मधु कांकरिया का जीवन परिचय और रचनाएँ

मधु कांकरिया का जीवन परिचय

मधु कांकरिया का जीवन परिचय

मधु कांकरिया का जन्म कलकत्ता के एक निम्न मध्यवर्गीय जैन व्यवसायी परिवार में 23 मार्च, 1957 में हुआ। मधु कांकरिया के पिता का नाम ध्यानचंद वर्डिया तथा माँ का नाम अक्षयदेवी है। मधुजी के पिता का अपना मेटल का व्यवसाय था। उन्हें किताबें, अखबार, पत्रिकाएँ आदि पढ़ने का बहुत शौक था। माँ अक्षय देवी कुशल गृहिणी थी।
अक्सर छोटी-छोटी बातों पर मधु और माँ की बहस हो जाया करती थी। समाज के नियमों और रूढ़ियों की अवहेलना करना मधु जी का स्वभाव सा बन गया था।

मधु कांकरिया तीन बहन भाई हैं। मधु जी को दो भाई हैं बड़े भाई अशोक वर्डिया तथा छोटे भाई सुनील कुमार वर्डिया। तीनों भाई-बहन की शिक्षा कलकत्ता में ही पूरी हुई है। बड़े भाई अशोक जी ने कास्टिंग में और सुनील जी ने बी. कॉम में तालीम हासिल की है। दोनों भाईयों ने अपने पिता के व्यवसाय को संभाला और उस छोटे से व्यवसाय को अपनी लगन, मेहनत, निष्ठा के बलबूते पर एक कामयाब और उच्च श्रेणी में तबदील कर दिया। मधु जी को जीवन में अपने भाईयों का पूरा सहयोग मिला। बड़े भाई ने मधु जी को प्रोत्साहित किया आगे बढ़ने के लिए। आपने आत्मसम्मान और प्रतिष्ठा के लिए सशक्त बनने के लिए।

मधु जी ने बी.ए. और एम.ए. (अर्थशास्त्र) कलकत्ता के लेडी बेटन कॉलेज से किया तथा कम्प्यूटर विज्ञान में डिप्लोमा बी किया। कम्प्यूटर विज्ञान में डिप्लोमा करना उनका मकसद था कि वे स्वावलंबी बन जाए।

मधु जी को विवाह करना पसंद नही था क्योंकि एक तो देखने में बहुत सुंदर नही थी और इसी कारण अधिकतर शादी के लिए आए हुए रिश्तों की मनाही हो जाती थी। बार-बार रिश्ते न होने की बात ने जेसे उन्हें भीतर से तोड़ दिया था। दूसरा कारण था कि वही रूढ़ियाँ, परंपराएँ, बोझिल जिंदगी, किसी की पत्नी का खिताब मिलना इन सब में अपनी पहचान का कही लुप्त हो जाना। मगर पिता के अथक प्रयास के उपरांत मधु जी का ब्याह एक पारंपरिक जेन मारवाड़ी परिवार के शिक्षित लड़के रंजित से हुआ जोकि व्यवसाय से डॉक्टर थे। मधुजी का वैवाहिक जीवन उनकी कल्पनाओं से परे था। पुत्र के जन्मोपरांत मधुजी सदैव के लिए अपने मायके चली आई।

मधु कांकरिया जी को एक बेटा है आदित्य कांकरिया। मधु जी ने अपने बेटे के जीवन में दोहरा किरदार अदा किया है- माँ और पिता का। मधु जी अपने बेटे की शिक्षा और केरियर में कभी कोई कमी न आने दी। आदित्य इंजिनियर है तथा प्रतिष्ठित कम्पनी हिन्दुस्तान लीवर में ब्रांड मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत है तथा बहू दिव्या भी उसी कम्पनी में प्रोजेक्ट मैनेजर पद पर कार्यरत है। घर-आँगन में किलकारियों से गुंजित करती नवीता मधु जी की पोती है।

साहित्य लेखन की प्रेरणा

मधु जी को किताबें पढ़ने की रूचि बचपन से ही थी। पिताजी साहित्य प्रेमी थे। उन्हें किताबे, अखबार, पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने का बेहद शौक था। पढ़ने के साथ उन्हें पढ़ी चीजों को सुनाने का भी शौक था। इसलिए घर पर चर्चित लेखकों की किताबें उपलब्ध रहती थी। पिता की वजह से रचनाकारों- (प्रेमचंद, शरदचंद, टेगोर, रेणु, मन्नू भंडारी आदि) और उनके साहित्य पढा और जाना। कॉलेज के दिनों में छोटी-छोटी कहानियाँ लिखना आरंभ किया। शादी और जीवन की आपाधापी में साहित्य की ओर ध्यान ही न गया। जीविका अर्जन के लिए मधु जी ने कम्प्यूटर सेंटर शुरू किया। शुरू में केवल चार छात्र आए लेकिन धीरे-धीरे छात्रों की संख्या ने गति पकड़ ली।

