यूपी बोर्ड की स्थापना, कार्य, संचालन एवं अधिकार

यूपी बोर्ड की स्थापना

यूपी बोर्ड की स्थापना 

यूपी बोर्ड की स्थापना वर्ष 1921 में इलाहाबाद में यूनाईटेड प्राविंशियल लेजिस्लेटिव कौसिंल के एक एक्ट द्वारा हुई थी। बोर्ड में पहली परीक्षा 1923 में आयोजित की थी। बोर्ड ने 10+2 सिस्टम परीक्षा अपनाई थी। पहली सार्वजनिक परीक्षा 10 वर्ष की शिक्षा पूरी करने के पश्चात हाईस्कूल की परीक्षा की व्यवस्था की गयी। 1923 के पहले इण्टरमीडिएट की परीक्षा होती थी । हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट की परीक्षा को इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा कराई गई थी। 

बोर्ड के ऊपर अतिरिक्त भार के कारण बोर्ड 1973 में मेरठ, 1978 में वाराणसी, 1981 में बरेली में और 1987 में इलाहाबाद में रीजनल कार्यालय खोले गये। इसका मुख्य कार्यालय इलाहाबाद में स्थित है इसमें कार्यकारी हेड सचिव को बनाया गया ।

8. 11.2000 को उत्तरांचल राज्य बनने से राम नगर (नैनीताल) के आफिस को उ0प्र0 बोर्ड से अलग कर दिया गया। इस समय बोर्ड लगभग 32 लाख विद्यार्थियों की परीक्षा सम्पन्न कराता है तथा परिणाम घोषित करता है।

यूपी बोर्ड के मुख्य कार्य

  1. विद्यालयों को मान्यता की स्वीकृत देना।
  2. हाईस्कूल एवं इण्टरमीडिएट हेतु पाठ्यक्रम एवं पुस्तकें निश्चित करना।
  3. हाईस्कूल एवं इण्टरमीडिएट परीक्षा सम्पन्न कराना।
  4. दूसरे बोर्ड की भांति उ0प्र0 बोर्ड को सम सामयिक बनाना।

यूपी बोर्ड का प्रशासनिक ढांचा

बोर्ड का एक्स आफिशियो चेयरमैन शिक्षा निदेशक होता है। इस कारण बोर्ड हेतु 8 एक्स आफिसियों सदस्य होते है। बोर्ड की निम्न कमेटियां है।
  1. पाठ्यक्रम कमेटी
  2. परीक्षा कमेटी
  3. रिजल्ट कमेटी
  4. मान्यता कमेटी
  5. फाइनेन्स कमेटी
इसके अतिरिक्त 40 विषय कमेटियाँ होती है।

यूपी बोर्ड के उद्देश्य

हाईस्कूल एवं इण्टरमीडिएट को कार्यान्वित करना एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कार्य को सम्पन्न करना।
  1. प्रस्तावित कोर्सेस
  2. देहाती क्षेत्र सहित विभिन्न क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले विद्यालयों की परीक्षा कराना।
  3. कर्मचारियों को मनोवृत्यात्मक परिवर्तन एवं नई तकनीकी से परिचित करवाना।
  4. मूल्यांकन की विश्वसनीयता एवं वैधता बनाये रखना।
  5. हाईस्कूल एवं इण्टरमीडिएट पाठ्यक्रम निर्माण एवं टेक्स्ट बुक का प्रबन्ध करना।
  6. हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट कक्षाओं को मान्यता करना।

यूपी बोर्ड का पाठ्यक्रम

हाईस्कूल हेतु कला, विज्ञान, कामर्स एवं फाइन आर्ट्स, कृषि, तकनीकी शिक्षा निश्चित है। सन् 2000 से 6 विषय निश्चित कर दिये गये है। हिन्दी के अतिरिक्त अन्य सभी भारतीय भाषाओं को महत्व दिया गया है। सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, गणित, नैतिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा तथा अन्य लाभदायक विषयों को सम्मिलित किया गया है साथ ही साथ इसका सतत् आन्तरिक मूल्यांकन होता रहता है। 

