भिलाला जनजाति अपने आपको स्वतंत्र जनजातीय समूह के रूप में स्वीकार करती है। अनेक विद्वान एवं अध्येता भिलाला समूह को भील जनजाति का उपसमूह मानते हैं। रसेल एवं हीरालाल 1916 के अनुसार, भील एवं राजपूतों के मिश्रण से भिलाला जनजाति का उदय हुआ है। उत्पत्ति एवं इतिहास भिलाला जनजाति के उद्भव के पीछे कोई कथानक या किवदन्ती नहीं है। सभी भिलाला स्वयं को राजपूत मानते हैं। मूल रूप से भिलाला जनजाति समूह का वास्तविक नाम भीलवाला है। इस नाम का प्रयोग अर्थात् भीलवाला नाम का प्रयोग राजपूत जाति के छोटे कृषकों के लिए और उन राजपूतों के लिए भी होता है जो भील जाति
की कन्या से विवाह करते हैं। डाँ. श्रीनाथ शर्मा, (2015:188-189) का कहना है कि भिलाला जनजाति के सदस्यों का कोई प्राचीन इतिहास नहीं है।
भिलाला जनजाति की उत्पत्ति से संबंधित कई सिद्धांत प्रचलित है, जिससे प्रमुख सिद्धांतों का निम्नवत वर्णन किया जा रहा है- R.K. Sinha (1995:3) का कहना है कि भिलाला शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है भील एवं आला अर्थात् भिलाला। भील शब्द का मतलब भील जनजाति से है और आला शब्द का मतलब अच्छे गुण से है। इस प्रकार भिलाला शब्द का मतलब राजपूतों के आदतों, रिवाजों, संस्कारों और प्रथाओं को ग्रहण करने के पश्चात अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले अच्छे गुणों वाले भीलों से हैं। जबकि S.N.Pandey, (2000:65) के अनुसार, भिलाला जनजाति में राजपूतों के रक्त का मिश्रण है इस जनजाति का नाम भीलारा (भिलाला) शब्द से लिया गया है।
R.K. Sinha (1995:3) ने अपनी पुस्तक ‘द भिलाला ऑफ मालवा’ में लिखा है कि, भिलाला जनजाति की उत्पत्ति में मालवा का इतिहास प्रमुख है जब मोहम्मद गौरी ने सन् 1191-1192 में मालवा पर आक्रमण किया तो राजपूतों के साथ युद्ध हुआ जिसमें गौरी के सैनिकों ने राजपुतों की महिलाओं एवं बच्चों को बेईज्जत किया और मार दिया, ऐसी स्थिति में राजपूत अपना घर छोड़कर, मालवा के जंगलों में भाग गये। जब राजपुरत मालवा के जंगलों में पूरी तरह थके एवं भूख प्यास से व्याकुल हो रहे थे, तब भागे हुए राजपूतों को कुछ झोपड़िया दिखाई दी वहां वे बिना उनकी जाति पूछे पानी मांगकर पी लिया, पानी पीने के पश्चात उन्होंने उनकी जाति के बारे में पूछा तब उन लोगों ने अपने आप को भील बताया, भील नाम सुनकर राजपूतों ने अपनी जाति राजपूत बताया परन्तु वे झोपड़ी में रहने वाले भील के हाथों का पानी पीने के कारण अपनी जाति की शुद्धता खो चुके थे चूँकि अब वे अपनी जाति की शुद्धता खो चुके थे और अपनी पत्नियों एवं बच्चों को युद्ध में खो चुके थे इसलिए उन्होंने भील जाति की महिलाओं से विवाह करने के लिए प्रस्ताव रखा एवं भीलों ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और प्रकार भील महिलाओं एवं राजपूत पुरुषों के विवाह के पश्चात उत्पन्न होने वाली संताने भिलाला कहलाई। इस बात को सन् 1933 में सी.वी. वेंकटाचार (C.V.Venkatachar) ने समर्थन किया। इसी तरह सन् 1303 ई. में अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा राजपूताना राज्य पर अधिकार करने के पश्चात अधिकांश राजपूत विध्यांचल पर्वत की तरफ भाग गये और वहां की भील जाति की महिलाओं के साथ विवाह किया और भिलाला जनजाति को जन्म दिया। विंध्यांचल पर्वतों के क्षेत्रों में आज भी इनकी बेहतर स्थिति देखने को मिलती है।
