हरिवंश राय बच्चन उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवि रहे हैं। वे अपनी
काव्य-यात्रा के प्रारम्भिक दौर में मध्ययुगीन फ़ारसी कवि उमर खय्याम के जीवन-दर्शन से बहुत प्रभावित
रहे। उमर खय्याम की रुबाइयों से प्रेरित उनकी प्रसिद्ध कृति मधुशाला को कवि-मंच पर जबरदस्त
लोकप्रियता मिली। कवि की विलक्षण प्रतिभा इश्क, मोहब्बत, पीड़ा जैसी रूमानियत से भरी हुई थी। वे
परस्पर झगड़ने के बजाय प्यार को महव देते थे।
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं - मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत,
आकुल-अंतर, मिलनयामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए पुराने झरोखे तथा टूटी-फूटी कडि़याँ।
इनके चार आत्मकथा खण्ड हैं- क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर तथा दशद्वार से
सोपान तक। इनके द्वारा लिखित ‘प्रवासी की डायरी’ तथा अनुवाद ग्रंथ हैमलेट, जनगीता व मैकबेथ भी
लोकप्रिय रहे।
हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर सन् 1907 को प्रयाग के कटरा मोहल्ले में हुआ था। हरिवंश राय बच्चन के पिता का नाम प्रतापनारायण था। माता का नाम सुरसती था। इनसे ही हरिवंशराय को उर्दू व हिंदी की शिक्षा मिली थी। हरिवंश राय बच्चन ने सन् 1938 में एम.ए. और सन् 1954 में केंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। वे फौज में ‘लेफ्एिटनैंट’ के रैंक तक गए थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ये प्राध्यापक थे। मंत्रालय में इन्होंने विशेषज्ञ की नौकरी की। सत्यप्रकाश की ‘हिंदीविज्ञान’ पत्रिका में इनका पहला लेख छपा था।हरिवंश राय बच्चन की पहली कहानी ‘हृदय की आँखें’ प्रेमचंद की ‘हंस’ पत्रिका में छपी थी। सम्मान व पुरस्कार के बारे में वे कहते थे कि ‘‘जिसे जनता मानती हो, वही बड़ा साहित्यकार है।’’101 ई. स. 1933 में द्विवेदी मेले के दरबार में स्वर्ण पदक मिला। ई.सन् 1966 में सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार (चौंसठ) रूसी कविताओं पर मिला। ई. स. 1966 में राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा के सदस्य मनोनीत हुए। ई. स. 1968 साहित्य अकादमी पुरस्कार (दो चट्टानें) व दिल्ली प्रशासन साहित्य कला परिषद द्वारा सम्मानित हुए।
ई.सन् 1970 में अफ्रो-एशियन राइटर्स कान्फ्रेंस द्वारा 10,000 रुपए का लोटस पुरस्कार मिला। 26 जनवरी सन् 1976 को भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण पुरस्कार मिला। प्लूरिसी की बीमारी की वजह से उन्होंने’ सार्त्र के नोबेल’ पुरस्कार को ठुकराया था। हरिवंश राय बच्चन ने विदेश यात्राएँ कीं। इन्हें हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, उर्दू, रूसी, फ्रेंच व जर्मन आदि भाषाएँ आती थीं।
एम.ए. तक की शिक्षा इलाहाबाद से प्राप्त करके पी.एच.डी. हेतु लंदन चले गए। उससे पूर्व पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। दूसरी पत्नी तेजी से विवाह किया। लंदन से वापस आकर विदेश मंत्रालय में सेवारत हो गए। दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर महाविद्यालयों की हिंदी की सभाओं, गोष्ठियों एवं कवि सम्मेलनों में खूब जाते थे। जहां ‘मधुशाला’ सुनाए बिना छुट्टी नहीं पाते थे। सेवा मुक्त होकर पुत्र अमिताभ बच्चन के साथ मुंबई में रहने लगे वहीं देहावसान हो गया।
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचनाएँ
हरिवंश राय बच्चन की रचनाएँ इस प्रकार हैं-
काव्य संग्रह
- (ई.सन् 1932) ‘तेरा हार’ (दो भाग),
- (ई.सन् 1935) ‘मधुशाला’
- (ई.सन् 1936) ‘मधुबाला’,
- (ई.सन् 1937) ‘मधुकलश’,
- ‘निशा निमंत्रण’ (ई.सन् 1938)
- (ई.सन् 1939) ‘एकांत संगीत’
- (ई.सन् 1943) ‘आकुल अंतर’
- (ई.सन् 1945) ‘सतरंगिनी’
- (ई.सन् 1946) ‘हलाहल’
- (ई.सन् 1946) ‘बंगाल का काल’,
- (ई.सन् 1948) ‘खादी के फूल’
- (ई.सन् 1948) ‘सूत की माला’,
- (ई.सन् 1950) ‘मिलनयामिनी’ (3 भाग),
- (ई.सन् 1955) में ‘प्रणय-पत्रिका’,
- (ई.सन् 1957) ‘धार के इधर-उधर’,
- (ई.सन् 1958) ‘आरती और अंगारे’
- (ई.सन् 1958) ‘बुद्ध और नाच घर’,
