भारत में शिक्षा के स्तर और प्रकार

शिक्षा शब्द संस्कृत के शिक्ष् धातु में अ प्रत्यय लगने से बना हैं। जिसका अर्थ होता हैं- सीखना या सिखाना। जो भी कार्य व्यक्ति को नवीन अनुभव एवं नवीन ज्ञान प्रदान करता हैं वह शिक्षा हैं। 

शिक्षा को केवल विद्यालय में ही प्राप्त नहीं किया जा सकता अपितु शिक्षा हर एक वो इंसान जो हमें नवीन ज्ञान से परिचित कराता हैं वह भी शिक्षा के क्षेत्र के अंतर्गत आता हैं। वर्तमान समाज की मांग गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हैं।

भारत में शिक्षा के प्रकार 

1. औपचारिक शिक्षा - औपचारिक शिक्षा सुनियोजित ढंग से चलने वाली प्रक्रिया है। इसके अपने पूर्व निश्चित उद्देश्य होते हैं व शिक्षा की पूर्व निर्धारित योजना होती है। इनका शिक्षा देने का स्थान, समय, शिक्षक, शिक्षार्थी, विषयवस्तु, समय सारिणी, कार्यक्रम इत्यादि सभी पूर्व निर्धारित होते हैं। यहाँ दी जाने वाली शिक्षा सचेत एवं उद्देश्यपूर्ण होती है। यहाँ निश्चित अनुशासन संहिता का पालन किया जाता है। इस शिक्षा का प्रमुख स्थान स्कूल, धार्मिक संस्थाएँ इत्यादि हैं।

2. अनौपचारिक शिक्षा - अनौपचारिक शिक्षा वह शिक्षा है जो अप्रत्यक्ष व अचेतन रुप से प्रदान की जाती है। शिक्षा में, औपचारिकता, नियमों, उद्देश्य, विधिवत कार्यक्रम एवं पूर्वायोजन का अभाव होता है। यह शिक्षा बालक को अनायास और आकस्मिक रुप में प्राप्त होती है, यह शिक्षा जीवन भर चलती रहती है और बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। 

इस शिक्षा को बालक घर में, घर से बाहर, खेल के मैदान में, अपने मित्रों आदि से हर समय किसी न किसी रुप में प्राप्त करता है। इस शिक्षा के स्रोत परिवार, समाज, युवक समूह इत्यादि हैं।

3. निरौपचारिक शिक्षा - यह शिक्षा औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा का मिश्रित रुप है। यह न तो पूरी तरह से औपचारिक शिक्षा के समान बन्धनयुक्त व व्यवस्थित है और न ही अनौपचारिक शिक्षा के समान मुक्त व स्वाभाविक है। निरौपचारिक शिक्षा में बन्धनों के साथ स्वतन्त्रता भी होती है। वास्तव में यह शिक्षा उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी है जिन्होंने किसी कारणवश शिक्षा छोड़ दी है। 

इस शिक्षा में आयु, स्थान, शिक्षण विधि आदि के क्षेत्र में शिक्षार्थी पर कोर्इ नियन्त्रण नही होता है किन्तु पाठ्यक्रम, परीक्षा, समयावधि आदि नियन्त्रित होते हैं। 

इस शिक्षा के स्रोत गृह शिक्षा, व्यक्तिगत निर्देशन, दूरस्थ शिक्षा इत्यादि हैं।

भारत में शिक्षा के स्तर

भारत में सबसे ज्यादा औपचारिक शिक्षा प्रचलित है एवं अधिकांश शिक्षार्थी इसी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करते है। वर्तमान में भारत में औपचारिक शिक्षा के तीन स्तर हैं- 
  1. प्राथमिक शिक्षा 
  2. माध्यमिक शिक्षा
  3. उच्च शिक्षा
1. प्राथमिक शिक्षा - औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के प्रथम स्तर को प्राथमिक शिक्षा कहा जाता है प्राथमिक शब्द का सामान्य अर्थ है प्रारम्भिक। इस प्रकार प्राथमिक शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है प्रारम्भिक शिक्षा या मुख्य शिक्षा। प्रारम्भिक शिक्षा इसलिए कि यह बच्चों को प्रारम्भ में दी जाती है और मुख्य शिक्षा इसलिए कि यह आगे की शिक्षा की नींव होती है। यदि नींव मजबूत होती है तो बच्चों की आगे की शिक्षा सुचारु रूप से चलती है। 

प्राथमिक शिक्षा नर्सरी से लेकर कक्षा 8 तक साधारणतया: 14 वर्ष तक की आयु होने तक चलती है। प्राथमिक शिक्षा को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
  1. पूर्व प्राथमिक शिक्षा
  2. निम्न प्राथमिक शिक्षा
  3. उच्च प्राथमिक शिक्षा
2. माध्यमिक शिक्षा - औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के दूसरे स्तर को माध्यमिक शिक्षा कहा जाता है। माध्यमिक शब्द का अर्थ है मध्य की, माध्यमिक शिक्षा प्राथमिक और उच्च शिक्षा के मध्य की शिक्षा है। माध्यमिक शिक्षा प्राथमिक और उच्च शिक्षा के बीच की कड़ी होती है। माध्यमिक शिक्षा ऐसी शिक्षा है जो कि किशोर बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के बाद दिषा प्रदान करती है एवं माध्यमिक शिक्षा ही उच्च शिक्षा का आधार है। 

भारत में माध्यमिक शिक्षा कक्षा 9 से 12 तक जो कि 13-14 वर्ष से प्रारम्भ होकर 16-18 वर्ष की आयु होने तक चलती है।

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