विशिष्ट बालक का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार

विशिष्ट बालक का अर्थ

विशिष्ट शब्द असाधारण को सूचित करता है अर्थात् वे बालक जो किसी रूप में साधारण बालकों में असाधारण है। विशिष्ट बालक अपने विशेष लक्षणों के कारण ही सामान्य बालकों से भिन्न दिखाई देता है तथा दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। विद्यालय के नियमित सामान्य कार्यक्रमों से वे समुचित लाभ नहीं उठा पाते है। 
अत: उनकी शिक्षा-दीक्षा व पालन-पोषण का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं यद्यपि सामान्य और विशिष्ट चाहे एक क्षेत्र से सम्बन्धित हो या कई क्षेत्रों से उसका प्रभाव बालक के कार्य, व्यवहार एवं सामाजिक समायोजन में स्पष्ट दिखाई पडत़ा है। वस्तुत: हमारे समाज में यह विशिष्टता कई रूपों में दिखाई देती है। जिसे कुछ वर्गों में विभाजित करने का प्रयास किया गया है।

विशिष्ट बालक की परिभाषा

क्रो और क्रो के अनुसार “विशिष्ट शब्द किसी विशेष लक्षण के लिये अथवा एसे व्यक्ति के लिये प्रयोग किया जाता है जो विशेष लक्षणों से युक्त होता है, जिसके कारण ही एक व्यक्ति अपने साथियों का विशेष ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है।”

शैक्षिक अध्ययन की राष्ट्रीय समिति के अनुसार “विशिष्ट बालक वे होते है जो कि औसत बालकों से शारीरिक मानसिक सवंगेात्मक अथवा सामाजिक लक्षणों में इतनी मात्रा में भिन्न होते है कि अपनी अधिकतम क्षमता के विकास के लिये उन्हें विशेष शैक्षिक सवेाओं की आवश्यकता होती है।”

यहाँ विशेष शैक्षिक सवेाओं से अभिप्राय प्रत्येक प्रकार की सवेा से है अर्थात् विशेष शिक्षा, विशेष कक्षा, विशेष शिक्षक, विशेष शिक्षण प्रविधियाँ तथा शैक्षिक उपकरणों से हो सकता है।

विशिष्ट बालक की परिभाषा देते हुए सचवार्ट्ज महोदय ने लिखा है कि- “जब किसी बालक को विशिष्ट कहकर वर्णित करते है तो हम उसकी औसत का या ‘सामान्य’ लोगों जिन्हें हम एक या इससे अधिक लक्षणों के सम्बन्ध में जानते है, से अलग रखते हैं।”

विशिष्ट बालक के प्रकार

विशिष्ट बालकों के लक्षणों व विशेषताओं के आधार पर मनोवैज्ञानिकों ने इनका वर्गीकरण निम्नांकित रूप में किया है- 
विशिष्ट बालक के प्रकार

विशिष्ट बालकों की विशेषताओं का सम्बन्ध कई क्षेत्रों से होता है। अत: उनके प्रकारों के आधार पर ही उनकी विशेषताओं को स्पष्ट किया जा सकता है। विशिष्ट बालकों में भी कई प्रकार के बालकों को सम्मिलित किया जाता है जैस-ेविकलांग बालक (वर्तमान में दिव्यांग शब्द से इन्हें सम्बोधित किया जाता है), पिछडे़, प्रतिभाशाली आदि। ये बालक शारीरिक, मानसिक क्रियात्मक और भावात्मक सभी दृष्टिकोण से एक दूसरे से भिन्न होते है। इतना ही नहीं विशिष्ट बालक सामान्य बालकों से भी अलग दिखाई पड़ते है। 

ये बालक सामान्य बालकों की तुलना में अधिक या कम गुणों वाले होते हैं। ऐसे बालकों की विशेषताएं किसी एक क्षेत्र या कई क्षेत्रों से सम्बन्धित हो सकती है, परन्तु उनका प्रभाव बालक के व्यवहार के विभिन्न क्षेत्रांें में पड़ता है। यह बालक देश और समाज की अमूल्य धरोहर होते है।

विशिष्ट बालकों का शारीरिक मानसिक व्यावहारिक और वैचारिक स्तर साधारण बालकों से भिन्न दिखाई पड़ता है इनके लिये विशेष प्रकार का शिक्षण पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों, प्रशिक्षित शिक्षक, विद्यालय एवं सहायक उपकरणों की आवश्यकता होती है। सामान्य बालकों के लिये प्रयुक्त शिक्षण व्यवस्था उनके लिये उपयोगी नहीं हुआ करती। शिक्षक, अभिभावक आदि सभी को उनका विशेष ध्यान रखना पड़ता है।

यहाँ पर विभिन्न प्रकार के विशिष्ट बालकों में से केवल उन्हीं बालकों की विशेषताओं की चर्चा की जा रही है जिन्हें शोधकर्त्री द्वारा शोध कार्य हेतु विशिष्ट विद्यालय के छात्र के रूप में चिन्हित किया गया है।

विकलांग बालक

विकलांगता प्राय: दो प्रकार की होती है- (1) शारीरिक विकलांगता और (2) मानसिक विकलांगता। इन दोनों प्रकार के विकलांग बालकों में कुछ अपनी विशेषताएं होती है जो उन्हे सामान्य बालकों से अलग करती है।

1. शारीरिक विकलांग बालक

शारीरिक विकलांग बालकों के सामने समायोजन की समस्या होती है। वे उन कार्यो व खेलों में भाग नहीं ले पाते जिनमें सामान्य बालक शामिल रहते है। अपनी शारीरिक विशिष्टता के कारण उनमें सवेंगों को अधिकता होती है जिससे वे क्रोधी, निराश्श, दुखी और दैन्यता का भाव दर्शाते है। शारीरिक दोष के कारण इनके विकास में अवरोध आ जाता है, जिसके कारण कार्य सम्पादन में शिथिलता आ जाता है, और किसी बात को समझने व सीखने में अधिक समय लेते है। शारीरिक अयोग्यता के कारण यह अपनी पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर पाते।

2. मानसिक विकलांग बालक

इस प्रकार के बालकों में कल्पनात्मक एवं रचनात्मक शक्ति न्यून होती है। इनमें प्रेरणा शक्ति की भी न्यनूता होती है। इनका शिक्षण कठिन होता है। अन्य लोगों के साथ इनका समायोजन नहीं हो पाता। मानसिक रूप से बाधित बालकों में भूलने की आदत होती है। यह उचित अनुचित में अन्तर नहीं कर सकते इनका मानसिक स्तर निम्न होता है। 

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