नमिता सिंह का जीवन परिचय, व्यक्तित्व, कृतित्व और उपलब्धियाँ

डॉ. नमिता सिंह का जन्म 4 अक्टूबर, 1944 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ। डॉ. नमिता सिंह का मूल नाम नमिता पंत है। उनका जन्म हिन्दी के महाकवि पं. सुमित्रनंदन पंत के परिवार में हुआ। डॉ. नमिता सिंह के पिता का नाम स्व. गिरीशचंद्र पंत और माता जी का नाम दयावती पंत था। माता और पिता दोनों ही धार्मिक प्रवृत्ति का अनुकरण करने वाले दंपत्ति थे। 

नमिता सिंह की माता जी हाई स्कूल उत्तीर्ण और कुशल गृहिणी रही। तथा पिता जी बैंक में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। वे सांस्कृतिक संचेतना के रचनाकार थे। ईमानदारी, उदारता, कर्मठता एवं सहजता का स्वरूप स्पष्ट दिखाई देता है। अपने माता-पिता के संस्कार, सभ्य, अनुशासन, विवेक, विचारशीलता आदि का गहरा प्रभाव बचपन से ही लेखिका के व्यक्तित्व पर पड़ा। बैंक में सर्विस करते हुए भी वे नियमित रूप से चाँद, माधुरी, सुधा, विषाल, भारत, संगम, तरूण आदि मशहूर पत्र पत्रिकाओं में लिखते रहे। 

 8 जनवरी 2000 को पं. गिरीश चंद्र पंत स्वर्ग सिधार गये। ‘पंथ है कंटीला’ उनका 160 पृष्ठों का कविता संग्रह है।

डॉ. नमिता सिंह का बचपन मुख्यत: लखनऊ में ही व्यतीत हुआ है। लखनऊ शहरीय जीवन के साथ-साथ उन्होंने महानगरीय और ग्रामीण जन-जीवन को भी जिया है। माता जी का मायका अलमोड़ा में था और वही अल्मोड़ा में नमिता जी के पितामह पं. गंगादत्त का भी निवास स्थल था।

निमता जी जब भी अपनी माता जी के साथ अपने ननिहाल जाया करती थी तो अपने दादाश्री के अनुज पं. सुमित्रनंदन पंत के पास भी रहा करती। नमिता जी के व्यक्तित्व पर नगरीय, महानगरीय तथा आँचलिक वातावरण अर्थात् जीवन की छाप आज भी स्पष्ट दिखाई देती है।

शिक्षित माता-पिता का परिवेश मिलने के कारण डॉ. नमिता सिंह ने प्रारंभिक शिक्षा घर में हासिल की। पढे-लिखे परिवेश केुलस्वरूप नमिता की नÈव मजबूत हो गई। नमिता सिंह ने जब विधिवत पढ़ना शुरू किया तो प्रारंभ से हाईस्कूल तक की शिक्षा हायर सेकेण्डरी स्कूल, लालबाग, लखनऊ से की। सन 1959 में यू. पी. बोर्ड इलाहाबाद की हाईस्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।

सन् 1961 में महिला इण्टर कॉलेज, लखनऊ से इण्टर मीडिएट की परीक्षा माध्यमिक शिक्षा परिषद, इलाहाबाद से द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा के लिए आपने लखनऊ विश्वविद्यालय का चयन किया। जहाँ से आपने बी.एससी. की परीक्षा सन् 1963 में द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा सन् 1965 में एम.एससी. (रसायन शास्त्र) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान पर लखनऊ विष्वविदयालय से उत्तीर्ण की और रामनायर मेमोरियल पदक प्राप्त किया। एम.एससी. के उपरान्त आप लखनऊ से अलीगढ़ आईं। 

सन् 1966 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र में एम. फिल. करने हेतु प्रवेश लिया और सन् 1977 में 74 प्रतिशत अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् इसी विश्वविद्यालय से सन् 1979 में रसायन शास्त्र में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की।

