चित्रा मुद्गल का जीवन परिचय और रचनाएँ - Chitra mudgal

चित्रा मुद्गल का जीवन परिचय

चित्रा मुद्गल का जीवन परिचय

विख्यात रचनाकार, चित्रा मुद्गल जी का जन्म 10 दिसम्बर 1944 में चेन्नई के मिलिट्री अस्पताल में हुआ। चित्रा मुद्गल की माताजी का नाम श्रीमती विमला देवी तथा पिता का नाम ठाकुर प्रताप सिंह था। चित्रा मुद्गल की माता ठाकुर ग्राम आली शकरपुर प्रतापगढ़ के बयालीस गांव के ताल्लुकेदार श्री गयावक्श सिंह जी की मंझली संतान थी। इनकी माता का देहांत 31 जनवरी 2009 में लगभग 85 वर्ष की अवस्था में हुआ। चित्रा मुद्गल की माता का जीवन बंधनों में व्यतीत हुआ। 

5 मार्च, 1975 को चित्र के पिता ने इनकी माता को छोड़ दिया। इनके पिता ने इनकी माता की इच्छाओं का कभी मान नही रखा। वे गाड़ी में पर्दो के पीछे छिपकर जाती थी। कही आने-जाने के लिए पिछले दरवाजे का प्रयोग करती थी। बाजार जाने पर इच्छित वस्तु पर उंगली रखकर गाड़ी में वापस बैठ जाती थी। इनकी माँ पिता के अफसर मित्रों के खान-पान की व्यवस्था में जुटी रहत। उनका कार्य क्षेत्र रसोईघर तक सीमित रहता। आपकी माता जी अत्यंत सुस्वभावी, पाककला निपुण, सहनशील महिला थी। इनकी माँ ने खुलकर सांस नही ली। चित्र जी के पिता की मृत्यु के बाद इनकी माता के जीवन में परिवर्तन आया। अन्मुक्त वातावरण में सांस लेना उसके बाद ही उन्होंने सीखा।”

‘‘वे जमींदार घराने से ताल्लुक रखते थे और रूढ़िवादी परिवार से थे। वे नेवी में बड़े अधिकारी थे और मुम्बई में रहते थे। उनमें गुणों के साथ-साथ अवगुणों के रूप में नवाबी शौक भी थे जिस कारण चित्र जी अपने पिता के प्रति विरोध जताती।”

चित्रा मुद्गल की शिक्षा

चित्रा मुद्गल जी ने अपनी चौथी कक्षा तक की पढाई निहाली खेड़ा से लगे गांव भरतीपुर से की। पाँचवÈ से हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई आपने बी.ए. रूइया स्कूल, घाटकोपर (मुंबई) से पूरी की। हायर सेकेंडरी की पढाई पूना बोर्ड से और आगे की पढाई मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध सौमैया कॉलेज से सन् 1976 में पूरी की। इसके काफी समय बाद पत्रचार के माध्यम से मुम्बई के एस. एन. डी. टी. महिला विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा पूर्ण की। ‘‘कला में रूचि होने के कारण उन्होंने जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट सेुाइन आर्ट का बेसिक पाठयक्रम भी पूरा किया। गुरू डोरा स्वामी के निर्देशन में भरत नाटयम का प्रशिक्षण लिया।”

चित्रा मुद्गल के बहन-भाई

चित्रा मुद्गल के पिता प्रताप सिंह ठाकुर जी की कुल चार संतानें हैं। दो बेटे, दो बेटियाँ। सबसे बड़े बेटे कमलेश बहादुर सिंह, दूसरी बेटी चित्रा मुद्गल, तीसरी बेटी केशा सिकरवाल और सबसे छोटे बेटे कृष्ण प्रताप सिंह। पिता प्रताप सिंह ठाकुर की नजर में बेटे-बेटियों मेुंर्क था। वे अपने बेटों को अंग्रेजी मिडियम स्कूल और बेटियों को हिन्दी मीडियम स्कूल में शिक्षा के लिए भेजते थे। चित्र जी के बड़े भाई कमलेश बहादुर सिंह देवीदयाल कंपनी में प्रोडक्शन मैनेजर के पद पर कार्यरत है। छोटी बदन केशा सिकरवाल गृहिणी है, उनकी शादी ग्वालियर के व्यापारी परिवार में हुई है। सबसे छोटे भाई का मुंबई और अहमदाबाद के पास सिलवासा में स्वयं का कारखाना है।