R.K. Sinha (1995:4) के अनुसार, प्राचीनकाल में नियम था कि राजा के सिंहासन का उत्राधिकारी ज्येश्ठपुत्र (बड़ा पुत्र) होता था, छोटे राजकुमारों को केवल कुछ जागीर या कुछ गाँव का समूह उनके जीवनयापन के लिए दे दिया जाता था इसके अलावा शासन करने वाले भाई को हमेषा छोटे भाईयों के विद्रोह का भय बना रहता था जिसकी वजह से हमेशा छोटे भाईयों को अपने जीवन और सुरक्षा का भय रहता थ इस प्रकार असुरक्षा की इस भावना एवं भय से सषंकित छोटे राजकुमार अपने घरों को छोड़ दिये एवं कुछ शक्तिशाली भीलों की सहायता से अपनी एक सेना बनाये जो कि युद्ध कला में माहिर थे। उसके पश्चात ये भागे हुए राजकुमार (राजपूत) सेना की सहायता से आसपास के राज्य में लुटमार करते थे। इस प्रकार उनका इन सारी क्रियाओं से लोगों के बीच शक्ति, सम्मान और भय बढ़ता गया, केवल उनका ही नही बल्कि भीलों के मुखियों का भी सम्मान और भय कायम होने लगा और इस प्रकार वे राजपूत के ओर करीब आ गये जो आगे चलकर भिलाला कहलाये।
इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि भिलाला जनजाति सामाजिक एवं ऐतिहासिक रूप से राजपूत शासकों से जुड़े हुए है जिससे भिलाला जनजाति के लोगों की सामाजिक स्थिति राजपूतों की सामाजिक स्थिति के समान है। भिलाला जनजाति के लोगों का मानना है कि मध्यभारत की पहाड़ियों में रहने वाली भील महिलाओं का राजपूत पुरुषों के साथ विवाह होने के पश्चात उनकी उत्पत्ति हुई तथा भिलाला जनजाति के लोगों के परिवारों में यह देखने को मिलता है। रसेल एवं हीरालाल (1916) के अनुसार, भिलाला जनजाति के सदस्यों की जनसंख्या लगभग सन् 1911 में लगभग 1,50,000 थी।
भिलाला जनजाति के परिवार पितृसत्तात्मक होते हैं जिस कारण इनके परिवार का मुखिया बुजुर्ग व्यक्ति होता है। S.k Singh (1994:131.132) का कहना है कि इस जनजाति में पुरुषों की प्रधानता देखने को मिलती है किन्तु महिलाओं को भी ऐसे कई सारे अधिकार दिये जाते हैं जो कि सभ्य समाज में कभी नहीं दी जाती है, इस जनजाति में सती प्रथा नहीं पाई जाती है। इस जनजाति में तलाक सरलता से दिया जाता है किन्तु ऐसा किसी विशेष परिस्थिति में ही होता है। इस जनजाति में महिलाओं को मूल्यवान माना जाता है क्योंकि इनमें वधु मूल्य देना पड़ता है। इस जनजाति में महिलाएं पुरुष के बराबर काम करती है चाहे वह सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक ही क्यों न हो। परिवार में बच्चों के भरण-पोषण एवं श्रम वाले कार्य पुरुष करता है जबकि बच्चों का पालन-पोषण घर का सम्पूर्ण काम एवं खेत का काम महिलाओं का होता है।
