शोध अभिकल्प का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं विशेषताएं

कोई भी शोध कार्य बिना किसी लक्ष्य या उद्देश्य के नहीं होता है। इस उद्देश्य या लक्ष्य का विकास एवं स्पष्टीकरण शोध कार्य आरम्भ करने से पूर्व ही निर्धारित कर लिया जाता है। शोध के उद्देश्य के आधार पर अध्ययन् विषय के विभिन्न पक्षों को उद्घाटित करने के लिए पहले से ही बनाई गई योजना की रूपरेखा को शोध अभिकल्प कहते है।

शोध अभिकल्प की परिभाषा

विभिन्न विद्वानों ने इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया है। 

रोनाल्ड गिस्ट के अनुसार- “शोध अभिकल्प उस योजना से संबंधित है जिसके द्वारा आवश्यक सूचनाओं का विकास किया जाता है।” 

कैनथ आर. डेविस के अनुसार, “एक शोध अभिकल्प समंक संकलन के लिए एक रूपरेखा है। इसमें शोधकर्ता यह स्पष्ट करता है कि वह क्या प्राप्ति की आशा करता है और वह सूचनाओं का संकलन कैसे करेगा।” 

एफ.एन कार्लिगर के अनुसार- “शोध अभिकल्प शोध योजना, संरचना एवं व्यूहरचना है जिसकी कल्पना इस प्रकार की जाती है कि शोध के प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो सकं तथा प्रसरण को नियन्त्रित किया जा सके। इस प्रकार यह योजना शोध की पूर्ण रूपरेखा या उसका कार्यक्रम है, जिसमें प्रत्येक वस्तु की रूपरेखा सम्मिलित होती है तथा जिसको शोधकर्ता परिकल्पनाओं के निर्माण एवं उनसे सम्बन्धित अभिप्राया से लेकर तथ्यों के अन्तिम विश्लेषण तक संरचित करता है।” 

ए.जे.कान्ह के अनुसार- “शोध अभिकल्प की सर्वोत्तम परिभाषा अध्ययन की तार्किक युक्ति के रूप मं की जाती है। मूलत: यह प्रश्न का उत्तर देने, परिस्थिति का वर्णन करने या एक परिकल्पना का वर्णन करने से सम्बन्धित है। अन्य शब्दों मं शोध प्ररचना उस तर्काधिकार से सम्बन्धित है जिसके द्वारा कार्य प्रणालियां, जिसम तथ्य संकलन एवं विश्लेषण दोनों सम्मिलित है एक विशिष्ट समूह से एक अध्ययन की विशिष्ट आवश्यकताआं की पूर्ति की आशा की जाती है।”

बायड् तथा बेस्टफाल के अनुसार- “वैज्ञानिक रूप से किये जाने वाले प्रत्येक शोध में समंको के संकलन का नियन्त्रण करने हेतु बनाई जाने वाले रूपरेखा या विधि को ही शोध प्ररचना कहते हैे। इसका कार्य वांछित समंको को प्राप्त करना है तथा यह निरीक्षण करना है कि उसका संकलन शुद्धता और बचत के साथ किया गया है।” 

आर.एल.एकॉफ के अनुसार- “शोध अभिकल्प का निर्माण एक प्रकार का नियोजन करना है, अर्थात यह उस परिस्थिति के उत्पन्न होने से पूर्व की निर्णयन प्रक्रिया है जिसमं निर्णय को लागू किया जाता। यह पूर्व कल्पित परिस्थिति को नियन्त्रण मं लाने की दिशा में निर्देशित जानबूझकर की गई प्रत्याशा की प्रक्रिया है।”

ग्रीन एवं टुल के अनुसार- “शोध अभिकल्प आवश्यक सूचनाआ की प्राप्ति के लिए पद्धतियों एवं प्रक्रियाओं का निर्दिष्टीकरण है। यह परियोजना का समग्र परिचालनात्मक तरीका या रूपरेखा है जो यह शर्त निर्दिष्ट करता है कि कौन सी सूचनाएं, किस स्त्रोत द्वारा तथा किस प्रक्रिया के द्वारा एकत्रित की जानी है। अगर यह एक अच्छी प्ररचना है तो यह बताएगा कि शोध प्रश्नों हेतु प्राप्त की गई सूचनाएं संगत है और यह कि उद्देश्य के अनुसार तथा बचतपूर्ण प्रक्रियाआं द्वारा एकत्रित की गई है।”

