सांप के प्रकार, सांप के काटने पर क्या करना और नहीं करना चाहिए?

सांप के प्रकार

साँप का खौफ मात्रा व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं है। पश्चिम बंगाल में रात को ‘साँप’ शब्द का प्रयोग वर्जित है। बच्चों को सिखाया जाता है कि सूरज ढलने के बाद ‘साँप’ की जगह ‘लता’ शब्द का इस्तेमाल किया जाए और अगर किसी बच्चे ने निषिद्ध शब्द को ऊंची आवाज में बोल दिया तो उसे आस्तिक देव से इस रेंगने वाले जीव से रक्षा करने की प्रार्थना करनी पड़ती है। इस तरह के निषेध मानव के मन में बसे साँप के डर को दर्शाते हैं। 

साँपों की संख्या 80 दी गई है।  साँपों के 9 बड़े गण बनाए हैं और उसमें 326 सांप की जातियों को बताया गया हैं। इन 9 गणों में वैज्ञानिकों ने लगभग 1000 प्रकार के सर्प रखे हैं। 

सांप के प्रकार 

इनमें से लगभग 330 प्रकार के सांप भारत में पाए जाते हैं।
  1. कैरात (जहाँ भील रहते हैं, उन जंगलों में रहने वाले सर्प)
  2. पृष्नि (धब्बों वाला चितकबरा सर्प),
  3. उपतृण्य (घास में रहने वाला), वाले),
  4. अलीक (निर्विश सांप),
  5. तैमात (जलीय स्थान में रहने वाले),
  6. अपोदक (मरुस्थल में होने वाले),
  7. सत्रासाह (आक्रमणकारी)
  8. बभ्रु (भुरे रंग सांप),
  9. मन्यु (क्रोध करने वाले सांप),
  10. आलिगी (शरीर पर लिपट जाने वाली सर्पिणी),
  11. विलिगी (शरीर पर न लिपटने वाली),
  12. उरुगूला (बड़ी कटि वाली सर्मिणी),
  13. असिक्नी (काली सर्पिणी),
  14. दद्रुशी (जिससे काटने से दाद हो जाता है),
  15. कर्णा (कानों वाली सर्पिणी, सल्लु साँप),
  16. ष्वावित् (जिनको कुत्ते ढूँढ़कर लाते हैं, ऐसे साँप),
  17. खनित्रिमा (भूमि के अन्दर बिल बनाकर रहने वाली सर्पिणी),
  18. असित (काले)।
इनमें से कुछ सांप की जातियाँ महाविष वाली हैं, कुछ कम विष वाली हैं और कुछ निर्विश (बिना विष वाले) साँपों की जातियाँ हैं। 

क्या सभी साँप विषैले होते हैं?

सभी साँप विषैले नहीं होते। साँपों की ज्ञात लगभग 2,600 प्रजातियों में से मात्रा 450 ही विषैली होती हैं और इन विषैली प्रजातियों में से भी लगभग 270 ही ऐसी हैं जिनका विष मनुष्य के लिए जानलेवा हो सकता है और इनमें से भी केवल लगभग 25 प्रजातियां ही अधिकांश मौतों के लिए जिम्मेदार हैं।

इन विषैले साँपों में से अधिकांश मनुष्य के लिए खतरनाक नहीं होते क्योंकि उनका विष या तो बहुत मन्द होता है या इतनी कम मात्रा में प्रवेशित किया जाता है कि यह प्राणघातक नहीं होता। कई बार साँप का मुंह मनुष्य को डसने के हिसाब से बहुत छोटा होता है; या इसके मुखांग मनुष्य की त्वचा को वेधने के लिहाज से काफी कमजोर होतें हैं; या इसके दांत मुंह में बहुत भीतर की ओर होते हैं जिससे गंभीर नुकसान नहीं हो पाता है। साँपों के मात्रा चार कुल मनुष्य के लिए खतरनाक हैं। परन्तु केवल विषैला होना ही एक साँप को अन्य विषैले साँपों का नजदीकी नहीं बनाता और यह भी आवश्यक नहीं है कि सभी विषों की क्रिया समान हो।

विषैले साँपों को सामान्यतया निम्नानुसार वर्गीकृत किया जाता है -
  1. कुल इलैपिडी - इसमें कोबरा या नाग, किंगकोबरा या नागराज, करैत, माम्बा, काॅपरहैड और कोरल साँप जैसे इलैपिड सम्मिलित हैं।
  2. कुल वाइपराडी - इसमें वाइपर, रैटलस्नेक, काॅपरहैड/काॅटनमाउथ, एडर और बुशमास्टर जैसे वाइपेरिड आते हैं।
  3. कुल कोलुब्राईडी - इस कुल में कोलुब्रिड, जैसे बूम्स्लैंग, वृक्ष साँप, वल्लरी साँप, गरानी साँप आदि सम्मिलित हैं (हालांकि सभी कोलुब्रिड विषैले नहीं होते)।
  4. कुल हाइड्रोफाईडी (अथवा हाइड्रोफिड) - इसमें समुद्री साँप सम्मिलित हैं।