मधु जी ने अपनी एक कहानी प्रसिद्ध पत्रिका ‘हंस’ में भेजी, लेकिन वह कहानी लौटा दी गई। कहानी के लौटाने पर मधु जी हताश नही हुई। जब कलकत्ता से वागर्थ का प्रकाश हुआ तो मधु जी ने ‘फैसला फिर से’ कहानी भेजी और इस कहानी का प्रकाशन वागर्थ में हुआ। मधु जी ने अपना लेखन कार्य भले ही देरी से आरंभ किया था मगर उनकी कृतियाँ सराहनीय एवं उच्च कोटि की होती हैं। वागर्थ, हंस जेसी पत्रिकाओं में कहानी छपने पर मधु जी का आत्मविश्वास बढा और बेहद खुशी भी हुई। मगर उन्होंने किसी तरह का गर्व न करके अपने को और मांजने तथा तराशने का प्रयास किया ताकि और बेहतरीन लिख सके। मधु जी का पहला उपन्यास राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था ये अपने आप में एक उपलब्धि थी।

मधु कांकरिया जी स्वाभिमानी महिला है। पुत्र के जन्म के बाद मायके आने पर उन्होंने निश्चय किया कि वे अपने माता-पिता और भाईयों पर किसी भी तरह का बोझ नही बनेंगी। अपनी तथा अपने पुत्र की जिम्मेदारी को निभाने के लिए उन्होंने नौकरी करने का निर्णय लिया। अपने स्वाभिमानी स्वभाव के चलते उन्हें अनेक नौकरियाँ बदलनी पड़ी। मगर जीवन के संघर्षों से कभी हार न मानी। संघर्षों ने उन्हें प्रबल बना दिया।

अर्थशास्त्र की जानकारी होने के कारण वे लेखन कार्य के साथ-साथ अपने भाईयों की कम्पनी में शेयर कामकाज भी कर्मठता से पूरा करती है।

मधु कांकरिया जी को घूमना पसंद है। वह जहाँ जाती हैं वहाँ के जनजीवन, संस्कृति, समाज को जानने का प्रयास करती हैं। मधु जी भारत के लगभग सभी राज्यों का दर्शन कर चुकी हैं तथा विदेश यात्र में उन्होंने यूरोप के सात देश हॉलैंड, जर्मनी, प्राग, इटली, स्वीजरलैंड, फ्रांस की यात्र कर चुकी है।

विख्यात लेखिका मधु कांकरिया को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का शौक था। बचपन का ये शौक आज भी बरकरार है। पढ़ने-लिखने के अलावा उन्हें गाने सुनना, घूमना, अच्छी फिल्में देखना भी पसंद है। 

मधु कांकरिया की रचनाएँ

मधु जी की रचनाओं में देखने को मिलता है। अब तक उनके 5 उपन्यास 2 कहानी संग्रह यात्रा संस्मरण, डायरी सामाजिक विमर्श व उपकथन प्रकाशित हुए हैं ।

1. उपन्यास

मधु कांकरिया ने अद्यतन पाँच उपन्यासों की रचना की है, जिनका परिचय इस प्रकार है -

1. खुले गगन के लाल सितारे - मधु जी ने अपने प्रथम उपन्यास में नक्सलवादी आंदोलन के इतिहास को एक मर्मस्पर्शी कहानी के रूप में बुना है, जो उस समय के जीवन-अनुभवों घटनाओं–परिघटनाओं के बीच से / गुजरते हुए, लेखिका को निकट से छूते हुए आकार लेती है। बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से उठी एक चिंगारी शोषण विहीन समतावादी समाज और मानवीय गरिमा से जीवन जीने योग्य वातावरण की रचना की आग को अपने अंतरतम में छिपाए उठी थी और देखते-देखते एक मधु कांकरिया के उपन्यासों में संवेदना के धरातल और युगीन चेतना भीषण दावानल में सामने आयी, लेकिन अंततः उसकी परिणति क्या रही –वह आज इतिहास का एक बीता हुआ अध्याय बन चुकी है। मधु जी के बड़े भाई के इस आंदोलन से जुड़े होने के कारण इस उपन्यास में वर्णित घटनाओं का स्व-अनुभव के आधार पर अति सूक्ष्मता से चित्रण किया गया है।