नमिता पंत का मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत डॉ. कुँवरपाल सिंह के साथ सन् 1970 में अंतर्जातीय विवाह हुआ। विवाह के उपरांत आपने एम.फिल और पीएच.डी. की उपाधि हासिल की। शोधकार्य संपूर्ण करने के उपरांत आप डॉ. नमिता सिंह की संज्ञा से विभूषित की गई। डॉ. कुँवरपाल सिंह के अंतर्जातीय विवाह के उपरांत भी आप निरंतर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रही। नवपरिवर्तन और अंतर्विरोधों को भी बड़ी शालीनता और सुगम से झेला (सामना किया)। डॉ. कुँवरपाल के साथ वैवाहिक जीवन आनंदमय बीतने लगा। प्रो. कुँवर पाल सिंह जोकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के आचार्य एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग के पद से सेवा निवृत्त हो चुके हैं। 

नमिता जी का पारिवारिक जीवन पति और बच्चों के साथ आनन्दमयी और सुखमय व्यतीत हो रहा है। डॉ. नमिता सिंह स्वयं कहती हैं कि ‘‘हमारा पारिवारिक जीवन बहुत अच्छा व्यतीत हो रहा है, सब ठीक है, हम आपस में सहयोग करते हैं। एक-दूसरे की मदद करते हैं।” डॉ. कुँवरपाल 1997 में विश्वविद्यालय से सेवा निवृत हुए। नवम्बर 2009 में उनका देहवसन हो गया। आपने पारिवारिक वैवाहिक जीवन के दायित्वों का भली भाँति निर्वहन करते हुए, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक सभी दायित्वों का कुषलतापूर्वक संचालन कर रही हैं। जीवन की विशम आर्थिक पारिवारिक परिस्थितियों ने ही उनके अनौखे व्यक्तित्व का निर्माण किया है। 

डॉ. नमिता सिंह और डॉ. कुँवरपाल सिंह के सुखी और आनंदमय दम्पत्य जीवन की अनमोल धरोहर सुपुत्र सौरभ और सुपुत्री सुमिता हैं। पुत्र सौरभ ने बायोकेमिस्ट्री में पीएच.डी. की उपाधि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से प्राप्त की है तथा पुत्री सुमिता ने भी इसी विश्वविद्यालय से एम.ए. की उपाधियाँ अंग्रेजी साहित्य और पत्रकारिता एवं जनसंचार में प्राप्त की।

नमिता जी सुमित्रनंदन पंत के परिवार की ही बेल का एक पत्ता है। नमिता जी के पितामह पंत गंगादत्त और परदादी सरूली के चार पुत्र पं. हरदत्त पंत, पं. रघुवर दत्त पंत, पंदेवी दत्त पंत व सुमित्रनंदन पंत तथा चार पुत्रियाँ- बसंती, माधवी, रूक्मिणी एवं गौरी हुए। नमिता के पितामह अलमोड़ा के नगर में पच्चीस मील की दूरी पर स्थित कत्यूर अंचल में कौसानी से एक मील पर तल्ली कौसानी में हथछीना नामक स्थान के एक समृद्ध परिवार में रहते थे। नमिता जी पंत हरदत्त की पौत्री है। इन्हें अपने दादाजी से जितना लगाव था उतना ही अपने दादा के अनुज सुमित्रनंदन जी से भी था।

नमिता के पिता पं. गिरीशचंद पंत अपने समय के प्रख्यात कवि रहे हैं। पं. गिरीश पंत अपने चाचा श्री पं. सुमित्र नंदन पंत से लगभग दो वर्ष छोटे थे। इसी कारणवश दोनों चाचा भतीजे में मैत्री व्यवहार था।

डॉ. नमिता सिंह की उच्च शिक्षा एम.एससी. (रसायन शास्त्र) की डिग्री के उपरांत उनकी प्रथम नियुक्ति रसायन विभाग में प्रवक्ता के पद पर महिला महाविद्यालय, लखनऊ में हुई, जहाँ उन्होंने जुलाई 1965 से दिसम्बर 1965 तक ही कार्य किया। तत्पश्चात सन् 1966 में टीकाराम गल्र्स डिग्री कॉलेज, अलीगढ़ में रसायन विभाग में प्रवक्ता के पद के लिए नियुक्त की गई। कॉलेज में निरंतर अध्यापन कार्य के रूप में उन्हें जनवरी 1986 में रीडर पद प्राप्त हुआ। 30 जून 1997 से इसी महाविद्यालय में कार्यवाहक प्राचार्या के रूप में तीन वर्ष तक कार्य करते हुए निरंतर कुशल प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया। नमिता जी ने रसायन विज्ञान की रीडर एवं विभागाध्यक्ष के रूप में अध्यापन कार्य किया। 2005 में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली।

