भारत में रेल का प्रारंभ कब से हुआ || भारत में रेल सेवा किसने और कब शुरू की

भारत में रेल का प्रारंभ एवं विकास

सर्वप्रथम 16वीं सदी में यूरोप में कोयला एवं अन्य खनिज पदार्थों को ढोने के लिए ‘ट्राम वे की शुरूआत की गई थी। विश्व में यह रेल परिवहन का पहला सबूत है। ट्राम या ट्राली कार जिसे रेल वाहन के नाम से जाना जाता है। वर्तमान समय में भी इस ट्राम वे को चलाया जाता है। ट्राम ट्राली को चलाने के लिए विशेष प्रकार की पटरियाँ तैयार की गई थी। जिसमें ऊपर से नीचे की ओर ढलान के रूप में पटरियाँ बनाई गई थी जिसे ढुलाकर ट्रामा ट्राली को आगे गतिमान की जाती थी। यह प्राकृतिक वैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित थी, अब तक इंजन की खोज नहीं की गई थी।
भारत में ट्राम रेलगाड़ी केवल कोलकाता में चलाई जाती है जिसे ऐतिहासिक रेल सेवा के नाम से जाना जाता है।

प्रथम सफल भाप रेल इंजन की खोज

1814 ईस्वीं में जार्ज स्टीफैंसन द्वारा प्रथम भाप रेल इंजन ब्लूचर की खोज की गई थी। इस इंजन का नाम ब्लूचर रखा गया था। इसे वाश्पयान के रूप में भी जाना जाता है।13 पूरी दुनिया को यह वाश्पयान सोंचने को मजबूर कर दिया, यह इंजन अत्यधिक शक्तिशाली था तथा अपन े से अधिक भारी वस्तुओं को खींचने में सशक्त था। इस खोज ने सस्ता परिवहन को जन्म दिया, बाद में औद्योगिक क्रांति ने कोयले और भाप के इंजन को बनाने में सफलता अर्जित की। यह एक उश्मीय इंजन है तथा जलवाश्प से यह शक्ति प्राप्त करता है। रैकाइन नामक चश्मा चक्र बनता है जिसके कारण से यह आगे की ओर गतिमान होता है।

विश्व की प्रथम सफल रेलगाड़ी

पहला रेल इंजन का निर्माण भाप इंजन के रूप में रिचर्ड ट्रेविथिक ने किया था तथा आर्थिक तंगी के कारण उनका प्रयास असफल रहा। 27 सितम्बर, 1825 को परीक्षण के तौर पर प्रथम रेलगाड़ी स्टॉकटोन और डार्लिगटन तक चलाई गई थी जिसमें चालक के रूप में जार्ज स्टीफेसं न ही थे बाद में उन्होंने पहला रेल लोकोमोशान इंजन भी बनाया था। बाद में जार्ज और राबर्ट स्टीवेंसन द्वारा सफल रेल इजं न बनाकर 1829 ईस्वी में लोवरपुल से मैनचेस्टर तक रेलगाड़ी चलाया गया था।

1833 ईस्वी में मोहावक तथा हडसन के मध्य प्रथम रेलगाड़ी:- शनै: शनै: रेलगाड़ियों को विकसित करने में रेल वैज्ञानिकों ने सफलता अर्जित की जिसमें 1833 ईस्वीं में मोहावक तथा हडसन के मध्य रेलगाड़ी चलाई गई थी। इस संबंध में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होता है।

सारांश में हम यह कह सकते हैं कि ब्रिटेन में रेल 1825 में, 1829 में फ्रान्स में तथा अमेरिका में 1830 में रेल प्रारंभ की गई। भारत में रेलमार्ग बिछाने का प्रथम सुझाव सन् 1831 में मद्रास में लिया गया। इस रेल के डिब्बों को घांडे ़े से खींचा जाना था। भारत में भाप इंजन से चलने वाली रेल का पहला प्रस्ताव 1834 में इंग्लैण्ड में रखा गया था। ब्रिटिश शासकों ने भारत में रेल चलाने का विचार रखते हुए 1831-32 मं े सर्वप्रथम ईस्ट इंडिया कंपनी के समक्ष मद्रास में रेल व नहरें बनाने का प्रस्ताव रखा गया था।

