छत्तीसगढ़ का नामकरण एवं इतिहास

छत्तीसगढ़ का नामकरण एवं इतिहास

छत्तीसगढ़ अंचल मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 के द्वारा भारत के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश से पृथक होकर 1 नवंबर 2000 को भारतीय संघ का 26वीं राज्य बन गया। नवनिर्मित राज्य की अब उम्र 12 वर्ष पूरी हो चुकी है। यह मानचित्र में ध्यान से देखने पर समुद्री घोड़े के समान दिखाई पड़ता है। इस राज्य की राजधानी रायपुर है। आरंभ से ही छत्तीसगढ़ की अपनी अलग संस्कृति रही है, यद्यपि इस भू-भाग में ऐतिहासिक काल में अनेक उथल-पुथल हुए किंतु आज भी इसकी भौगोलिक एवं सांस्कृतिक विशिष्टता जीवंत रूप में विद्यमान है एवं यही इसके पृथक राज्य बनने का आधार है। प्राचीन समय में यह ‘‘दक्षिण कोसल’’ के नाम से जाना जाता था। 

स्वतंत्रता के बाद देश को विभिन्न रियासतों के साथ इस प्रांत के भी 14 रियासतों का 1 जनवरी 1948 को भारतीय संघ में विलय हुआ। ये रियासते थी - बस्तर, कांकेर, राजनांदगाँव, खैरागढ़, छुई खदान, कवर्धा, सक्ती, सारंगढ़, रायगढ़, जशपुर, उदयपुर, धरमजयगढ़, सरगुजा (अंबिकापुर), कोरिया (बैकुण्ठपुर) तथा चांगभखार (जनकपुर-भरतपुर) आदि मुगल व मराण काल में यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ कहा जाने लगा, क्योंकि इस क्षेत्र में कल्चुरी वंश की रतनपुर शाखा के विभिन्न राजाओं व जमींदारों के 36 किले थे। 

छत्तीसगढ़ 1861 में मध्य प्रांत के गठन पर उसमें सम्मिलित किया गया। जिसका मुख्यालय नागपुर था एवं 1 नवंबर 1956 में पुर्नगठित मध्य प्रांत अर्थात मध्य प्रदेश पूर्वांचल बना और ठीक 44 वर्षों के बाद छत्तीसगढ़ राज्य बना।’’

वर्तमान में छत्तीसगढ़ के अंतर्गत 27 जिले हैं - 1. बिलासपुर, 2. कोरबा, 3. जांजगीर-चांपा, 4. रायगढ़, 5. जशपुर, 6. सरगुजा, 7. कोरिया, 8. रायपुर, 9. धमतरी, 10. महासमुंद, 11. दुर्ग, 12. राजनांदगांव, 13. बस्तर, 14. कबीरधाम, 15. उत्तर बस्तर, 16. दक्षिण बस्तर, 17. नारायणपुर, 18. बीजापुर, 19. मुंगेली, 20. बालोद, 21. गरियाबंद, 22. बेमेतरा, 23. सुकमा, 24. बलरामपुर, 25. बलौदा बाजार, 26. सूरजपुर, 27. कोंडा गांव।

छत्तीसगढ़ का नामकरण

प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। संभवत: इस क्षेत्र में उत्तम गुणवत्ता के कोसा की प्रचुरता के कारण ही इसे कोसल की संज्ञा प्राप्त हुई। छत्तीसगढ़ के महाकान्तर, दण्यकारण्य, महाकोसल, चेदिसगढ़, दक्षिण कोसल, गोड़वाना के नाम से भी संबोधित किया जाने वाले इस भू-खण्ड का प्राचीन काल से ही आर्य अनार्य संस्कृति की संगम स्थली के रूप में युगों से ऐतिहासिक गरिमा का केन्द्र रहा है। पं. लोचन प्रसाद पाण्डे ने दक्षिण कोसल का विस्तार किसी समय दक्षिण में गोदावरी, पश्चिम में उज्जैन एवं पूर्व में समुद्र तट तक था, ऐसा माना था।