K.S.Singh (1994:132) के अनुसार, सम्पत्ति का हस्तान्तरण मृत व्यक्ति से उसके पुत्रों में होता है महिलाएं घर एवं कृशि कार्य करती है साथ ही जंगल से जलाने की लकड़िया एकत्रित करती है बच्चे के जन्म के सातवें दिन माता अपने बच्चे का नामकरण करती है। भिलाला जनजाति की शारीरिक बनावट भिलाला जनजाति के लोगों का कद छोटा देखने को मिलता है, पुरूषों का कद महिलाओं से कुछ अधिक पाया जाता है। पुरूष सामान्यत: 5 फीट 7 इंच लम्बे देखने को मिलते हैं। इनकी शारीरिक बनावट सुसंगठित होती है। ये दिखने में सुन्दर होते है एवं इनकी त्वचा भीलों की अपेक्षा गोरी होती है। बाल गहरे काले एवं भूरे मूलायम होते है। इस जनजाति के सदस्यों की नाक सामान्य पायी जाती हैं। शरीर व दाढ़ी पर बाल कम एवं कुछ लोगों में अधिक देखने को मिलते हैं। डाँ. श्रीनाथ शर्मा, (2016:140) ने कहा है कि भिलाला जनजाति के सदस्य सामान्यत: शरीर रचना में भील जनजाति के सदस्यों के समान है। भिलाला जनजाति के सदस्य कद में भीलों से कुछ लम्बे होते हैं तथा इनका रंग भीलों की तुलना में कम सांवला और कद कांसे की रंगत वाला होता है।
भिलाला जनजाति की उत्पत्ति से संबंधित कई सिद्धांत प्रचलित है, जिससे प्रमुख सिद्धांतों का निम्नवत वर्णन किया जा रहा है- R.K. Sinha (1995:3) का कहना है कि भिलाला शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है भील एवं आला अर्थात् भिलाला। भील शब्द का मतलब भील जनजाति से है और आला शब्द का मतलब अच्छे गुण से है। इस प्रकार भिलाला शब्द का मतलब राजपूतों के आदतों, रिवाजों, संस्कारों और प्रथाओं को ग्रहण करने के पश्चात अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले अच्छे गुणों वाले भीलों से हैं। जबकि S.N.Pandey, (2000:65) के अनुसार, भिलाला जनजाति में राजपूतों के रक्त का मिश्रण है इस जनजाति का नाम भीलारा (भिलाला) शब्द से लिया गया है।
R.K. Sinha (1995:3) ने अपनी पुस्तक ‘द भिलाला ऑफ मालवा’ में लिखा है कि, भिलाला जनजाति की उत्पत्ति में मालवा का इतिहास प्रमुख है जब मोहम्मद गौरी ने सन् 1191-1192 में मालवा पर आक्रमण किया तो राजपूतों के साथ युद्ध हुआ जिसमें गौरी के सैनिकों ने राजपुतों की महिलाओं एवं बच्चों को बेईज्जत किया और मार दिया, ऐसी स्थिति में राजपूत अपना घर छोड़कर, मालवा के जंगलों में भाग गये। जब राजपुरत मालवा के जंगलों में पूरी तरह थके एवं भूख प्यास से व्याकुल हो रहे थे, तब भागे हुए राजपूतों को कुछ झोपड़िया दिखाई दी वहां वे बिना उनकी जाति पूछे पानी मांगकर पी लिया, पानी पीने के पश्चात उन्होंने उनकी जाति के बारे में पूछा तब उन लोगों ने अपने आप को भील बताया, भील नाम सुनकर राजपूतों ने अपनी जाति राजपूत बताया परन्तु वे झोपड़ी में रहने वाले भील के हाथों का पानी पीने के कारण अपनी जाति की शुद्धता खो चुके थे चूँकि अब वे अपनी जाति की शुद्धता खो चुके थे और अपनी पत्नियों एवं बच्चों को युद्ध में खो चुके थे इसलिए उन्होंने भील जाति की महिलाओं से विवाह करने के लिए प्रस्ताव रखा एवं भीलों ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और प्रकार भील महिलाओं एवं राजपूत पुरुषों के विवाह के पश्चात उत्पन्न होने वाली संताने भिलाला कहलाई। इस बात को सन् 1933 में सी.