भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के उद्देश्य?

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्य

प्रथम एक अवकाश प्राप्त ऐलन आक्टेवियन हृयूम के मस्तिष्क में कांग्रेस की स्थापना का विचार आया, कि शिक्षित भारतीय कम से कम वर्ष में एक बार विचार विमर्श हेतु एक मंच पर संगठित हो। मार्च 1883 ई. में हृयूम ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकों को देष में बलिदान करने के लिये एक पत्र भेजा। उन्होने इग्लैण्ड जाकर लार्ड रिपन, जाॅन ब्राईट आदि से विचार विनिमय किया। अतः विचार विमर्श के बाद उसने यह निश्चित किया और कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर 1885 ई के दिन 11 बजे गोकुलदास तेजपाल संस्कृत काॅलेज के भवन में हुआ। जिसकी अध्यक्षता वोमेष चन्द्र बनर्जी द्वारा की गई। इसी अधिवेशन में भारत के अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति - दादाभाई नैरोजी, फिरोजषाह मेहता, दीनसा एदलशी वाचा, काषीनाथ तैलंग, नारायण गणेष चन्द्रावरकर, पी. आनन्दाचार्लू, वीराघ् ावाचार्य, सुब्रामन्यम आदि उपस्थित थे।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी एलन आक्टोवियन ह्यमू द्वारा सन् 1885 ई0 में की गयी थी। ए ओ ह्यूम का पूरा नाम एलन आक्टोवियन ह्यमू था।  1907 ई0 तक कांग्रेस का उद्देश्य भारतीयों को औपनिवेषिक स्वायत्तता दिलाने के लिए विदेशी शासन पर दबाव डालना मात्र था। 1907 से 1919 तक कांग्रेस दो विरोधी विचारधाराओं (उदारवादियों एवं उग्रवादियों) में विभक्त रही। 1920 ई0 से 1947 ई0 तक कांग्रेस महात्मा गाधीं के नेतृत्व में और उन्हीं की अनुगामी रही। 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस एक राजनीतिक दल में परिवर्तित हो गयी तथा केन्द्र और राज्यों के निर्वाचनों में भारी बहुमत प्राप्त कर सत्ता का उपयोग करने लगी। सन् 1967 ई0 के आम चुनाव में कांग्रेस की स्थिति काफी दुर्बल हो गयी। 

सन् 1969 ई0 में कांग्रेस दो भागों में विभक्त हो गयी। अब कांग्रेस का अर्थ इन्दिरा कांग्रेस से हो गया। 1971 एवं 1972 के निर्वाचनों में कांग्रेस को पुन: भारी समर्थन मिला।

कांग्रेस की प्रकृति और समर्थन को स्पष्ट करते हुए 15 सितम्बर 1931 में महात्मा गाधीं ने ‘लन्दन फेडरल स्ट्रक्चर कमेटी’ में भाषण के दौरान कहा था कि ‘‘कांग्रेस मूलतः भारत में सात लाख गांवों में बसे मूक, अधभूखे करोड़ों लोगों का प्रतिनिधित्व करती है चाहे वे तथाकथित ब्रिटिश भारत या भारतीय भारत के हो। कांग्रेस यह मानती है कि उन्हीं हितों की सुरक्षा की जानी चाहिए जो इन करोड़ों मूक लोगों के हितों का ध्यान रखते हैं।’’ उन ऐतिहासिक दिनों से लेकर आज तक कांग्रेस निरंतर मूक करोड़ो इंसानों का प्रतिनिधित्व करती रही है। जब भी एक तरफ करोड़ो मूक लोगों तथा राष्ट्रीय हितों और दूसरी ओर कुछ वर्गीय हितों में संघर्ष छिड़ा कांग्रेस अपनी अधिकांश जनता के साथ दृढ़ प्रतिज्ञ रही।’’