चित्रा मुद्गल का विवाह

17 फरवरी 1965 में अपने पिता और परिवार की इच्छा के विरूद्ध चित्रा मुद्गल जी ने अवधनारायण मुद्गलजी से अन्तर्जातीय प्रेम विवाह किया। विवाह के समय चित्रजी मात्र बीस वर्ष की थी। चित्र और अवधनारायण जी का विवाह माटुंगा के आर्य समाज मंदिर में सम्पन्न हुआ। आपके विवाह में भाई की भूमिका फिल्म पत्रकार हरीश तिवारी ने अदा की। मुद्गल जी उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद की बाह तहसील सेमनपुरा गांव के ब्राह्मण परिवार से थे। वे संवेदनशील और खुले व्यक्तित्व के थे। अवधनारायण जी कवि, कथाकार, पत्रकार तथा हिंदी की प्रतिमान कथा पत्रिका ‘सारिका’ तथा ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के यशस्वी संपादक थे। 

15 अप्रैल 2015 को अवधनारायण जी ने इस संसार और चित्रजी को सदा के लिए अलविदा कह दिया।

चित्रा मुद्गल की संतान

चित्रा मुद्गल और अवधनारायण मुद्गल जी के वैवाहिक जीवन से दो संतानें हैं, बेटा राजीव और बेटी अपर्णा। राजीव और अपर्णा में तीन साल का अंतर था। चित्र जी ने अपनी लाडली बेटी अपर्णा का विवाह विख्यात साहित्यकार मृदुला गर्ग के छोटे बेटे शशांक से करवाया। दुर्भाग्यवश विवाह के छह महीने बाद ही एक सड़क दुर्घटना में दोनों की मृत्यु हो गयी। इस हादसे को चित्रा मुद्गल और मृदुला गर्ग जी उबर नहीं पाए। चित्र जी ने अपने बेटे राजीव का विवाह अपनी ही सहेली शैली से करवाया, जोकि प्रसिद्ध गीतकार शब्द कुमार की पुत्री है। शैली ने अपने बहू के कर्तव्य को निभाते हुए चित्र जी और मुद्गल के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बड़ी सहजता से संभाला। राजीव और शैली की तीन संतानें हैं बेटा शाश्वत तथा दो बेटियाँ अनघा और आद्या। चित्रा मुद्गल की पोती अनघा मृदुभाषी तथा आद्या वाचाल स्वभाव की हैं। राजीव की दर्शन और अध्यात्म में रुझान है। वे अंग्रेजी में लिखते हैं। ‘पायोनियर’ पत्रिका में उनकी कविताएं पहले अल विराज नाम से छपा करती थी, परन्तु अब वे राजीव मुद्गल नाम से ही लिखते हैं।

