अलका सरावगी का जीवन परिचय और रचनाएं

अलका सरावगी का जीवन परिचय
अलका सरावगी

अलका सरावगी का जीवन परिचय

अलका सरावगी का जन्म एक व्यवसायी मारवाड़ी परिवार में 17 नवंबर 1960 में कलकत्ता में हुआ। ‘‘कलकत्ते में पैदाइश और परवरिश के कारण मैंने कलकत्ते को ही अपना देश माना था।” साहित्यकार अलका सरावगी के पिता का नाम केशव प्रसाद केजरीवाला और माता का नाम शकुंतला देवी है। आपके पिता एक सफल और कुशल व्यवसायी होने के साथ-साथ परोपकारी और गांभीर्य मंडित प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। आपकी माता जी कुशल, सामान्य और धार्मिक प्रवृत्ति की गृहिणी थी। आप अपनी माँ को ‘‘ताई’’ कहती हैं। आपके पिता जी आपकी तथा आपकी बहनों की शिक्षा और पालन-पोषण के लिए सजग तथा जागरूक व्यक्ति थे। आपके पिता जी में सफल व्यवसायिक निपुणता थी ही, परन्तु उन्हें शेरों शायरी पढ़ने में भी दिलचस्पी थी। पत्र लेखन के कौशल में बड़े ही निपुण थे।

अलका सरावगी की शिक्षा

अलका सरावगी की विधिवत शिक्षा बारहवÈ कक्षा तक हुई, उसके उपरांत आपके पिता ने कॉलेज में दाखिला करवाया ताकि शादी के लिए अच्छा वर मिल सके। अलका सरावगी जी स्वयं कहती हैं कि “मेरे व्यवहारिक पिता का ही शुक्र है कि कॉलेज की आइरिश प्रिसिंपल सिस्टर मेव के मुँह से यह चुभता हुआ वाक्य सुनने के लिए मैं कॉलेज तक पहुँच ही गयी ‘तुम लोग यहाँ पढ़ने थोड़े ही आयी हो, शादी की प्रतीक्षा करते हुए शादी के बाजार में अपनी कीमत बढ़ाने आयी हो।”

अलका जी अपनी शिक्षा और विवाह से संबंधित तथ्य को स्वीकार करते हुए कहती हैं कि ‘‘यह मानदंड मेरी माँ की शादी के वक्त यदि छठी-सातवÈ कक्षा तक शिक्षित होना था, तो हम बहनों के लिए इसकी छूट बढ़कर उच्चतर माध्यमिक या कॉलेज दाखिला होना हो गया था। यदि माँ के लिए सिलाई-कढ़ाई, खाना बनाना वगैरह जरूरी योग्यताएँ थी तो हमारे बायोडाटा (परिचय पत्र) में तेराकी, गाड़ी चलाना, चित्रकारी, संगीत वगैरह-वगैरह योग्यताएं भी शामिल कर ली गई थÈ। पर सारी शिक्षा का उद्देश्य वही का वही था। प्रचलित पैमाने के आधार पर सुयोग्य पत्नी, बहू और माँ बनना। यहाँ तक कि योग्यताओं के इजाफे में पूरी सावधानी बरती जाती थी कि वे इतनी अधिक न हो जायें कि अनुकूल वर ढूँढ़ने में मुश्किल हो।”

पिता ने शादी से पहले अलका को कॉलेज में दाखिला दिलवा कर अपनी सूझ-बूझ का परिचय दिया किन्तु वही विवाह उपरांत अन्य शिक्षा पर रोक लगा कर बाधक का। अलका जी कहती हैं, ‘‘एक सहेली के साथ शादी के बाद परिवार की सहमति लेकर लॉ कॉलेज में दाखिला लेने की इच्छा जाहिर करने पर मेरे पिता ने मुझे कहा - यदि वहाँ दाखिला लो, तो मेरे घर पाँव मत रखना। तुम्हारे घर परिवार को कौन देखेगा? शादी के बाद तुम्हारा धर्म यह नही है।”

सन् 1988 में दोनों बच्चों के जन्म के उपरान्त आपने आगे की पढाई के लिए सशक्त विचार बनाया। अलका जी का साहित्य से स्नेह और संवेदनशीलता के कारण आपने हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया तथा ‘रघुवीर सहाय का काव्य’ विषय पर पीएच. डी. का शोध कार्य किया। पत्रकारिता में विशेष रूझान होने के कारण पत्रकारिता में डिप्लोमा भी किया। बी.ए. में हिन्दी विषय न होने के कारण एम. ए. करने में अड़चनों का सामना करना पड़ा। अनेक मुश्किलों और जिम्मदारियों काुर्ज अदा करते हुए भी आपने एम.ए. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। मंजूरानी सिंह कहती हैं, ‘‘आगे पढ़ने की उसमें सच्ची चाहत जगी थी, पर परिस्थिति प्रतिकूल थी। वह नियमित विश्वविद्यालय में जाकर पढाई करे, परिवार में ऐसी छूट नही थी।”अलका सरावगी जी कुल तीन बहनें हैं। आप अपनी दोनों बहनों से छोटी हैं। आपकी दोनों बहनें अधिक पढ़ न सकी।

