व्यावसायिक संतुष्टि की अवधारणा

व्यावसायिक संतुष्टि का सम्प्रत्यय व्यक्ति की कार्य प्रवीणता व कुशलता को स्पष्ट करता है। प्रस्तुत सम्प्रत्यय आज के उद्योगपतियों के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिकों के शोध का एक आकर्षक विषय है। उद्योगपतियों के लिए यह विषय इसलिए लाभप्रद है क्योंकि इससे उन्हें अपने कार्यकत्ताओं की कुशलता व क्षमता को जानकर उत्पादन की गुणवत्ता का बोध हो जाता है जिससे यह दोनों के कल्याण से सम्बन्धित हो जाती है।
 
व्यावसायिक संतुष्टि मनोवैज्ञानिकों के लिए इसलिए आकर्षक विषय है क्योंकि एक और व्यावसायिक निर्देशन देने के लिए और दूसरी ओर प्रवणता परीक्षण की उपादेयता तथा प्रभावशीलता के अध्ययन की वैधता भी व्यावसायिक संतुष्टि द्वारा ही ज्ञात की जाती है।

व्यावसायिक संतुष्टि वास्तव में उस संतुष्टि के मध्य इस विभिन्नताओं का निर्धारण करती है जिसमें व्यक्ति अपने व्यवसाय में क्या चाहता है और उसके व्यवसाय में क्या है व्यवसायिक संतुष्टि एक व्यक्ति द्वारा कार्य करने की उस मन:स्थिति का अवलोकन भी करता है कि व्यक्ति किसी भी कार्य को प्रसन्नता पर्वूक, अच्छा करने और प्रत्यानुकूल पुरूस्कार प्राप्त करना चाहता है। कह सकते है कि- Job satisfaction is determind by a discrepancy between – what one wants in a job and what one has in a job. 

 इस प्रकार व्यावसायिक संतुष्टि में व्यक्ति द्वारा उस वातावरण के सकारात्मक पहलुओं को सम्मिलित किया जाता है जिसें वह कार्य करना चाहता है। और उस व्यवसाय के कार्यों को पसन्द करता है और व्यवसाय में कार्योन्नति व स्वयं की उन्नति की इच्छा रखता है। अन्य शब्दों में कह सकते है कि व्यक्ति विशेष की जो कि उसके कार्य विशेष की आनन्द अनुभूति द्वारा उत्पन्न वह स्थिति है जिसें वह व्यवसाय या कार्य कर रहा है के प्रति विभिन्न कारकों का सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदर्षित कर मानसिक व संवगेात्मक स्थिति को दर्षाती है।

व्यावसायिक संतुष्टि को स्पष्ट रूप से निम्नलिखित परिभाषाओं द्वारा समझ सकते है-

व्यावसायिक संतुष्टि की परिभाषा

व्यावसायिक संतुष्टि की अनेक परिभाषाए दी गई है। किन्तु कुछ विद्वानों की परिभाषा को सर्वसम्मति से स्वीकार करते है-

कटजैल के अनुसार (1964)-व्यावसायिक संतुष्टि एक वेतनभोगी का अपने कार्य के मूल्यांकन की शाब्दिक अभिव्यक्ति है। व्यावसायिक संतुष्टि के शाब्दिक मूल्यांकन को अभिवृत्ति प्रष्नावली या मापनी के द्वारा क्रियात्मक बनाया जाता है जिसके द्वारा वतेनभोगी अपने व्यवसाय को पसन्द नापसन्द या लगभग सामानाथ्र्ाी जैस-े सन्तुष्ट, असन्तुष्ट व सतत् स्तर पर अंकित करता है।