कक्षा 9 एवं 10 पाठ्यक्रम को अलग-अलग कर दिया गया है। इण्टरमीडिएट हेतु 5 विषय लेना अनिवार्य है। जिसमें हिन्दी आवश्यक है तथा विभिन्न समूहों से 4 विषय किसी से लिये जा सकते है। कक्षा 9 व 10 के लिए इसके पहले दोनों को मिलाकर एक पाठ्यक्रम था। जिसकी कक्षा 10 के बाद दोनों वर्ष के कोर्स को मिलाकर परीक्षा ली जाती थी। परन्तु अब इसे अलग - अलग कर दिया गया है। मौजूदा समय में उ0प्र0 माध्यमिक शिक्षा परिषद संसार में सबसे बड़ी परीक्षा संस्था है। बोर्ड के सारे कार्य इलाहाबाद से सम्पादित होते है।

सहायता प्राप्त अशासकीय इण्टर कालेज, सरकारी इण्टर कालेज सरकार एवं शासन द्वारा समाज में माध्यमिक शिक्षा प्रदान करने का एवं समाज को शिक्षित करने का जो संकल्प किया गया था उसको पूर्ण करने हेतु सरकार द्वारा प्रत्येक जिले में इण्टर कालेज खोलने की व्यवस्था की गयी, जिनके द्वारा समाज को माध्यमिक शिक्षा की नई व्यवस्था प्राप्त हुई। परन्तु समाज में शिक्षा के प्रति जन जागरण होने से सरकार द्वारा इण्टर कालेजों के माध्यम से चलाई जा रही व्यवस्था अपर्याप्त साबित हुई। सरकारी प्रतिक्रियाओं में अधिक समय लगने के कारण शिक्षा की व्यवस्था शिक्षकों की व्यवस्था एवं विद्याथ्र्ाी को सम्पूर्ण रूप से ज्ञान दिये जाने में विलम्ब होने लगा एवं धन की कमी के कारण व्यवस्था चरमराने लगी, अन्तत: शिक्षा को सुचारू रूप से चलाने के लिये सरकार द्वारा निजी क्षेत्रों में निजी व्यवस्था के अन्तर्गत इण्टर कालेज खोलने की अधिकाधिक अनुमति प्रदान की गयी जिससे प्रत्येक प्रकार के इण्टर कालेज खोले गये, जिसमें कुछ इण्टर कालेजों को सरकार द्वारा शासकीय निधि से व्यवस्था चलाने हेतु एवं शिक्षकों को वेतन हेतु धन आवंटित किये जाने की व्यवस्था की गई । ऐसे सभी इण्टर कालेज जिनकों सरकार द्वारा व्यवस्था प्रदान की गयी थी, की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ने लगी। ऐसे इण्टर कालेज जिनमें शिक्षकों का वेतन छात्रवृत्ति एवं अन्य अनुदान जो शासन द्वारा प्रदत्त किये जाते हैं तथा जिनका प्रबन्ध निजी संस्थाओं द्वारा किया जाता है, सहायता प्राप्त अशासकीय इण्टर कालेज कहलाते है।

प्रत्येक इण्टर कालेज को किसी न किसी बोर्ड से सम्बन्धित कर दिया गया। बोर्ड का कार्य परीक्षा परिणाम घोषित करना तथा योग्यता की सर्टीफिकेट देना है बोर्ड इण्टर कालेजों हेतु प्रवेश के नियम बनाते हैं तथा शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता का अनुमोदन करते है।

इण्टर कालेजों में सभी कला विषयों (इतिहास, भूगोल, शिक्षा शास्त्र, अर्थशास्त्र, गृह विज्ञान, चित्रकला, समाज शास्त्र, संगीत तथा कला) की शिक्षा दी जाती है तथा दो वर्ष सफलता पूर्वक अध्ययन समाप्त करने के उपरान्त परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर बोर्ड द्वारा छात्रों को प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है। विज्ञान तथा वाणिज्य की कक्षाओं का संचालन इण्टर कालेजों में होता है तथा विज्ञान के सभी विषय (भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, कम्प्यूटर तथा इलेक्ट्रानिक्स) की तथा वाणिज्य के सभी विषयों (बहीखाता तथा लेखा शास्त्र, व्यापार संगठन, अधिकोषण तत्व) का अध्ययन व अध्यापन होता है। कुछ इण्टर कालेजों का सीधा संचालन सरकार के द्वारा होता है उन्हें सरकारी इण्टर कालेज या राजकीय इण्टर कालेज कहते है और कुछ इण्टर कालेजों का संचालन समाज सेवी संस्थानों द्वारा किया जाता है जिनमें सरकार शिक्षकों को वेतन भत्ते आदि प्रदान करती है। भवन व पुस्तकालयों के लिये भी अनुदान दिया जाता है।