चित्रा मुद्गल का साहित्य लेखन की प्रेरणा

लेखक अपने आस-पास घटित होने वाले तथ्यों को स्वानुभव और उन्हें आत्मसात कर तथ्यों की गहराईयों में उतर अपनी कलम को शब्द प्रदान करता है। लेखिका चित्र मुद्गल जी को अपनी बाल्यावस्था से कुछ ऐसा परिवेश मिला जहाँ मान-मर्यादा, सम्मान, इज्जत रूतवा आदि की बात तो की जाती थी मगर वही घर की औरतों के साथ जानवरों से भी बुरा सलूक किया जाता था। कदम-कदम पर शोषण, दोहन, अपमान, इच्छाओं का गला दबाना, संतान के पालन-पोषण, शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों में अंतर किया जाता था। ‘‘शाही ठाठ-बाट वाले उन घरों में रहने वाली स्त्रीयो में उस समय पुरुषों के अत्याचार को सहने की जो मानसिकता हो सकती थी, वह उनकी दादी, माँ, चाची जेसी स्त्रियों में देखी जा सकती थी। उन्होंने जहाँ इसे सहज ही स्वीकार कर लिया, वही उस वातावरण ने चित्रजी में विद्रोही प्रवृत्ति को जन्म दिया। उनमें चित्र जी को सामंवादी मानसिकता, विचारों और कार्यों का प्रतिरोध करने की क्षमता विकसित होने लगी थी। 

परिणामस्वरूप उनको जिस कार्य को करने के लिए कहा जाता, उसी के विरुद्ध वह जा खड़ी होती। परिवार में जब बालिका चित्र के कान छेदने के संस्कार की बात उठी, तो वह उसके खिलाफ भड़क उठी। तभी उसने सोच लिया कि वह मुर्दों की चलती-फिरती भीड़ का हिस्सा नही बनेगी, वह बनी-बनाई लीक पर नही चलेगी वह अपना रास्ता अपने आप बनाएगी। जब उसने नृत्य सीखने का प्रस्ताव रखा तो ‘नाच कर पतुरिया बनना है का’ दादी की कही गई बात का विरोध करने के लिए ही उन्होंने भरतनाटय सीखा।

लड़के और लड़की के बीच किए जाने वाले अंतर को भी उन्होंने बारीकी से परखा। भाई को डॉन वास्को में पढाया गया उन्हें हिंदी हाई स्कूल सेंटर में। इन सबका विरोध करने की प्रवृत्ति उस घर में पनपी, जहाँ घर का अनुशासन भंग करने वाली लड़कियों को कुएं की जगत से धôा देकर यह प्रचारित कर दिया जाता था कि कुएं की जगत से बिटिया का पांव फिसल गया था। अर्थात् लड़की का अनुशासन तोड़ना माने मौत का दंड। किंतु निभÊक चित्र इसके सामने न झुकी। वह अपना विरोध चित्रांकन में दर्शाने लगी, कविताओं में लिपिबद्ध करने लगी, अपने पिता को पत्र लिख-लिख व्यक्त करने लगी।”

चित्र जी ने अपने छात्र जीवन में ही लिखना आरंभ कर दिया था। विद्यालय में होने वाली प्रतियोगिताओं और वाद-विवाद के लिए लिखा करती थी। चित्र जी ने पहली कविता ‘पिता’ विषय पर लिखी थी, जिसमें पिता के जल्लाद व्यक्तित्व को व्यक्त किया था। विद्यालय की छात्र पत्रिका के लिए इस कविता को छापने से इनकार कर दिया गया था किन्तु शिक्षक ने उनके लेखन कौशल को परखते हुए, उन्हें प्रोत्साहित किया और कुछ सकारात्मक लिखने के लिए कहा।

चित्र जी की लेखन की ओर बढ़ती गंभीरता ने भी कविताओं की रचना की। सन् 1966 में ‘लहर’ पत्रिका में ‘कैसे जियेंगे वे’ तथा सन् 1969 में ‘जब तुम’ आदि कविताएँ महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रकाशित हुई। चित्र जी की पहली कहानी ‘सफेद सेनारा’ ‘नवभारत टाइम्स’ द्वारा आयोजित कथा प्रतियोगिता में पुरस्कृत एवं प्रकाशित हुई थी।

