मृदुला गर्ग का जीवन परिचय
मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर, 1938 में कोलकाता शहर के समृद्ध परिवार में हुआ था। मृदुला गर्ग के पिता का नाम श्री बिरेन्द्र प्रसाद जैन तथा माता का नाम रविकांता था। मृदुला गर्ग के लेखकीय व्यक्तित्व में उनके पिता जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके पिता बेहद खुले विचारों वाले व्यक्ति थे। उन्होंने अपने किसी भी बच्चे पर कभी किसी भी की रोक-टोक (प्रतिबंध) नही की।मृदुला गर्ग के पिता चाहते थे कि मृदुला हमारे नाम से नही बल्कि हम मृदुला के नाम से जाने जाए। मगर दुर्भाग्य से यह सुनहरा दिन आने से पहले ही वे च बसे।”
श्री बिरेन्द्र प्रसाद जेन और रविकांता की कुल पाँच बेटियाँ और एक पुत्र है। ‘‘बड़ी
बहन मंजुला भगत जो हिंदी साहित्य में लिखती हैं। दूसरी अचला बंसल जो अंग्रेजी साहित्य में
लेखिका है। तीसरी चित्र और चौथी रेणु। राजीव जेन इनके भाई हैं।” मृदुला जी की सभी बहनों
और भाई में एक दोस्त के समान हँसी-खुशी का माहौल सदेव बना रहता।
मृदुला जी जब मात्र तीन-चार वर्ष की थी तभी पिता जी का तबादला दिल्ली हो गया था। इसलिए उनकी पूरी शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में ही हुई। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण मृदुला जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही की। उनकी बड़ी बहनें, माता-पिता उनको शिक्षा देते। प्रखर विवेक के कारण वह सब कुछ जल्दी सीख लिया करती थी। मृदुला जी ने कम उम्र में ही महान साहित्यकारों रचनाओं को पढ़ना आरंभ कर दिया था। इन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकनोमिक्स से सन् 1960 में ‘अर्थशास्त्र’ में एम.ए. उत्तीर्ण किया।
कथाकार मृदुला जैन का 1963 में श्री आनंद प्रकाश गर्ग के साथ विवाह हुआ। आनंद प्रकाश गर्ग पेशे से एक इंजीनियर थे। विवाह के उपरांत नवविवाहिता मृदुला जी अपने पति के साथ दिल्ली छोड़कर बिहार के डालमिया नगर आ बसी। फिर मृदुला जी क्रमश: दुर्गापुर व बागलकोट से अपने जीवन की डोर बाँधती गई।
मृदुला और आनन्द प्रकाश गर्ग के दाम्पत्य जीवन की धरोहर दो पुत्र हैं। पहला शशांक और दूसरा आशिष। दोनों पुत्र विवाहित हैं। आशीष अपनी पत्नी वंदिता और पुत्री श्रृंगी के साथ बैंगलोर में रहता है। आशीष अपने पिता की तरह ही एक सफल इंजीनियर है। बड़े बेटे और बहू अपर्णा दोनों का किसी कार दुर्घटना में देहांत हो गया।
अर्थशास्त्र में एम.ए. उत्तीर्ण होने के बाद कुछ समय पश्चात ही तीन वर्ष इन्द्रप्रस्थ कॉलेज और जानकी देवी कॉलेज में सफल अध्यापिका के रूप में कार्य किया। साहित्य में विशेष रुझान के कारण उन्होंने अध्यापिका वृत्ति छोड़कर स्वतंत्र लेखिका बनना पसंद किया।