“व्यावसायिक संतुष्टि कर्मचारियों द्वारा पे्ररित विभिन्न अभिवृत्तियों का परिणाम है। सकींर्ण रूप में कर्मचारियों की अभिवृत्ति उनके व्यवसाय और सम्बन्धित कारकों जैसे- वेतन, देखभाल, निरीक्षण, व्यवसाय में नियमितता, कार्य की स्थिति, उन्नति के अवसर, योग्यताओं को मान्यता, कार्यों का उचित मूल्यांकन, व्यवसाय का सामाजिक सम्बन्ध, समस्याओं के कारणों का उत्साहपण्र्ूा निराकरण, नियोक्ताओं द्वारा उचित निदान और अन्य समान कारकों से सम्बन्धित है। 

स्पेक्टर (1997) “व्यावसायिक संतुष्टि का अर्थ व्यक्ति द्वारा अपने व्यसाय को पसन्द या नापसन्द करने से है।” “व्यावसायिक संतुष्टि को कार्य या कार्य-वातावरण से जुड़े हुए व्यक्तियों के अनुकूल या धनात्मक अनुभवों के रूपें स्पष्ट किया जाता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के संक्षिप्त रूप में यह परिभाषा उचित है- कि “व्यावसायिक संतुष्टि में व्यवसाय से सम्बन्धित सभी योग्यताओं क्षमताओं तथा कारकों को सम्मिलित करते हैं जिनसे व्यक्ति उस व्यवसाय के कार्यों को करना पसन्द करता है और उसी रोजगार, में रहकर प्रगति की इच्छा रखता है।”

इस प्रकार व्यावसायिक संतुष्टि सामान्यत: व्यक्ति द्वारा अपने कार्य कौशल का उचित प्रयोग करते हुए आदर्श स्थिति को प्राप्त करने से सम्बन्धित है। इसमें व्यक्ति विशिष्ट ज्ञान का प्रयोग करते हुए सेवा भावना एवं नैतिक दृढ़ता के साथ बौद्धिक एवं सवेंगात्मक रूप से कुछ तत्वों जैसे- आय, सम्मान, कुशलता आदि के रूपें संतुष्टि प्राप्त करता है।

व्यावसायिक संतुष्टि को प्रभावित करने वाले कारक

यह अत्यन्त आवश्यक होता है कि व्यक्ति की कार्य संतुष्टि को जानने से पूर्व उन कारकों के विस्तार को जानें जिन पर व्यावसायिक संतुष्टि निर्भर करती हैं। व्यावसायिक संतुष्टि कई अन्र्तसम्बन्धित कारकों पर निर्भर होती है जिन्हें वास्तव मे अलग करना कठिन होता है। मुख्य रूप से व्यावसायिक संतुष्टि निम्नलिखित कारकों पर निर्भर होती है-
  1. व्यक्तिगत कारक
  2. व्यवसाय से सम्बन्धित सामान्य कारक
  3. कार्य या व्यवसाय निहित कारक

1. व्यक्तिगत कारक

व्यक्तिगत कारक व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित वह कारक होते हैं जो कि कार्य दषा को आन्तरिक रूप से प्रभावित करते रहते है। व्यक्तिगत कारक के अन्तर्गत आयु, लिंग, बुद्धि, रूचि, व्यक्तित्व तथा पारिवारिक स्थिति आदि को भी सम्मिलित कर सकते है। कुछ सीमा तक वैवाहिक स्थिति भी इस कारक के अन्तर्गत सम्मिलित की जा सकती है। शिक्षण अनुभव की अवधि तथा अभिवृत्ति भी इस कारक को प्रभावित करते हैं।

आयु साधारणतय: यह पाया जाता है कि पुरूषों की तुलना में महिलाओं में अधिक व्यावसायिक संतुष्टि पायी जाती है। इसका कारण शायद यह तथ्य होता है कि महिलाओं की महत्वाकांक्षाए तथा वित्तीय आवष्यकताएं थोड़ी कम होती है। 

व्यक्तिगत कारकों को निम्नलिखित रूपें भी वर्गीकृत किया जा सकता है।

1. शिक्षण अनुभव की अवधि - व्यावसायिक संतुष्टि के लिए एक प्रभावी कारक शिक्षण अनुभव भी होता है एक शिक्षक जितना अधिक अनुभवी होगा उसकी कार्य कुशलता तथा योग्यता में वृद्धि होती जाती है इसलिए उच्च योग्यता पर उसके अनुरूप पदोन्नति, वतेन आदि कारक भी सम्मिलित हो सकते है। इसलिए शिक्षण अनुभव की स्थिति भी व्यावसायिक संतुष्टि हेतु उत्तरदायी है।