वी. वेंकटाचार (C.V.Venkatachar) ने समर्थन किया। इसी तरह सन् 1303 ई. में अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा राजपूताना राज्य पर अधिकार करने के पश्चात अधिकांश राजपूत विध्यांचल पर्वत की तरफ भाग गये और वहां की भील जाति की महिलाओं के साथ विवाह किया और भिलाला जनजाति को जन्म दिया। विंध्यांचल पर्वतों के क्षेत्रों में आज भी इनकी बेहतर स्थिति देखने को मिलती है।
R.K. Sinha (1995:4) के अनुसार, प्राचीनकाल में नियम था कि राजा के सिंहासन का उत्राधिकारी ज्येश्ठपुत्र (बड़ा पुत्र) होता था, छोटे राजकुमारों को केवल कुछ जागीर या कुछ गाँव का समूह उनके जीवनयापन के लिए दे दिया जाता था इसके अलावा शासन करने वाले भाई को हमेषा छोटे भाईयों के विद्रोह का भय बना रहता था जिसकी वजह से हमेशा छोटे भाईयों को अपने जीवन और सुरक्षा का भय रहता थ इस प्रकार असुरक्षा की इस भावना एवं भय से सषंकित छोटे राजकुमार अपने घरों को छोड़ दिये एवं कुछ शक्तिशाली भीलों की सहायता से अपनी एक सेना बनाये जो कि युद्ध कला में माहिर थे। उसके पश्चात ये भागे हुए राजकुमार (राजपूत) सेना की सहायता से आसपास के राज्य में लुटमार करते थे। इस प्रकार उनका इन सारी क्रियाओं से लोगों के बीच शक्ति, सम्मान और भय बढ़ता गया, केवल उनका ही नही बल्कि भीलों के मुखियों का भी सम्मान और भय कायम होने लगा और इस प्रकार वे राजपूत के ओर करीब आ गये जो आगे चलकर भिलाला कहलाये।
इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि भिलाला जनजाति सामाजिक एवं ऐतिहासिक रूप से राजपूत शासकों से जुड़े हुए है जिससे भिलाला जनजाति के लोगों की सामाजिक स्थिति राजपूतों की सामाजिक स्थिति के समान है। भिलाला जनजाति के लोगों का मानना है कि मध्यभारत की पहाड़ियों में रहने वाली भील महिलाओं का राजपूत पुरुषों के साथ विवाह होने के पश्चात उनकी उत्पत्ति हुई तथा भिलाला जनजाति के लोगों के परिवारों में यह देखने को मिलता है। रसेल एवं हीरालाल (1916) के अनुसार, भिलाला जनजाति के सदस्यों की जनसंख्या लगभग सन् 1911 में लगभग 1,50,000 थी।
भिलाला जनजाति का विभाजन
R.K. Sinha (1995:4.5) के अनुसार, भिलाला लोग सामान्यत: अपने आप को भागे हुए राजपूतों का वंशज बताते हैं और राजपूत उच्च प्रस्थिति का दावा करते हैं। यह देखा गया है कि अन्तर्विवाही भिलाला जनजाति के मुख्यत: चार भागों में विभक्त हैं जो कि राठिया 41 भिलाला, भगौर भिलाला, उरप्पे (धापले) भिलाला और दरबार भिलाला है। राठीया भिलाला अलीराजपुर जिले में निवास करते हैं। भगौर भिलाला झााबुआ जिलें में निवास करते हैं, उरप्पे या धापले भिलाला धार जिले में निवास करते हैं जबकि दरबार भिलाला पष्चिम् निमाड़ एवं पूर्वी निमाड़ अर्थात् खरगौन एवं खण्डवा जिले में निवास करते हैं। चूकिं हमारा अध्ययन का क्षेत्र अलीराजपुर जिला है जहां पर राठीया भिलाला निवास करते हैं, इसलिए हमने यहां सिर्फ राठींया भिलाला का ही वर्णन किया गया है। राठीया भिलाला सामान्यत: जंगलों एवं पहाड़ों में निवास करते हैं इनकी जमीन में उत्पादन अपेक्षाकृत कम होता है तथा कही-कही पर पत्थरों से भरा पड़ा है। इन्होंने अपना भिलाला जागीर स्थापित किया है जो अमनकुआ नाम से जाना जाता है जो कि अलीराजपुर जिले के जोबट तहसील में स्थित है। पुन: भिलाला जनजाति के लोग दरबार समुदाय के राजपूत शासकों को नजदीक संबंध के कारण अपने आप को सच्चे राजपूत होने का दावा करते हैं।