कृषि का उद्भव एवं विकास

मानवशास्त्री ने जीव व वनस्पति के साथ सहयोग कर विभिन्न कृषि विकास की दशाओं का पता लगाया है। प्रारंभिक में मानव का प्रयास सीमित रहा बाद में पशु आदि पर निर्भरता बनी रही धीरे - धीरे कुछ क्षेत्रों को साफ कर कुछ निश्चित फसलें का चयन कर विस्तृत क्षेत्रों को साफ कर खेती करना प्रारंभिक खेती की शुरूवात कही जा सकती है। जो आज से कई हजार वर्ष पूर्व थी।

कृषि का उद्भव एवं विकास

पशुओं को पालतू बनाना मानवों द्वारा 8000 ई. पू. किया गया था। किन्तु इस पर भी वैज्ञानिकों का मतभेद है। एक सिद्वांत के मानने वाले का कहना है। कि प्रारभं में खेती एवं पशुपालन एक मिलीजुली अवस्था में मैदानी इलाकों में विकसीत हुई। चूकीं मैदानी इलाकों में वे घुमक्कड़ जीवन जीते थे इस हेतु एक दूसरे से मिलकर बाद में मिलीजूली कृषि का निर्माण हुआ। कृषि को तीन काल में बॉट कर अध्ययन किया जा सकता है।

1. प्राचीन काल 

इस काल में कृषि विकासव्यवस्था बिगड़ी हुई थी यदा कदा क्षेत्रों में कृषि की जाती थी और इस काल में कृषि विकास केवल आखटे व पशु चारण काे माना गया था। इस काल में कृषि उन क्षेत्रों में विकसीत नहीं हो सकी जहा पर मानव समूह भोजन की तलाश में भटकता रहता था। इस प्रकार धीरे-धीरे प्रथम अवस्था में कृषि का प्रादुर्भाव हुआ एवं गेहु एवं मक्का की खेती की जाने लगी।

2. मध्य काल

में कृषि का विकास होना शुरू हो चुका था। कृषि क्षत्रे में नये आयाम विकसित हुए लेकिन इन सभी के परिवर्तन के पिछे अभी भी पिछले युग की छाप देखी जा सकती है। इस काल में पांॅच विभिन्न तरह के कृषि पद्धति का विकास हुआ 1. अस्थायी कृषि 2. आन्तरिक एवं बाहरी खेती व्यवस्था 3. दोहरी फेरा प्रणाली 4.तीन वश्र्ाीय प्रणाली 5. तीन क्रमीय प्रणाली ।

3. आधुनिक काल

17 वी 18 वीं शताब्दी का काल कृषि क्षेत्र में उथल -पुथल कहा जा सकता है। जिसमें कई नये आविष्कार हुए। प्रारंभिक कृषि जीवीकोपार्जन की थी इससे व्यवसायिक कृषि की ओर बढ़े। कृषि के साथ - साथ पशुपालन मुर्गीपालन आदि का भी विकास हुआ । इस प्रकार इस क्रांति से नये तकनीकों से फसलों के साथ नये - नये व्यवसाय का भी विकास संभव हुआ।

कृषि की उत्पत्ति

कृषि की उत्पत्ति कब, कहाँ, कैसे हुई, यह एक खोज का विषय है ? इस संदर्भ में पुरात्त्वविदों, मानवषास्त्रियों, वनस्पतिषास्त्रियों, जीव विज्ञानवेत्ताओं आदि ने उद्भव एवं विकास दशाओं से सम्बंधित पर्याप्त सामग्री जुटाई है।

पृथ्वी पर मानव ने अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए अनेक व्यवसाय अपनाये हैं जिनमें कृषि एवं पशुपालन अत्यन्त प्राचीन व्यवसाय है। कृषि का उद्भवात्मक पहलू फलोत्पादन तथा पशुपालन के इतिहास से ही जुड़ा हुआ है। पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति 10 लाख वर्ष पूर्व से अधिक पुरानी मानी गयी है, जिसने जिन्दा रहने के लिए पहले शिकार,ुलों व कन्दमूलों का प्रयोग किया होगा। इनके नहीं मिलने पर उसने कृषि क्रिया को सीखा है। 