2. आयु - यद्यपि आयु व्यावसायिक संतुष्टि में अल्प सम्बन्ध ही माना जाता है किन्तु यह भी वास्तविकता है कि अधिक आयु के व्यक्ति वर्तमान व्यवसाय से लगभग समझौता ही करते है। चूँकि कम आयु के शिक्षकों के पास अन्य क्षेत्रों में जाने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा व सम्भावनाए होती है जबकि अधिक आयु के लोग स्थिरता चाहते है।

3. लिंग - लिंग का प्रभाव व्यावसायिक संतुष्टि पर भी पड़ता है क्योंकि सर्वमान्य तथ्य के अनुसार महिलाओं की महत्वकाक्षाएं व वित्तीय आवश्यकताओं को पुरूष की तुलनों कम बताया जाता है तथा महिलाएं अधिक सन्तुष्ट होती है।

4. बुद्धि - व्यक्ति विशेष की बुद्धि स्तर भी व्यावसायिक संतुष्टि का एक महत्वपण्र्ूा कारक है। एसेा माना जाता है कि अधिक बुद्धिमान किसी अन्य क्षेत्रों में पलायन करते रहते हैं जब तक कि वह सन्तुष्ट नहीं होते कहने का तात्पर्य है कि उनमें पलायन व कार्य असंतुष्टि की प्रवृत्ति अधिक होती है।

5. वैवाहिक स्थिति - यद्यपि इस कारक को बहुत प्रभावी नहीं कह सकते किन्तु यह कहा जाता है कि विवाहित व्यक्ति अधिक सन्तुष्ट रहता है क्योंकि स्थायित्व अन्य प्रकार से भी संतुष्टि प्रदान करता है।

2. व्यवसाय से सम्बन्धित सामान्य कारक

यह वह कारक है जिनसे व्यक्ति की आन्तरिक व बाह्य कार्य दषा प्रभावित होती है। व्यवसाय से सम्बन्धित कारक  है-

1.शिक्षा - किसी कार्यकर्त्ता की कुशलता व संतुष्टि इस बात पर भी आधारित होती है कि उसकी रूचि के अनुसार व्यवसाय मिला है या नहीं। ठीक उसी प्रकार शिक्षक की व्यावसायिक संतुष्टि उचित शिक्षा और उचित व्यवसाय के आधार पर निर्धारित होती है।

2. आकांक्षा व रूचि - व्यवसाय या कार्य के प्रति शिक्षक की रूचि स्वाभाविक रूप से व्यावसायिक संतुष्टि को उत्पन्न करती है। अर्थात् अपने व्यवसाय के प्रति रूचि व आकांक्षाए स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने पर शिक्षक व्यावसायिक संतुष्टि प्राप्त करता है।

3. विचारों मे स्वायत्तता - कार्य करने की स्वतन्त्रता होने से एक शिक्षक अपने कला-कौशल में नयी-नयी युक्तियों का प्रयोग कर उसे प्रभावी बनाने का प्रयास करता है। एक शिक्षक चाहे वह किसी भी संस्थान शिक्षण कार्य करता हो उसकी व्यावसायिक संतुष्टि को यह कारक भी प्रभावित करता है कि उसके विचारों को संस्थान से मान्यता मिली है? अथवा नहीं। विचारो को अभिव्यक्त न कर पाने सें उसकी कार्य के प्रति स्वभाविक क्रियाशीलता भी प्रभावित होती है।