जहरीले सांप के काटने प्रारम्भिक लक्षण

इसके कोई निर्धारित लक्षण नहीं होते लेकिन निम्नलिखित लक्षण सांप के काटने से 15 मिनट से 10 घंटे बाद तक की अवधि में दिखाई दे सकते हैं। लक्षणों की तीव्रता काटने वाले सांप की प्रजाति तथा रोगी और काटने वाले सांप की शारीरिक क्रियात्मकता पर निर्भर करती है।
  1. दंश के स्थान पर लालिमा तथा सूजन।
  2. दंश के स्थान पर तेज दर्द।
  3. उनींदापन, जी मिचलाना तथा उल्टी होना।
  4. सांस लेने में कठिनाई (गम्भीर मामलों में सांस पूरी तरह रूक सकती है)।
  5. देखने में कठिनाई/धुंधला दिखना।
  6. मुंह से लार निकलना तथा अधिक पसीना आना।
  7. चेहरे तथा हाथ-पैरों का सुन्न होना या झनझनाहट।
  8. चेहरे, होंठ, जीभ, गले की मांसपेशियों में लकवे के कारण अस्पष्ट आवाज, बोझिल आंखें तथा निगलने में कठिनाई।
  9. मांसपेशियों में कमजोरी।
  10. होंठ तथा जीभ का नीला पड़ जाना।

सांप के काटने पर क्या करना चाहिए

  1. पीडि़त व्यक्ति को तुरन्त अस्पताल पहुँचायें।
  2. पीडि़त व्यक्ति को सीधा लिटा दें और शान्त रखें।
  3. यह देखें कि क्या काटने के स्थान पर विषदन्त के दो गहरे निशान है? दो गहरे निशानों के साथ छोटे-छोटे कई निशान और भी हो सकते हैं।
  4. दि काटने के स्थान पर बहुत से छोटे-छोटे चिन्ह उल्टे ‘न्’ के आकार में है तो यह दंश एक विषहीन साँप का हो सकता है। घाव को साफ करें और मरीज को अस्पताल पहुँचायें। टिटेनसरोधी टीके की आवश्यकता मरीज को हो सकती है।
  5. मरीज की अंगूठी, कंगन, पायल तथा जूते उतार दें क्योंकि हाथ-पैंरों में सूजनआने पर इन हिस्सों में रक्त प्रवाह रूक सकता है।
  6. जिस हाथ या पैर में सर्पदंश हुआ है उसमें लकड़ी की एक खपच्ची बांध दें ताकि मरीज उस भाग को मोड़ न सके।
  7. यदि मरीज बेहोश है तो हर दस मिनट में उसकी साँस देखते रहें और उसे गर्म रखें।

सांप के काटने पर क्या नहीं करना चाहिए

  1. साँप को पकड़ने की कोशिश न करें क्योंकि इससे सर्पदंश के शिकार व्यक्तियों की संख्या बढ़ सकती है।
  2. झाड़फूंक और देसी इलाज में समय बर्बाद न करें। सर्पदंश के मामलों में समय बहुत महत्वपूर्ण है।
  3. डर तथा घबराहट के कारण मरीज को छटपटाने न दें।
  4. दर्द से राहत के लिये एस्प्रिन न दें।
  5. जहर को चूस कर निकालने का प्रयास न करें। ऐसा करने पर यदि आपके मुंह में घाव या अल्सर है तो जहर आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है और वहां एक नहीं, दो मरीज हो जायेंगे।
  6. घाव को चाकू से नही खोलें।
  7. धमनीय रक्तबन्ध पर या घाव के ऊपर बहुत कस कर पट्टी न बाँधें।
  8. रोगी को मदिरा या काॅफी तथा चाय न पीने दें।

सांप के काटने की ओषधि का नाम एवं प्रयोग

अथर्ववेद में ताबुव और तस्तुव ओषधियों को सर्पविष-नाषक कहा गया हैं, जिसके गुण इस प्रकार से हैं-वे कटुतुम्बी (कड़वी लौकी) और तिक्त कोषातकी (कड़वी तोराई) में पाये जाते हैं। भावप्रकाश निघण्टु में कटुतुम्बी (कड़वी लौकी) को कड़वी, विषनाषक, ठंडी और हृदय को शक्ति देने वाला बताया गया है। राजनिघण्टु आदि में इसको वमनकारक अर्थात् कै करानी वाली कहा गया है। यह कै या उल्टी के द्वारा विष के प्रभाव को बाहर निकाल देती है, अत: सर्पविषनाषक कही जाती है। 

