औषधि का अर्थ, परिभाषा एवं वर्गीकरण

औषधि का अर्थ

कई प्रकार के वनस्पतियां से प्राप्त होने वाली पार्थिव द्रव्य जिनके द्वारा शरीर में उत्पन्न रोग सही होकर रोगी स्वस्थ होता है औषधि कहलाते हैं।

औषधि का अर्थ

औषधि शब्द के अनेक अर्थ दिये गए हैं। सायण ने व्युत्पत्ति दी है-ओश: पाक: आसु धीयते इति ओशधय: जिनके फल पकते हैं, उन्हें औषधि कहते हैं। यास्क ने इसकी निरुक्ति की है-ओशधय: ओशद् धयन्तीति वा। ओशत्येना धयन्तीति वा। दोशं धयन्तीति वा जो शरीर में शक्ति उत्पन्न कर उसे धारण करती है या जो दोशों को दूर करती है। 

शतपथ ब्राह्मण ने भी औषधियों को दोशनाषक कहा है। औषधियों में त्रिदोश नाषन की शक्ति है और ये वातावरण के प्रदूषण को नष्ट करती है। अत: मानव जीवन में और आयुर्वेद में इनका विशेष महत्व है।

औषधियों के भेद

1-शोधन औषध-जो औषध या प्रक्रिया दोषांे को शरीर से बाहर निकालती है शोधन औषध कहलाती है इसे पचंकर्म चिकित्सा भी कहते हैं।

2-शमन औषध -जो दोषों के बढ़े हुए अंशों को शमित कर साम्यावस्था लाती है वह शमन औषध कहलाती है।

औषधियों का वर्गीकरण

औषधियों को गुण-धर्मों और रूपादि के आधार पर भी वर्गीकरण किया गया है, जो इस प्रकार से है -

रंग के आधार पर वर्गीकरण

औषधियाँ इन विभिन्न रंगों की होती है-बभु (भूरे रंग वाली), शुक्र (सफेद रंग की), रोहिणी (लाल रंग की), पृष्चि (चितकबरी), असिक्नी (नीले रंग की ), कृश्णा (काले रंग की)। तृणती (चारों और फेलने वाली), अंषुमती (अनेक सूक्ष्म अवयव या रेशों वाली), काण्डिनी (पौरुओ वाली), विशाखा (अनेक शाखाओं वाली)।

गुणों के आधार पर वर्गीकरण

जीवला (जीवनशक्ति देने वाली), नधारिशा (हानि न देने वाली), अरुन्धती (मर्मस्थल भरने वाली), उन्नयन्ती (उन्नत करने वाली), मधुमती (मधुर रस वाली), प्रचेतस् (चेतना देने वाली), मेदिनी (स्त्रिग्धता देने वाली), उग्र (तीव ्र गन्ध वाली), विशदूशणी (विशनाषक), बलासनाषनी (कफनाषक या कैंसर को नष्ट करने वाली)।

फल आदि के आधार पर

पुष्पवती (फूलों वाली), प्रसूमती (कली या अंकुरों वाली), फलिनी (फल वाली), अफला (बिना फलों वाली)।

कुछ औषधियाँ पर्वतों पर होती हैं अनेक औषधियाँ समतल भूमि पर होती हैं। कुछ औषधियाँ नदी तालाबों आदि में होती हैं। समुद्र के अन्दर भी औषधियाँ होती है। गहरे समुद के अन्दर भी औषधियाँ होती है। गहरे समुद्र के अन्दर गोताखोर ऐसी औषधियाँ निकालते हैं। कुछ. औषधियाँ भूमि से खोदकर निकाली जाती है। 

कुछ खनिज औषधियाँ भूगर्भ से निकाली जाती है। कुछ औषधियाँ प्राणिज भी हैं, जो जीवों के सींग आदि से उत्पन्न होती हैं। प्राकृतिक तत्त्व सूर्य, चन्द्र, जल, अग्नि, वायु स्वयं औषधि रूप हैं और ये अनेक रोगों के नाषक हैं। 

इनके आधार पर सूर्यकिरण चिकित्सा, जल चिकित्सा आदि का वेदों में विस्तृत वर्णन है। इस प्रकार औषधियों को हम इन रूपों में प्राप्त करते हैं -
  1. प्राकृतिक औषधियाँ-सूर्य, चन्द्र, मिट्टी, जल, अग्नि और वायु।
  2. उद्भिज्ज या ओद्भिद औषधियाँ-पृथ्वी को फाड़कर निकालने वाले वनस्पति औषधियाँ।
  3. खनिज द्रव्य-अंजन, सुवर्ण, रजत, सासा आदि।
  4. प्राणिज द्रव्य-मृग का सींग आदि।
  5. समुद्रज या समुद्रिय द्रव्य-शंख आदि।
औषधियाँ चिकित्सक का बल है। वैद्य औषधियों का संग्रह करते हैं और इनका ठीक उपयोग करते हैं वैद्य औषधियों से जीवन-यात्रा के लिए धन, गाय, वस्त्रादि प्राप्त करते हैं। औषधियों का क्रय-विक्रय भी होता है। अत: उन्हें ‘अपक्रीता’ कहा गया है। कुछ औषधि धन से खरीदी जाती थी। वरणावती औषधि वस्त्र, शाल या मृगचर्म क े विनिमय से प्राप्त की जाती थी।

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