सूर्यबाला का जीवन परिचय और रचनाएँ

सूर्यबाला का जीवन परिचय

सूर्यबाला का जीवन परिचय

सूर्यबाला जी का जन्म एक कायस्थ परिवार में 25 अक्टूबर 1944 को वाराणसी में हुआ। इनका पूरा नाम सूर्यबाला वीरप्रतापसिंह श्रीवास्तव है। अपने जन्मस्थान वाराणसी से सूर्यबाला जी को बेहद लगाव है और अनेक यादें भी जुड़ी हैं। वाराणसी की गलियों, मोहल्लों का वर्णन उन्होंने अपनी कई कहानियों में भी किया है। उनके हृदय में वाराणसी अर्थात् देवों, नदी, घाट आदि वाले पवित्र स्थान के प्रति श्रद्धा और प्रेम के भाव से ओत-प्रोत हैं। इस संस्थान के प्रति वह सदेव नतमस्तक रहती है। उनका पूरा बचपन धार्मिक, सांस्कृतिक क्रियाकलापों में ही बीता है। उनका बचपन बड़े ही लाड़-प्यार में बीता है। पारिवारिक साधन-संपन्नता के कारण उन्हें कभी किसी के समक्ष नतमस्तक होना गंवारा नही किया।

सूर्यबाला जी की माँ का नाम स्व. श्रीमती केशरकुमारी और पिता का नाम स्व. श्री वीरप्रतापसिंह श्रीवास्तव था। उनके माता-पिता दोनों शिक्षित तथा हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषा के ज्ञता थे। सूर्यबाला जी की माँ एक आदर्श गृहिणी थी और पिता जी जिला विद्यालय में निरीक्षक पद पर कार्यरत थे। सूर्यबाला जी के माता-पिता कुलीन, संस्कारशील, सभ्य, अनुशासन, परंपराओं में आस्था रखनेवाले, उदार विवेकशील तथा परोपकारी वृत्ति के सज्जन थे। परिवार और माता-पिता के आदर्शों का गहरा प्रभाव सूर्यबाला जी पर दिखाई देता है। उनके व्यक्तित्व के सृजन का श्रेय उनके पिता को ही जाता है। उनके पिता को ही नही अपितु माता को भी साहित्य के प्रति रुचि थी। उनके पिता को शेरो-शायरी का शौक था। सूर्यबाला जी को अपने माता-पिता और परिवार पर सदैव गर्व रहा है।

सूर्यबाला जी की तीन बहनें और एक भाई हैं। वीरबाला, केसरबाला, चंद्रबाला तथा विष्णु प्रताप श्रीवास्तव। चारों बहनों के नाम में लगे बाला उपसर्ग ने जेसे नाम के महत्त्व को बढ़ा दिया हो। सूर्यबाला और उनकी बहनों में माता-पिता के संस्कार, सकारात्मक विचारशीलता, उच्च स्तरीय मानसिकता के दर्शन स्पष्ट दिखाई देते हैं। सूर्यबाला की तरह उनकी बहनों ने भी एम.ए., पीएच.डी. किया है। माता-पिता ने अपनी चारों बेटियों को बड़े ही लाड़-प्यार से पाला-पोसा है। बहनों की तरह भाई भी उच्च शिक्षित है। सभी भाई बहन शिक्षण कार्य से संबंधित हैं। सभी का शिक्षा के प्रति गहरा लगाव रहा है। सूर्यबाला की तरह उनकी बहन वीरबाला जी भी प्रसिद्ध साहित्यकार थÈ।

सूर्यबाला जी का जन्म और शिक्षा-दीक्षा का क्षेत्र धर्म और संस्कृति के बाहर वाराणसी में हुआ। सूर्यबाला जी को बचपन में स्कूल जाने का मौका नही मिला। लेखिका की प्रथम पाठशाला उनका घर ही था। उनके माता-पिता ने उन्हें वस्तुओं को दिखा-दिखाकर तथा उनके वस्तु के नाम से अवगत कराकर ही प्राथमिक शिक्षा दी। प्रत्यक्षत: छठी कक्षा में दाखिला लिया। सूर्यबाला जी अपने बचपन से जुड़ी किसी भी घटना को आज भी विमुख नही कर पाई। डॉ. सूर्यबाला जी ने ‘रीति साहित्य’ में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के बड़े विद्वान तथा समीक्षक डॉ. बच्चन सिंह के निर्देशन में अपना शोध कार्य पूर्ण किया। सूर्यबाला जी ने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी से अपना शोध कार्य सम्पन किया।

