिक संयोजन द्वारा शान्त करte हैं। 

उपन्यास का प्रारम्भ उसी समय से हो गया था, जब एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के साथ अपनत्व की भावना से विचार-विनिमय किया था। उपन्यास की वृित्त का प्रारम्भ मानव चेतना की उत्सुकता से होता है। 

आज की पारिभाषिक शब्दावली के अनुसार उपन्यास, गद्य की शैली का एक प्रकार है। पर वास्तव में यह उपन्यास गद्य या छन्द बन्धन से मुक्त एक कथन वृत्ति का नामकरण मात्र है। जिसका प्रथम प्रमाण हमे अंग्रेजी के उदय काल के अग्रदूत कवि चासर की कृति ‘‘कैण्टर वरी टेल्स’’ में मिलता है। हिन्दी में इसका स्पष्ट रूप से ज्वलंत प्रमाण सूर व तुलसी के तुलनात्मक अध्ययन मे भी उपलब्ध होता है। यदि हम सूर साहित्य को मन का प्रतीक मानें तो तुलसी का रामचरित मानस उपन्यास वृत्ति का सर्वोपरि उदाहरण सिद्ध होगा। उपन्यास वृत्ति मे जीवन जन्म से पूर्व भी तथा मृत्यु के बाद भी गतिशील रहता है। 

उपन्यास शब्द का शाब्दिक अर्थ है सामने रखना। अर्थात् उप का अर्थ है समीप और न्यास शब्द का अर्थ है, उपस्थित करना। इस पक्रार उपन्यास का अर्थ है परिस्थितियो को स्पष्ट रूप से सामने रखने वाला।

उपन्यास की परिभाषा 

डा0 श्यामसुन्दर दास ने उपन्यास की परिभाषा इस प्रकार से दी है-उपन्यास मनुष्य जीवन की काल्पनिक कथा है। उपन्यासकार सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र जी लिखत े हैं कि ‘‘मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना तथा उसके चरित्रों को स्पष्ट करना ही उपन्यास का मूल तत्व है।’’

सुधी समीक्षक आचार्य नन्ददुलारे बाजपेयी के शब्दो में ‘‘उपन्यास से आजकल गद्यात्मक कृति का अर्थ लिया जाता है, पद्यबद्ध कृतियाँ उपन्यास नहीं हुआ करते हैं।’’

प्रेमचंद के अनुसार - मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उनके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है।"

डॉ. श्यामसुन्दर दास के अनुसार :- " उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है । " 

डॉ. सत्येन्द्र के अनुसार - “उपन्यास नये युग की नयी अभिव्यक्ति का नया रूप है । साहित्य के रूपों में उद्भव के संबंध में यह एक अखण्ड सत्य है कि व्यक्ति और युग के शाश्वत सामयिक रसायन का परिणाम होते हैं । "

डॉ. श्री शिवदानसिंह चौहान के अनुसार : "आधुनिक उपन्यास को साहित्य का एक नया और संशिलाट रूप विधान बताया है, जिसके क्षेत्र एवं संभावनाएँ अपरिसीमित है।"
 
लक्ष्मी सागर वाएर्णेय के अनुसार : :– “साहित्य की अन्य अंगों की अपेक्षा उपन्यास में जीवन की यथार्थता, सत्यता, आवश्यकताएँ, संभावनाएँ और स्वतंत्रता, व्यक्तित्व और मूल्यों का निरूपण अधिक होता है।"

डॉ. भागीरथ मिश्र के अनुसार "युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर सहज शैली में स्वाभाविक जीवन की एक पूर्ण झाँकी प्रस्तुत करने वाला गद्य काव्य एक उपन्यास कहलाता है।”

उपन्यास के प्रकार 

 उपन्यासकार के दो प्रधान कार्य रहे हैं-उपदेश देना और कहानी सुनाना। ‘‘आदि उपन्यासकारो को दूसरे कार्य में विशेष सफलता नहीं मिली। क्योंकि कहानी के लिए उनकी परीक्षाएँ पढ़ना धैर्य की परीक्षा देना है। वे कहानी को उपदेश के लिए अवसर प्रदान करने का साधन समझते थे। उनमें अधिकाँश विचारो को ही उत्तेजित करते थे, भावो का उद्रेक नहीं करते थे।’’

हिन्दी के दूसरी पीढ़ी के उपन्यासकार अपने कर्तव्य व दायित्व के प्रति सजग थे। वे   कलावादी होने के साथ-साथ सुधार वादी तथा नीतिवादी भी थे। उनके लिए उपन्यास केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि जीवन संगम का अस्त्र था। उन्होंने संस्थाओं की आलोचना द्वारा समाज की बुराइयो का पर्दाफाश कर विनाश पर आँसू बहाने के बदले निर्माण का संदेश दिया। हिन्दी के उपन्यासकार एक साथ ही प्रगतिशील व दूरदश्र्ाी थे, उनके विचार समय के अनुकूल होते हुए भी समयानुसार आगे के थे। 