सी. विलियम एमोर्य के अनुसार- “शोध प्ररचना में समंको के संकलन, मापन तथा विश्लेषण हेतु रूपरेखा सम्मिलित है। यह जटिल चयन परिस्थितियों में शोधकर्ता को सीमित संसाधनो के आवंटन मे सहायता करती है।”

क्लेयर सेल्याज तथा अन्य के अनुसार- “एक शोध की प्ररचना तथ्य संकलन एवं विश्लेषण की शर्तो की ऐसी व्यवस्था है जो शोध के उद्देश्यों की सदर्भता की कार्य रीतियों में बचत के साथ शामिल करने का लक्ष्य रखती है।” पी.वी. यंग के अनुसार- “शोध प्ररचना शोध के एक अंश का तर्कयुक्त तथा व्यवस्थित नियोजन एवं निर्देशन है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर सार रूप मे यह कहा जा सकता है कि शोध कार्य के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए इसे एक निश्चित प्रकार के अन्तर्गत रखने के लिए तथा शोध कार्य में उपस्थित विभिन्न स्थितियों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए जो रूपरेखा बनाई जाती है उसे शोध प्ररचना या शोध अभिकल्प कहते हैं। यह शोधकर्ता के प्रश्नों का पूर्ण उत्तर है। वास्तव में शोध प्ररचना तथ्यों के विश्लेषण की ऐसी व्यवस्था है जिससे शोध के उद्देश्य का स्पष्टीकरण होता है तथा तथ्यों को तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाता है। 

यह शोध प्रक्रिया की एक प्रकार से संरचना तथा युक्ति दोनों ही है, जो बताती है कि कारकों में प्रसारण तो नहीं हो रहा है। अन्य शब्दों में शोध प्ररचना शोध प्रक्रिया की एक व्यापक, स्पष्ट तथा तर्कपूर्ण रूपरेखा है। यहॉ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि शोध प्ररचना शोध उद्देश्यों के आधार पर अलग-अलग होती है। मूलत: इसका आधार तथा शुरूआत शोध व्यूहरचना तथा क्रियाओं के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों से सम्बन्धित होती है। 

राबर्ट फरवर के अनुसार- “शोध अभिकल्पना पहले से लिये गये निर्णयां की एक श्रृखंला है जो समग्र रूप से शोध कार्य म एक वृहद् योजना या मॉडल का कार्य करती है।” लक, वाल्स, टेलर रूबिन ने शोध प्ररचना की विशेषताओं को साररूप में दो शब्दों म व्यक्त किया है:- (i) पूर्वानुमान तथा (ii) निर्दिष्टीकरण- शोधकर्ता प्रस्तावित अध्ययन की आवश्यकताआं एवं परिस्थितियों का पूर्वानुमान करता है तथा पहले ही व्यापक रूप में यह निर्दिष्ट करता है कि क्या प्राप्त करना है तथा कैसे प्राप्त करना है। 

शोध अभिकल्प की विशेषताएं

शोध अभिकल्प की प्रकृति एवं विशेषताएं है- 
  1. यह समस्या के समाधान की आवश्यकताओं के प्रमाण का विवरण है
  2. यह समस्या के उत्तरां को उत्पन्न करने हेतु समंको का क्या किया जायेगा का पूर्वानुमान है।
  3. यह आधारभूत योजना का विवरण है जिसके द्वारा उत्तरों को प्रकट किया जाता है या वैधता को ज्ञात किया जाता है।
  4. यह निर्दिष्टीकरण का प्रमाण है कि कहॉ और कैसे इसे प्राप्त किया जायेगा।
  5. यह परियोजना की लागत और सम्भाव्यता की गणना और अनुमति के लिए मार्गदर्शक है।
  6. यह प्रस्तावित कार्य के मार्गदर्शन हेतु रूपरेखा या योजना का प्रावधान है।
  7. शोध अभिकल्प शोधकर्ता को शोध की एक निश्चित दिशा का बोध कराता है इस अर्थ में शोध अभिकल्प एक प्रकार की दिग्दर्शक है। 
  8. यह शोध प्रक्रिया के दौरान आने वाली परिस्थितियों को नियन्त्रित करती है एवं शोध कार्य को सरल करती है।
  9. यह शोध के अधिकतम उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करती है
  10. शोध अभिकल्प का चयन शोध कार्य की समस्या एवं परिकल्पना की प्रकृति के आधार पर किया जाता है।
  11. शोध अभिकल्प समस्या की प्रतिस्थापना से लेकर शोध प्रतिवेदन के अन्तिम चरण तक के विषय में उपलब्ध विकल्पों के बारे म व्यवस्थित रूप से श्रेष्ठ निर्णय लेने में सहायता करती है।

