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लेखिका नासिरा |
नासिरा शर्मा की शिक्षा
नासिरा जी आरंभ से ही पढ़ाई में अच्छी थी। इसी कारण चौथी कक्षा में अव्वल आने पर
आपको छठी कक्षा में प्रमोशन मिला किन्तु इस प्रमोशन के कारण आपकी कक्षा की सहपाठी
लड़कियों को काफी बुरा लगा और वे आपके ‘शिया’ शब्द से पुकारने लगी। बचपन से ही आपको
हिन्दी भाषा से विशेष लगाव था किन्तु उर्दू से उतना ही बैर। फारसी भाषा का अध्ययन आपको
जबरन ही करना पड़ा। वो सिर्फ इसलिए कि यिदुारसी विभाग को एक भी विद्याथÊ न मिला तो
विभाग बन्द हो जाएगा। फारसी भाषा साहित्य में जेएनयू से एम.ए. किया तथा हिन्दी, उर्दू फारसी
पर तो, अंग्रेजी पर गहरी पकड़ है। ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला व
संस्कृति विषयों की आप विशेषज्ञ हैं। नासिरा जी ने पीएच.डी. के दाखिले के लिए अलीगढ़
विश्वविद्यालय और स्वयं की युनिवर्सिटी के लिए फ़ार्म भर दिया। इस दाखिले के मुद्दे पर एस.एमआई. के कुछ नेता भड़क गए और आपको दाखला देने से इन्कार कर दिया।
नासिरा शर्मा का वैवाहिक जीवन
नासिरा जी मुस्लिम परिवार से होते हुए भी आपने एक हिन्दू परिवार की बहू
बनना स्वीकार किया। डॉ. रामचन्द्र शर्मा मशहूर, निडर, साहसी, ईमानदार, दबंग और जागरूक
किस्म के व्यक्तित्व वाले थे। डॉ. शर्मा भूगोल में एम. ए. तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गोल्ड
मैडल प्राप्त टॉपर और इंडियन डेजर्ट पर पीएच.डी., एडिन वर्ग यूनिवर्सिटी से करने वाले वह भूगोल
के पहले भारतीय स्कॉलर थें और जिन्हें कॉमन वैल्थ स्कॉलरशिप से सम्मानित किया गया। उनकी
बहुचर्चित पुस्तक ‘ओशनोग्राफी’ है। उनको इलाहाबाद में अध्यापन के बाद जे.एन.यू. के स्कूल ऑफ
इंटरनेशनल स्टडीज में ज्योपालिटिक्स के पहले प्रोफेसर होने, विभाग का आरंभ और शिलाँग,
मिजोरम और नागालैंड में भूगोल विभाग की स्थापना के साथ पाठयक्रम बनाने का श्रेय भी प्राप्त
किया। लेखिका स्वयं कहती हैं, ‘‘इंसानी रिश्ते अपने अधिकार की लड़ाई जरूर लड़ते हैं मगर संबंध
नहीं तोड़ते, बल्कि उसको एक नया आयाम देते हैं।”
शादी के कुछ समय उपरान्त ही नासिरा जी ने अपने पति यानी डॉ. शर्मा से कहा था कि ‘‘मैं आपकी पत्नी नही हूँ... पति का सर भिन्नाया और अपने सम्पूर्ण धैर्य के साथ उन्होंने पूछा कि फिर मैं तुम्हारा कौन हूँ? जवाब था एक दोस्त... दोस्त की तरह हम इस घर में रहेंगे।” डॉ. शर्मा जी ने नासिरा जी को वह सारी आजादी दी जो एक ‘लेखक’ चाहताहै और अधिकतर लेखकों को ऐसी आजादी अपने परिवार से नही मिलती। 13 नवंबर 2009 को शर्मा जी ने इस संसार से अलविदा कह दिया।
