मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, प्रमुख कृतियाँ

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में 31 जुलाई, 1880 ई, शनिवार को बनारस के पास ‘लहमी’ नाम के एक गाँव में हुआ। विक्रमी संवत् के अनुसार 1937 संवत् के सावन बदी दशम को हुआ था। प्रेमचन्द का वास्तविक यानी मूल नाम धनपतराय था। वे बचपन में धनपतराय के नाम से जाने जाते थे। उसके पिता का अजायब लाल था जो डाकखाने में मुंशी का कार्य किया करते थे।
 
मुंशी प्रेमचंद की माता का नाम आनन्दी देवी था। बचपन में वे छोटी-छोटी शरारतें किया करते थे। किसी के खेत में घुसकर ऊख तोड़ लाना, मटर उखाड़ लाना यह तो रोज की बात थी। सबसे ज्यादा मजा तो तब आता था जब आम पकना शुरू हो जाते, मजाल है कि दो-तीन चक्कों में वह नीचे न आ जाय। 

प्रेमचंद की पढ़ाई में बचपन से ही बहुत रुचि थी, परंतु आर्थिक अभाव के कारण उनकी शिक्षा में बहुत रुकावटें आईं। प्रेमचंद ने लिखा है- ‘‘पैसों की दिक्कत तो मुझे हमेशा रहती थी। मुझे बारह आने महीने फीस देनी पड़ती थी। (तब वे कदाचित् छठी कक्षा के छात्र थे)। उन बारह आनों में से एकाध आने हर महीने खा जाता था। जिस मुहल्ले में मैं था, उसमें छोटी जाति के लोग थे। वे लोग मुझसे लेकर दो-चार पैसे खा लेते थे। इसलिए फीस देने में मुझे बड़ी दिक्कत होती थी।’’

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा

पाँचवे साल से प्रेमचन्द कर शिक्षा का प्रारम्भ हुआ। उनके पिता को उर्दू के प्रति ज्यादा रूचि थी। इसीलिए प्रेमचन्द को ‘अजायवराव’ ने उर्दू की शिक्षा दी थी। लमही गाँव से सवा मील की दूरी पर एक गाँव था जहाँ लालुपुरा मौलवी साहब रहते थे और उनका पेषा दर्जी का था साथ में वह मदरसा भी लगाते थे। प्रेमचन्द ने उन्हीं से उर्दू की शिक्षा प्राप्त की और धीरे-धीरे मुंशी जी की रूचि उसके प्रति बढ़ने लगी। इसके परिणाम स्वरूप उन्होंने ‘तिलस्मी होषरुबा’ जेसा विशाल उर्दू ग्रंथ पढ डाला। प्रेमचन्द एक गरीब किसान के यहाँ पैदा हुए थे।

अत: उनको कई तरह की यातनाएँ झेलनी पड़ी। प्रेमचन्द गाँव में रहत हुए बच्चों को ट्यूशन करते थे। गाँव से वह शहर पाँच मील की दूरी पर पढ़ने जाते थे। रात को घर आकर कुप्पी जलाकर खुद पढ़ते थे। हाई स्कूल तो पास कर लिया लेकिन कॉलेज में पढ़ने के लिए उनके परस फीस नहीं थी। इस लिए वह अपनी फीस माफ करवाने के लिए सिफारिशों की जरूरत थी। बड़ी मुष्किल से कॉलेज में भर्ती हुए और जेसे-तैसे पढ़ाई को उन्होंने जारी रखा। प्रेमचन्द जी बनारस में रहने लगे थे। उन्हें ट्यूशन से पाँच मिलते थे वहाँ एक वकील के बेटे को पढ़ाते थे। वह एक कच्ची कोठरी में रहते थे।

प्रेमचन्द की रूचि अध्यापन में ज्यादा थी। उसके प्रति मुंशी प्रेमचंद जी का लगाव के साथ रोजी-रोटी के लिए भी अध्यापन का कार्य मुख्यत: अपनाया। सन् 1919 ई. में स्नातक की परीक्षा पास की और कानपुर, बनारस, गोरखपुर, बस्ती आदि में स्थानों में अध्यापन का कार्य किया। बीस साल की उम्र में फिर पाँचवें मास्टर के पद पर नौकरी मिली। 21 सितम्बर को उन्होंने प्रतापगढ़ के जिला स्कूल में फस्र्ट एडीषनल मास्टर का काम किया। धीरे-धीरे उनकी लगन समाज की तरफ बढ़ी। नारियों की दषा का बुरा हाल था, सुधार की बजाय बिगड़ती जर रही थी। अनमेल विवाह, बाल-विवाह, अछूतों की समस्या को उन्होंने पास से देखा और उन पर लिखने का काम शुरू किया।