अलका सरावगी का विवाह

अलका सरावगी का विवाह मात्र 20 वर्ष की आयु में सन् 1980 में मारवाड़ी व्यवसायी परिवार के बड़े बेटे महेश सरावगी के साथ हुआ। शादी के उपरांत आपने अपने कर्त्तव्यों से जी नही चुराया। पत्नी, बहू, जेठानी आदि सभी रिश्तों को बड़ी सूझबूझ, समन्वय, विश्वास के साथ निभा रही है। अलका जी एक संयुक्त परिवार की कुल बधु बनी। आपको अपने परिवार के सभी सदस्यों के प्रति आदर, स्नेह, दृढ़ विश्वास है। आपके घर में आपकी सास सीता देवी, ससुर, दो देवर तथा दो देवरानियाँ विभा और ज्योति है। विभा और ज्योति अलकाजी की देवरानी ही नही अपितु सहेली और पाठिकाएँ भी हैं। आपकी सास ने आपकी पढाई के प्रति पूरा योगदान दिया। परिवार के सभी सदस्यों की भाँति महेश सरावगी जी भी सरल, प्रेमपूर्ण, शालीन और सभ्य व्यक्ति हैं। जो अलका जी के रूझान और आगे बढ़ने की ललक को पूरा सहयोग दिया। संवेदनशील व्यक्तित्व वाली अलका जी ने अपने दायित्वों को बड़े ही प्यार और अपनेपन से अदा किए।

अलका सरावगी की संतान

अलका और महेश सरावगी जी की दो संतानें हैं- बेटा मयंक और एक बेटी सलोनी। अलका जी का बड़ा बेटा शारीरिक अक्षम है। वर्षों से चल रहे लंबे इलाज और हर तरह से उसे सामान्य बनाने का उनका संघर्ष निरंतर जारी है। मयंक और सलोनी में आपके आत्मानुशासन और संस्कारों की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। वे दोनों आपकी रचनाओं के विशेष पाठक भी हैं। शौक : अलका सरावगी जी को साहित्य रुझान के साथ-साथ पत्रकारिता में भी खास दिलचस्पी थी। इसलिए अलका जी ने पत्रकारिता में डिप्लोमा भी किया। बाल्यावस्था से ही आपका शिक्षा के प्रति रुचि रही।

अलका सरावगी का साहित्य लेखन की प्रेरणा

अलका जी एक मारवाड़ी परिवार से है। मायका और ससुराल दोनों ही पक्ष व्यवसायी हैं। व्यवसायी नेपथ्य होने के बावजूद अलका जी का साहित्य के प्रति विशेष अनुराग था। पिता व्यवसायी जरूर थे परन्तु उनको शेरो शायरी और भाषा से अनुराग था। अलका जी को शुद्ध भाषा के संस्कार और भाषा पर पकड़ पिता से पैत ृक रूप में मिली है। अलका जी के लेखन की प्रेरणा के विषय में कृपाशंकर चौबे जी लिखते हैं कि ‘‘ ‘बालकोश’ में उन्हें संयोग से काम मिला था, उसी समय एम.ए. करने का भी विचार आया। अशोक सेकसरिया से परिचय हुआ, जिन्होंने लेखन की ओर प्रेरित किया।”

अलका सरावगी जी के अथक प्रयास के उपरांत भी मयंक का शरीर सामान्य हो पाने में विफल ही रहा। माँ की ममता और बेटे की इस वेदना के कारण अलका जी ने साहित्य की रचनात्मकता का कौशल उत्पन्न हुआ है। पारिवारिक परिवेश और कार्यालयीन परिवेश के प्रोत्साहन के चलते अलका जी को साहित्य रचना की प्रेरणा मिला।

अलका सरावगी की रचनाएं

प्रत्येक साहित्यकार की रचनात्मक परिस्थिति, पृष्ठभूमि भिन्न होती हैं. वह अपने आस-पास के वातावरण और संवेदनाओं से प्रेरित होकर अपनी कलम को सशक्त कौशल के साथ क्रियाशील करता है। अपनी रचना को गति, रंग, रूप, आकार, प्रकार आदि प्रदान करता है। इसी रचना से साहित्यकार की प्रतिभा की परख होती है। साहित्यकार के जीवन के कुछ ना कुछ अंश उसके साहित्य में अवश्य मिलते हैं। अलका जी द्वारा रचित सभी कृतियां चर्चित और बेजोड़ हैं।

उपन्यास

  1. कलिकथा : वाया बाइपास
  2. शेष कादंबरी
  3. कोई बात नही
  4. एक ब्रेक के बाद
  5. जानकीदास तेजपाल मैनशन
अलका सरावगी जी के कथा साहित्य का इटालियन, मराठी, उर्दू, गुजराती, जर्मन, स्पैनिश, अंग्रेजी, फ्रेंच आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

कहानी संग्रह

  1. कहानी की तलाश में
  2. दूसरी कहानी

अलका सरावगी की उपलब्धियाँ

  1. सन् 1998 में ‘कलिकथा : वाया बाईपास’ उपन्यास के लिए ‘श्रीकांत वर्मा’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  2. सन् 2001 में ‘कलिकथा : वाया बाइपास’ उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।
  3. सन् 2001 में ‘शेष कादम्बरी’ उपन्यास के लिए बिहारी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।

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