शादी के कुछ समय उपरान्त ही नासिरा जी ने अपने पति यानी डॉ. शर्मा से कहा था कि ‘‘मैं आपकी पत्नी नही हूँ... पति का सर भिन्नाया और अपने सम्पूर्ण धैर्य के साथ उन्होंने पूछा कि फिर मैं तुम्हारा कौन हूँ? जवाब था एक दोस्त... दोस्त की तरह हम इस घर में रहेंगे।” डॉ. शर्मा जी ने नासिरा जी को वह सारी आजादी दी जो एक ‘लेखक’ चाहताहै और अधिकतर लेखकों को ऐसी आजादी अपने परिवार से नही मिलती। 13 नवंबर 2009 को शर्मा जी ने इस संसार से अलविदा कह दिया।
नासिरा शर्मा की संतान
नासिरा शर्मा और डॉ. रामचन्द्र शर्मा जी की दो संतानें हैं। बेटी अंजुम और बेटा अनिल
शर्मा। आपके दोनों बच्चे वैवाहिक दुनिया बसा चुके हैं। बेटी के पति बदीउलज्जमा, बिहार से है।
वह शिपिंग कंटेनर लीजिंग कम्पनी के मालिक है। अंजुम उस कम्पनी की डायरेक्टर है। अनिल
दुबई में इलैिक्टॉनिक मीडिया में डॉक्यूमेंट्री फिल्म प्रोडयसर है। अनिल को प्यार से अन्नी पुकारा
जाता है। आपके बच्चे कहते हैं कि हम दोनों आपके रचनात्मक ग्रोथ के चश्मदीद गवाह हैं। एक
वक्त ऐसा आया, जब वह हमारी माँ कम और लेखिका ज्यादा लगी थÈ।
साहित्य लेखन की प्रेरणा
नासिरा जी में लेखन कला के गुण तो पैदाइशी ही समाहित थे। आपको
साहित्यिक परिवेश मिला। आपके पिताजी प्रोफेसर थे। उनके उसूल, व्यवहार, सोच, पसंद आदि की
चर्चा सदेव होती थी। पिता के व्यक्तित्व का कही-न-कही आप पर भी दिखाई देता है।आपको
कलम को ताकत और उसके उपयोग का तौर-तरीका कूट-कूट कर समाहित है। जब आप
हमीदिया गल्र्स कॉलेज की तीसरी की छात्र थी तब आपको कहानी लेखन के लिए पुरस्कार मिला।
‘राजा भैया’ पत्रिका में जब आपकी कहानी प्रकाशित हुई थी तब वे सातवÈ कक्षा की छात्र थी। सन् 1975 से आपने संजीगदी से सोचा कि कुछ लिखा जाए तो लिखना शुरू किया। सन् 1975 में सारिका के नवलेखन अंक में आपकी कहानी ‘बुतखाना’ और ‘मनोरमा’ पत्रिका में ‘तकाजा’ प्रकाशित हुई। सन् 1985 में आपका पहला उपन्यास ‘सात नदियाँ : एक समुंदर’ प्रकाशित हुआ। शौक : नासिरा जी के जीवन में कोई एक निश्चित शौक नही रहा, जिसे पूरा करने के लिए पूरी शिद्दत से उसके पीछे भागती रही हों। कोई भी शौक दुख और चुनौतियाँ बनकर उनके समक्ष न आया।
क्रिएटीविटी किसी भी रूप में सदेव आपसे जुड़ी रही। चाहे वह सिलाई, कुकिंग आदि के रूप में रही हो। मूड और समय मिलने पर सिलाई और कुकिंग आज भी करती हैं। पेंटिंग, एक्टिंग, डांस आदि का भी शौक था। नासिरा के जीवन में कुछ और भी शौक थे जेसे उन्हें टीचिंग करना पसंद था और दूसरा चाइना की सैर। ‘‘बचपन में मुझे घर सजाने का बड़ा शौक था, दूसरा घर-गृहस्थी में मेरी दिलचस्पी थी। दो बहनों की शादी के बाद, मेरी शादी से पहले तक घर की जिम्मेदारी मेरे जिम्मे थी।”