‘‘व्हेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में दक्षिण कोसल में शातवाहन शासकों के अधिपत्य के धारणाओं को पुष्टि किया है, छत्तीसगढ़ के ज्ञात इतिहास के अनुसार विभिन्न समयों में यहाँ क्रमष: मौर्य, गुप्त, राजपुत, कल्चुरी, गोड़, मराठा व ब्रिटिश शासकों ने राज किया। संभवत: मुगल शासकों के युग में ही सर्वप्रथम ‘छत्तीसगढ़’ शब्द का प्रचलन हुआ। क्योंकि उस समय इस अंचल में 36 गढ़ थें। डॉ. स्टेनकोनों ने छत्तीसगढ़ को चेदिशवंषीय शासकों द्वारा अधिषासित ‘‘चेदिषगढ़ का विकृत रूप या अपभ्रंश माना है।’’ जो कि इस क्षेत्र के कई वर्शों तक चेदिष राजाओं के पास रहने के कारण पड़ा। रायपुर गजेटियर (1909) में श्री ए.ई. नेल्सन ने यह बात को कही है। दूसरी मान्यता है कि छत्तीसगढ़ को नामकरण इस क्षेत्र में 36 गढ़ों के होने के कारण हुआ। रायपुर जिले के गजेटियर (1973) के अनुसार इनमें से 18 गढ़ शिवनाथ नदी के दक्षिण अर्थात् रायपुर राज्य के अन्तर्गत स्थित थे। शेष 18 गढ़ शिवनाथ नदी के उत्तर में रतनपुर राज्य के अंतर्गत थे। जिन 36 गढ़ों के यहां स्थित होने के आधार पर छत्तीसगढ़ नाम पड़ा वे इस प्रकार है -

रायपुर राज्य के 18 गढ़
(शिवनाथ नदी के दक्षिण)
रतनपुर राज्य के 18 गढ़
 (शिवनाथ नदी के उत्तर)
(1) रायपुर  (1) रतनपुर
(2) पाटन  (2) मारो 
(3) सिंगापुर (3) विजयपुर 
(4) लवन (4) खरोद
(5) खल्लारी (5) नवागढ़
(6) सिरपुर  (6) सोठीगढ़
(7) फिंगेष्वर(7) कोटगढ़
(8) सिमगा(8) ओखरगढ़
(9) राजिम(9) पंडरभट्टा
(10) सिंघनगढ़(10) सेमारिया
(11) सुअरमार(11) चांपा
(12) टेंगनाग(12) लाफागढ़
(13) अकलतरा(13) छुरी
(14) अमीरा(14) कैदागढ़
(15) दुर्ग(15) मातीन
(16) सरघा(16) उपरोड़ा
(17) सिरसा(17) पेंड्रा
(18) मोहदी (18) करकट्टी

डॉ. बल्देव प्रसाद लिखते हैं - लगभग सोलह सौ वर्ष पूर्व महाकोसल के राजा महेन्द्र से भारतीय नेपोलियन समुद्रगुप्त को युद्ध करना पड़ा और महाकांतर के राजा व्याघ्रराज से भी लोहा लेना पड़ा। उस समय अठारह गढ़ तो प्रधानत: मध्य भारत में रहे होंगे और अठारह उड़ीसा में भी दिखाई पड़ते है। उसके दुने होने की लालसा से यह प्रांत छत्तीसगढ़ कहलाने लगा। हो सकता है, यह घराने के अठारह गढ़ मिलकर समूचा प्रांत छत्तीसगढ़ बन गया। यद्यपि छत्तीसगढ़ नाम नवीन है, तथापि पहले यह अंचल दण्डकारण्य से अभिहित था।

खैरागढ़ राज्य के चारण कवि दलपत राव ने अपने राजा लक्ष्मी निधि राव की प्रशंसा में 1487 में निम्न पंक्तियों की रचना की थी। 

लक्ष्मीनिधि राय सुनौचित्य है, गढ़ छत्तीस में न गढ़ैया रही।
भरदुमी रहि नहि भरदन के, फेर हिम्मत सेन लड़ैया रही।।
भाव भरै सब कांप रहै, भय है नहिं जाय डरैया रहि।
दलपत में ने सरकार सुनौ, नृप कोऊ न ढ़ाल अढ़ैया रहि।।

उपरोक्त पंक्तियों में रेखांकित शब्द में छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग किया गया है। ये 36 हिन्दी कि दुर्ग शब्द के ही पर्यायवाची है। प्रचलित भाषा में दुर्ग को गढ़ कहा जाता है। कालांतर में ये ही 36 ‘सत्ता केन्द्र’ छत्तीसगढ़ के नाम से समुहवाचक शब्द से लोक प्रचलित हुए। इन छत्तीसगढ़ों में 18 गढ़ शिवनाथ नदी के उत्तर व 18 गढ़ शिवनाथ नदी के दक्षिण में विद्यमान थे।