भिलाला जनजाति के परिवार पितृसत्तात्मक होते हैं जिस कारण इनके परिवार का मुखिया बुजुर्ग व्यक्ति होता है। S.k Singh (1994:131.132) का कहना है कि इस जनजाति में पुरुषों की प्रधानता देखने को मिलती है किन्तु महिलाओं को भी ऐसे कई सारे अधिकार दिये जाते हैं जो कि सभ्य समाज में कभी नहीं दी जाती है, इस जनजाति में सती प्रथा नहीं पाई जाती है। इस जनजाति में तलाक सरलता से दिया जाता है किन्तु ऐसा किसी विशेष परिस्थिति में ही होता है। इस जनजाति में महिलाओं को मूल्यवान माना जाता है क्योंकि इनमें वधु मूल्य देना पड़ता है। इस जनजाति में महिलाएं पुरुष के बराबर काम करती है चाहे वह सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक ही क्यों न हो। परिवार में बच्चों के भरण-पोषण एवं श्रम वाले कार्य पुरुष करता है जबकि बच्चों का पालन-पोषण घर का सम्पूर्ण काम एवं खेत का काम महिलाओं का होता है।
K.S.Singh (1994:132) के अनुसार, सम्पत्ति का हस्तान्तरण मृत व्यक्ति से उसके पुत्रों में होता है महिलाएं घर एवं कृशि कार्य करती है साथ ही जंगल से जलाने की लकड़िया एकत्रित करती है बच्चे के जन्म के सातवें दिन माता अपने बच्चे का नामकरण करती है। भिलाला जनजाति की शारीरिक बनावट भिलाला जनजाति के लोगों का कद छोटा देखने को मिलता है, पुरूषों का कद महिलाओं से कुछ अधिक पाया जाता है। पुरूष सामान्यत: 5 फीट 7 इंच लम्बे देखने को मिलते हैं। इनकी शारीरिक बनावट सुसंगठित होती है। ये दिखने में सुन्दर होते है एवं इनकी त्वचा भीलों की अपेक्षा गोरी होती है। बाल गहरे काले एवं भूरे मूलायम होते है। इस जनजाति के सदस्यों की नाक सामान्य पायी जाती हैं। शरीर व दाढ़ी पर बाल कम एवं कुछ लोगों में अधिक देखने को मिलते हैं। डाँ. श्रीनाथ शर्मा, (2016:140) ने कहा है कि भिलाला जनजाति के सदस्य सामान्यत: शरीर रचना में भील जनजाति के सदस्यों के समान है। भिलाला जनजाति के सदस्य कद में भीलों से कुछ लम्बे होते हैं तथा इनका रंग भीलों की तुलना में कम सांवला और कद कांसे की रंगत वाला होता है।
भिलाला जनजाति के खान-पान, वस्त्र एवं आभूषण
भिलाला जनजाति के लोग सामान्यत: पुरुषों में धोती, कमीज, तोलिया एवं हाफ नेकर (हॉफ पेन्ट) तथा महिलाओं में लुगड़ा-घाघरा एवं चोली और लड़किया लुगड़ा की जगह उन्नी पहनती है। किन्तु वर्तमान समय में हिन्दूओं एवं इसाईयों के साथ-साथ वैश्विक संस्कृति के सम्पर्क में आकर इनकी संस्कृति को अपना रहें है। जैसे कि पुरुषों में पैन्ट, शर्ट, जीन्स-टीशर्ट एवं महिलाओं में जीन्स-टीशर्ट, सलवार-सूट, सलवार-कमीज एवं जीन्स-टॉप पहनने लगी है।खान-पान