कांग्रेस पार्टी की सदस्यता के सम्बन्ध में दो स्तर है- सक्रिय सदस्यता और प्रारम्भिक सदस्यता। कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, कांग्रेस का सदस्य बन सकता है। सदस्य बनने के लिए दल के उद्देश्यों में लिखित विश्वास प्रकट करना पड़ता है। प्रारम्भिक और सक्रिय सदस्यों के चंदे तथा अधिकारों में अंतर है। संगठन की दृष्टि से ग्राम या मोहल्ला कांग्रेस समिति संगठन की आधारभूत इकाई है। ग्राम और मुहल्ला कांग्रेस समितियों के उपर तहसील समितियां होती है। इसके उपर जिला और प्रांतीय समितियां होती है। संगठन की दृष्टि से सम्पूर्ण देष 29 प्रदेशों में विभक्त है। प्रांतीय कांग्रेस समितियों के ऊपर कांग्रेस का राष्ट्रीय या अखिल भारतीय संगठन होता है, जो एक अध्यक्ष, एक कार्यकारिणी समिति, एक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति और कांग्रेस के खुले वार्षिक अधिवेशन से मिलकर बनता है। कांग्रेस ने पार्टी संविधान में एक नये संशोधन द्वारा अध्यक्ष की अवधि तीन वर्ष कर दी है।

कांग्रेस कार्यकारिणी समिति में अध्यक्ष के अतिरिक्त बीस अन्य सदस्य होते है। कार्यकारिणी समिति के दस सदस्य अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा निर्वाचित किये जाते है और दस सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा मनोनीत किये जाते है और कार्यकारिणी समिति में ही कांग्रेस की सर्वोच्च शक्ति निहित है। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में तीन प्रकार के सदस्य होते है- निर्वाचित, पदने और सम्बद्ध संस्थाओं के प्रतिनिधि। कांग्रेस के संसदीय कार्यों के नियंत्रण और समन्वय के लिए कांग्रेस कार्यकारिणी समिति एक संसदीय बोर्ड की स्थापना करती है जिसमें कांग्रेस के अध्यक्ष और पांच अन्य सदस्य होते हे। कांग्रेस संगठन के परिप्रेक्ष्य में ‘हाईकमान’ शब्द अत्यधिक प्रचलित हो गया है। यह हाईकमान यथार्थ में कांग्रेस दल की सर्वोच्च निर्णय और आदेश दने े वाली एक लघु संस्था के सम्बन्ध में किया जाता है। इसमें वे ही व्यक्ति सम्मिलित रहते है जो दल मे सर्वोच्च स्थान रखते है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्य

कांग्रेस पार्टी का उद्देश्य उसके संविधान में स्पष्ट करते हुए लिखा गया है कि ‘‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उद्देश्य भारत के लोगों की भलाई और उन्नति है तथा शांतिपूर्ण और संवैधानिक उपायों से भारत में समाजवादी राज्य कायम करना है जो कि संसदीय जनतंत्र पर आधारित हो जिसमें अवसर और राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों की समानता हो तथा जिसका लक्ष्य विश्व शांति और विश्व बन्धुत्व हो’’ कांग्रेस का उद्देश्य अधिकतम लोगों को अधिकतम सुविधाएं प्रदान करने का है। कांग्रेस उचित सीमा से अधिक निजी सम्पत्ति और आर्थिक शक्ति व धन-सम्पदा का केन्द्रीयकरण न होने देने के लिए कृत संकल्प है। उसका इरादा सम्पत्ति को समाप्त करने का नहीं अपितु यह सम्पित्त के प्रश्न पर आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के परिप्रेक्ष्य में नियंत्रण चाहती है। भूमिहीन और छोटे किसानों को ऋण सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। बटाई पर खेती की व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए। 

कृशि मे सुधार हेतु नई तकनीक लाने पर जोर दिया जाना चाहिए। छोटी सिंचाई योजनाओं का तेजी से विकास किया जाना चाहिए। कांग्रेस छोटे किसानों, निजी धंधा करने वालों तथा समाज के उपेक्षित वर्गों और क्षेत्रों को ऋण उपलब्ध करने के पक्ष में है। औद्योगिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की प्रमुखता होनी चाहिए क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की स्वामी आम जनता होती है। अतएव उसका संगठन और संचालन इस ढंग से होना चाहिए कि उसके लिए अधिक पूंजी लगाने के साधन मिले। 