तत्पश्चात चित्र जी ने हिंदी साहित्य पर अपनी सशख्त लेखनी चलाई।

चित्रा मुद्गल का कार्य क्षेत्र 

चित्रा मुद्गल हिंदी साहित्य जगत की विख्यात लेखिकाओं में आ ँकी जाती हैं। अपने पिता के घर के सुख और ऐशोआराम की जिंदगी को त्याग अवधनारायण जी के साथ झुग्गी में वैवाहिक बिताना ज्यादा प्रिय समझा। परिस्थितियाँ विपरीत अवश्य थी किंतु साहस, आत्मविश्वास, दृढ़ता में कोई कमी नही थी। चित्र जी कढ़ी मेहनत करने के लिए सदेव तत्पर रही किंतु किसी के समझ नतमस्तक न हुई। चित्र जी के कार्यक्षेत्र की बात की जाए तो उन्होंने औपचारिक रूप से कही कोई नौकरी नही की। किंतु अपने जीवन काल में आज भी उतनी ही जागरुक और क्रियाशील है। अवधनारायण जी के साथ वैवाहिक जीवन की शुरूवात में जब आप में मुंबई की झोपड़पÍी में रहने आई; अपने मजदूरों और श्रमिकों के हित के लिए संघर्ष शुरुकर दिया। “मुम्बई की झोपड़पÍी में जीवनयापन करनेवाली, घरों में बर्तन-खटका करने वाली बाइयों के लिए काम करने वाली संस्था ‘जागरण’ में 1965 से 1972 तक सचिव के रुप में कार्य किया। 

उन्होंने कामबार आघाड़ी, मजदूर यूनियन की कार्यकर्मा के रूप में कार्य किया। महिलाओं की संस्था ‘स्याधार’ की कार्यकर्ता के रूप में 1979 से 1983 तक कार्य किया। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की वूमन स्टडीज यूनिट की कई महत्त्वपूर्ण पुस्तक योजनाओं में 1986 से 1990 तक निदेशक के तौर पर काम किया।

चित्रजी फिल्म सेंसर बोर्ड की मानद सदस्या के पद पर 1978 और 1999 में कार्य कर चुकी हैं। ‘आशीर्वाद फिल्म आवार्ड’ में वर्ष 1980 में बतौर जूरी काम किया। ‘महात्मा गांधी प्रतिष्ठान मॉरीशस’ द्वारा रचनाकार से भेंट कार्यक्रम के लिए 1990 में आमंत्रित की गयी। आकाशवाणी की ‘सर्वभाषा राष्ट्रीय नाटय स्पर्धा’ की 1995 में जूरी सदस्य रही। ‘माधुरी’ पत्रिका की लगातार चार वर्षों तक आमुख कथा लेखिका रही। ‘समन्वय’ उत्तर प्रदेशीय महिला मंच, सूय संस्थान, स्त्री शक्ति एवं समता महिला मंच की कार्यकर्ता रही। चिमु नाम से कई पत्रिकाओं में धारा प्रवाह लेखन किया। छठे और सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन की ‘सम्मान समिति’ और ‘शैक्षिक समिति’ की सदस्य रही।

चित्रजी 49वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार एवं इंडियन पैनोरमा की वर्ष 2002 में सदस्य रह चुकी हैं। आई.सी.सी.आर. की मौलान आजाद निबन्ध प्रतियोगिता (सार्क) की 2000 से 2002 तक जूरी सदस्य रह चुकी हैं। इसके अतिरिक्त चित्र जी प्रसार भारती बोर्ड की वर्ष 2003 से 2007 तक सदस्य रह चुकी हैं। वे नेशनल बुक ट्रस्ट की हिन्दी सलाहाकर समिति की मानद सदस्य रह चुकी हैं। उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रलय, भारत सरकार के संस्कृति विभाग की वरिष्ठुैलोशिप भी मिल चुकी है। वे वर्ष 2005 से 2008 तक प्रसार भारती के इंडियन क्लासिक की चेयरपर्सन भी रह चुकी हैं। 

इन सबके अतिरिक्त वे वर्ष 2005 से 2008 तक अंतरिक्ष एवं परमाणु ऊर्जा विभाग की संयुक्त हिन्दी सलाहकार समिति की मानद सदस्य एवं वर्ष 2006 से 2009 तक डाकतार विभाग में हिन्दी सलाहकार समिति की मनोनीत सदस्य भी रह चुकी हैं।”