भारत में रेल का प्रारंभ एवं विकास

अंग्रेजों ने भारत में रेल सेवा की शुरुआत 16 अप्रैल 1853 को अपनी प्रशासनिक सुविधा के लिए की थी, लेकिन 160 वर्ष बीत जाने के बाद करीब 16 लाख कर्मचारियों प्रतिदिन चलने वाली 11 हजार ट्रेनों 7 हजार से अधिक स्टेशनों एवं करीब 65 हजार किलोमीटर रेलमार्ग के साथ भारतीय रेल आज देश की जीवनरेखा बन गयी है।

रेलवे के दस्तावेज के अनुसार 16 अप्रैल 1853 को मुम्बई और ठाणें के बीच जब पहली रेल चली, उस दिन सार्वजनिक अवकाश था। पूर्वाहन से ही लोग बोरीबंदी की ओर बढ़ रहे थे, जहाँ गर्वनर के निजी बैंड से संगीत की मधुर धुन माहौल को खुशनुमा बना रही थी। साढे़ तीन बजे से कुछ पहले ही 400 विशिष्ट लोग ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेल्वे के 14 डिब्बों वाली गाड़ी में चढ़े, चमकदार डिब्बों के आगे एक छोटा फाकलैंड नाम का भाप इंजन लगा हुआ था।

करीब साढे चार बजे फाकलैंड के ड्राइवर ने इंजन चालू किया, फायरमैन उत्साह से कोयला झोंक रहा था। इंजन ने मानो गहरी सांस ली और इसके बाद भाप बाहर निकलना शुरु हुआ। सीटी बजने के साथ गाड़ी को आगे बढ़ने का संकेत मिला और उमस भरी गर्मी में उपस्थित लोग आनंद विभोर हो उठे। इसके बाद फिर से एक और सिटी बजी और छुक-छुक करते हुए यह पहली रेल नजाकत और नफासत के साथ आगे बढ़ी। यह ऐतिहासिक पल था जब भारत में पहली ट्रेन ने 34 किलोमीटर का सफर किया जो मुम्बई से ठाणे तक था। रेल का इतिहास काफी रोमांच से भरा हुआ है जो 17वीं शताब्दी में शुरु होता है। पहली बार ट्रेन की परिकल्पना 1604 में इंग्लैण्ड के वोलाटॅन में हुई थी, जब लकड़ी से बनायी गई पटरियों पर काठ के डब्बों की शक्ल में तैयार किये गए ट्रेन को घोडं ़ों ने खींचा था। इसके दो शताब्दी बाद फरवरी 1824 में पेशे से इंजीनियर रिचर्ड ट्रवेथिक को पहली बार भाप के इंजन को चलाने में सफलता मिली।

भारत में रेल की शुरुआत की कहानी अमेरिका के कपास की फसल की विफलता से जुड़ी हुई है जहां वर्ष 1846 में कपास की फसल को काफी नुकसान पहुंचा था। इस कारण से ब्रिटेन के मैनचेस्टर और ग्लासगो के कपड़ा कारोबारियो  को वैकल्पिक स्थान की तलाश करने पर विवश होना पड़ा था, ऐसे में भारत इनके लिए मुफीद स्थान था। अंग्रेजो को प्रशासनिक “ष्टि और सेना के परिचालन के लिए भी रेल्वे का विकास करना तर्क संगत लग रहा था। ऐसे में 1843 में लार्ड डलहौजी ने भारत में रेल चलाने की संभावना तलाश करने का कार्य शुरु किया। डलहौजी ने बम्बई, कोलकाता, मद्रास को रेल सम्पर्क से जोड़ने का प्रस्ताव दिया था, हालांकि इस पर अमल नहीं हो सका, इस उद्देश्य के लिए साल 1849 में ग्रेट इंडियन पेंनिनसुलर कंपनी द्वारा कानून पारित किया और भारत में रेलवे की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ।’’