4. कार्य की दषाएं - व्यवसाय से सम्बन्धित सामान्य कारक के अन्तर्गत व्यावसायिक संतुष्टि को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक एक शिक्षक के कार्य की दषाए होता है। कार्य की दषा से अर्थ शिक्षक जिस वातावरण में रह रहा है, उसके कार्य का किन पर और कितना प्रभाव पड़ रहा है आदि से होता है। यदि एक शिक्षक कार्य करने के ढंग से सन्तुष्ट नहीं है तो भी वह कार्य सन्तुष्ट नहीं कहा जा सकता।

5. वतेन - कार्य के अनुरूप वेतनभत्ता का निर्धारण भी कार्य के प्रति उत्साह बढ़ाता है यदि एक शिक्षक का वेतन, चाहे, वह निजी संस्थान में हो अथवा सरकारी में, जब तक उचित नहीं दिया जाएगा तब तक कार्य के प्रति स्वाभाविक ईमानदारी का विकास नहीं हो सकता इसलिए आवश्यक है कि शिक्षकों को मानक के अनुरूप वतेन भी सुनिश्चित हो।

6. प्रशासन और सहकर्मियों से सम्बन्ध -मित्रतापूर्वक व्यवहार तथा सहयोगात्मक सम्बन्ध कार्य करने की क्षमतों वृद्धि करते है। शिक्षक को मानसिक कार्य अधिक करने होते हैं इसलिए आवश्यक है कि प्रशासन और सहकर्मियों से सम्बन्ध अच्छे हो। व्यावसायिक संतुष्टि पर वाह्य वातावरण के साथ सहकर्मियों व कर्मचारियों के व्यवहार का प्रभाव पड़ता है।

7. व्यक्तित्व- व्यवसायिक असंतुष्टि का व्यक्तित्व कुसमायोजन से गहरा सम्बन्ध होता है। कुसमायोजित व्यक्तित्व वाले शिक्षक शीघ्र ही व्यावसायिक असंतुष्टि से ग्रसित हो जाते है क्योंकि व्यक्तिगत कुसमायोजन व्यावसायिक असंतुष्टि का मुख्य कारक व स्त्रोत होता है।

8. उन्नति के अवसर - व्यावसायिक संतुष्टि के सामान्य कारक या वाह्य कारक के रूप में उन्नति के अवसर को एक प्रभावी कारक के रूप में पहचाना जाता है क्योंकि मानवीय स्वभाव सदैव उन्नति की ओर अग्रसर होना तथा परिवर्तनषील रहना होता है इसलिए उन्नति के अवसरों से प्रेरित होकर वह कार्य को मेहनत के साथ रहकर करता है और सन्तुष्ट होता है।

9. सचूना प्रणाली - अधिकांशत: गलत सचूनाओं के कारण गलत धारणाओं का अवतरण होता है जिससे स्वस्थ्य वातावरण भी दूषित हो जाता है। स्वाभाविक है कि एसे ेवातावरण में कार्य भी पभ््राावी होगा। कार्य का प्रभावी होने से व्यक्ति संतुष्टि पर भी प्रभाव पडे़गा। शिक्षण वातावरण में दोहरा सन्देषवाहन होने से कार्य वातावरण में गलत धारणाए ंनही होगीं जिससे शिक्षक कार्य के प्रति संतुष्टि होगा। वातावरण स्वस्थ्य होने से गलत धारणाएं भी न पनपेगीं। 

इस प्रकार व्यावसायिक संतुष्टि को प्रभावित करने वाले व्यवसाय में निहित वह कारक है जो आन्तरिक व बाह्य रूप से विशिष्ट शिक्षा शिक्षक की व्यावसायिक संतुष्टि को प्रभावित करते हैं। इन कारकों को कभी-कभी तो प्रत्यक्ष रूप से पहचाना जा सकता है तो कभी-कभी यह शिक्षक को आन्तरिक रूप से प्रभावित करते है और अप्रत्यक्षत: तब इन कारकों को पहचानना थोड़ा कठिन होता है किन्तु निरीक्षण के द्वारा इन कारकों को पहचानने में मदद मिल सकती है क्योंकि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से यह शिक्षक की कार्य शक्ति को प्रभावित अवष्य ही करते हैं।