उच्च शिक्षा, संस्कारों, साहित्य और अनेक भाषा की ज्ञाता सूर्यबाला जी को साहित्य लेखन के साथ-साथ नौकरी में भी विशेष रुचि थी। सूर्यबाला जी के जीवन में नौकरी का सफर ‘बनारस विश्वविद्यालय डिग्री कॉलेज में अध्यापन कार्य से आरंभ किया. वहाँ उन्होंने मात्र एक वर्ष ही कार्य किया। एक लंबे अंतराल के उपरांत पुन: व्याख्याता पद पर अध्यापन कार्य वाराणसी में किया। वैवाहिक जीवन और पारिवारिक जिम्मेदारियों को सर्वोपरि मान नौकरी छोड़ने का विचार कर लिया। आजकल सूर्यबाला जी महानगरी मुम्बई में ही रह रही हैं और सिर्फ साहित्य लेखन एवं कुशल गृहिणी के दायित्वों को बड़ी कुशाग्रता से निभा रही हैं।

सुसंस्कृत था उच्चशिक्षित श्री आर. के. लाल जी से सूर्यबाला जी का विवाह हुआ। श्री आर. के. लाल जी ने उनकी शिक्षा मरीन इंजिनियरिंग कॉलेज, कोलकाता से पूर्ण की। वे पहले मर्चेंट नेवी में चीफ इंजिनीयर पद पर कार्य करते थे। लेकिन उन्होंने वह नौकरी छोड़ी, उसके बाद उन्होंने अनेक उच्चपदों पर कार्य किया।

सूर्यबाला जी अपने पारिवारिक जीवन से बेहद संतुष्ट हैं। परिवार और जीवन से कोई शिकायत नही है। वे अपने पति के व्यकित्व का वर्णन करते हुए कहती हैं, ‘‘वे एक मेहनतकश और परिश्रमी इन्सान हैं। उनका स्वभाव उदार तथा परोपकारी है। उन्होंने सूर्यबाला जी को निरंतर अध्ययन साहित्य सृजनके लिए प्रेरित किया। उन्होंने सूर्यबाला जी की कुछ रचनाएं पढ़ी हैं।’’ सूर्यबाला जी कहती हैं कि ‘‘उन्हें संगीत सुनना, विद्या ग्रहण करना अच्छा लगता है। उन्होंने अनेक देशों की यात्र भी की हैं। फिर भी हिंदुस्तान के प्रति उनका लगाव अधिक रहा है। उन्हें टी.वी. देखना पसंद है। टी.वी. का डिस्कवरी चैनल बहुत पसंद है। जब भी उनके पास समय होता है वे ‘डिस्कवरी चैनल’ देखती हैं। नई नई बातों की जानकारी प्राप्त करना उन्हें पसंद है।”

सूर्यबाला जी और श्री आर. के. लाल जी की तीन संताने हैं जिसमें दो बेटे, एक बेटी हैं। बड़ा बेटा अभिलाष मैकेनिकल इंजिनियर तथा छोटा बेटा अनुराग कम्प्यूटर इंजीनियर है। सूर्यबाला जी के दोनों बेटे बड़े परिश्रमी, मेधावी तथा विनयशील हैं। दोनों अपने कर्त्तव्य तथा कार्यों के प्रति सजग और निष्ठावान हैं। सूर्यबाला जी की बेटी दिव्या ने एम. ए. तथा पीएच.डी. उपाधि प्राप्त की है। उनकी बेटी भी अपने भाईयों की तरह सुसंस्कृत तथा अत्यंत विनयशील नम्र है। उनका सारा समय अनुसंधान में ही व्यतीत होता है। दिव्या के पति श्री मान आलोक सक्सेना जी चार्टर्ड अकॉउंटेंट हैं। लेखिका की तीनों बच्चों को संगीत, न ृत्य में रूचि है। दोनों बेटे तबला, गिटार आदि बजाना पसंद करते हैं।