नासिरा जी की जिंदगी के हर मोड़ और पड़ाव पर किसी न किसी नये काम में रूचि से जुड़ी रही। पढ़ना-लिखना, घर सजाना, खाना बनाना, सिलाई, एलबम विभिन्न शीर्षकों को लेकर बनाना आदि सब समय के साथ पीछे छूटते गए। आपको बुजुर्गों से विशेष लगाव है तथा उनकी सेवा और आदर करना आपको बहुत प्रिय है। ड्रामा करना, फिल्में देखना भी आपको काफी पसंद था। गप्पे मारना मगर हर किसी व्यक्ति से नही, नये-नये लोगों से मिलना, दूसरों के जज्बातों का ख्याल रखना तता बागवानी करना आपको अतिप्रिय है। नासिरा जी को शोरगुल, बुरी आवाजें निकालना, जरूरत से ज्यादा बोलना, झूठ बोलना और खुशामद करना, चीजों की बर्बादी करना, किसी को जानबूझकर नुकसान पहुँचाना, गलतफहमी पैदा करना, बदतमीजी के साथ किसी के आगे खाना रखना आदि कतई पसंद नही है।
विदेश यात्राएँ : इंग्लैंड, ईरान, इराक, फ्रांस, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, जापान, थाईलैंड, हाँगकाँग, नेपाल, सीरिया, दुबई।
‘राजा भैया’ पत्रिका में जब आपकी कहानी प्रकाशित हुई थी तब वे सातवÈ कक्षा की छात्र थी। सन् 1975 से आपने संजीगदी से सोचा कि कुछ लिखा जाए तो लिखना शुरू किया। सन् 1975 में सारिका के नवलेखन अंक में आपकी कहानी ‘बुतखाना’ और ‘मनोरमा’ पत्रिका में ‘तकाजा’ प्रकाशित हुई। सन् 1985 में आपका पहला उपन्यास ‘सात नदियाँ : एक समुंदर’ प्रकाशित हुआ। शौक : नासिरा जी के जीवन में कोई एक निश्चित शौक नही रहा, जिसे पूरा करने के लिए पूरी शिद्दत से उसके पीछे भागती रही हों। कोई भी शौक दुख और चुनौतियाँ बनकर उनके समक्ष न आया।
क्रिएटीविटी किसी भी रूप में सदेव आपसे जुड़ी रही। चाहे वह सिलाई, कुकिंग आदि के रूप में रही हो। मूड और समय मिलने पर सिलाई और कुकिंग आज भी करती हैं। पेंटिंग, एक्टिंग, डांस आदि का भी शौक था। नासिरा के जीवन में कुछ और भी शौक थे जेसे उन्हें टीचिंग करना पसंद था और दूसरा चाइना की सैर। ‘‘बचपन में मुझे घर सजाने का बड़ा शौक था, दूसरा घर-गृहस्थी में मेरी दिलचस्पी थी। दो बहनों की शादी के बाद, मेरी शादी से पहले तक घर की जिम्मेदारी मेरे जिम्मे थी।”
नासिरा जी की जिंदगी के हर मोड़ और पड़ाव पर किसी न किसी नये काम में रूचि से जुड़ी रही। पढ़ना-लिखना, घर सजाना, खाना बनाना, सिलाई, एलबम विभिन्न शीर्षकों को लेकर बनाना आदि सब समय के साथ पीछे छूटते गए। आपको बुजुर्गों से विशेष लगाव है तथा उनकी सेवा और आदर करना आपको बहुत प्रिय है। ड्रामा करना, फिल्में देखना भी आपको काफी पसंद था। गप्पे मारना मगर हर किसी व्यक्ति से नही, नये-नये लोगों से मिलना, दूसरों के जज्बातों का ख्याल रखना तता बागवानी करना आपको अतिप्रिय है। नासिरा जी को शोरगुल, बुरी आवाजें निकालना, जरूरत से ज्यादा बोलना, झूठ बोलना और खुशामद करना, चीजों की बर्बादी करना, किसी को जानबूझकर नुकसान पहुँचाना, गलतफहमी पैदा करना, बदतमीजी के साथ किसी के आगे खाना रखना आदि कतई पसंद नही है।