3. कार्य या व्यवसाय निहित कारक

इस कारक के अन्तर्गत व्यक्ति विशेष की कार्यदषा की स्थिति के विषय में सचूना प्राप्त होते है जोकि निम्नलिखित प्रकार की हैं-

1. उत्तरदायित्व की भावना - व्यक्तिगत भिन्नता की वह विशेषता की प्रत्येक व्यक्ति भिन्न होता है, यह व्यावसायिक संतुष्टि के उत्तरदायित्व की भावना से भी प्रेरित होता है। कार्य को कर्म और उत्तरदायित्व की भाँति लेना कर्म की पजूा की भाँति समझना प्रत्येक शिक्षक का गुण नहीं हो सकता। ठीक इसी प्रकार इसे व्यक्तिगत कारक भी कह सकते है कि किस शिक्षक को यह उत्तरदायित्व लेना अच्छा लगता है अथवा किसे बोझ? सहर्षत: कार्य की उत्तरदायित्व लेने वाला शिक्षक अधिक व्यावसायिक सन्तुष्ट होगा।

2. व्यावसायिक प्रतिष्ठा - जिस व्यवसाय मे व्यक्ति कार्य कर रहा है उस कार्य को समाज में कितना सम्मान प्राप्त है व्यावसायिक संतुष्टि इस बात पर भी निर्भर करती है इसलिए व्यावसायिक प्रतिष्ठा भी व्यावसायिक संतुष्टि का एक प्रमुख कारक है। वर्तमान समाज मे भी शिक्षक का व्यवसाय प्रतिष्ठित है किन्तु विशिष्ट शिक्षा का अधिक प्रसार-प्रचार न होने के कारण तथा चुनौतीपण्र्ूा होने के बाद भी प्रश्न उठता है कि एसे मे विशिष्ट शिक्षा शिक्षक इसे कितना समझ पा रहा है और वह अपने व्यवसाय से कितना सन्तुष्ट है।

3. सेवा सम्बन्धी नीतियाँ - सुदृढ़ सवेा सम्बन्धी नीतियों से कर्मचारी सन्तुष्ट होते है इसलिए विद्यालय मे जितनी अधिक सुदृढ़ नीतियाँ शिक्षकों आदि को ध्यान मे रखकर बनायी गयी होगीं, शिक्षक उतना ही कार्य सन्तुष्ट होगा।

4. सुरक्षा - प्रत्येक कार्य व व्यवसाय मे कुछ जोखिम अवष्य होता है जैस-े असमय व्यवसाय छोड़ने का डर आदि। इन सभी को ध्यान में रखते हुए सामाजिक सुरक्षा के अन्तर्गत बीमा, अच्छा वातावरण और प्रॉविडेण्ड फण्ड आदि उपलब्ध कराए जाते है। जिन संस्थानो में इसकी जितनी अच्छी व्यवस्था होती है उसका कर्मचारी या शिक्षक उतना ही अपने व्यवसाय से सन्तुष्ट होता है। उपरोक्त कई प्रकार के कारक होते है जो शिक्षक के व्यावसायिक संतुष्टि के लिए उत्तरदायी होते हैं। किन्तु इन कारकों से सम्बन्धित कुछ पक्ष होते है जिनके और कारकों का सयुंक्त प्रभाव व्यावसायिक संतुष्टि पर पड़ता है।

व्यावसायिक संतुष्टि के निर्धारक पक्ष

व्यक्ति व्यवसाय के अग्रवर्णित सभी पक्षो ंके साथ किसी न किसी प्रकार से सम्बन्धित होता है। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से इनके सम्बन्ध का प्रभाव प्रकट होता है। शिक्षक के शिक्षण व्यवसाय से सभी पक्ष व्यावसायिक संतुष्टि को निर्धारित करते है इसलिए इन्हे व्यावसायिक संतुष्टि के निर्धारक पक्ष कहते है जो कि निम्नलिखित है- 