2. सलाम आखिरी - समाज में वेश्या की मौजूदगी एक ऐसा चिरंतन सवाल है जिससे हर समाज हर युग में अपने-अपने ढंग से जूझता रहा है। वेश्या को कभी लोगों ने सभ्यता की जरूरत बताया कभी कलंक बताया सभ्य कभी परिवार की किलेबंदी का बाई - प्रोडक्ट कहा और कभी सफेदपोश दुनिया का गटर जो उनकी काम कल्पनाओं और कुंठाओं के कीचड़ को दूर अंधेरे में ले जाकर पटक देता है। मधु जी का यह उपन्यास वेश्याओं और वेश्यावृत्ति के पूरे परिदृश्य को देखते हुए हमारे भीतर उन असहाय स्त्रियों के प्रति करुणा का उद्रेक करने की कोशिश करता है, जो किसी भी कारण से इस बदनाम और नारकीय व्यवसाय में आ फँसी हैं। उपन्यास में कलकत्ता महानगर के लाल बत्ती इलाकों सोनागाछी · बहु बाजार, कालीघाट, बैरकपुर, - खिदिरपुर आदि इलाकों में जीवन के कुरूप एवं भयंकर नग्न रूप का चित्रण किया गया है।

3. पत्ताखोर - स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय समाज ने जहाँ विकास और प्रगति की कई मंजिलें तय की हैं, वहीं अनेक व्याधियाँ भी अर्जित की हैं। अनेक सामाजिक व आर्थिक कारणों से समाज कुछ ऐसी बीमारियों से घिर गया है जिनका कोई सिरा पकड़ में नहीं आता। आज युवा पीढ़ी में सिर उठाती नशे और ड्रग्स की लत एक ऐसी ही बीमारी है। मधु जी ने अपने इस उपन्यास का विषय युवाओं में बढ़ती इस नशे और ड्रग्स की लत को बनाया है। नशाखोरी के पूरे समाजशास्त्र को समझने और समझाने की चेष्टा इस उपन्यास में की गई है।

4. सेज पर संस्कृत - सदियों से स्त्री का शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक शोषण होता आया है और स्त्री इस शोषण को मूक भाव से सहती आयी है। आज की स्त्री भी इस शोषण चक्र में पिसी जा रही है। मधु जी के इस उपन्यास में स्त्री के दमन एवं शोषण की गाथा कही गयी है। साथ ही जैन धर्म के मनुष्य विरोधी होते जाने का प्रामाणिक एवं तर्कपूर्ण विश्लेषण किया गया है। यह उपन्यास जैन धर्म में साध्वियों के जीवन की स्थिति तथा उनके संघर्ष का मर्मस्पर्शी चित्रण करता है। उपन्यास में निडर, संघर्षशील, धैर्यवान एवं अंततः विद्रोहिणी बन चुकी नारी की आंतरिक पीड़ा का यथार्थ चित्रण किया गया है।

5. सूखते चिनार - मधु जी ने हमेशा ही ऐसे विषयों को लेकर साहित्य सृजन किया है जो अब तक अछूते रह गए थे। फौजी जीवन की त्रासदियों को ज़मीनी स्तर पर रूबरू कराता यह उपन्यास पाठकों को अलग ही दुनिया में ले जाता है। एक फौजी के जीवन में आने वाले तमाम संघर्षों की जीवंत दासतां बयान करते इस उपन्यास को पाठकों के समक्ष लाने का मधु जी का प्रयास स्वागतयोग्य है।

2. कहानी संग्रह

मधु कांकरिया के कथा संग्रहों की कहानियाँ समसामयिक भारतीय जीवन के ऐसे व्यक्तित्व के कथामयी रेखाचित्र हैं, जो समाज के मरणासन्न और पुनरुज्जीवित होने की समानांतर कथा कहते हैं। इसमें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के ऐसे विरोधाभास और वैपरीत्य के दर्शन होते हैं, जिनसे उत्पन्न विसंगतियों के ही चलते ' दीये तले अंधेरा वाला मुहावरा प्रामाणिक बना हुआ है। मधु जी के अब तक मुख्य रूप से 4 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही उनकी प्रतिनिधि कहानियों के भी दो संग्रह प्रकाश में आए हैं । मधु जी द्वारा रचित कहानी संग्रह इस प्रकार हैं ,