चित्रा मुद्गल की रचनाएँ

उपन्यास

  1. ‘एक जमीन अपनी’ वर्ष 1990 में प्रभातन प्रकाशन से प्रकाशित।
  2. ‘एक जमनी अपनी’ का दूसरा संस्करण वर्ष 1999-2000 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित।
  3. ‘एक जमीन अपनी’ का तीसरा संस्करण वर्ष 2002 में और चौथा संस्करण 2009 में सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित।
  4. ‘आवां’ उपन्यास का पहला संस्करण वर्ष 1999 में और आठवां संस्करण 2015 में सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित।
  5. ‘द क्रूसेड’ के पांचवें संस्करण का ओशन पब्लिकेशन से प्रकाशन।
  6. ‘गिलिगडु’ का 2002 में और पांचवां संस्करण 2010 में सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित।

बाल उपन्यास

  1. ‘मघिमेखलै’ उपन्यास सन् 2001 में साहित्य प्रकाशन से प्रकाशित।
  2. ‘जीवक’ उपन्यास सन् 2001 में साहित्य प्रकाशन से प्रकाशित।
  3. ‘माघवी कन्नगी’ उपन्यास किताबघर से प्रकाशित।

कहानी

  1. ‘जहर ठस हुआ’ सन् 1980 में अनन्य प्रकाशन से प्रकाशित।
  2. ‘लाक्षागृह’ वर्ष 1982 में पराग प्रकाशन से प्रकाशित।
  3. ‘अपनी वापसी’ कथा संकलन वर्ष 1983 में सम्भावना प्रकाशन से प्रकाशित।
  4. ‘इस हमाम में’ वर्ष 1986 में प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित।
  5. ‘ग्यारह लम्बी कहानियँ’ वर्ष 1987 में प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित।
  6. ‘द हाइना एंड अदर स्टोरीज’ वर्ष 1988 में ओशन बुक्स प्रा. लि. से तीसरा संस्करण प्रकाशित।
  7. ‘चर्चित कहानियां’ वर्ष 1994 में सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित।
  8. ‘मामला अभी आगे बढेगा’ वर्ष 1996 में प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित।
  9. ‘जिनावर’ कहानी संग्रह वर्ष 1996 में किताबघर से प्रकाशित।
  10. ‘लपटें’ कहानी संग्रह का वर्ष 2000-2004 तक भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से पांचवां संस्करण प्रकाशित।
  11. ‘केंचुल’ कहानी संग्रह का प्र्रभात प्रकाशन की ओर से तीसरा संस्करण प्रकाशित।
  12. ‘भूख’ कहानी संग्रह का प्रभात प्रकाशन की ओर से तीसरा संस्करण प्रकाशित।
  13. ‘बयान’ लवुकथा संग्रह का वर्ष 2004 में भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से प्रकाशन।
  14. ‘आदि से अनादि’ (सम्पूर्ण कहानियां, तीन खंडों में) वर्ष 2007 में और तीसरा संस्करण 2009 में सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित।
  15. ‘पेंटिंग अकेली है’ वर्ष 2014 में सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित।

बाल कहानी संग्रह

  1. ‘जंगल का राज’ वर्ष 1986 में प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित।
  2. ‘देश-विदेश की लोक कथाएं’ 1986 में प्रभात प्रकाशण से प्रकाशित।
  3. ‘नीति कथाएं’ वर्ष 1987 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् से प्रकाशित।
  4. ‘पेड़ पर खरगोश’ वर्ष 2003 में किताबघर प्रकाशन से प्रकाशित।
  5. ‘सूझ-बूझ’ वर्ष 2004 में प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित।
  6. ‘दूर के ढोल’ वर्ष 2004 में किताबघर प्रकाशन से प्रकाशित।
  7. ‘कांच की किरच’ वर्ष 2008 में राजपाल एंद संस से प्रकाशित।
  8. ‘देश-विदेश की लोक कथाएं’ वर्ष 2008 में राजपाल एंड संस से प्रकाशित।