शोध अभिकल्प के उद्देश्य

सम्भवत: समस्त शोध कार्य के लिए शोध अभिकल्प अति आवश्यक ह जिसका निर्माण परिकल्पनाओं के आधार पर किया जाता है तथा अभिकल्प के अनुकूल ही तथ्यों का संकलन, विश्लेषण एवं परीक्षण किया जाता है। चूॅकि प्रत्येक शोध का मुख्य उद्देश्य विश्वसनीय एवं प्रमाणिक परिणाम प्राप्त करना होता है। अत: शोध अभिकल्प के निम्न उद्देश्य होते हैं-
  1. अवलोकन एवं विश्लेषण के लिए आवश्यक आधार प्रस्तुत करना।
  2. शोधकर्ता के प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर देना।
  3. शोध में परिकल्पना के आधार पर विभिन्न कारकों के प्रसरण पर नियन्त्रण रखना।
उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु निम्न बातें अति आवश्यक है-
  1. शोध की समस्या का स्पष्ट एवं विस्तृत ज्ञान।
  2. अध्ययन के विशिष्ट उद्देश्यां की स्पष्ट जानकारी।
  3. समंको के संकलन की विभिन्न विधियों की स्पष्ट जानकारी।
  4. समंको के संकलन एवं संशोधन हेतु सुव्यवस्थित योजना का उपलब्ध होना।
  5. समंको के विश्लेषण हेतु सुव्यवस्थित योजना।

शोध अभिकल्प के प्रकार 

सामान्यत: सभी शोधों का एक ही मूलभतू उद्देश्य होता है- ज्ञान की प्राप्ति। इस उद्देश्य की पूर्ति विभिन्न प्रकार से हो सकती है और उसी अनुसार शोध अभिकल्प का रूप भी अलग-अलग हो सकता है। विभिन्न विद्वानों ने शोध अभिकल्प को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया है। 

विलियम, एमोर्य, रोनाल्ड आर. गिस्ट तथा डेल लिटलर आदि विद्वाना ने विभिन्न प्रकार के शोध अभिकल्प का वर्णन किया। सब ने शोध अभिकल्प के विभिन्न प्रकार अलग-अलग तरह के बताए है परन्तु सार रूप में शोध अभिकल्प के प्रमुख प्रकार बताए हैें:-

अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प

इस शोध अभिकल्प में विचारों एवं तथ्यो पर अधिक बल दिया जाता हैं। जब किसी शोध कार्य का उद्देश्य किसी विपणन समस्या म अन्तर्निहित कारणों को ढूँढ निकालना होता है तो उससे सम्बद्ध रूपरेखा को अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प कहते हैं। सी. विलियम एमोर्य के मतानुसार- “इस प्रकार का शोध अभिकल्प विशेषत: उस समय उपयेागी होता है जबकि शोधकर्ता के पास समस्या के स्पष्ट विचार का अभाव होता है जो कि उसे अध्ययन के दौरान पूरा करना है। अन्वेषण के द्वारा शोधकर्ता समस्या को अधिक स्पष्ट रूप से विकसित करता है। उसकी प्राथमिकताओं का निर्धारण करता है और अन्य कई रूपों म अपनी अन्तिम शोध अभिकल्प का सुधार करता है।” अन्वेषण उसे समय तथा धन की बचत करने में भी सहायता करता है। 

इस प्रकार इसमें शोधकर्ता की रूपरेखा इस तरीके से प्रस्तुत की जाती है कि समस्या की प्रकृति व उसके वास्तविक कारणों की खोज की जा सके। अत: अन्वेषणात्मक शोध द्वारा बदलते व्यवहारों एवं नीतियों का पता लगाया जाता है तथा नए विकल्पों का विकास किया जाता है। अन्वेषण की दो पद्धतियां (i) साहित्य अध्ययन (ii) अनुभव सर्वेक्षण होती है।

वर्णनात्मक शोध अभिकल्प

पी.वी. यंग ने कहा है “यह शोध अभिकल्प का वह प्रकार है जो समस्या की विशेषताओं का वर्णन करने से सम्बन्धित होता है।” एमोर्य के अनुसार- “वर्णनात्मक अध्ययन के उद्देश्य में समस्या के कौन, क्या, कब, कहॉ और कैसे का निर्धारण होता है।” इस प्रकार विपणन समस्या के सम्बन्ध मं वास्तविक तथ्यों के आधार पर वर्णनात्मक विवरण प्रस्तुत करना ऐसी शोध अभिकल्प का मुख्य उद्देश्य होता है। इसके लिए समस्या या विषय के सम्बन्ध में यथार्थ एवं पूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होना आवश्यक होता है। 