डॉ. नमिता सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा माता-पिता से ही ग्रहण की थी। तदुपरांत विधिवत रूप से स्कूल की शिक्षा ग्रहण की। लेखन के आरंभ की बात की जाए तो उनके साहित्यिक लेखन में भी माता-पिता की विशेष भूमिका रही। जब नमिता चौथी कक्षा में थी तभी से कविताओं की रचना का आरंभ कर दिया था। विशेषताओं से भरे जीवन में भी माँ उनको कविताएँ लिखने के लिए प्रेरित करती थी। 

नमिता जी अपने साहित्यिक व्यक्तित्व के विषय में बताती हैं कि ‘‘बाबूजी ने मुझे बचपन में कविता का संस्कार दिया। मुक्त छंद की कविताओं का दौर था। यह आसान भी था। सो धड़ाधड़ कई मुक्त छंद कविताएँ लिख डाली थी। बाबू जी को दिखाई, यह उनकी ही सीख थी कि पहले पिंगल पढ़ो और समझो, छंद समझो और छंदबद्ध कविताएँ लिखी। बाद में फिर जो भी, जेसा भी लिखोगी, उसमें कविता का तत्व रहेगा, कविता की आत्मा रहेगी, एक गुरू के गुरू ने मेरी बचपन में लिखी कविताओं को सुधारा, सँवारा और प्रेरणा दी। विविध साहित्य का आनुपातिक रूप में सबसे अधिक अध्ययन मैंने विद्याथÊ जीवन में ही किया और घर में किताबों का विशाल भंडार उनकी ही देन थी। पूर शरद साहित्य, प्रेमचंद साहित्य, रूसी कथा साहित्य बचपन में ही उपलब्ध हो गया था। 

बंगला साहित्य मूल बंगला और अनुवादित दोनों रूपों में था। हम लोगों की माँग और अभिरूचि के अनुरूप लगातार इस भंडार में वृद्धि होती रहती थी। मैं आज थोड़ा बहुत जो कुछ कर सकी हूँ उसमें उनका हमेशा सहयोग रहा है।”

पं. सुमित्रनंदन पंत की पौत्री होना नमिता सिंह का सौभाग्य ही था। साहित्यिक जीवन पर पंसुमित्रनंदन पंत का विशेष प्रभाव रहा था। नमिता जी को अपने दादा समित्रनंदन पंत से बहुत कुछ सीखने का सौभाग्य मिला। आपकी आरंभिक कविताओं में पंत जी की शैली का प्रभाव स्पष्ट प्रतीत होता है। पंत जी के अतिरिक्त सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और उनकी ‘परिमल’ का प्रभाव भी नमिता जी पर पड़ा। सूर्यकांत त्रिपाठी की मुक्त छंद शैली, महादेवी वर्मा की साहित्य साधना और त्यागपूर्ण जीवन को आपने ग्रहण किया। कथाकार यषपाल जी के साहित्य ने भी आपको गहरा प्रभावित किया। यशपाल जी के उपन्यास ‘दिव्या’ और ‘झूठा सच’ का प्रभाव आपके संवेदनशील रचनाकार होना दृष्टिगोचर होता है। शिवानी के साहित्य की भाषा शैली से भी आप अत्यधिक प्रभावित हुई। नमिता जी को एक कथाकार के रूप में मुंशी प्रेमचंद और उनके कथा साहित्य ने विशेष प्रभावित किया।