कोई लेखक कृति को कला कृति मानकर उसके कक्षा पक्ष को महत्व देता है, तो कोई लख्ेाक कृति को आलोचना मान कर विचार तत्व को महत्व देता है। वस्तुत: वह विचार तत्व ही है जो उपन्यास को सार्थक व सुन्दर बनाता है। भाषा शैली कहानी कहने में समर्थ है, उसमें सरलता के साथ-साथ सौष्ठव भी है। मुहावरो व कहावतो ने उसमे ताजगी और जान डाल दी है। 

सूक्ष्म अनुशीलन पर निम्न प्रकार के उपन्यासो के दर्शन होते हैं:-
  1. सांस्कृतिक उपन्यास
  2. सामाजिक उपन्यास
  3. यथार्थ वादी उपन्यास
  4. ऐतिहासिक उपन्यास
  5. मनोवैज्ञानिक उपन्यास
  6. राजनीतिक उपन्यास
  7. प्रयागेात्मक उपन्यास
  8. तिलस्मी जादुई उपन्यास
  9. वैज्ञानिक उपन्यास
  10. धार्मिक उपन्यास
  11. लोक कथात्मक उपन्यास
  12. आंचलिक उपन्यास
  13. रोमानी उपन्यास
  14. कथानक प्रधान उपन्यास
  15. चरित्र प्रधान उपन्यास
  16. वातावरण प्रधान उपन्यास
  17. महाकाव्यात्मक उपन्यास
  18. जासूसी उपन्यास
  19. समस्या प्रधान उपन्यास
  20. भाव प्रधान उपन्यास
  21. आदर्श वादी उपन्यास
  22. नीति प्रधान उपन्यास
  23. प्राकृतिक उपन्यास।

उपन्यास का स्वरूप

हिन्दी साहित्य जगत में उपन्यास साहित्य नवीनतम विधाओं में से एक है जिसका प्रारंभ 19वीं शताब्दी से माना जाता है। इससे पहले उपन्यास विधा का सर्वथा अभाव देखने को मिलता था। जब से हिन्दी में गद्य साहित्य की शुरुआत हुई तब से ही उपन्यास की भी शुरुआत हुई ।

“उपन्यास आज के साहित्य की सबसे अधिक प्रिय और सशक्त विधा है कारण यह है कि उपन्यास में मनोरंजन का तत्व तो अधिक रहता ही है, साथ ही साथ जीवन को उसकी बहुमुखी छवि के साथ व्यक्त करने की शक्ति होती है। साहित्य की समस्त सर्जनात्मक विधाओं में उपर्युक्त दोनों गुण विद्यमान रहते हैं। किन्तु अन्य विधाएँ अपने-अपने विशिष्ट स्वरूप के कारण इन दोनों तत्वों" का प्रस्फुटन उतना नहीं कर पाती, जितना उपन्यास कर पाता है।
प्राचीन काल के कथा रूपों के विभिन्न तत्वों का जो स्वरूप - विश्लेषण भामह, दंडी तथा विश्वनाथ आदि आचार्यों ने किया है। आधुनिक कथा रूप उनसे सर्वथा है। जबकि आधुनिक उपन्यास के स्वरूप तथा उद्देश्य के विषय में विभिन्न भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों के मतों में पर्याप्त विषमता मिलती है।

उपन्यास ऐसी विधा है जिसमें लेखक हर एक पहलु को अपने विचार के माध्यम से तथा आधुनिक काल में क्या घटित हो रहा है, उसे भी उपन्यास के माध्यम से चित्रित करते हैं । सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, भ्रष्टाचार, शोषण, आतंकवाद, जातिवाद, प्रकृति चित्रण तथा प्राकृतिक सौन्दर्य आदि को उपन्यास के माध्यम से उल्लेखित करते है।

आज साहित्य की विविध विधाओं में उपन्यास पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में कई ऐसे नवीन प्रयोग भी प्रकाश में आये हैं, जिनसे आगे के लिए कुछ महत्वपूर्ण संभावनाएँ भी बन गई है, साहित्य की किसी भी विधा को जानने से पूर्व उसके स्वरूप और सैद्धान्तिक विवेचन का ज्ञान प्राप्त कर लेना आवश्यक है।"