कांग्रेस निजी क्षेत्र को भी अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग मानती है लेकिन इसकी कार्य प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो हमारे समाजवादी सिद्धांतों के अनुकूल हो। निजी उद्योगों का आधिक्य और आर्थिक शक्ति चन्द हाथों में ही न सिमट जाय इस बात को ध्यान में रखकर निजी उद्योगों को यथोचित प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। कांग्रेस पार्टी शहरी सम्पित्त की सीमा बाधना चाहती है। शहरी सम्पित्त की खरीद व बिक्री में समाज विरोधी तत्वों की धांधली पर अंकुष लगना चाहिए। बेरोजगारों को होने वाली परेशानियों के विषय में कांग्रेस को गम्भीर चिंता है। प्रभाव रोजगार कार्य के लिए न्यूनतम आर्थिक आधार को कांग्रेस ने प्रमुखता दी है। कांग्रेस पार्टी खाद्य के बारे में संगठित राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रारम्भ करने पर जोर देती है। यह कार्य ऐसा होना चाहिए जिसमें भौतिक समृद्धि पैदा हो और हमारी आर्थिक प्रगति को बढ़ाने का आंतरिक ढांचा तैयार हो सके। 

कांग्रेस पार्टी गांवों में अनाज गोदामों, हाट सुविधाओं, विद्यालयों तथा स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन सुविधाएं भी आवश्यक मानती है। कांग्रेस पार्टी ने भावी पीढ़ी के गुणों में सुधार को महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य मानकर षिषुओं के समुचित पोषण की व्यवस्था को स्वीकार किया है। कांग्रेस का विश्वास है कि किसी भी शिक्षा व्यवस्था का मूल लक्ष्य आत्म निर्भर और सुसंगठित व्यक्तित्व का विकास होना चाहिए। रहन-सहन के स्तर में सम्भव सुधार कर सकने वाली आर्थिक प्रगति के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली का पुनर्गठन आवश्यक है। “ौक्षणिक सुविधाओं को रोजगार के अवसरों के साथ सम्बन्धित किया जाना चाहिए।

कांग्रेस पार्टी सभी अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों की सुरक्षा करने को कटिबद्ध है। कांग्रेस चाहती है कि भाशायी अल्पसंख्यकों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर मातृभाशा में ही शिक्षा देने की समुचित सुविधाएं प्रदान की जाय। कांग्रेस अल्पसंख्यकों के साथ-साथ पिछड़ों, दलितों, बच्चों एवं महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की गारण्टी देती है। कांग्रेस पार्टी पक्षपात तथा सैनिक गुटों से दूर रहने की नीति का अनुसरण करती है। कांग्रेस चीन से सामान्य सम्बन्ध चाहता तथा पाकिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण पड़ोसी के रूप में रहने की इच्छुक है। 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी का सिद्धांत एवं कार्यक्रम धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद तथा लोकतंत्र की स्थापना करना है। कांग्रेस चाहती है कि समाजवादी समाज की स्थापना हो जिसमें उत्पादन के साधनों पर समाज का स्वामित्व हो और राष्ट्रीय सम्पित्त का विभाजन समानता पर आधारित हो, बैंकों के राष्ट्रीयकरण, राजाओं के प्रिवीपर्स की शहरी सम्पित्त का सीमाकरण, सीलिंग, सम्पित्त के संवैधानिक अधिकार मे संशोधन कांग्रेस की समाजवादी उपलब्धियां है। कांग्रेस ने भूमि सुधार, पंचायती राज तथा सहकारिता को समाजवादी सहकारी कामनवेल्थ की स्थापना के साधन माने जाते है।

कांग्रेस के बंगलौर अधिवेशन 1969 में प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष निज लिंगप्पा तथा संगठन के मुखियों में खुली टक्कर हुई। यह टक्कर सत्ता पर अधिकार के लिए था, जिसका अंत कांग्रेस विभाजन के रूप में सामने आया। कांग्रेस दो गुटों में बटी, एक थी सत्ता कांग्रेस तो दूसरी संगठन कांग्रेस। कांग्रेस के विघटन के बाद 1969 में ही सत्ता कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन मुम्बई मे जगजीवन राम के सभापतित्व में हुआ। सत्ता कांग्रेस के द्वारा सदस्यता और संगठन के सम्बन्ध में 1968 तक कांग्रेस की जो स्थिति थी उसे बनाये रखा गया। 