हिन्दी साहित्य के साथ-साथ आपने अन्य भाषाओं के साहित्यकारों और उनकी रचनाओं का गहन चिंतन-मनन कर आत्मसात किया। बंगला साहित्य में गुरूवर रविंद्र नाथ टेगोर से तथा शरद चंद्र के अनेकश: उपन्यासों का अध्ययन किया तथा साहित्यिक बारीकियों को जानने का अवसर प्राप्त हुआ। नमिता जी ने पंजाबी साहित्य की भाषा शैली के खुलेपन को ग्रहण किया। उर्दू साहित्य से भी आपका जीवन तथा साहित्य अछूता नही रहा। रूसी कथाकारों के विषय में नमिता जी कहती हैं कि मुझे रूसी लेखकों ने बहुत प्रभावित किया है। दास्तोवस्की, चेखब, तुर्गनेव मेरे प्रिय लेखकों में हैं। इनकी कृतियों में हमें अपना भारतीय समाज दिखाई देने लगता है। तुर्गनेव का ‘पिता और पुत्र’ मेरे प्रिय उपन्यासों में हैं और बजारोव कभी न भूलने वाला पात्र है। वह निहिलिस्ट है, ऊपर से बेहद कठोर और असंपृक्त दिखने वाला लेकिन भीतर से अति संवेदनशील और प्यार से लबालब।” अंग्रेजी कथाकार देनरी के साहित्य का भी विशेष प्रभाव आप पर पड़ा।

नमिता जी जब चौथी कक्षा में थी तब माँ की प्रेरणा से बाल कविता ‘मेरीुुलवारी’ लिखी। अपनी पहली कविता के विषय में नमिता जी कहती हैं कि ‘‘दरअसल हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि साहित्यिक ही रही है और कविताएँ लिखने का शौक बचपन से ही था। जब मैं कक्षा 4 में थी तब सबसे पहली कविता लिखी थी। उस समय एक ‘स्वतंत्र भारत’ अखबार हुआ करता था। उस अखबार में हर इतवार को ‘संडे मैगजीन’ में एक ‘बाल क्लब’ होता था। उसमें बच्चे अपनी रचनाएँ भेजते थे और उसके सदस्य भी बन जाते थे। तब मैं उसकी सदस्य बन गई थी। उस जमाने में मेरी कविताएँ खूब छपी भी हैं जिनमें दो कविताओं के नाम हैं- ‘मेरी फ़ुलवारी’ और ‘दिवाली’ इन दोनों कविताओं को लिखने में मदद मेरी माता ने की। ये मातृ प्रेरक कविताएँ थी। हमारे यहाँ पढ़ने-लिखने का शौक सभी को रहा है। मेरी दादी चौथी दर्जा पास थी लेकिन किताबें खूब पढ़ती थी और लिखती भी थी। हमारे यहाँ का वातावरण यह था कि जैसा सभी को कुछ-न-कुछ लिखना जरूरी है।” 

कविताओं से कहानी तक के सफर को नमिता जी इस प्रकार बयान करती हैं, ‘‘मेरी कविताएँ कवयित्री के रूप कई मैगजीन, साप्ताहिक- हिन्दुस्तान, लहर आदि में छपी हैं। मेरी पहली कहानी सन् 1972 में छपी ‘सारिका’ में। मेरी पहली कहानी ‘एक निर्णय’ थी। उसके बाद कविताएँ लिखनी बंद ही कर दी। कविता, कहानी के अलावा संस्मरण, समीक्षा आदि भी मैंने लिखे हैं।”

साहित्यिक पहलू के सफर को आगे बढ़ाते हुए लेखिका बताती हैं, ‘‘मेरी लगभग 100 कहानियाँ हिन्दुस्तान की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं हंस, सारिका, वर्तमान साहित्य, लहर, कहानीकार, आज, वार्षिकी कथन, युग परिवेश, असली अदब, अमर उजाला आदि में छपी है। यही नही अनेक कहानियाँ विभिन्न भारतीय भाषाओं- उर्दू, पंजाबी, अंग्रेजी, गुजराती, तेलुगु आदि में अनुदित होकर छपी है। लगभग 100 कहानियाँ विभिन्न संग्रहों में संकलित हैं। ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित 1980 की श्रेष्ठ कहानियों में भी संकलित है। इसी प्रकार मेरी एक कहानी पंजाब विश्वविद्यालय के बी. ए. हिन्दी के पाठयक्रम में समाहित है। इसी प्रकार एक अन्य कहानी पंजाब में हायर सेकेन्डरी एज्युकेशन (10+2) की अनिवार्य हिन्दी के पाठयक्रम में लगी है।”