(1) पारिवारिक पक्ष

किसी भी व्यवसायी की चाहे वह शिक्षक या कोई और व्यक्ति हो सभी की व्यावसायिक संतुष्टि के निर्धारण का एक प्रमुख पक्ष परिवार होता है। पारिवारिक उत्तरदायित्व का निर्वाह उचित ढंग से कर पाना तथा व्यवसाय एवं पारिवारिक अपेक्षाओं के मध्य सामंजस्य स्थापित करने की कला आदि व्यावसायिक संतुष्टि के निर्धारक पक्षें जोड़े जा सकते है।

(2) व्यावसायिक पक्ष

शिक्षक का अपने शिक्षण कार्य में सफल होना व्यावसायिक संतुष्टि का एक सबल पक्ष है क्योंकि व्यवसाय की प्रतिष्ठा, विद्यार्थियों का अच्छा प्रगति परिणाम, शिक्षकों का छात्रों के प्रति लगाव या उचित सम्बन्ध, उचित शिक्षक-छात्र अनुपात जैसे तत्वों को लिया जाता है। इस वातावरण के सकारात्मक होने पर शिक्षक को व्यावसायिक संतुष्टि प्राप्त होगी। इसक ेसाथ ही शिक्षकों को व्यावसायिक उन्नति के पर्याप्त अवसर भी सम्मिलित है जैसे पुस्तकालय सेवा, सगांेष्ठी, योग्यता अनुरूप व्यवसाय में पद की प्राप्ति, उचित पदोन्नति, खाली समय मे पढ़ने का अवसर, नवीन सूचना एवं सचांर तकनीकी के ज्ञान की व्यवस्था कराना भी सम्मिलित है।

(3) व्यक्तिगत पक्ष

व्यक्तिगत पक्ष में व्यावसायिक संतुष्टि के लिए व्यक्तिगत, विशेषताएं भी उत्तरदायी हैं जैस-े व्यक्ति की आकांक्षाए व रूचि, बौद्धिक योग्यता, सुरक्षा की भावना, उचित विद्यालयी परिवेष तथा व्यावसायिक स्थायित्व की भावना आदि। ये एसे मुख्य पक्ष हैं जो व्यक्ति विशेष की विशेषताओं के आधार पर भी व्यावसायिक संतुष्टि का निर्धारण करती है।

(4) सामाजिक पक्ष

समाजिक पक्ष के अन्तर्गत व्यावसायिक संतुष्टि का निर्धारण सामाजिक स्थिति एवं सामाजिक प्रतिष्ठा करती है। इसमें शिक्षकों के प्रति, समाज व अभिभावकों की सम्मानीय दृष्टि तथा समाज के हित मे किए गए उपयोगी कार्य या शोध करने में प्रोत्साहन आदि जैसे तत्व सम्मिलित हैं।

(5) आर्थिक पक्ष

व्यावसायिक संतुष्टि के इस पक्ष के अन्तर्गत प्रत्याषित आय, अच्छे कार्य लिए पुरस्कार, वर्तमान व्यवसाय में रहकर भविष्य मे उन्नति के अवसर एवं उचित प्रोत्साहन आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। उपरोक्त व्यावसायिक संतुष्टि के विभिन्न पक्ष व्यावसायिक संतुष्टि का निर्धारण करते है यदि शिक्षक अपने व्यावसाय में दक्ष, कुशल सन्तुष्ट व प्रतिबद्ध हो और वे कक्षा विद्यालय और समुदाय में अपनी सही भूमिका का निर्वाह करने में पेषेवर ढंग से सक्षम हो तो वे सकारात्म्क प्रभाव की एक श्रृंखला प्रतिक्रिया की शुरूआत कर सकते है। शिक्षकों द्वारा गुणात्मक शिक्षा प्रदान किए जाने के बहेतर परिणाम एवं उनकी सख्ंयों वृद्धि के रूपें सामनें आएँगें, जिससे मानव विकास के लक्ष्य की दिषा में आगे बढ़ना, सम्भव हो सकेगा।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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