भिलाला जनजाति के लोग सामान्यत: मांस एवं शराब का सेवन करते हैं क्योंकि इस जनजाति के लोग प्रकृति पूजक होने के कारण सबसे पहले शराब एवं बलि देने के लिए बकरे एवं मुर्गे की ही व्यवस्था करते हैं। इनकी संस्कृति ही ऐसी है कि पूजा करते समय ये सबसे पहले शराब की ही धार डालते हैं एवं मुर्गे एवं बकरे की बलि देते हैं। लेकिन जनजातीय गांवों में भागवत कथाओं, गायत्री माता का यज्ञ के होने तथा सेवा भारती के द्वारा कार्यक्रम करवाने के कारण इस जनजाति के कुछ लोग हिन्दूओं से प्रभावित होकर उनकी संस्कृति को अपना रहें हैं जिस कारण वर्तमान में कुछ लोग मांस, शराब, अण्डें एवं मछली का सेवन नही करते हैं। सामान्यत: इस जानजाति के लोग खाने में गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा, धान, उड़द, मूंग, चवले, अरहर, चना एवं कुल्थ्ये आदि का उपयोग करते हैं। हालांकि ‘दाल-पानिये’ लक्ष्मणी गांव के प्रसिद्ध माने जाते हैं और इसी गांव से पूरे अलिराजपुर में प्रसिद्ध हुए हैं।वर्तमान में कुछ लोग दाल-बाटी, दाल-पानिये एवं पक्की रसोई जैसे कि पूरी-सब्जी, बेसन के भजिये एवं मिर्ची, खीर-पूरी, मिठाई एवं नमकीन आदि भी खाने लगे हैं। मांस, मदिरा एवं दाल-पानिये इस जिले का विशेष खाना है तथा त्योहारों में ये चावल को अधिक महत्व देते हैं क्योंकि त्योहारों, उत्सवों एवं विवाह आदि के समय सबसे पहले पके हुए चावल को इनके अपने देवताओं अर्थात खतरियों को अर्पित करते हैं तथा कच्चे चावल एवं ज्वार के दाने की पूंज रखते हैं। भिलाला लोग विशेषकर मद्यपान के शौकीन होते हैं एवं मद्यपान अपने घर में ही अपने हाथों से बनाते हैं मद्यपान इनके धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक मनोरंजन का महत्वपूर्ण साधन हैं।
पश्चिम पुर्वी निमाड़ के दरबार के बारे में भी बताये!!!
ReplyDeleteAcha likha gya he lekin ye sab bato se gaaw wale nhi jante or hindu dharm apnane chale he, pde likhe log hindu devta ki pooja, upasna krte he to anpad log kon samjhaye, or ye bhil bhilala ek hi he koi jati nhi bhedbhaw kb khatm hoga
ReplyDeleteHn. Bhai sab ek hi hai garv se kaho hum hindu hai
DeleteBro .. insta I'd arjunroy_11
Haa bhai sch kaha,bhil-bhilala sbh ekk hai
ReplyDeleteगर्व से कहो हम आदिवासी है
Hm koi hindu/sanatani/baraman dhrm se nhi hai
Hmari alg pehchan hai hum bhil(bhilala) hai
Jay johar
Jay
Jay bhim
Jay Aadiwasi
Jaisa humare bhaat ne bataya thik usi se milta julta likha h , jo bhi sach h bhaat logo k pas sab jankari h in sab ki , pura record maintain kiye hue h
ReplyDeleteJai Rajputana Jai Adiwasi
ReplyDeleteMe Jati Se Pahle Dharm ko Manta Hu
ReplyDeleteBolo Satya Sanatan Dharm ki Jay
Garv Se Kaho Ham Hindu He
Me Sumit Jati Se Bhilala Rajput Hu Pr Isse Pahle me Hindu Hu
Mere Dada PardaDa Abhiwadan Me Ram Ram Kahte The Or Hum Aaj Bhi Abhiwadan Me Ram Ram Bolte
Jay Shri Ram🚩🚩🙏
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