1. बीतते हुए - हमारे समाज में प्रचलित रूढ़ मान्यताओं के कारण मानवीय स्वतंत्रता का सवाल सदा ही अनदेखा किया जाता रहा है। लेकिन मधु जी की कहानियाँ सिर्फ परंपरागत मान्यताओं की ही नहीं आधुनिकता के आवरण में लिपटे जीवन-मूल्यों की भी पड़ताल करती हैं और पाठकों के समक्ष कई सुलगते हुए सवाल खड़े कर सोच को सकारात्मक आयाम प्रदान करती है। इस संग्रह में संकलित नक्सलवादी आंदोलन पर आधारित ' लेकिन कॉमरेड ' हो दांपत्य जीवन में परस्पर विश्वास को रेखांकित करती ' चूहे को चूहा ही रहने दो' हो या बच्चे के स्कूल में दाखिले के लिए एक स्त्री की व्यथा कहती ´ दाखिला ' हो मधु जी कहीं भी विचार और संवेदना के स्तर पर पाठकों को निराश नहीं करतीं, बल्कि कथारस के प्रवाह में बहाए चलती हैं।

2. और अंत में ईशू - आज का जागरुक पाठक सर्जनात्मक कथा साहित्य में वर्ण और नारी आदि के विमर्शों की अंनत बाढ़ की चपेट में है और ऐसे हवा महलों' के संभवतः खिलाफ भी, जो कि उसे ज्ञान और संज्ञान के स्तर पर कहीं शून्य में ले जाकर छोड़ देते हैं। इससे विपरीत इस कहानी संग्रह की कहानियों में जीवन की कालिमा और लालिमा, रति और यति, दीप्ति और दमन एवं प्रचार और संदेश को उनके सही-सही पदासन पर बैठा कर तोला, खोला और परखा गया है। धर्मांतरण का विषय हो या कैरियर की सफलता के नाम पर पैसा कमाने की ' मशीन' बनते बच्चों के जीवन की प्रयोजनहीनता या फिर स्त्री के नए अवतार में उसके लक्ष्मी भाव और उर्वशीय वांछनाओं की दोहरी पौरुषिक लोलुपताएँ बनती है - मधुजी की भाषा पर पकड़ देखते ही

3. चिड़िया ऐसे मरती है - आज हम एक ऐसे कठिन समय में जी रहे हैं जहाँ कोमलता, सुंदरता और संवेदनशीलता को बचाए रखना कितना कठिन लेकिन लाजिमी है, मधु जी के इस कहानी संग्रह की कहानियाँ इसकी बानगी हैं। पशु पक्षी प्रकृति की सुंदरता और मनुष्य के कोमल भावों पर आज चौतरफा खतरे मंडरा रहे हैं। सत्ता, पूँजी बाजार विचारधारा और राष्ट्र राज्य के दमन व उत्पीड़न से रोज-रोज ये नष्ट हो रहे हैं। मधु जी इन्हें बचाए रखने का आग्रह करती है। कुछ कहानियों में मधु जी ने स्त्री सशक्तीकरण संबंधी दृष्टिकोण का भी खुलासा किया है। उन्होंने सामंती पितृसत्तात्मक / समाज और धर्म से स्त्री की मुक्ति को वैचारिक आधार दिया है। वे शरीर की मुक्ति में ही नारी की मुक्ति नहीं देखती बल्कि धर्म से स्त्री की मुक्ति की बात उठाती हैं।

4. युद्ध और बुद्ध  - मधु जी के इस कहानी संग्रह से हम उन सवालों के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिन्होंने हमारी जिंदगी को पूरी तरह घेर लिया है। तेरह कहानियों के इस संग्रह में सत्ता और आतंक के अमानवीय खेल कॉरपोरेट द्वारा रचे गए अत्यंत महत्त्वाकांक्षी मायावी संसार, संवेदनहीन सत्ता तंत्र के कारण उपजी विद्रूपताओं से जूझते पात्रों का संसार बहुत करीने से अंतःप्रवाही भाषा विन्यास में रचा गया है। कहानियों में घटनाएँ ज्यादातर अंतर्मन की छाया के रूप में प्रवाहित होती रहती है |

इन कहानी संग्रह के अतिरिक्त भरी दोपहरी के अंधेरे ' (रे माधव प्रकाशन 2007) इनकी प्रतिनिधि कहानियों का संग्रह है। साथ ही दस प्रतिनिधि कहानियाँ (किताबघर प्रकाशन रूप में पाठकों के बीच प्रस्तुत है । 

कुल मिलाकर कहें तो मधु जी की कहानियाँ कोरी कल्पना की उपज नहीं बल्कि जीवन संघर्षों से निकली हुई ज़मीनी हकीकत बयान करती हैं। अभिव्यक्ति के स्तर पर विचारों का कोरा रूखापन तारी न रहे, इसलिए उन्होंने प्रकृति और मनोभावों की शब्दाकृतियों को भी लुभावने ढंग और दृश्यांकन से इन कहानियों में पिरोया है। औपन्यासिक विस्तार की संभावना से युक्त ये कहानियाँ भाषा, शिल्प और विचार तत्व का अनूठापन और भाव एवं विचार का अद्भुत संतुलन प्रस्तुत करती है।