आलेख-संग्रह

  1. ‘तहखानों में बंद आईनों के अक्स’ 1988 में अभिनव प्रकाशन से प्रकाशित।
  2. ‘विचार संग्रह’ तन् 1988 में अभिनव प्रकाशन से प्रकाशित।
  3. ‘वयार उनकी मुÎी में’ सन् 2004 में और दूसरा संस्करण 2006 में सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित।
  4.  ‘तहखानों में बंद अक्स’ सन् 2010 में और तीसरा संस्करण 2014 में सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित।
  5. ‘पाटÊ’ वर्ष 2011 में बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित।

नाटक

  1. ‘पंच परमेश्वर तथा अन्य नाटक’ वर्ष 2005 में राजपाल एंड संस से प्रकाशित।
  2. ‘सद्गति तथा अन्य नाटक’ वर्ष 2005 में राज्यपाल एंड संस से प्रकाशित।
  3. ‘बूढ़ी काकी तथा अन्य नाटक’ वर्ष 2005 में राज्यपाल एंड संस से प्रकाशित।

संपादन

  1. ‘असफल दाम्पत्य की कहानियाँ’ वर्ष 1987 में प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित।
  2. ‘टूटते परिवारों की कहानियाँ’ वर्ष 1987 में प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित।
  3. ‘दूसरी औरत की कहानियाँ’ वर्ष 1987 में प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित।
  4. ‘भीगी हुई रेत’ वर्ष 1989 में शिक्षा विभाग, बीकानेर, राजस्थान से प्रकाशित।
  5. ‘पुरस्कृत कहानियाँ’ वर्ष 1989 में संतोष प्रकाशन से प्रकाशित।
  6.  ‘देह-देहरी’ वर्ष 1989 में साहित्य प्रकाशन से प्रकाशित।
  7. ‘प्रेमचंद की प्रेम कहानियाँ’ वर्ष 2005 में रौशनाई प्रकाशन से प्रकाशित।

कहानियों पर फिल्में

  1. ‘इसके बावजूद’ कहानी पर वर्ष 1986 में दूरदर्शन लखनऊ की ओर से टेलीफिल्म का निर्माण।
  2. ‘वारिस’ टेलीफिल्म का वर्ष 1988 में दिल्ली दूरदर्शन के लिए निर्माण।
  3. ‘प्रेतयोनि’ कहानी परुीचर फिल्म ‘आवरू’ का निर्माण।
  4. ‘रूना आ रही है’ मंजु सिंह के धारावाहिक ‘एक कहानी’ में शामिल 5. ‘अभी भी मझधार’ धारावाहिक में शामिल।
  5. जी.टी.वी. के धारावाहिक ‘दशरथ का वनवास’ और ‘सौदा रिश्ते’।

अनुवाद

  1. गुजराती की श्रेष्ठ व्यंग्य कथाएं, पराग प्रकाशन से।
  2. गुजराती, मराठी, अंग्रेजी, तेलगु, मलयालम, उड़िया, बांगला, पंजाबी, इटैलियन, जमर्न, उर्दू एवं चैक भाषाओं में कहानियों का अनुवाद प्रकाशित।
  3. उपन्यास ‘आवां’ का पंजाबी, असमिया, मराठी, उड़िया तथा अंग्रेजी में अनुवाद।