साहित्य में भी छत्तीसगढ़ का नाम उल्लेख हुआ है। इस नाम का सर्वप्रथम उल्लेख 1497 में खैरागढ़ के राजा लक्ष्मीनिधि राय के चारण कवि दलपत राव की रचना में पाया जाता है। इसका द्वितीय बार प्रयोग सवंत् 1689 विक्रमी अर्थात् 1746 में कवि दिवाकर गोपाल मिश्र द्वारा अपनी रचना ‘खूबतमाषा’ में किया गया। इसमें रतनपुर राज्य के लिए सर्वप्रथम छत्तीसगढ़ शब्द को प्रयोग किया था। इसके बाद लगभग 150 वर्शों बाद 1896 ई. में बाबू रेवाराम अपनी कृति विक्रम विलास (सिंहासन बत्तीसी के पथानुसार) में इसका प्रयोग किया है।

तर्क चाहे कितने हो छत्तीसगढ़ नाम पूर्णतः आधुनिक युग की देन है। 18वीं शताब्दी के मध्य तक इसका नाम छत्तीसगढ़ प्रचलित हो चूका था। मुगल काल में यहाँ रतनपुर राज्य के नाम से जाना जाता था। संभवत: मराठा काल में छत्तीसगढ़ पहाड़ी क्योंकि इस काल में गढ़ एक प्रशासनिक ईकाई मानी गई थी तथा गढ़ोंरी संख्या 36 रही हों।26 शासकीय आधार पर इस नाम का प्रस्ताव कैप्टन ब्लंट ने 1795 में सर्वप्रथम किया था, जिसे नागपुर दरबार में पदस्थ ब्रिटिश रेजीडेंट जेनकिंस ने जहतीदार्स ऑफ छत्तीसगढ़ लिखना प्रारंभ कर दिया, आगे चलकर इस क्षेत्र को नाम छत्तीसगढ़ लोकप्रिय हो गया।

छत्तीसगढ़ों या किलों के नाम पर बना छत्तीसगढ़ 1 नवंबर 2000 भारत के 26 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। स्वतंत्रता के समय छत्तीसगढ़ क्षेत्र सेन्ट्रल प्राविन्स एवं बरार का भाग था। 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के साथ छत्तीसगढ़ अंचल मध्य प्रदेश में शामिल किया गया। मध्य प्रदेश के 16 जिलों को मध्य प्रदेश से अलग कर नये छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण किया गया।

इतिहासकारों की यह मान्यता है कि रामायण, महाभारत तथा वैदिक ग्रंथों में प्रयुक्त कोसल, दक्षिण कोसल तथा प्राक्कोसल इसी क्षेत्र को कहते है। महाभारत में छत्तीसगढ़ का उल्लेख प्राक्कोसल नाम से हूआ है। इस काल में राजा मोरध्वज और ताम्रध्वज का शासन था। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार अर्जुन ने इन पर विजय पाई थी। बाद में इस प्रदेश पर अर्जुन के पुत्र बबूवाहन ने राज किया और सिरपुर में अपनी राजधानी स्थापित की। ईसा से 600 साल पूर्व भारत के प्रमाणित इतिहास में 16 महाजनपदों में एक जनपद अर्थात् छत्तीसगढ़ था। भगवान बुद्ध के छत्तीसगढ़ आने के भी प्रमाण उपलब्ध है। दुनिया को जानने के लिए विश्व यात्रा पर निकले प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेनसांग के भी सिरपुर आने का प्रमाण है। सरगुजा जिले से प्राप्त मौर्यकालिन अभिलेख में देवदासी सुतनुका और देवदत्त के प्रेम का वर्णन है।