यह तो स्वाभाविक सत्य है कि उत्तम साधन और परिवेश मिलने पर व्यक्ति की उन्नति निश्चित ही है। दिल्ली भी ऐसा ही शहर है जहाँ हर दृष्टि से वह साधन सम्पन्न प्रतीत होता है। मृदुला गर्ग जी 1963 से 1970 ई. तक अनेक छोटी उद्योग बस्तियों में रही। वहाँ निम्न वगÊय समस्याओं का सीधा सम्पर्क हुआ। निम्न वगÊय िस्त्र्ायों, मजदूरों, बच्चों के दयनीय जीवन ने ऐसे लोगों के प्रति सोचने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया। समाज का ऐसा तुच्छ और नंगा सच उनके मन को गहरे झकझोर देने वाला था। ऐसे अनेक अनुभवों से गुजरते हुए एक परिपक्व स्तर पर पहुँच कर उन्होंने 1970 में लेखन आरंभ किया। पिता की भी यही इच्छा थी कि मृदुला अपना केरियर साहित्य क्षेत्र में अग्रसर करे। छोटी आयु में ही महान साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़ना आरंभ कर दिया था।
मृदुला गर्ग को शुरुआत से ही रंगमंच और अभिनय पसंद था। सन् 1960 से 1963 तक दिल्ली में प्राध्यापक का कार्य किया। यहाँ आकर उन्हें रंगमंच से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने अनेक नाटकों में अभिनय किया। अभिनय योग्य प्रतिभा व सुंदरता उनमें होने के कारण अभिनय क्षेत्र में पूर्ण सफल रही।
मृदुला जी जब मात्र तीन-चार वर्ष की थी तभी पिता जी का तबादला दिल्ली हो गया था। इसलिए उनकी पूरी शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में ही हुई। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण मृदुला जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही की। उनकी बड़ी बहनें, माता-पिता उनको शिक्षा देते। प्रखर विवेक के कारण वह सब कुछ जल्दी सीख लिया करती थी। मृदुला जी ने कम उम्र में ही महान साहित्यकारों रचनाओं को पढ़ना आरंभ कर दिया था। इन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकनोमिक्स से सन् 1960 में ‘अर्थशास्त्र’ में एम.ए. उत्तीर्ण किया।
कथाकार मृदुला जैन का 1963 में श्री आनंद प्रकाश गर्ग के साथ विवाह हुआ। आनंद प्रकाश गर्ग पेशे से एक इंजीनियर थे। विवाह के उपरांत नवविवाहिता मृदुला जी अपने पति के साथ दिल्ली छोड़कर बिहार के डालमिया नगर आ बसी। फिर मृदुला जी क्रमश: दुर्गापुर व बागलकोट से अपने जीवन की डोर बाँधती गई।
मृदुला और आनन्द प्रकाश गर्ग के दाम्पत्य जीवन की धरोहर दो पुत्र हैं। पहला शशांक और दूसरा आशिष। दोनों पुत्र विवाहित हैं। आशीष अपनी पत्नी वंदिता और पुत्री श्रृंगी के साथ बैंगलोर में रहता है। आशीष अपने पिता की तरह ही एक सफल इंजीनियर है। बड़े बेटे और बहू अपर्णा दोनों का किसी कार दुर्घटना में देहांत हो गया।
अर्थशास्त्र में एम.ए. उत्तीर्ण होने के बाद कुछ समय पश्चात ही तीन वर्ष इन्द्रप्रस्थ कॉलेज और जानकी देवी कॉलेज में सफल अध्यापिका के रूप में कार्य किया। साहित्य में विशेष रुझान के कारण उन्होंने अध्यापिका वृत्ति छोड़कर स्वतंत्र लेखिका बनना पसंद किया।
यह तो स्वाभाविक सत्य है कि उत्तम साधन और परिवेश मिलने पर व्यक्ति की उन्नति निश्चित ही है। दिल्ली भी ऐसा ही शहर है जहाँ हर दृष्टि से वह साधन सम्पन्न प्रतीत होता है। मृदुला गर्ग जी 1963 से 1970 ई. तक अनेक छोटी उद्योग बस्तियों में रही। वहाँ निम्न वगÊय समस्याओं का सीधा सम्पर्क हुआ। निम्न वगÊय िस्त्र्ायों, मजदूरों, बच्चों के दयनीय जीवन ने ऐसे लोगों के प्रति सोचने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया। समाज का ऐसा तुच्छ और नंगा सच उनके मन को गहरे झकझोर देने वाला था। ऐसे अनेक अनुभवों से गुजरते हुए एक परिपक्व स्तर पर पहुँच कर उन्होंने 1970 में लेखन आरंभ किया। पिता की भी यही इच्छा थी कि मृदुला अपना केरियर साहित्य क्षेत्र में अग्रसर करे। छोटी आयु में ही महान साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़ना आरंभ कर दिया था।