साहित्य की विभिन्न विधाओं में उपन्यास का विशेष महत्वपूर्ण स्थान है । साहित्य के स्वरूप के विषय में भले ही मतभेद हो किन्तु यह बात सर्वसम्मत है कि उसे प्रमुख प्रतिपाद्य जीवन और जगत है अर्थात् साहित्य जीवन और जगत की - जितनी सुन्दर और सर्वांगीण अभिव्यक्ति उपन्यास में दिखाई पड़ती है, उतनी अन्य किसी साहित्य विधा में नहीं मिलती। इस कारण उपन्यास आज सर्वाधिक लोकप्रिय साहित्य का एक अंग है ।

आज के आधुनिक युग के उपन्यास मानव जीवन में परस्पर इतने घुल मिल गये हैं, कि प्रायः उनके ध्येय एक से प्रतीत होते हैं। वास्तविक जीवन तथा उपन्यास में इतना अर्थ साध्य है कि उसके मूल्य पर्याप्त सीमा तक जीवन के ही मूल्य प्रतीत होते हैं। उनमें अन्तर देखना दुष्कर है। मानव जीवन से जुड़ी हुई विधा होने के कारण उपन्यास का आन्तरिक और बाह्य दोनों ही रूप विभिन्न मानवीय विचारधार एवं दर्शन से अनुप्रमाणित होते रहे हैं।

आज के उपन्यास आज की स्थिति और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिखे जा रहे हैं। आज हमारी परम्पराएँ टूट रही है और नवीन आस्थाएँ जन्म ले रही हैं। युग के साथ जो चलने में समर्थ है। युगानुकुल अपने आपको बदलने में जो सक्षम है उनका ही अस्तित्व मान्य होगा। अतः आवश्यकता इस बात की है कि हम बदलते हुए सामाजिक मूल्यों को समझने का प्रयास करें।

उपन्यास साहित्य का समृद्ध और विकसित रूप है, जिसमें आज का जीवन अपनी अनेक मुखी विविधता में अपनी जटिलताओं और विशदताओं में सरलता से चित्रित किया जा सकता है। उपन्यास एक नए युग की नयी अभिव्यक्ति का नव्यतम रूप है। विकास के सोपानों को पार करते हुए उपन्यास ने आज अपना जो स्वरूप निर्मित किया है, उससे कई उपरूप निकले हैं। तिलस्मी, ऐयारी, जासुसी, सामाजिक, राष्ट्रीय, वर्गगत समस्याओं से युक्त गाथाएँ तथा ऐतिहासिक और रोमांस की प्रेम कथाओं से निकलकर उपन्यास आज मानव जीवन की गुत्थियों से आ जुझा है।
आज के युग के उपन्यासों में आज के वेश - परिवेश तथा आज की परिस्थितियों का वर्णन किया जाता है । आधुनिक युग के उपन्यासकार भी आज की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही अपने उपन्यास लिखते हैं । जैसे आतंकवाद, बाल-विवाह, भ्रष्टाचार, यौन शोषण, दलितों का शोषण तथा अत्याचार, स्त्रियों पर अत्याचार, भ्रुण हत्या, दहेज प्रथा, चोरी-डकैती आदि विषयों पर अपने-अपने ढंग से अपने-अपने उपन्यासों को चित्रित करते हैं।

“उपन्यास का स्वरूप जितना विविध और व्यापाक है, उसकी परिभाषा करना उतना ही कठिन है। प्रारम्भिक उपन्यासों के सीमित परिवेश को परिभाषित बद्ध करना उतना कठिन नहीं था, लेकिन आज का उपन्यास इतने जटिल और विस्तृत अनुभव क्षेत्र को आत्मसात किये हुए है कि उनके स्वरूप का स्पष्टीकरण बहुत निश्चित अर्थों में कर सकना सरल नहीं है । 

संदर्भ -
 
  1. बाबू गुलाब राय काव्य के रूप, आत्मा राम एंड संस, दिल्ली, प्रथम- 1970, 04 
  2. डा0 रमेश चन्द्र शर्मा हिन्दी साहित्य का इतिहास, विद्या प्रकाशन गुजैनी, कानपुर चतुर्थ- 2008, 14 
  3. डा0 श्री भगवान शर्मा गद्य संकलन कक्षा 9 (यू0पी0 बोर्ड) रवि आफसेट प्रिंटर्स, आगरा, द्वितीय 2003- 04, 02 
  4. डा0 बद्रीदास हिन्दी उपन्यास पृष्ठ भूमि और परम्परा ग्रंथम प्रकाशन, रामबाग कानपुर प्रथम- 1966, 89 9. 
  5. डा0 बद्रीदास हिन्दी उपन्यास पृष्ठ भूमि और परम्परा ग्रंथम प्रकाशन, रामबाग कानपुर प्रथम- 1966, 90 10. 
  6. डा0 कंचन शर्मा विश्वम्भरनाथ उपाध्याय के उपन्यास साहित्य निकेतन कानपुर, प्रथम- 2005, 175 11. डा0 

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