इतिहास के अनुसार छत्तीसगढ़ के अलग-अलग क्षेत्रों में कई स्थानीय राजवंशों के प्रमाण मिलते है। यहाँ राज्य करने वाले प्रमुख राजवंशों में वाकाटकों की एक शाखा के साथ नल, राजर्शितुल्य शरभपुरी, पांडु, बाण और सोमवंष प्रमुख है। लगभग 500 वशोर्ं तक इन वंषों का राज्य छत्तीसगढ़ के किसी न किसी क्षेत्र में चलता रहा। छत्तीसगढ़ के इतिहास में कल्चुरि राजवंश का प्रमुख स्थान है। इस वंश के राजा अपने को चन्द्रवंषी तथा सहस्त्रार्जुन की संतान मानते थे। प्राचीन इतिहास के अनुसार छत्तीसगढ़ में कल्चुरि साम्राज्य 1000 ईसवीं के आसपास स्थापित हुआ, जब राजा कलिंग ने यहाँ का शासन संभालने के लिए तुम्माण में अपनी राजा ने बनाई कलिंग राज के पौत्र रतनदेव प्रथम ने शासन संभालने के बाद रतनपुर में राजधानी स्थापित की। इस राजवंश के 1525 ईसवीं तक रहने प्रमाण मिलते है। इसी राजवंश की एक अन्य शाखा द्वारा छत्तीसगढ़ में सन् 1750 तक राज करने के भी प्रमाण है।

मुगल काल में छत्तीसगढ़ पर साय वंश के शासन का इतिहास भी मिलता है। कल्याण साय नामक राजा ने सन् 1536 से 1573 तक यहाँ शासन किया, उसकी राजधानी रतनपुर थी। वह अकबर और जहांगीर के समकालीन था। कल्याण साय के बाद इस वंश ने सन् 1750 तक राज किया। कुछ इतिहासकार साय वंश को रतनपुर शाखा के कल्चुरि मानते हैं। कल्चुरि राजवंश के पतन के साथ ही 1750 में छत्तीसगढ़ पर मराठा भोसलों का राज्य कायम हुआ।

नागपुर के राजा के प्रतिनिधि के रूप मे बिंबाजी ने सन् 1758 में राज्य की व्यवस्था संभाली। बिंबाजी के बाद मराठों का कोई उल्लेखनीय राजा या प्रतिनिधि छत्तीसगढ़ में नहीं रहा। 27 नवंबर 1817 में नागपुर में अग्रेजों के साथ हुए युद्ध में मराठों की पराजय हुई, और यह क्षेत्र अंग्रेजों के आधिपत्य में आ गया। सन् 1830 से 1854 के बीच नागपुर और छत्तीसगढ़ का शासन एक बार फिर मराठों के हाथ में आया, परंतु अंत में ब्रिटिश सरकार ने मराठों को हराकर इसे अपने हिस्से का राज्य बना लिया। 1854-55 में छत्तीसगढ़ ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बन गया। जब 1861 ई. में मध्य प्रांत का गठन हुआ तब छत्तीसगढ़ इसके पांच संभागों में से एक था। अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के बीच छत्तीसगढ़ में भी फूटे। वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के पहले क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। अंग्रेजों के शासन काल में छत्तीसगढ़ सेन्ट्रल प्राविंस एवं बरार राज्य का हिस्सा था। देष के आजाद होने पर राज्यों के पुनर्गठन होने पर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में शामिल हुआ। 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ को अलग राज्य की पहचान मिली और यह भारत का 26 वां राज्य बना।

छत्तीसगढ़ का इतिहास

ब्रिटिश पूर्व छत्तीसगढ़ का इतिहास

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। आज का यह उपेक्षित छत्तीसगढ़ किसी समय संस्कृति और सभ्यता का पुनीत केन्द्र था। वर्तमान छत्तीसगढ़ अर्थात् महाकोषल मनुष्य जाति की सभ्यता का जन्म स्थान है। जब हम मानव इतिहास के आदिम युग की ओर दृष्टि डालते हैं तो उस समय हमारे सामने छत्तीसगढ़ का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण रूप खिंच जाता है। प्रागैतिहासिक काल में मध्य प्रदेश का बहुत सा भाग दण्डकारण्य कहलाता था। इसमें प्राय: छत्तीसगढ़ कमिश्नरी और नागपुर कमिश्नरी का कुछ भाग आ जाता है।

छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास

आदिमानव की संस्कृति का उद्भव एवं विकास का यह स्थल छत्तीसगढ़ अपने अंत:स्थल में अनेकों महत्वपूर्ण अवशेषों को अन्र्तनिहित किये हुए है। वैसे तो मध्य प्रदेश क पुरातत्व का आशय प्रागैतिहासिक तथा पृथ्वी पर मानवर्विभाव काल से मानना चाहिए। छत्तीसगढ़ भी इसका एक अंग है। और यही कारण है कि रायगढ़ के सिंघनपुर के चिन्हत गव्हरों की खोज करते समय राय बहादुर की मनोरंजन घोश को भी पूर्व पाशाणकालीन कर संचालित पांच कुल्हाड़ियां प्राप्त हुई थी।