कामरत्न ग्रन्थ में कहा गया है कि कटुतुम्बी (कड़वी लौकी) की बारीक जड़ को गोमूत्र में पीसकर वटी या गोली बना ले और उसको छाया में सुखा लें। फिर उसको गोमूत्र आदि के साथ घिसकर एक हाथ पर लेप करने से सर्पविष का नाष हो जाता है। सपेरे कटुतुम्बी की वीणा (बीन) रखते हैं इसका कारण यह है कि कटुतुम्बी सर्पविषनाषक है और इसके अन्दर से निकलने वाली ध्वनि सर्प को अपने वष में कर लेती है।

वस्तुत: ओषधि के जो गुण बताए गए हैं, वे तिक्त कौषातकी (कड़वी तोरई) के गुणों से मिलते हैं। कामरत्न ग्रन्थ के सर्प विष चिकित्सा अध्याय में वर्णन है कि कड़वी तोरई के काढ़े को शहद और घी के साथ मिलाकर पिलाने से कै हो जाती है और इस प्रकार विष का प्रभाव नष्ट हो जाता है।104 निघण्टु ग्रन्थों में भी कड़वी तोरई को विषनाषक कहा गया है सुश्रुत का भी कथन हे कि सर्पदंष की अवस्था में तुरन्त मदनफल (मैनफल), कटुतुम्बी (कड़वी तुम्बी या लौकी), कड़वी तोरई आदि फलों से वमन करावें।

वेदों में सर्प विष दूर करने के लिए जल-चिकित्सा का वर्णन किया गया है। नदी के जल में नहाने, तैरने आदि से सर्प का विष नष्ट होने का उल्लेख है। नदी के जल से विष कम हो जाता है, इसीलिए पानी वाले साँपों में विष कम होता है। नदी या झरने के जल में स्नान से विष का प्रभाव कम होता है जल-चिकित्सा की दृष्टि से सर्प विष उतारने के लिए योग की कुंजल क्रिया भी विषेश लाभप्रद है। 

सर्पदश्ट व्यक्ति को अधिक से अधिक अर्थात् दो से चार लीटर तक पानी पिलावें और खड़े होकर मुँह में अंगुली डालकर उससे कै करवावें। पेट का सारा पानी 3-4 बार में बाहर आ जाएगा और विष का प्रभाव कम हो जाएगा। यदि आवश्यक हो तो दो या तीन बार भी यह क्रिया करवाई जा सकती है। जल के द्वारा विष का प्रभाव बाहर आ जाता है। वेदों में नदियों और पर्वतों के झरने आदि के जल से सर्पविष दूर होने का उल्लेख है। 

इसका अभिप्राय यह है कि नदी में बहुत देर तक स्नान किया जाय। झरने के जल के नीचे बैठकर जलधारा को सिर और शरीर पर लें। इस प्रकार विष का प्रभाव कम हो जायेगा। कुछ ओषधियों के नाम भी इस प्रकार से है -
  1. दर्भ (कुष या कुषा),
  2. षोचि: (अग्नि),
  3. तरुणक (रोहिश तृण, सुगंधतृण या कत्तृण),
  4. अष्ववार या अष्ववाल (कास नामक तृण),
  5. परुशवार (मुंज या मूंज)।
अजश्रृंगी (मेशश्रृंगी, मेढ़ासिंगी)। इसकी मूलत्वक् (जड़ की छाल) एरण्ड-स्रेह (अंडी के तेल) के साथ मिलाकर सर्प या अन्य कीट के दश्ट भाग पर लेप करें। अलाबू (लम्बा कद्दू), वृश (वासा), शीपाल या शीपाला (षैवाल या सेवार), शोचि (कुषा या कुष), सदंपुश्पा, सदंपुश्पी (सदापुश्प, कुन्द), सैर्य (अष्ववाल, कास)।

साँप से विष निकालना

एक कुशल साँप पकड़ने वाला सांप की विष ग्रन्थियों से विष को निकाल एक पतली झिल्ली से ढकी काँच की शीशी में एकत्र करता है। साँप को उस पतली झिल्ली पर काटने के लिये उकसाया जाता है और इस दंश के कारण विष निकल कर शीशी में आ जाता है। ताजा विष एक साफ, गाढ़ा हल्के पीले रंग का द्रव होता है। इस एकत्र किये विष निकालना गये विष को शुद्ध करके हिम-शुष्कन द्वारा सुखाया जाता है, जिसका प्रयोग बाद में प्रयोगशालाओं में प्रतिदंश विष के उत्पादन के लिये किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया का प्रदर्शन सर्प-उद्यानों में (जैसे चेन्नई में) देखा जा सकता है।