1836 ईस्वीं में केप्टन ए.पी.कॉटन ने रेलों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मद्रास से बंबई को मिलाने के लिए 862 मील लंबी रेल योजना प्रस्तुत की। इस योजना को मंजूरी मिली लेकिन रेल चलाने का कार्य बहुत बाद में किया गया। 1835 में जर्मनी में प्रथम रेलगाड़ी न्यूरेनबर्ग तथा पर्थ के बीच चली और 1839 में हालैण्ड व इटली में रेल प्रारंभ हुई। 

भारतीय परिक्षेत्र में सफल प्रयास करने वाले सर रोलैण्ड मैकडानल्ड स्टीफेन्सन ने सन् 1841 में कोलकाता से उत्तरी-पश्चिमी सीमा तक रेल निर्माण करने का प्रस्ताव रखा और 1844 में उन्होंने े ईस्ट इंडिय रेलवे कंपनी को जन्म दिया। 1848 में जार्ज क्लार्क ने बबंई प्रान्त में रेल बम्बई से थाणें तक के लिए रेल बनाने का विचार किया। बाद में इसमें संशोधन किया और 15 जुलाई, 1844 को ग्रेट इंण्डियन पेनिन्सुला रेल्वे कंपनी का निर्माण किया। कई वर्शों तक दोनों रेलों की योजनाओं पर विचार विमशर होता रहा और अंत में 17 अगस्त, 1847 का े ईस्ट इंि डया कंपनी तथा ग्रेट पेिनन्सुला रेल्वे तथा ईस्ट इंडिया रेल्वे कंपनी के बीच एक समझौता हुआ तथा इसी तिथि से भारतीय रेलों का इतिहास प्रारंभ होता है। 

1844-45 में ईस्ट इंडिया कंपनी तथा ग्रेट इंडिया पेनिन्सुला रेल्वे कंपनी नामक दो निजी कंपनियों ने कोलकाता से उत्तर-पूर्व और बम्बई से पूर्व व उत्तर तक रेल मार्ग बनाने का प्रस्ताव रखा गया यह कंपनियां निजी थी तथा पूंजी के विनियोग पर ब्याज की गारन्टी चाहती थी। लेकिन सरकार को लगा कि रेल मार्गों के निर्माण हेतु जमीन को मुफ्त देना ही पर्याप्त होगा, क्योंकि इसमें पूजीं प्राप्त करने में सफल नहीं हो पायेंगे। सरकार रेलों का अधिक से अधिक विकास करना चाहती थी, इसलिए सरकार को ब्याज की गारन्टी देने हेतु तैयार होना पड़ा। परिणामस्वरूप प्रथम रेल्वे लाईन 33 कि.मी. लम्बी बम्बई से थाणे के मध्य 16 अप्रैल, 1853 को बनानी प्रारंभ की गई। 

इस काल में रेलवे कंपनियां को रेल निर्माण करने एवं ब्रिटिश पूजीं-पतियों की पूंजी एकत्रित करने में बहुत अधिक प्रोत्साहन मिला। कंपनियों को पूंजी प्राप्त करने में बहुत सुविधा मिली क्योंकि ब्याज की गारन्टी मिल चुकी थी इसलिए कंपनियों ने अनियंत्रित रूप से पूंजी की प्राप्ति करना शुरू कर दिया। सरकार ने मुफ्त जमीन देने का वादा पूंजी अर्जित करने के उद्देशय से किया था परन्तु सरकार पजूं ी प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाई। 1845 में कोलकाता एवं रानीगंज के मध्य 192 कि.मी. लम्बा रेल मार्ग बनाने का कार्य किया गया। इस प्रकार देश में रेलों का जाल बिछाना शुरू हो गया। ब्याज गारन्टी होने के कारण रेलों के जाल तीव्र गति से बिछाना शुरू हो गया। 