वैदिक सभ्यता के उत्तरार्र्द्ध में छत्तीसगढ़ में आर्यों का आगमन प्रारंभ हो चुका था। जैसे कि बालचंद जैन ने लिखा है कि उपनिषद काल तक नर्मदा के पास पड़ोस के प्रदेश और विदर्भ तक आर्यों का विस्तार हो चुका था। छत्तीसगढ़ क्षेत्र में रामायणयुगीन एवं महाभारत से संबंधित अनेक पौराणिक एवं जनश्रुति के अनुरूप कथाएँ विद्यमान है। दण्डकारण्य में राम का आगमन आदि रामायण के कथानक से पता चलता है कि सतपुड़ा की घाटियों पर लंका के राजा रावण का स्वामित्व था।

महाभारत युग में छत्तीसगढ़ का केन्द्र स्थल रतनपुर था। यह छत्तीसगढ़ में नगर शासन का प्रमुख केन्द्र था। महिश्मती, कुंडनपुर, त्रिपुरी, वस्तगुलमक, रतनपुर, सिरपुर, भद्रावती, आदि पुरातन नगर शासक के प्रमुख केन्द्र थे। ऐसी भी किवंदती है कि चेदिश देष का राजा बभू्रवाहन भी था। जो पांडव वंश अर्जुन को पु़त्र था और जिसकी राजधानी चित्रांगदपुर में थी जो वर्र्तमान में श्रीपुर (सिरपुर) के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेनसांग ने सन् 619 में दक्षिण कोसल की यात्रा की थी। उसके अनुसार दक्षिण कोसल का विस्तार 2000 के वृत्त में था। इस प्रकार उपर्युक्त विवरण इस क्षेत्र के प्राचीन काल के इतिहास की जानकारी हेतु प्रमाणिक स्त्रोत है। मौर्य काल में इस क्षेत्र में उसका अधिकार रहा होगा। गुप्त काल में यहाँ पर गुप्त शासकों का ही अधिकार था।

सिरपुर में बौद्ध मठ व पुरावषेश की प्राप्ति तथा सातवीं शताब्दी में आये। चीनी यात्री व्हेनसांग द्वारा शताधिक बौद्ध विहारों का उल्लेख इस अंचल में बौद्ध प्रचार को दृढ़ करता है।

रायगढ़ से 12 मील की दूरी पर स्थित सिंघनपुर की पहाड़ियाँ तथा विपरित दिषा में स्थित कबरा पहाड़ में ऐसी गुफाएँ हैं, जहाँ आदिमानव के पाशाणयुगीन मानव की दिनचर्या से संबंधित अनेक चित्र खींचे हुए है।

इस प्रकार उपर्युक्त जानकारी से प्रतीत होता है कि छत्तीसगढ़ में एक सुव्यवस्थित एवं सुसंगठित शासन प्रणाली थी। गुप्त काल में यहाँ का प्रशासनिक स्वरूप उस युग के अनुरूप रहा होगा। इन्हीं सब परिस्थितियों के मध्य प्राचीन छत्तीसगढ़ प्रशासनिक ईकाइयाँ विद्यमान थी। पश्चात कल्चुरियों का आगमन इस क्षेत्र में होता है, जिनका प्रभाव सन् 1741 तक बना रहा।

छत्तीसगढ़ का मध्यकालीन इतिहास

‘‘ईसा पश्चात 9 वीं शताब्दी के अंत में त्रिपुरी के कल्चुरियों ने दक्षिण कोसल में अपनी शाखा स्थापित करने का प्रयत्न किया था। द्वितीय कोसल देव के राजकाल (सन् 990 से 1050 के बीच) में कलिंग देव के राज नामक कल्चुरि राजपुत्र ने अपने बाहुबल से दक्षिण कोसल देष को जीतकर तुम्माण नगर में जहाँ से उसके पूर्वजों ने राज्य चलाया था और अपनी राजधानी स्थापित की । पश्चात रतनपुर के कल्चुरी राजवंष के अन्र्तगत कमलराज सन् 1020 में लगभग गद्दी पर बैठा।