सूर्यबाला जी का बड़ा ही भावुक एवं संवेदनशील व्यक्तित्व है। उन्हें पुराने गाने सुनना, किताबें पढ़ना, ठुमरी, गजल, नाटक देखना, शास्त्रीय न ृत्य देखना और शास्त्रीय संगीत सुनना अति प्रिय है। लेखिका को अपने घर-परिवार से गहरा स्नेह तो है ही किन्तु बेटी दिव्या से विशेष स्नेह है। यात्र करना भी पसंद है। आपने विदेशों की सैर भी की है तथा काफी पर्यटन स्थलों के दर्शन भी किए हैं। सूर्यबाला जी घर आए मेहमानों से सहृदयता से स्वागत करती हैं। दूसरों की समस्याओं को सुलझाने तथा मदद के लिए सदेव तत्पर रहती हैं।

सूर्यबाला जी को जन्मोपरांत ही साहित्यिक पृष्ठभूमि से ओत-प्रोत परिवार उपहार स्वरूप मिला। माता-पिता एवं बहनें सभी को साहित्य से विशेष लगाव था। सुसंस्कृत परिवार का अनायास प्रभाव सूर्यबाला जी पर पड़ा। बचपन का साहित्यिक माहौल, घर में ढेर सारी किताबें, पिता जी के द्वारा की जानेवाली शेरो-शायरी, माँ की कलात्मक और साहित्यिक रूचियों आदि ने आपको प्रेरित किया। सूर्यबाला जी ने छठी कक्षा से ही साहित्य लिखने की शुरूआत की। इतना ही नही बड़ी बहन वीरबाला ने भी आपको साहित्य के लिए प्रेरित किया जो खुद भी प्रतिभाशाली लेखिका हैं। वीरबाला जी ने प्रेमचंद और सुदर्शन की कहानियों के विषय में बताया जिससे आपकी रूचि साहित्य की ओर बढ़ने लगी। आपकी प्रथम कहानी ‘जीजी’ 1972 में सारिका पत्रिका में प्रकाशित हुई।

सूर्यबाला की रचनाएँ

उपन्यास

  1. मेरे संधिपत्र
  2. सुबह के इंतजार तक
  3. अग्नि पंखी
  4. यामिनी कथा
  5. दीक्षांत

कहानियाँ

  1. इंद्रधनुष
  2. दिशाहीन
  3. थाली भर चाँद
  4.  मुंडेर पर
  5. यामिनी कथा
  6. ग्रह प्रवेश
  7. कात्यायनी संवाद
  8. साँसवाती
  9. इôीस कहानियाँ
  10. पाँच लम्बी कहानियाँ
  11. मानुष गंध

हास्य व्यंग्य

  1. अजगर करे न चाकरी
  2. धृतराष्ट्र टाइम्स
  3. झगड़ा निपटाकर दफ्तर
  4. देश सेवा के अखाड़े में
  5. भगवान ने कहा था

सूर्यबाला की उपलब्धियाँ

  1. सितंबर 1996 में ‘प्रियदर्शनी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया।
  2. ‘कात्यायनी संवाद’ कहानी के लिए ‘घनश्याम सराफ’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  3. ‘नागरी प्रचारिणी सभा काशी’ द्वारा आपको सम्मानित किया गया।
  4. लेखिका के हिन्दी भाषा के साहित्य सेवा के लिए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  5. ‘मुंबई विश्वविद्यालय, आरोही’ संस्था द्वारा सम्मान।
  6. ‘राष्ट्रीय कायस्थ सभा’ ने भी उनके साहित्यिक योगदान को ध्यान में रखते हुए सम्मानित किया।
  7. वरिष्ठ पत्रकार एवं ‘नवनीत’ के संपादक श्री विश्वनाथ सचदेव की अध्यक्षता में आयोजित सन् 2008 में ‘गोइन का पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
  8. आपकी अनेक रचनाओं को आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं धारावाहिकों में प्रसारित हुई हैं।
  9. आपकी अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, उर्दू, मराठी, बंगाली, पंजाबी, तेलुगु, कन्नड़ आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

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