3. यात्रा वृत्तांत

हिंदी साहित्य में यात्रा वृत्तांत लिखने की उल्लेखनीय परंपरा में मधु जी ने ´ बादलों में बारूद (किताबघर प्रकाशन 2014 ) के माध्यम से एक सार्थक योगदान दिया है। इस यात्रा वृत्तांत को शब्दाकृति प्रदान करते समय मधु जी ने इसके महत्त्वपूर्ण अवयव सभ्यता संस्कृति · इतिहास, भूगोल, पुरातत्व, प्रकृति और अदम्य अस्तित्व आदि के कोने-कोने में झाँक लिया है। परिवर्तन की आहट को सुनते हुए उन्होंने यथार्थ को उसके अधिकाधिक आयामों में देखने, परखने व सहेजने का ईमानदार प्रयास किया है। हिमाचल प्रांतर नेपाल शिलांग सुंदरवन , चेन्नई, लद्दाख, असम, नागालैण्ड, मणिपुर, / मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश जैसी जगहों पर घूम-घूमकर एकत्रित किए गए अनुभवों के खजाने को पारदर्शी बनाकर बहुत ही रचनात्मक ढंग से पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है । इस रचना को पढ़ने पर अनेक ऐसी बातें सामने आती हैं जो इसे अन्य यात्रा वृत्तांतों से विलग करती हैं।

मधु जी का कथेतर गद्य भी समय की चिंताओं और समाज की परख से जुड़ा है। उनके ज़मीनी चिंतन के आधार में यह बात गहरे में अनुभव की जा सकती है कि मनुष्य हो या राष्ट्र वह उतना ही आगे बढ़ता है जितने बड़े उनके स्वप्न होते हैं। इसी कड़ी में उनकी सामाजिक विमर्श कृति है अपनी धरती अपने लोग (सामयिक प्रकाशन 2012)। इसमें वर्णित लेखों के जरिये जहाँ लेखिका एक ओर गंगटोक का यथार्थ पकड़ती हैं, तो दूसरी ओर एक कैदी की आत्मा । यूकेलिप्टस से परेशान देसी धरती का दर्द समझना हो या अधकचरी पीढ़ी की कमजोरी को पकड़ना, अपनी भाषा, संस्कृति से जुड़ाव के महत्त्व को रेखांकित करना हो या माता - कुमाता के फर्क को समझना मधु जी सहज और सरल भाषा में बड़े पाठक वर्ग को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। इनके वैचारिक परिदृश्य में पूर्व और पश्चिम की टकराहट सकारात्मक परिणाम देती है। उनकी चिंता में बचपन, नई पीढ़ी प्रकृति, धरती को बाँटने वाले चेहरे सफलता के अर्थ आत्ममुक्ति, व्यावसायिकता जिंदगी की गरमाहट और मनुष्य होने के अर्थ पूरी शिद्दत से मौजूद हैं। आधुनिक जीवन की चमक में बिला रहे मूल्यों और सोते जा रहे विवेक को फिर से जगाने की कोशिश में यह रचना विविधता भरी, रोचक और विचारोत्तेजक है।

इसके साथ ही ‘सूखते चिनार ´ उपन्यास का तेलुगु में अनुवाद किया गया है। रहना नहीं देश विराना है ' कहानी पर प्रसार भारती चंडीगढ़ द्वारा टेलीफिल्म का निर्माण किया गया है।

मधु कांकरिया की उपलब्धियाँ

मधु जी के द्वारा दिए गए साहित्यिक योगदान को प्रबुद्ध वर्ग के द्वारा भी सराहा गया। इस क्रम में उन्हें कुछ साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है, जो इस प्रकार हैं
  1. सन् 2009 में अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच रजत क्रांति समारोह द्वारा साहित्यिक व अन्य सामाजिक कार्यों में योगदान हेतु ‘‘मारवाड़ी समाज गौरव पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।
  2. ‘‘हेमचंद आचार्य साहित्य सम्मान” विचार मंच द्वारा सन् 2009 में सम्मानित किया गया।
  3. सन् 2008 में ‘‘कथा क्रम सम्मान” आनंद सागर स्मृति सम्मान से पुरस्कृत किया गया।
  4. सन् 2012 में विजय वर्मा कण सम्मान से पुरस्कृत किया गया।

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