चौदहवीं शताब्दी के अन्त में छत्तीसगढ़ का कल्चुरी साम्राज्य विभाजित हो गया। उसकी एक शाखा रतनपुर में राज्य चलाने लगी और दूसरी रायपुर में राजधानी स्थापित की। 10 वीं शताब्दी के मध्य में छत्तीसगढ़ में मराठों का आक्रमण और यहाँ के राजाओं की निष्क्रियता के कारण सदियों की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। 1740 भारतीय इतिहास में आधुनिक काल का प्रारंभ माना जाता है। उसी प्रकार छत्तीसगढ़ प्रांत में 1740-41 में मराठों के आक्रमण के साथ ही एक युग की समाप्ति हुई। छत्तीसगढ़ के प्रशासन सूत्र मराठों ने अपने हाथों लिया आगे चलकर 1853 तक उनका प्रभुत्व विद्यमान रहा। पश्चात अंग्रेजों का प्रमुख इस क्षेत्र में स्थापित हुआ।

छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास 

आधुनिक छत्तीसगढ़ के इतिहास को हम दो खण्डों में विभाजित कर सकते है। पहला मराठा कालीन छत्तीसगढ़, दूसरा ब्रिटिश कालीन छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ में कल्चुरी शासक के विभक्त होने से इनकी शक्ति क्षीण हो गई जिसका लाभ मराठों को मिला। वैसे भी औरंगजेब की मृत्यु के बाद 18 वीं शताब्दी में मराठे हिन्दुस्तान में एक शक्तिशाली स्वरूप उभर रहे थे।

उस समय भोसलों ने रायपुर और रतनपुर में प्रवेश किया। सन् 1758 से 1858 के समय को छत्तीसगढ़ के इतिहास के लिए अंधकार युक्त समझिये। इस युग में प्रधान हिन्दू प्रथा का विनाश हो गया और उसके स्थान पर विदेशी रंग-ढंग जारी हुए। मराठी राज्य में लोग नाहक सताये जाने लगे और उन पर मनमानी अत्याचार होने लगा।

छत्तीसगढ़ राज्य ब्रिटिश शासन में सम्मिलित होने पर रायपुर मुख्यालय बना। छत्तीसगढ़ का प्रशासनिक कार्यभार संभालने वाला पहला व्यक्ति कैप्टन इलियट था। उसके कार्य क्षेत्र में बस्तर भी सम्मिलित था। सन् 1856 में वह क्षेत्र तीन तहसील में बांटा था। रायपुर, धमतरी एवं बिलासपुर39 1857 में दुर्ग तहसील बना। 1861 में बिलासपुर रायपुर से अलग करके एक जिला बना दिया गया। कालान्तर में 1906 में दुर्ग जिले का निर्माण हुआ। इसके पूर्व रायपुर, बिलासपुर और संबलपुर जिले थे। प्रशासन दृष्टिकोण से बाद में संपूर्ण प्रदेश को चार कमीष्नरियों में विभक्त किया, नागपुर, जबलपुर, नर्मदा और छत्तीसगढ़ अधिक जनसंख्या और क्षेत्र छत्तीसगढ़ ही था। सन् 1854 से 1947 तक इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित रहा।

छत्तीसगढ़ी भाषा

छत्तीसगढ़ी भाषा को प्राचीन में कोसली कहा जाता था, परंतु विगत दो सौ वर्षों से दक्षिण कोसल को छत्तीसगढ़ कहे जाने के कारण यहाँ लोकभाशा कोसली से छत्तीसगढ़ी कहा जाने वाला यह संस्कृत की अनुगामिनी है।

छत्तीसगढ़ अपने चारो ओर विभिन्न भाशाओं बोलियों से घिरी हुई है। यहाँ हिन्दी, छत्तीसगढ़ी बोलने वालों की संख्या 90 प्रतिषत है।

छत्तीसगढ़ की लोक कलाएँ 

छत्तीसगढ़ लोकमंच आज विश्व स्तर पर चर्चित है। इन्होंने अपनी विशिष्ट अभिनय क्षमता गायन वादन की विशिष्टता, लोक नृत्य की दक्षता और अपने लोकरंगी परिवेष से दुनिया भर के संस्कृति प्रेमियों को आकर्षित किया है। लोक नाट्य, में नाचा (गम्मत) रहस महत्वपूर्व है। लोकगाथा में पंडवानी एवं भरथरी है। लोक नृत्य में प्रमुख रूप से राउत नाचा, पंथी नृत्य उल्लेखनीय है।