तीसरे प्रकार के वे इण्टर कालेज है जिनमें सेवा शर्ते तो सरकार द्वारा लागू की जाती है परन्तु विद्यालय में सम्पूर्ण भार वहन के लिये निजी संस्था ही वित्तीय व्यवस्था करती है सरकार इन्हें किसी प्रकार की सहायता प्रदान नहीं करती है।

यूपी बोर्ड का संचालन एवं निर्देशन

प्रत्येक इण्टर कालेज को किसी न किसी बोर्ड से सम्बन्धित कर दिया जाता है जिससे कालेज का संचालन भली प्रकार से हो सके। कालेज में भी कई प्रकार की श्रेणियां होती है।

प्रथम सरकारी इण्टर कालेज होते हैं जिनका संचालन व निर्देशन सरकार द्वारा होता है। इन कालेजों में भवन, प्रयोगशालायें, पुस्तकालय तथा सारी सम्पत्ति सरकार की होती है तथा सारी क्रियायें, परीक्षा परिणाम आदि का खर्च सरकार वहन करती है।

द्वितीय श्रेणी में वे कालेज आते है जिन्हें सहायता प्राप्त इण्टर कालेज की श्रेणी में रखा जाता है । इन कालेजों का संचालन किसी संस्थान या समिति के द्वारा होता है जिसे प्रबन्ध समिति कहते है। इनमें भूमि की व्यवस्था, भवन बनावाना आदि कार्य प्रबन्ध समिति द्वारा किये जाते हैं। अध्यापकों की नियुक्ति प्रबन्ध तंत्र करता था परन्तु अब यह सरकारी शिक्षा आयोग के द्वारा नियुक्ति की जाती है। इन नियुक्तियों में सेवा शर्ते पूर्णतया बोर्ड के नियमों पर आधारित होती है तथा अध्यापकों का वेतन माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रतिपादित होता है तथा वेतन का व्यय भार सरकार उठाती है अथवा सरकारी खजाने से प्राप्त होता है। इस प्रकार के कालेज में कुछ सेवा शर्ते बोर्ड की होती है तथा परीक्षा कार्यक्रम बोर्ड द्वारा सम्पन्न होता है।

तृतीय श्रेणी में वे कालेज आते हैं जिन्हें स्ववित्तपोषी इण्टर कालेज की संज्ञा दी जाती है। भवन, भूमि, पुस्तकालय, प्रयोगशाला आदि का सारा खर्च प्रबन्ध समिति वहन करती है। अध्यापकों का वेतन प्रबन्ध समिति वहन करती है। इसमें भी सरकार की सेवा शर्ते ही लागू होती है तथा निश्चित वेतनमान वहाँ की प्रबन्ध समिति कालेज की आय द्वारा शिक्षकों को उपलब्ध होता है।

यूपी बोर्ड के आय के स्रोत

सहायता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों में आय से सीमित साधन होते हैं। इनमें कुछ इस प्रकार से है।

छात्रों द्वारा लिया जाने वाला शुल्क - इण्टर कालेज की अधिकांश व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करने के लिये इण्टर कालेजों द्वारा छात्रों से नाम मात्र का शुल्क विभिन्न मदों में लिया जाता है जिनकी कुछ मदें इस प्रकार से है-
  1. शिक्षण शुल्क
  2. मंहगाई शुल्क
  3. विकास शुल्क
  4. पुस्तकालय शुल्क
  5. विज्ञान शुल्क
  6. रेडक्रास शुल्क
  7. बिजली / पंखा शुल्क
  8. परीक्षा शुल्क
  9. रेडियो शुल्क
अन्य अनुदान तथा प्राप्तियाँ - कालेज की आय के स्रोतों में समाज तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा दिया जाने वाला अनुदान भी होता है। इससे संस्थाओं द्वारा फर्नीचर पुस्तकालय के लिये पुस्तके तथा छात्रों को प्रदान करने के लिये पुस्तकें तथा छात्रों को प्रदान करने के लिये छात्रवृत्तियां इत्यादि अनुदान प्राप्त होते हैं । विद्यालय से जुड़ी हुई सम्पत्तियों द्वारा अर्जित होने वाली आय भी विद्यालय की आय के स्रोतों में आती है।

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