- (ई.सन् 1961) ‘त्रिभंगिमा’,
- (ई.सन् 1962) ‘चार खेमे चौंसठ खूँटे’,
- (ई.सन् 1965) ‘दो चट्टानें’,
- (ई.सन् 1967) ‘बहुत दिन बीते’,
- (ई.सन् 1967 ‘कटती प्रतिमाओं की आवाज़’,
- (ई.सन् 1969) ‘उभरते प्रतिमानों के रूप’,
- (ई.सन् 1973) में ‘जाल समेटा’
बाल साहित्य
बाल साहित्य की कविताएँ इस प्रकार हैं-
- ई.सन् 1978 में ‘जन्म दिन की भेंट’ प्रकाशित हुई।
- ई.सन् 1978 में ‘नीली चिड़िया’ प्रकाशित हुई है।
- ई.सन् 1980 में ‘बंदर बाँट’ प्रकाशित हुई है।
गीत संग्रह
ई.सन् 1981 में ‘सो • हंस’ प्रकाशित हुआ है। ई. सन् 1985 में ‘नई से नई ‘,’पुरानी से पुरानी ‘,’बच्चन रचनावली’ में प्रकाशित की है। इसमें नई से नई, हंसपदी, पुरानी से पुरानी, अतीत की प्रतिध्वनियाँ व मरघट आदि रचनाएँ संकलित हैं। उन्होंने स्फुट रचनाएँ भी लिखी हैं। उन्होंने कुछ स्फुट शेर (दशद्वार से सोपान) भी लिखे हैं।
इनके काव्य के विषय राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, मानवतावादी, धर्म संबंधी, आध्यात्मिक, रहस्य, दार्शनिक, प्रेम, वेदनानुभूत, नियतिवादी, व्यंग्यात्मक प्रकृतिसंबंधी, जीवन संघर्ष का काव्य, आशावादी आदि हैं।
इनकी मधुबाला संग्रह से कुछ पंक्तियाँ हैं-
‘‘हम सब मधुशाला जाएँगे। आशा है,
किंतु हलाहल ही यदि होगा। पीने से कब घबराएँगे।।’’
इनकी काव्य भाषा जन भाषा है। इसमें उर्दू, अंग्रेज़ी शब्दों का भी प्रयोग मिलता हैं।
गद्य रचनाएँ
- ई. सन् 1946 में ‘बच्चन की कहानी’ कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ।
निबंध संग्रह
- कवियों में सौम्य संत,
- नए पुराने झरोखे व
- टूटी छूटी कड़ियाँ आदि
संस्मरण
‘पाँच देशों में दो मास एक सप्ताह।
वार्ता लेखन
24 रेडियो वार्ताएँ (चुहल, हास, चुटीलापन व कथन) ई.सन् 1983 में ‘बच्चन रचनावली’ नौ खंड में संकलित कीं। इन्होंने सियारामशरण गुप्त पर रेखाचित्र लिखा है। इन्होंने रिपोर्ताज’ बेल्जियम अंतर्राष्ट्रीय काव्य समारोह’ लिखा है।
पत्रलेखन
- बच्चन पत्रों में,
- बच्चन के पत्र,
- ‘बच्चन रचनावली’ में संकलित पत्र,
- पाती फिर आई,
- बच्चन के विशिष्ट पत्र आदि।
आत्मकथा
- सन् 1936 में ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ,
- ई.सन् 1952 में नीड़ का निर्माण फिर,
- प्रवास की डायरी,
- बसेरे से दूर आदि।
स्मृति यात्राएँ
- दो पड़ाव 1. पहला पड़ाव है ई. सन् 1956 से 1971 तक,
- दूसरा पड़ाव ई.सन् 1971 से 1983 तक का है।
डायरी लेखन
इन्होंने’ प्रवास की डायरी’सन् 1953 में लिखी।
समीक्षा लेखन
इनका ‘कवियों में सौम्य संत’ लेख है। 1. बच्चन रचनावली में खंड 9 में सात समीक्षात्मक लेख हैं। 1. दीवाने गालिब, 2. आज के उर्दू शायर और उनकी शायरी 3. चाँदनी चूनर, 4. काव्य
कला, 5. नेपाल और नेपाल-नरेश 6. अंकित होने दो आदि।
भूमिका लेखन
इनकी 9 भूमिकाएँ बच्चन रचनावली में 6 खंड में संकलित है। असंकलित लेख-इनके 9 लेख बच्चन रचनावली में सम्मिलित हैं। बाल नाटिका-इन्होंने ‘बंदर बाँट’लिखी है।
अनूदित साहित्य
- गद्यात्मक अनुवाद-
- शेक्सपियर का हिंदी अनुवाद,
- पद्यानुवाद,
- खैयाम की मधुशाला (ई. सन् 1935),
- जनगीता और नागरगीता,
- चौसठ रूसी कविताएँ,
- मरकत द्वीप का स्वर
- भाषा अपनी, भाव पराए आदि।
हरिवंश राय बच्चन की साहित्यिक विशेषताएं
इनके काव्य संग्रहों में उमर खै़याम की रुबाइयों का प्रभाव परिलक्षित होता है। किंतु मधुशाला में डूबा
हुआ कवि सामाजिक विषमता से अनजान नहीं है। इसमें एक ओर तो उद्दाम यौवन की लालसा को स्वीकारा है दूसरी ओर
उसी स्तर पर सामाजिक संवेदना को भी मुखर करने का सफल प्रयास किया है।
परिणामस्वरूप कवि ठोस यथार्थ को पूर्ण
रूपेण ग्रहण करने में सफल नहीं हो सका। जीवन की विषमताओं को सामान्य अनुभूति के स्तर पर समाधानित करने का यत्न
उसके द्वारा अवश्य किया गया।
भाषा की दृष्टि से बच्चन का महत्वपूर्ण योगदान है। उनके काव्य में सीधी और स्पष्ट अभिव्यक्ति
का स्वरूप मिलता है। कह सकते हैं सरलता एवं स्पष्टता का जो रूप भगवती चरण वर्मा की भाषा का है उसी का विकसित
रूप बच्चन की भाषा का है।
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