छत्तीसगढ़ी लोक गीत

पंथी गायन, पंडवानी, चंदैनी गायन, ददरिया, बासगीत, ढोलामारू, जवारा गीत, मड़ई सेवा गीत आदि है।

छत्तीसगढ़ - एक झलक 

  1. राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत मध्य प्रदेश के पुनर्गठन के जरिए छत्तीसगढ़ एक नवंबर 2000 को नया राज्य बना।
  2. छत्तीसगढ़ राज्य का क्षेत्रफल लगभग 4.11 प्रतिषत हिस्सेदारी के साथ 1 लाख 35 हजार 361 वर्ग किलोमीटर है। (2011 जनगणना के आधार पर) है। क्षेत्रफल की दृश्टि से देष का 10वां एवं जनसंख्या की दृष्टि से देश का 16वां राज्य है। इसके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिषत इलाका वनों से परिपूर्ण है। वन क्षेत्रफल के हिसाब से छत्तीसगढ़ देष का तीसरा बड़ा राज्य है।
  3. वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या 2 करोड़ 8 लाख 33 हजार 803 है। इसमें 1 करोड़ 4 लाख 74 हजार 218 पुरूश और 1 करोड़ 3 लाख 59 हजार 585 महिलाएँ है। प्रदेश की ग्रामीण आबादी लगभग 1 करोड़ 66 लाख 48 लाख 56 और शहरी आबादी 41 लाख 85 हजार 747 है। प्रदेश की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 31.81 प्रतिषत अनुसूचित जाति की आबादी 11.60 प्रतिषत है।
  4. छत्तीसगढ़ में जनसंख्या का घनत्व 2001 में 154 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर और 2011 में 189 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर है और देष में राज्य 26 राज्य स्थान पर है। जबकि भारत में जनसंख्या का घनत्व 305 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर से अधिक है।
  5. राज्य 991 स्त्री पुरूश अनुपात के साथ देष में 5वें स्थान पर है।
  6. राज्य की कुल जनसंख्या 0-6 आयु समय का प्रतिषत 14.03 है।
  7. राज्य की कुल साक्षरता दर 71.04 प्रतिषत है। पुरूश तथा स्त्री साक्षरता दर क्रमष 81.45 तथा स्त्री 60.59 प्रतिषत है।
  8. साक्षरता की दृश्टिकोण से राज्य का देष में 27वां स्थान है।
सन्दर्भ-
  1. शर्मा, अरविंद (2008) : ‘‘छत्तीसगढ़ का राजनीतिक इतिहास’’ बिलासपुर अरपा पाकेट बुक्स
  2.  त्रिपाठी, संजय एवं त्रिपाठी, चंदन (2002) : ‘‘छत्तीसगढ़ वृहद संदर्भ, आगरा’’, उपकार प्रकाशन
  3. मिश्र, रमेन्द्रनाथ : पं. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, संदर्भ ग्रंथ, पृष्ठ 415.
  4.  त्रिपाठी, संजय एवं त्रिपाठी, चंदन (2002) : ‘‘छत्तीसगढ़ वृहद संदर्भ, आगरा’’, उपकार प्रकाशन, पृष्ठ 01
  5. शर्मा, रामगोपाल (2003) : ‘‘छत्तीसगढ़ दर्पण’’, बिलासपुर, श्रीमती विद्या शर्मा, पृष्ठ 8
  6. शुक्ला, जयश्री (2001) : ‘‘शोध ग्रंथ द्वारा भारती तिवारी
  7. शर्मा, रामगोपाल (2008) : ‘‘छत्तीसगढ़ दर्पण’’, बिलासपुर, श्रीमती विद्या शर्मा, पृष्ठ
  8. दैनिक समाचार पत्र, नवभारत बिलासपुर, 9 जनवरी 2012, पृष्ठ 12.
  9.  त्रिपाठी, संजय एवं त्रिपाठी, चंदन (2002) : ‘‘छत्तीसगढ़ वृहद संदर्भ, आगरा’’, उपकार प्रकाशन, पृष्ठ 51.
  10. मिश्र, रमेन्द्रनाथ : पं. राजेन्द्रप्रसाद शुक्ल, संदर्भ ग्रंथ.

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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