इस प्रकार की शोध अभिकल्प में तथ्यों का संकलन किसी भी वैज्ञानिक प्राविधि के द्वारा किया जा सकता है। प्राय: साक्षात्कार अनुसूची व प्रश्नावली, प्रत्यक्ष निरीक्षण, सहभागी निरीक्षण, सामुदायिक रिकार्ड का विश्लेषण आदि प्रविधियों को वर्णनात्मक शोध अभिकल्प में सम्मिलित किया जाता है।

पी.वी. यंग के अनुसार इसमं निम्न चरण सम्मिलित होते हैें-
  1. अध्ययन के उद्देश्यों का निरूपण।
  2. समंक संकलन की पद्धतियां की अभिकल्प।
  3. सैम्पल का चयन।
  4. समंकों का संकलन एवं जॉच।
  5. परिणामों का विश्लेषण।
  6. रिपोर्ट प्रस्तुतीकरण।

निदानात्मक शोध अभिकल्प

निदानात्मक शोध अभिकल्प का वह प्रकार है जिसमें किसी समस्या के कारणों को ज्ञात करने के साथ उनके समाधान के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। चँूकि सभी प्रकार के शोध कार्यो का उद्देश्य वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति एवं अभिवृद्धि होता है। अत: केवल निदानात्मक शोध ही एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें किसी शोध की समस्या के सम्बन्ध में वास्तविक कारणों को ज्ञात करने के साथ उसके समाधान भी ज्ञात किये जाते हैे, अर्थात विशिष्ट सामाजिक समस्या के निदान की खोज करने वाले शोध कार्य को निदानात्मक शोध कहते हैं। इस सम्बन्ध में शोधकर्ता समस्या का हल प्रस्तुत करता है न कि स्वयं उस समस्या का हल करने के प्रयास में लग जाता है। 

शोधकर्ता केवल वैज्ञानिक पद्धतियों के द्वारा समस्या के कारणों को जान लेने के पश्चात् उसका उचित समाधान किस विधि से सर्वोत्तम रूप में हो सकता है इस बात की खोज करता है इसलिए निदानात्मक शोध में समस्या का पूर्ण एवं विस्तृत अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से करके समस्या की गहराई मे पहॅुचने का प्रयास किया जाता है जिससे कि समस्या के कारणों का ज्ञान ठीक ढंग से हो सके। इस प्रकार समस्या के कारणों का ज्ञान सर्वप्रथम है, उसके निदानों की खोज उसके बाद की बात है।

प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प

यह शोध अभिकल्प का वह प्रारूप है जिसमे किसी समस्या के कारण प्रभाव सम्बन्धों को जानने का प्रयास किया जाता है। इसके अन्तर्गत नियन्त्रित दशाओं में निरीक्षण-परीक्षण द्वारा समस्याओं का अध्ययन करने हेतु शोध अभिकल्प बनाई जाती है। 

लक, वाल्स, टेलर तथा रूबिन के अनुसार- “एक प्रयोग को प्रस्तावित अध्ययन या अन्य परिकल्पनाआ की वास्तविक परीक्षा के रूप मं परिभाषित किया जा सकता है।” ताकि इसके प्रभावों को उद्देश्यपूर्ण रूप से मापा जा सके तथा वाह्य तत्वां के प्रभाव को अलग से पहचाना जा सके। 

सार रूप में, नियन्त्रण दशाओं में निरीक्षण-परीक्षण के द्वारा विपणन समस्याओं का व्यवस्थित अध्ययन करने की रूपरेखा को प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प’ कहते है। प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प निम्न प्रकार की होती है।
  1. प्रयोगात्मक परीक्षण।
  2. क्षेत्र परीक्षण।
  3. अर्द्ध-प्रयोगात्मक अभिकल्प।
  4. सर्वे शोध अभिकल्प
  5. सिम्युलेशन।
समस्त शोधों का एक ही आधारभतू उद्देश्य होता है ज्ञान प्राप्त करना। अर्नेस्ट ग्रीनवुड के अनुसार- “शोध की परिभाषा ज्ञान की खोज मं प्रमाणीकृत कार्यरीतियों के प्रयोग के रूप मं की जा सकती है परन्तु शोध के उद्देश्यों की प्राप्ति विभिन्न प्रकार से हो सकती है और इसके अनुसार शोध अभिकल्प का रूप भी अलग-अलग हो सकता है।”

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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