मृदुला गर्ग को शुरुआत से ही रंगमंच और अभिनय पसंद था। सन् 1960 से 1963 तक दिल्ली में प्राध्यापक का कार्य किया। यहाँ आकर उन्हें रंगमंच से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने अनेक नाटकों में अभिनय किया। अभिनय योग्य प्रतिभा व सुंदरता उनमें होने के कारण अभिनय क्षेत्र में पूर्ण सफल रही।
मृदुला गर्ग की रचनाएं
उपन्यास
- उसके हिस्से की धूप
- वंशज
- चितकोबरा
- मैं और मैं
- अनित्य
- कठगुलाब
- मिलजुल मन
कहानियाँ
- कितनी केद
- टुकड़ा टुकड़ा आदमी
- डैफोडिल जल रहे हैं
- ग्लैशियर से
- उर्फ सैम
- दुनिया का कायदा
- शहर के नाम
- समागम
- चर्चित कहानियाँ
- संगति-विसंगति (सम्पूर्ण कहानियाँ, दो खंडों में)
नाटक
- एक और अजनबी
- जादू का कालीन
- तीन केदें
निंबध
- रंग-ढंग
- चुकते नही सवाल
अनुवाद :
- लेखिका मृदुला गर्ग ने अपने उपन्यास ‘उसके हिस्से की धूप’ का स्वयं अंग्रेजी में अनुवाद ‘ए टच आफ सन’ नाम से किया।
- स्काई स्केपर शीर्षक से योगेश गुप्त की विभिन्न हिन्दी कहानियों का मृदुलाजी ने अंग्रेजी में अनुवाद तथा सम्पादन भी किया है।
- ‘डफोडिल जल रहे हैं’ की हिन्दी कहानियों का अनुवाद स्वयं द्वारा अंग्रेजी में 'Dafodils on fire' शीर्षक थे। ‘अगली सुबह’ कहानी का अनुवाद 'The morningafter' नाम से की।
- ‘एक तिकोना दायरा’ - आस्ट्रियन लेखिका विकी वाम के प्रसिद्ध उपन्यास 'Man Never Know' का मृदुलागर्ग द्वारा हिन्दी अनुवाद।
- इजेबल एंड्स के एकांकी ‘ब्राइड फ्रॉम द हिल्ल’ का हिन्दी अनुवाद स्वयं द्वारा ‘दुलहिन एक पहाड़ की’।
मृदुला गर्ग के साहित्य का अन्य भाषाओं में अनुवाद
- ‘चित्तकोबरा’ उपन्यास का सन् 1987 में जर्मन भाषा में अनुवाद Die Gefleckte kobra शीर्षक से किया गया।
- ‘अवकाश’ कहानी 1973 में अंग्रेजी में अनुदित होकर ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के भारतीय भाषा कहानी विशेषांक में छपी फिर सन् 1978 में जर्मन में अनुदित होकर भारतीय कहानियों के संकलन में प्रकाशित हुई।
- ‘विनाश दूत’ कहानी का अंग्रेजी अनुवाद अमरीका में छपा तथा हाल ही में इसका जर्मन भाषा में अनुवाद हुआ है।
मृदुला गर्ग की उपलब्धियाँ
- ‘उसके हिस्से की धूप’ उपन्यास को 1975 मध्यप्रदेश साहित्य परिषद द्वारा सम्मानित किया गया।
- ‘एक और अजनबी’ को आकाशवाणी वार्षिक पुरस्कार 1978 के अन्तर्गत प्रथम पुरस्कार दिया जा चुका है।
- ‘कितनी केद’ कहानी को कहानी पत्रिका द्वारा सन् 1972 में सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार।
- ‘जादू का कालीन’ बाल नाटक को मध्यप्रदेश साहित्य परिषद से सेठ गोविंददास पुरस्कार सन् 1993 में प्राप्त हुआ।
- पूरे साहित्य के आधार पर सन् 1988-89 का हिन्दी अकादमी का साहित्यकार सम्मान से सम्मानित किया गया।
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