विदेश यात्राएँ : इंग्लैंड, ईरान, इराक, फ्रांस, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, जापान, थाईलैंड, हाँगकाँग, नेपाल, सीरिया, दुबई।
नासिरा शर्मा का कृतित्व
उपन्यास
1. सात नदियाँ एक समन्दर2. शाल्मली
3. ठीकरे की मँगनी
4. जिन्दा मुहावरे
5. अक्षय वट
6. कुइयाँजान
7. जीरो रोड
8. परिजात
9. अजनबी जजीरा
10. कागज की नाव
कहानी संग्रह
1. शामी कागज2. पत्थर गली
3. संगसार
4. इब्ने मरियम
5. सबीना के चालीस चोर
6. खुदा की वापसी
7. इन्साफी
8. दूसरा ताजमहल
9. बुतखाना
10. जहाँुौव्वारे लहू रोते हैं
संस्मरण
1. यादों के गलियारेलेख संग्रह
1. राष्ट्र और मुस्लमान2. और के लिए औरत
3. वह एक कुमारबाज थी
4. औरत की आवाज़
विशेष अध्ययन
1. अगानिस्तान बुजकशी का मैदान2. मरजीना का देश इराक
विविध
1. जब समय बदल रहा हो इतिहास2. किता के बहाने
3. सबसे पुराना दरख्त
बाल साहित्य
1. दिल्लू दीमक और भूतों का मैकडोनाल्ड2. संसार अपने-अपने (कहानी संग्रह)
3. दर्द का रिश्ता व अन्य कहानियाँ
4. गुल्लू
साक्षरता के लिए
1. गिल्लोबी2. पढ़ने का हक
3. धन्यवाद, धन्यवाद
4. एक थी सुल्ताना
5. सच्ची सहेली
अनुवाद
1. वियतनाम की लोक कथाएँ (1975)2. किस्सा जाम का
3. पोयेम ऑफ प्रोटेस्ट ऑफ ईरानियम रेवेलूशन (कविताएँ)
4. काली छोटी मछली
5. शाहनामा फिरदौसी
6. बर्निंग पायर
7. अदब में बाईं पसली
8. गुलिस्ताने सादी
9. वियतनाम की लोक कथाएँ (1985)
सम्पादन व अनुवाद
1. क्षितिज पार2. सारिका का ईरानी क्रान्तिकारी विशेषांक
3. पुनश्च पत्रिका का ईरानी क्रान्तिकारी विशेषांक
4. वर्तमान साहित्य का महिला विशेषांक
5. मेरे वारिस
6. प्रवासी हिन्दी लेखकों का कहानी संग्रह
नाटक
1. सबीना के चालीस चोर2. दहलीज
3. पत्थर गली
4. इब्ने मरियम
5. साधना
नासिरा शर्मा की उपलब्धियाँ
1. पत्रकारश्री, प्रतापगढ,़ उत्तर प्रदेश - 19802. सन् 1987-88 में अर्पण सम्मान, हिन्दी अकादमी, दिल्ली
3. सन् 1995 में गजानन्द मुक्तिबोध नेशनल अवार्ड, भोपाल
4. सन 1997 में महादेवी वर्मा पुरस्कार, बिहार राजभाषा
5. सन् 1999 में इण्डोरशन अवार्डुॉर चिल्डरेड लिटरेचर
6. सन् 2000 में कृति सम्मान, हिन्दी अकादमी, दिल्ली
7. सन् 2003 में वाग्मणि सम्मान लेखिका संघ जयपुर द्वारा
8. सन् 2008 में इन्दू शर्मा कथा सम्मान, यू.के9. सन् 2009 में नई धारा रचना सम्मान
10. सन् 2009 में मीरा स्मृति सम्मान इलाहाबाद
11. सन् 2010 में बाल साहित्य सम्मान खतीमा
12. सन् 2011 में महात्मा गांधी सम्मान हिन्दी संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
13. सन् 2013 में स्पन्दन पुरस्कार
14. सन् 2014 में राही मासूम रजा सम्मान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
15. सन् 2014 में कथाक्रम सम्मान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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