रोचक जानकारी

  1. स्नेक शब्द की उत्पत्ति प्राचीन अंग्रेजी शब्द स्नैका से हुई है जिसका अर्थ ‘रेंगना’ है।
  2. हर्पीटोलोजी जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें सरीसृपों तथा उभयचरों का अध्ययन किया जाता है।
  3. साँपों के प्रति लगाव को ओफियोफिलीया कहते हैं।
  4. साँपों के प्रति घृणा या डर को ओफीडियो फोबिया कहते हैं।
  5. एक सर्प विशेषज्ञ को ओफियोलोजिस्ट कहते हैं।
  6. आज औषधि विज्ञान (फार्मेसी) तथा आयुर्विज्ञान (मेडिसिन) के प्रतीक में साँप दिखाई पड़ता है।
  7. नागपंचमी के दिन भारत में साँपों की पूजा होती है।
  8. साँप दूध नहीं पीते। कोई सरीसृप दूध का स्राव नहीं करता और न ही उसे पीता है। यह स्तनधारियों में होने वाली क्रिया है।
  9. साँपों में कान तथा चलायमान पलकें नहीं होती हैं।
  10. नागराज (किंग कोबरा) एक बार डसने में जितना विष अपने शिकार में छोड़ता है वह एक हाथी या बीस मनुष्यों को मारने के लिये पर्याप्त होता है।
  11.  छोटे साँप वयस्कों से अधिक खतरनाक होते हैं वयस्क साँप अपने विष की मात्रा को आवश्यकतानुसार कम कर सकते हैं। छोटे साँप ऐसा नहीं करते इसलिये वे विष की अधिक मात्रा शरीर में छोड़ते हैं।
  12. मानव भ्रूण में भी जैकबसन्स अंग पाया जाता है परन्तु जैसे-जैसे तन्त्रिाका तन्त्रा विकसित होता है इसका अपविकास हो जाता है।
  13. पाइप स्नेक में चपटी पूंछ होती है जो कोबरा के फन जैसी दिखती है। वास्तविक सिर आक्रमण करने के लिये कुण्डली के बीच छिपा रहता है। सम्भवतः इसी से दो मुंह साँप के मिथक की उत्पत्ति हुई है।
  14. हरे अजगर, जिस समय अण्डे से निकलते हैं, भूरे या पीले होते हैं परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उनका रंग हरा हो जाता है।
  15. बोरनियो के घने जंगलों में पाया जाने वाला एनहाइड्रिस साँप, गिरगिट की तरह रंग बदल सकता है। एनहाइड्रिस वंश में कुल 22 प्रजातियां आती हैं। एक जर्मन विशेषज्ञ डा. मार्क आॅलिया द्वारा पकड़ा गया साँप दो मिनट के अन्दर लाल-भूरे से सफेद हो गया था।
सन्दर्भ-
  1. सुश्रुत, कल्पस्थान प्रकरण, अध्याय-4 और 5 तक।
  2. खातम् अखातम् उत सक्तम् अग्रभम्।-अथर्ववेद-5/13/1। 
  3. र्सर्पितं रदितं चापि तृतीयमथ निर्विशम्।-सुश्रुत0कल्पस्थान-4/14। 
  4. चरक, चिकित्सास्थान-अध्याय-23। 
  5. गृहणामि ते मध्यमम् उत्तमं रसमुतावमम्।-अथर्ववेद-5/13/2। 
  6. उग्रेण ते वचसा बाध आदु ते।-अथर्ववेद-5/13/3। 
  7. विशेण हन्मि ते विषम्।-अथर्ववेद-5/13/4। 
  8. अहे म्रियस्व मा जीवी: प्रत्यगभ्येतु त्वा विषम्।-अथर्ववेद-5/13/4। 
  9. (क)-स दश्टव्यो·थवा................वापि हि तत्क्षणम्।-सुश्रुत कल्पस्थान-5/6। (ख)-अश्टांगहृदय, उत्तरस्थान-36/40 से 41 तक। 
  10. अश्टांग0उत्तर0।-अथर्ववेद-36। '
  11. सुश्रुत, कल्पस्थान-5/3 से 5 तक। 
  12. (क)-ताबुवेनारसं विषम्।-अथर्ववेद-5/13/10। (ख)-तस्तुवेनारसं विषम्।-अथर्ववेद-5/13/11। 
  13. कटुतुम्बी हिमाहृद्या पित्त-कास-विशापहा।-भाव0षाक0-58 से 59 तक। 
  14. सुकन्या दत्ता : विज्ञान प्रसार 2009

Post a Comment

Previous Post Next Post