भारत में ग्रामीण महिलाओं की हालत ज्यादा अच्छी नहीं है अध्ययनों से विदित हुआ है कि प्रत्येक चार में से एक लड़की की शादी 15 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है। 50 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएँ छोटी उम्र में ही माँ बन जाती हैं। 85 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में खून की कमी पाई जाती है। गाँवों में पैदा होने वाले बच्चों का जन्म बिना किसी चिकित्सा सुविधा के होता है। खून की कमी या रक्त बहाव से 40 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को अपने जान से हाथ धोना पड़ता है। अधिकांश महिलाएँ गर्भावस्था के दौरान व प्रसूति के समय रोग ग्रस्त हो जाती हैं। जबकि बच्चों को उचित पोषण व स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में कई प्रकार के रोगों का शिकार होना पड़ता है । पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा आंगनवाड़ी के अन्तर्गत 15 से 45 वर्ष की आयु कि महिलाओं को उनके दैनिक जीवन के स्तर को ऊपर उठाने के उद्देश्य से उन्हें क्रियात्मक रूप से साक्षर बनाने का प्रयास किया जाता है।
शिक्षा के साथ महिलाओं और शिशुओं की देखभाल, पोषण आहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा तथा स्थानीय रूप से शिक्षा क्षेत्र में ग्रामीण महिला बहुत पीछे है। छोटी उम्र में घर के कामों में हाथ बटाना एवं उच्च शिक्षा संस्थानों का दूर होना जैसे कारण महिला शिक्षा में सबसे प्रमुख बाधक कारक है।
भारत देश एक विकासशील राष्ट्र है जो कि अभी सम्पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुआ है। आज भी भारत देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है जिसके कारण उन तक आधार भूत सुविधाएं (सड़क, बिजली, पानी) पहुँच नहीं पाती हैं तो ऐसी परिस्थितियों में स्वास्थ्य चिकित्सा उपलब्ध होना या समय पर उपलब्ध होना एक गंभीर चिंता का विषय है। इस विषय से निजात पाने हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधा उपलब्ध कराने हेतु केन्द्र शासन ने सन् 1985 में एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रम के नाम से आंगनवाड़ी केन्द्रों की स्थापना की थी, जिसका मुख्यतः उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं उचित चिकित्सा सुविधा समय पर उपलब्ध कराना था क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा के अभाव के साथ - साथ माता एवं शिशु मृत्यु दर काफी अधिक थी जो कि चिंता का विषय था, जिससे निजात पाने हेतु आंगनवाड़ी केन्द्र की स्थापना की गई ।
आंगनबाड़ी केन्द्रों पर दी जाने वाली सेवाएं
आंगनबाड़ी केन्द्रों पर दी जाने वाली सेवाएँ -- पूरक पोषाहार
- टीकाकरण
- स्वास्थ्य जाँच
- पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा
- संदर्भ सेवाएँ
- प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा (ई.सी.ई.)
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के कार्य
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के क्या कार्य होते हैं? आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के कार्य -
1. पूरक पोषाहार से सम्बंधित कार्य
पूरक पोषाहार आंगनबाड़ी केन्द्र द्वारा दी जाने वाली महत्वपूर्ण सेवा है। आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता और उसकी सहायिका मिलकर इस सेवा को प्रदान करने का कार्य करती है। पूरक पोषाहार उपलब्ध कराने का मुख्य उद्देश्य कम वजन के पैदा होने वाले नवजात शिशुओं की संख्या में कमी लाना और छोटे बच्चों में कुपोषण से बचाव तथा कुपोषित बालकों का पोषण द्वारा उचित उपचार करना है।आंगनबाड़ी केन्द्रों पर रविवार को छोड़कर एक माह में
औसतन 25 दिन या वर्ष में 300 दिन पूरक पोषाहार उपलब्ध कराया
जाता है। 6 वर्ष तक के बालक बालिकाओं के अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं,
धात्री माताओं तथा किशोरी बालिकाओं को भी पूरक पोषाहार का वितरण
किया जाता है।
पूरक पोषाहार के वितरण के साथ-साथ उचित रख रखाव की
जिम्मेदारी भी आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता की होती है।
2. टीकाकरण से सम्बंधित कार्य
आगँनबाड़ी केन्द्रों पर दी जाने वाली टीकाकरण सेवा का प्रमुख उद्देश्य बच्चों में जानलेवा बीमारियों (टी.बी., गलघोटू, काली खांसी, टिटनेंस, पोलियो तथा खसरा) से बचने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करना है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग तथा महिला एवं बाल विकास विभाग मिलकर टीकाकरण की समस्त सेंवाएँ माह में एक दिन (सोमवार/गुरूवार) आगँनबाड़ी केन्द्र पर मिले इस हेतु प्रत्येक केन्द्र के लिए माइक्रोप्लान बनाकर मातृ शिशु स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस का आयोजन करने का प्रयास करते हैं।भारत में विश्वव्यापी टीकाकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत सभी बच्चों
को आगँनबाड़ी केन्द्रों पर टीका सेवाएं मुफ्त दी जाती है ताकि बच्चों को
बीमारियों से बचाया जा सके।
आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता मातृ शिशु स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस के दिन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (ANM) और आशा सहयोगिनी के साथ मिलकर 0-3 वर्ष तक के बालकों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण के अलावा किशोरी बालिकाओं को आयरन की गोलियाँ वितरित करना, 2-5 वर्ष के बालकों की पेट के कीड़ों से रक्षा से लिए 6 माह के अन्तराल में मैमन्डाजोल की गोली देना, 0-5 वर्ष तक के सभी बच्चों का वजन लेना, अति कुपोषित बालकों की जाँच करने का कार्य करती है।
आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता मातृ शिशु स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस के दिन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (ANM) और आशा सहयोगिनी के साथ मिलकर 0-3 वर्ष तक के बालकों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण के अलावा किशोरी बालिकाओं को आयरन की गोलियाँ वितरित करना, 2-5 वर्ष के बालकों की पेट के कीड़ों से रक्षा से लिए 6 माह के अन्तराल में मैमन्डाजोल की गोली देना, 0-5 वर्ष तक के सभी बच्चों का वजन लेना, अति कुपोषित बालकों की जाँच करने का कार्य करती है।
3. स्वास्थ्य जाँच से सम्बन्धित कार्य
इस सेवा का प्रमुख उद्देश्य मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना, कम वजन के नवजात शिशुओं की संख्या में कमी करना है। आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता सभी गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता द्वारा नियमित जाँच करवाती है जो चौथे, सातवें और नौवें माह से पूर्व करवायी जाती है। इसके अन्तर्गत टिटनेस से बचाव हेतु टीकाकरण, पेट द्वारा गर्भस्थ शिशु की जाँच, रक्तचाप जाँचना, वजन लेना, खून की जाँच और खून की कमी से बचाव हेतु गर्भवती महिलाओं को प्थ्। की गोलियाँ दी जाती है।आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता
गर्भवती महिलाओं की जाँच की तारीख और जाँच का नतीजा जज्जा बच्चा
कार्ड/ममता कार्ड में सम्बन्धित खाने में अंकित करती है।
इसके साथ-साथ
स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता गर्भवती महिलाओं को आवश्यक जानकारी भी उपलब्ध
कराती है।
4. पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा से सम्बन्धित कार्य
इसके अन्तर्गत आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता 15 से 45 वर्ष तक की सभी महिलाओं व किशोरी बालिकाओं को स्वास्थ्य, पोषण तथा जनसंख्या शिक्षा के बारे में जानकारी देती है। साधारण बीमारियों के लिए दिए गए मेडीसन किट मे से दवाएं आवश्यकतानुसार को वितरित करती है। शिशु विकलांगता, अति कुपोषित और बीमार बालकों के उचित उपचार के बारे में जानकारी प्रदान करती है। क्षेत्र में फैलने वाली संक्रामक बीमारियों के बारे में भी आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता स्थानीय लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के साथ-साथ चिकित्सा विभाग के अधिकारियों को भी इसकी सूचना देती है जिससे इनकी रोकथाम की जा सके।इसके अलावा आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता
स्वास्थ्य, पोषण एवं जनसंख्या शिक्षा के सम्बन्धित मुद्दे तय करके उनके
संदर्भ लोगों से बातचीत करती है।
5. संदर्भ सेवाओं से सम्बन्धित कार्य
इसके अन्तर्गत आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता द्वारा आगँनबाड़ी केन्द्र पर स्वास्थ्य जाँच, वृ(ि निगरानी के दौरान पाए जाने वाले गंभीर कुपोषित बच्चे, विकलांग बच्चे, जोखिम वाले बच्चे तथा महिलाएँ, खतरे के लक्षणों वाली गर्भवती महिलाएँ, 0-6 वर्ष वाले बच्चे एवं किशोरी बालिकाओं को नजदीकी अस्पताल के लिए तुरंत रेफर किया जाता है।आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता
केवल उन्हीं महिलाओं और बच्चों को निर्धारित रेफरल स्लिप के माध्यम से
पीएच.सी./अस्पताल रेफर करती है जिन्हें तुरन्त चिकित्सकीय देखभाल की
आवश्यकता होती है। रेफर करने के लिए आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता को निर्धारित
रेफरल पर्ची भरनी होती है। रेफरल पर्ची के तीन भाग होते हैं जिनमें से एक
भाग आगँनबाड़ी केन्द्र में रखा जाता है दूसरा भाग माता-पिता को दिया
जाता है और तीसरा भाग प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सा अधिकारी को
दिया जाता है जो कि रोगी को फौलोअप कार्यवाही के लिए आने के बाद
आगँनबाड़ी कार्यकर्त्ता को वापिस किया जाता है।
6. प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा से सम्बन्धित कार्य
3-6 वर्ष के बच्चे का समुचित शारीरिक विकास, स्थायी बौद्धिक जिज्ञासा जागृत करना, विचारों में शुद्धता, स्पष्टता व तारतम्य के साथ अभिव्यक्त करने के कौशल के विकास, सृजनात्मक क्षमता का विकास, स्वस्थ आदतों का विकास, दूसरों के प्रति स्नेह, सहयोग एवं शिष्टाचार की भावना का विकास तथा शिक्षा के प्रति रूचि जागृत करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा आवश्यक है।
Tags:
आंगनबाड़ी