पाठयक्रमों में रचनाएं

  1. ‘ग्यारह लम्बी कहानियां’ ओसाका विश्वविद्यालय, जापान के हिंदी पाठयक्रम में शामिल।
  2. ‘एक जमीन अपनी’ उपन्यास मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में एम.ए. पाठयक्रम में शामिल।
  3. स्तक में संकलित।
  4. ‘रिश्ता’ लघुकथा एन.सी.ई.आर.टी. के अंतर्गत ग्यारहवÈ कक्षा की हिंदी पाठयपुस्तक में संकलित। 5. ग्यारह लम्बी कहानियों का अंध शिक्षा केंद्र, वलÊ, मुम्बई की ओर से ब्रेल लिपि में ध्वनि रूपांतरण।
  5. गुजरात राज्य की कक्षा छह के पाठयक्रम में शामिल।
  6. ‘जिनावर’ कहानी राजस्थान विश्वविद्यालय के बी. ए. पाठयक्रम में शामिल।
  7. ‘रिश्ते’ कहानी एन.सी.ई.आर.टी. के पाठयक्रम के अंतर्गत ग्यारहवÈ कक्षा के पाठयक्रम में संकलित।
  8. ‘जगदंबा बाबू गांव आ रहे हैं’ कहानी पुणे विश्वविद्यालय के पाठयक्रम में शामिल।
  9. ‘गिलिगडु’ उपन्यास त्रिवेन्द्रम विश्वविद्यालय के पाठर्यम में शामिल।
  10. ‘डोमन काकी’ कहानी गवर्नमेंट ऑफ केरल के एन.सी.ई.आर.टी. के पाठय्रम के अंतर्गत संकलित।

चित्रा मुद्गल की उपलब्धियाँ

चित्रजी प्रख्यात साहित्यकार हैं। साहित्य जगत में इनका विशेष स्थान है। इन्हें अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है, जो इस प्रकार हैं-
  1. बहुचर्चित उपन्यास ‘आवां’ के लिए चित्रजी को वर्ष 2003 में के.के. बिड़ला का प्रतिष्ठित 13वां ‘व्यास सम्मान’ मिला।
  2. राष्ट्रीय एकता एवं सद्दावना के लिए ‘प्रज्ञा सम्मान’ मिला।
  3. ‘इस हमाम में’ कहानी संग्रह के लिए हिंदी अकादमी, दिल्ली का ‘साहित्यिक कृति सम्मान’।
  4. ‘गिलिगडु’ उपन्यास के लिए ग्वालियर, मध्यप्रदेश का ‘चक्रधर’ सम्मान।
  5. ‘आवां’ उपन्यास के लिए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी का ‘वीरसिंह जू देव’ प्रतिष्ठित पुरस्कार।
  6. ‘आवां’ उपन्यास के लिए राजस्थान का ‘वाग्मणि’ सम्मान।
  7. ‘आवां’ उपन्यास के लिए सहयाब्दी का पहला, अंतरराष्ट्रीय ‘इंदु शर्मा कथा सम्मान’ लंदन।
  8. बाल कथा संग्रह ‘जंगल का राज’ के लिए हिंदी अकादमी का ‘बाल साहित्य पुरस्कार’।
  9. ‘ग्यारह लम्बी कहानियां’ कथा संग्रह के लिए बिहार राजभाषा विभाग द्वारा ‘राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह पुरस्कार’।
  10. ‘एक जमीन अपनी’ उपन्यास के लिए ग्रामीण विकास संगठन, मुम्बई द्वारा ‘फणीश्वरनाथ रेणु साहित्य पुरस्कार’
  11. वर्ष 1995 में हिंदी अकादमी, दिल्ली से ‘साहित्यकार सम्मान’।
  12. ‘आवां’ उपन्यास के लिए उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान का ‘साहित्य भूषण सम्मान’।
  13. सामाजिक कार्यों के लिए विकास फ़ाउंडेशन द्वारा ‘विदुला सम्मान’।
  14. ‘आवां’ उपन्यास के लिए हिमाचल प्रदेश का प्रतिष्ठित शिखर सम्मान।
  15. उदयराज सिंह स्मृति शिखर सम्मान बिहार प्रदेश का सर्वोच्च पुरस्कार।
  16. ‘आवां’ उपन्यास के लिए वर्ष 2010 में चिन्नप भारती प्रगतिशील लेखक संघ तमिलनाडु द्वारा ‘चिन्नप भारती सम्मान’।

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