अनुमान लगाया गया है कि आज से 10,000 वश्र पूर्व प्रथम बार खेती का काय्र प्रारम्भ हुआ। आरम्भिक काल में भौतिक व सामाजिक अवरोधों के कारण कृषि काय्र विधि में विकास की गति पर्याप्त धीमी रही।

पुरापाशाणकालीन मानव ने शिकार के साथ-साथुल एकत्रित करना भी सीख लिया था और इस समय तक मानव का अधिकांश समय भोजन की तलाष में ही व्यतीत होता था। शिकार न मिलने की दशा में उन्हें भूखा भी रहना पड़ा होगा। भुख की समस्या का स्थायी समाधान करने के लिए तात्कालीन मानव ने कृषि करने से पूर्व कुछ पशुओं को पालतू बनाया और कुछ पौधों की खेती की। इस प्रकार कृषि मानव के अनवरत प्रयासों काुल है। सभ्यता के साथ-साथ पशुओं के प्रति मानव का दृष्टिकोण बदला है। पहले वह जिन पशुओं को मारकर खा जाता था आज वह उनके पालन पर जोर देने लगा है। खेतों को जोतने, बोझा ढोने, ऊन प्राप्त करने, दूध, खाल, माँस प्राप्त करने की दृष्टि से पशुओं को पालतू बनाया गया है। प्रारम्भ में पौधे प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को कुछ भोजन प्रदान करते थे। उसे कुछ भोजन स्वपोशी कीटों, पक्षियों व अन्य जीवों से भी प्राप्त होता था। उसने अग्नि की सहायता से जंगलों को साफ करके कृषि प्रारम्भ की है।

रोमन सभ्यता के समय से यह धारणा प्रचलित रही है कि कृषि का विकास वन्य प्राणियों के शिकार, वन्युलों व खाद्य वस्तुओं के संग्रहण तथा पशुपालन के बाद हुआ है। कृषि की उत्पत्ति के सम्बंध में अमेरिकन विद्वान कार्ल सॉवर का मत है :-
  1. कृषि का उद्भव उन समुदायों में नहीं हुआ जहाँ अन्न की अत्यन्त कमी थी अपितु वहाँ हुआ जहाँ कृषि के उपयोग करने के लिए अभावों से उन्मुक्तता थी।
  2. आदिम कृषि का प्रारम्भ विशाल नदी घाटियों में न होकर पहाड़ी भूमियों में हुआ क्योंकि नदी घाटियाँ बाढ़ों से प्रभावित रहती थी।
  3. कृषि जंगली भूमि से प्रारम्भ हुई है क्योंकि वहाँ मिट्टी आसानी से कार्यावस्था में लायी जाती थी।
  4. कृषि के संस्थापक स्थायी निवासों में रहते थे क्योंकि सलों को उगाने व उनकी देखभाल करने के लिए समय-समय पर कृषक खेतों पर जाते थे।
विश्व में कृषिकर्म सबसे पहले भारत में ही प्रारम्भ हुआ था। हल द्वारा भूमि जोतने की तकनीकि सर्वप्रथम अश्वनीकुमारों ने दी थी। (ऋग्वेद 1/117/21)। वैदिककाल का जीवन सामूहिक था, खेती सामूहिक थी, लोक समूहों (गणों-जनों) में रहते थे, बुवाई, सिंचाई एवं कटाई सामूहिक कर्म थे। (ऋग्वेद 8.78.10 व 1.48.7)। सामूहिक प्रार्थना थी ‘हमारे हल ठीक से चले। हम सुखपूर्वक हल चलाये। पर्जन्य वर्षा द्वारा सुख पहुॅचाये। 

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