भारत के विभिन्न भागो में रेल निर्माण से भारत तथा ब्रिटिश शासन को व्यापारिक लाभ होने का अनुमान लगाया गया, इसलिए वायसराय लार्ड डलहौजी ने ईस्ट इंडिया कंपनी को रेल्वे का विकास करने के लिए अधिक जोर दिया, जिससे ब्रिटिश माल को देश के भीतरी भागो ं तक आसानी से पहुंचाया जा सके। भारत के विभिन्न भागो  में रेल निर्माण करने के लिए लार्ड डलहौजी द्वारा दिए गये। इन सुझावों को ईस्ट इंि डया कंपनी द्वारा स्वीकार कर लिया गया और इसके लिए 08 कंपनियों से समझौता किया गया, जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी, साउथ इंडियन रेलवे, सिंधिया रेल्वे, जी.आईपी. रेल्वे, मद्रास रेल्वे, ईस्ट बंगाल रेल्वे, बम्बई, बड़ौदा एण्ड सेन्ट्रल इंडिया रेलवे तथा कोलकाता और साउथ ईस्टर्न रेल्वे सम्मिलित था।

1843 में बम्बई को मध्य भारत और दक्षिण से जोड़ने वाली एशिया की पहली रेल लाईन के निर्माण की योजना पर लॉर्ड डलहौजी के शासन काल में ही भारतीय रेलों का सर्वाधिक विकास हुआ और साथ ही साथ 1844 में सिविल इंजीनियर जी. टी. क्लार्क ने सबसे पहले बुम्बई में कुरला थाणे रेल मार्ग की योजना बनाई थी, जिसे एक सरकारी समिति को सौंपा गया। इसके फलस्वरूप बम्बई ग्रेट ईस्टर्न रेल्वे की स्थापना हुई।’’

बम्बई ग्रेट ईस्टर्न रेलवे की स्थापना के पश्चात 1845 में 19 अप्रैल को बुम्बई के टाउन हॉल में एक बैठक हुई, जिसमें थाणे तक के रेलमार्ग के सर्वेक्षण पर विचार हुआ तथा बम्बई ग्रेट ईस्टर्न रेल्वे का नाम बदलकर इंग्लैण्ड रेलवे कर दिया गया। बाद में द ग्रेट इंडियन पेनिन्सुला रेल्वे के गठन होने पर इंग्लैण्ड रेल्वे एसोसिएशन का उसी में विलय कर दिया गया। 1850 में बुम्बई थाणे के बीच रेल्वे लाईन के निर्माण हेतु 31 अक्टूबर 1950 को ग्रेट इंडिया पेनिन्सुला रेल्वे कंपनी तथा कोलकता मिर्जापुर रेल लाईन के निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया। साथ ही गेज के बारे में नीतियाँ बनाई गई। 1851 में भारतीय रेल में सर्वप्रथम थांपसन इंजन स्टैण्डर्ड गेज का प्रथम इंजन जो 485 फीट का था, जिसे 22 दिसम्बर 1851 को परीक्षण के तौर पर रूड़की के पास चलाया गया।

1853 में भारत के गर्वनर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने रेल मार्ग की नीति बनाई। यह एशिया एवं भारत की प्रथम रेल सेवा 15 अप्रैल 1853 को बोरीबंदर से थाणे के मध्य 21 मील यानी 34 कि.मी. चला कर ग्रेट इंडियन पेनिन्सुला रेल्वे की शुरूआत हुई। इसके लिए भाप के तीन इंजन इंग्लैण्ड से मंगवाये गये थे, जिनका नाम सुल्तान, सिंधु तथा साहिब था।

भारतीय रेलवे में सर्वप्रथम रेल टिकिट का आरक्षण 17 अप्रैल 1853 को बुम्बई थाणे के बीच चलने वाली रेल में बैरोनेट सर जमसेत भाई ने करवाया था। भारतीय रेल्वे का समय सारणी सर्वप्रथम मध्य रेल्वे द्वारा प्रकाशित की गई थी। पूर्वी भारत में सर्वप्रथम रेल सेवा ईस्ट इंडिया रेल्वे द्वारा 15 अगस्त 1854 को हावड़ा से हुगली के बीच 24 मील की दूरी तक फेयरी क्वीन नामक प्रसिद्ध एवं वर्तमान में परिचालित विश्व के सबसे पुराने भाप इजं न से चलाई गई थी, जिसमें 8 हजार से अधिक यात्री सवार थे तथा इसी तरह निम्न स्थानों में भी रेल्वे की शुरूआत की गई।

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