डॉ. नमिता सिंह के लेखन में व्यापक एवं विस्त ृत संभावनाएँ हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से भी उनकी कहानियाँ निरंतर प्रसारित होती रहती हैं।

डॉ. नमिता सिंह का कृतित्व

डॉ. नमिता सिंह ने अपना साहित्यिक सफर कविताओं से आरंभ किया किंतु उन्होंने लगभग 100 कहानियाँ लिखी परंतु उसके उपरांत उपन्यास लिखना भी आरंभ किया। डॉ. नमिता सिंह का विशेष महत्व दलित समाज, नारी विमर्श और सामाजिक जन-जीवन पर आधारित है।

उपन्यास

  1. अपनी सलीबें
  2. लेडीज क्लब

कहानी संग्रह

  1. खुले आकाश के नीचे
  2. राजा का चौक
  3. नीलगाय की आँखें
  4. जंगल गाथा
  5. निकम्मा लड़का
  6. कफ्र्यू तथा अन्य कहानियाँ
  7. मिशन जंगल और गिनीपिग
  8. उत्सव के रंग

कविताएँ

  1. मेरीुुलवारी

प्रकाशनाधीन

  1. ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ - वाणी प्रकाशन
  2. समाज में स्त्री (निबंध संग्रह)
  3. सांप्रदायिकता के सवाल : रचना और कर्म
  4. ‘‘कतिपय हिन्दी उपन्यास (आलोचना)”
  5. हाँ मैंने कहा (नमिता सिंह से साक्षात्कार)

संपादित

  1. दिव्या : इतिहास, समाज और संस्कृति (2005) - शिल्पायन प्रकाशन, दिल्ली।
  2. ‘कफ्र्यू’ कहानी पर दूरदर्शन द्वारा टेलीफिल्म का निर्माण और प्रसारण
  3. संस्कृति, इतिहास और नारी विमर्श (संपादित) स्त्री विमर्श और सामाजिक मुद्दों पर निरंतर लेखन।
  4. नवसाक्षरों के लिए अनेक पुस्तिकाओं का लेखन।
  5. अनेक कहानियाँ उर्दू, अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुदित।
  6. अनेक सामाजिक संस्थाओं से संबद्ध और सामाजिक कार्यों में सक्रिय।
  7. ‘वर्तमान साहित्य’ का संपादन (हिन्दी मासिक पत्रिका)
  8. राष्ट्रीय सचिव मंडल, अखिल भारतीय जनवादी, लेखक संख का कार्यकाल संभाला।
  9. अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश, जनवादी लेखक संघ का कार्यभार
  10. सचिव, महिला सहायक संघ- एक अर्थ- सरकारी स्वयं सेवी संस्था जो समाज कल्याण विभाग से संबद्ध है और महिला कल्याण और महिला शिक्षा संबंधी कार्य करती है।
  11. अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश भारत ज्ञान-विज्ञान समिति- उत्तर प्रदेश। यह राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के उद्देश्यों के साथ बाल एवं महिला स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा आदि के कार्यक्रमों से जुड़ी संस्थायें।
  12. 1957 एवं जन प्रतिरोध।

डॉ. नमिता सिंह की उपलब्धियाँ

  1. मेरिट स्कालरशिप (हाई स्कूल के पश्चात्)
  2. स्वर्ण पदक (एम.एससी. में प्रथम स्थान के लिए रामन नायर मेमोरियल गोल्ड मेडिल)
  3. राज्य सी.एम.आई. रिसर्चुैलोशिप - एम.एससी. के पश्चात् जनवरी 1966 (ग्रहण नही किया)
  4. यू.जी.सी. टीचर्सुैलोशिप - शोध के लिए 1975-78
  5. पोस्ट डॉक्ट्रलुैलोशिप - रॉयल पेटनरी एण्ड एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी- कोपनहेगन- डेनमार्क (ग्रहण नही किया)
  6. डॉ. राही मासूम रजा साहित्य सम्मान।

Post a Comment

Previous Post Next Post