1971 और 1972 के चुनावों में अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और भारत के जनसाधारण के द्वारा कांग्रेस को बहुत अधिक समर्थन प्रदान किया गया और सत्ता कांग्रेस में इन्दिरा गांधी को निर्विवाद नेतृत्व की स्थिति प्राप्त हो गयी। ‘‘1971 और 1972 के चुनावों में कांग्रेस को जितनी शानदार विजय प्राप्त हुयी संगठन कांग्रेस और अन्य दलों को वैसी ही भीषण पराजय का सामना करना पड़ा, लेकिन 1972 के बाद से ही कांग्रेस की लोकप्रियता में कमी होना शुरू हो गया। 19 माह के आपातकाल में कांग्रेस ने अपनी शक्ति और लोकप्रियता का अधिकांश भाग खो दिया, और मार्च 1927 के लोक सभा चुनाव के परिणाम स्वरूप कांग्रेस शासन दल की स्थिति में नहीं रही। 

कांग्रेस ने 1955 के आबड़ी अधिवेशन में ‘समाजवादी ढांचे के समाज’ की स्थापना अपना लक्ष्य घोषित किया था और अब भी उसका लक्ष्य वही है।’’

1977 के लोकसभा के आम चुनाव में कांग्रेस को जनता द्वारा अस्वीकार किया गया। उसे मात्र 189 सीटें ही मिल पायी। उत्तर भारत में तो कांग्रेस को पूर्ण पराजय की स्थिति प्राप्त हुयी और इन चुनाव परिणामों के सामने आते ही कांग्रेस में आंतरिक द्वन्द्व पैदा हो गया। आरोप प्रत्यारोप की इस श्रृंखला में अप्रैल 1977 के प्रारम्भिक दिनों में ही श्री बरूआ के स्थान पर सरदार स्वर्ण सिंह केा सर्व सम्मति से अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया। मई 1977 ई0 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का अधिवेशन दिल्ली में आयोजित किया गया और इस अधिवेशन में श्रीमती गांधी के समर्थन से ब्रह्मानन्द रेड्डी अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए। गांधी यह सोचती थी कि रेड्डी अध्यक्ष के रूप मे उनके निर्देशों का पालन करेंगे लेकिन ऐसा नहीं होने पर गांधी कांग्रेस के पुन: विभाजन के लिए तैयार हो गयी। श्रीमती द्वारा अपने समर्थकों का दिल्ली में एक सम्मेलन जनवरी 1978 में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में एक अलग राजनीतिक दल की स्थापना की गयी जिसे आगे चलकर इन्दिरा कांग्रेस नाम दिया गया। 

1980 के लोकसभा चुनाव मे इन्दिरा कांग्रेस द्वारा 20 सूत्रीय कार्यक्रम दिया गया तथा ‘इन्दिरा लाओ देष बचाओ’ का नारा दिया गया। इस चुनाव मे इन्दिरा कांग्रेस को 353 सीटें मिली और इन्दिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनी। जुलाई 1981 में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कांग्रेस (आई0) को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस होने की मान्यता दे दी।

दिसम्बर 1984 में कांग्रेस ने कुल 517 स्थानों पर अपने प्रत्याशी उतार े और उसे 48.2 प्रतिषत मतो के साथ 415 सीटे प्राप्त हुयी। नवम्बर 1989 के लोकसभा चुनाव मे उसे 232 सीटे मिली। 12वीं लोकसभा 1996 में 141 तथा 13वीं लोकसभा 1999 में 113 सीटें मिली। 14वीं लोकसभा 2004 में कांग्रेस ने सोनिया गांधी के नेतृत्व मे 145 सीटें प्राप्त किया और संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन के रूप में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनायी। 15वीं लोक सभा 2009 में कांग्रेस को कुल 37.94 प्रतिषत मतों के साथ 206 सीटे मिली और यू0पी0ए0 द्वितीय के रूप में मनमोहन सिंह सत्ता में आये।

16वीं लोकसभा 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने अपना चुनाव वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस भ्रष्टाचार एवं महंगाई के मुद्दे पर कमजोर साबित हुयी और उसे मात्र 44 सीटें ही प्राप्त हो सकी।
 
सन्दर्भ -
  1. कांग्रेस पार्टी का संविधान, धारा -5 (क) (अ) (1). 
  2. द टाइम्स ऑफ इण्डिया, 8 फरवरी 1974, पृ0 18.

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