प्रेमचन्द जी ने सन् 1904 में ट्रेनिंग की परीक्षा अव्वल दर्जे में पास किया। उस समय उस की उम्र 25 वर्ष थी, साथ ही मिडिल स्कूल की हेडमास्टरी की। प्रेमचन्द की दोस्ती निगम साहब से थी और प्रेमवन्द जेसे लेखकों की जरूरत थी। निगम साहब के यहाँ अनेक नौजवानों की मण्डली हररोज लेखकों की जमती थी। उनके सभी दोस्त प्रेमचन्द के भी दोस्त बन गये थे। वहाँ हररोज दुनिया के बारे में चर्चा होती थी, राजनीति और साहित्य पर भी चर्चा करते थे। सभी लेखक नौजवान थे सभी पढ़ने-लिखने के शौकीन थे।

मुंशी प्रेमचंद का विवाह

जब मुंशी प्रेमचंद जी पन्द्रह वर्ष के हुए तभी उसका विवाह कर दिया था। यह विवाह उनके सौतेले नाना की सहमति से हुआ था। उस काल के विवरण से लगता है कि लड़की न तो देखने में सुन्दर थी, न वह स्वभाव से शीलवती थी और वह झगड़ालू प्रवृत्ति की थी। प्रेमचन्द के कोमल मन का कल्पना भवन मानों नींव रखते-रखते ही ढह गयी हो। उस समय वर-वधू की स्वीकृति का प्रश्न ही नहीं था। यह उनके ऊपर एक अतिरिक्त भार था क्योंकि उनकी पत्नी उक सहायिका न होकर उनके लिए एक परेशानी ही अधिक साबित हुई। यह एक अनमेल संबंध ही नहीं था बल्कि पूर्णरुप से असफल भी सिद्ध हुआ। श्रीमती ने प्रेमचन्द जी को छोड़कर अपने पिता जी के पास चली गई और उनके लिए कई वर्षो तक गुजारे के लिए खर्च मुंशी जी देना पड़ा।

मुंशी प्रेमचंद जी इस घटना के बाद वह दूसरा विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन लोगों ने प्रेमचन्द जी को दूसरी शादी के लिए मजबूर कर दिया जिससे वह विवाह के लिए राजी हो गये। मुंशी प्रेमचंद जी इस विवाह के लिए एक शर्त यह रखी कि उसकी शादी किसी विधवा के साथ ही होनी चाहिए। अपने इस क्रांतिकारी विचार से उन्होंने कई मित्रों और रिश्तेदारों की सहानुभूति को कम कर बैठे। मुंशी प्रेमचंद जी विवाह में मिलने वाले उस दहेज को भी खो दिया जिससे उनकी उस समय कुछ सहायता हो सकती थी। 

दूसरे विवाह में जो लड़की कों चुना गया वह विधवा ही थी, जिसने अल्प आयु में अपने पति को खो दिया था। उस लड़की ने अपने प्रथम पति को ग्यारह वर्ष की अवस्था में विवाह के तीन महिनें के बाद खो दिया था। बाद में आने वाली श्रीमती जी आठ वर्ष तक अपने वैवाहिक जीवन को अपने अनुकूल नहीं बना सकी।

प्रेमचंद की प्रमुख कृतियाँ

प्रेमचंद की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-

1. उपन्यास- ‘इसरारे मुहब्बत’, ‘प्रताप चन्द्र’, ‘श्यामा’, ‘प्रेमा’, ‘कृष्णा’, ‘वरदान’, ‘प्रतिज्ञा’, ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रम’,‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘कायाकल्प’, ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’,‘गोदान’ इत्यादि।

2. कहानिया - ‘सोजे वतन’, ‘सप्तसरोज’, ‘नवनिधि हिन्दी’, ‘प्रेम पूर्णिमा’, ‘प्रेम पचीसी’, ‘प्रेमतीर्थ’, ‘प्रेम द्वादशी’, ‘प्रेम प्रतिमा’, ‘प्रेम पंचमी’, ‘प्रेम चतुर्थी’, ‘पाँच फूल’, ‘कफन’, ‘समरयात्रा’, ‘मानसरोवर’ (आठ भाग), ‘प्रेम पीयूष’, ‘प्रेमकुंज’, ‘सप्त सुमन’, ‘प्रेरणा’, ‘प्रेम सरोवर’, ‘अग्नि समाधि’, ‘प्रेम राग’।

3. नाटक - ‘कर्बला’, ‘संग्राम’, ‘प्रेम की वेदी’।

4. जीवनियां -  ‘महात्मा शेख सादी’, ‘दुर्गादास’।

5. बाल साहित्य - ‘कुत्ते की कहानी’, ‘जंगल की कहानियाँ’, ‘राम चर्चा’।

6. अनूदित -  ‘टाॅलस्टाय की कहानियाँ’, ‘सुखदास’, ‘अहंकार’, ‘चाँदी की डिबिया’, ‘न्याय’, ‘हड़ताल’, ‘आजाद कथा’, ‘पिता का पत्र पुत्री के नाम’, ‘शबेतार’, ‘सृष्टि का आरम्भ’।

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